सोमवार, 14 मई 2012

रोज़ एक शायर में आज-रमेश नाचीज़



फसाद-दंगों का डायर तलाश करना है।
सुकूनो-अम्न का रहबर तलाश करना है।
भटक रहा हूं अभी तक नहीं मिली मंजि़ल,
कमी है क्या मेरे अंदर तलाश करना है।
हैं कितने लोग जो इस मुल्क में किसी कारण,
भटकते फिरते हैं बे-घर तलाश करना है।
अभी से कैसे मना लूं मैं जश्न मंजि़ल का,
अभी तो मील का पत्थर तलाश करना है।
वो कहता फिरता है दो ग़ज ज़मीन की ख़ातिर,
एलाट करने का दफ्तर तलाश करना है।
अभी ऐ मौत तेरे साथ मैं चलूं कैसे,
अभी तो बेटी का शुभ वर तलाश करना है।
ग़मे-जहान है ‘नाचीज़’ सच है ये लेकिन,
मुझे तो बस हसीं मंज़र तलाश करना है।
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प्यार ही हर जगह उगाना है।
लाख यह आधुनिक ज़माना है।
आदमी, आदमी से डरता है,
आदमीयत से जग बिराना है।
दर्द को जि़न्दगी समझते है,
जि़न्दगी को हमीं ने जाना है।
कोई अपना नहीं ज़माने में,
और सारा जहां घराना है।
आपको इसलिए दिया मौक़ा,
आपको भी तो आज़माना है।
सीख ले जंग भूख से करना,
यह हुनर ही तो काम आना है।
सिर्फ़ बातों से कुछ नहीं होत,
ये तो बस फ़ाख़्ता उड़ाना है।
लोग ‘नाचीज़’ को भी जानेंगे,
एक दिन वह समय भी आना है।
मोबाइल नंबरः 9935795254

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