शनिवार, 28 अगस्त 2021

टी-सीरीज के चहेते गीतकार थे अंजुम ग़ाज़ीपुरी

                                   

अंजुम ग़ाज़ीपुरी

          

                                                                   - मोहम्मद शहाबुद्दीन ख़ान   


 गुलशन कुमार ने 11 जुलाई 1983 को टी-सीरीज कंपनी की स्थापना की। तब आॅडियो कैसेट खूब बिकते थे, लोग टेपरिर्काडर सुनते थे। रेडिया के बाद यही मनोरंजन के मुख्य साधनों में से एक हुआ करता था। गुलशन कुमार की यह कंपनी चल पड़ी, इसके कैसेट्स खूब बिकते थे। इसी दौरान अंजुम ग़ाज़ीपुरी ने गुलशन कुमार के टी-सीरीज कंपनी के लिए गाने लिखना शुरू किया, इनके गीतों ने तहलका सा मचा दिया। पूरे हिन्दुस्तान में अंजुम ग़ाज़ीपुरी के गीत बजने लगे। अपनी मेहनत और क़ाबलियत से उन्होंने यह मकाम बना लिया था। अंजुम ग़ाज़ीपरुी का असली नाम रियासत हुसैन था, इनकी पैदाईश एक जनवरी 1945 को ग़ाज़ीपुर जिले के बहुअरा गांव के पूरब मोहल्ला स्थित हनीफ हुसैन के घर हुआ था। हनीफ हुसैन कोलकाता के एक जूट कंपनी में काम करते थे। अंजुम की मां सकीना खातून जो नेक दिल घरेलू खातून थी। अंजुम एक बहन और तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई जलील अहमद कमसारोबार इलाके में मशहूर कव्वालों में जाने जाते थे। अंजुम को गाने-बजाने व शायरी करने के साथ पढ़ने का शौक अपने बड़े भाई से मिली थी। वे गाने के साथ बिंजु से सुरीली धुन देते थे। उनकी इब्तेदाई तालीम गांव के प्राइमरी मदरसे से हुई। उसके बाद वो अपने वालिद के साथ कोलकाता पढ़ने चले गये। वहां से उन्होंने इंटरमीडिएट करने के बाद अदीब कामिल और फ़ाज़िल की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के बाद माता-पिता ने उनकी शादी अपने पैतृक गांव बहुअरा में ही डिप्टी कादीर हुसैन की बेटी शमीम बानो से कर दी। शादी के कुछ दिनों बाद माता-पिता का निधन हो गया। 

 शादी के बाद उन्होने घर का खर्च चलाने के लिए कई छोटी-छोटी नौकरियां कीं। फिर भाई जलील कव्वाल के वफ़ात के बाद गाजीपुर के कव्वाल टीम में शामिल होकर अपने साथियों को इकट्ठा करके कव्वाली गाने की काम शुरू कर दिया, लेकिन उन दिन कव्वाली से कोई ख़ास आमदनी नहीं होती थी। सन 2006 में वाराणसी के एक मुशायरे में उनकी मुलाकात टी-सीरीज कंपनी के चीफ दीप मोहम्मदाबादी से हुई। दीप मोहम्मदाबादी उन्हें दिल्ली बुलाकर उन्हें टी-सीरीज के कैसेेट्स के लिए गीत लिखने का मौका दिया। अंजुम के लिखे गीत, कव्वाली, नात वगैरह जब रिकार्ड होकर मार्केट में आए तो तहलका सा मच गया। अंजुम ने टी-सीरीज के लिए सैकड़ों नज़्म, भोजपुरी गीत, भक्ति व देश भक्ति लोक गीत, मर्शिया, नात व ग़ज़लें लिखी। इनके लिखे नग़मों को तस्लीम आरीफ, टीना परवीन, बरखा रानी, तृप्ति सकयां व रुखसाना बानो, मनोज तिवार वगैरह ने आवाज दी। इन्होंने ‘माहे रमजान’, ‘तैबा चला कारवां’, ‘ख़्वाज़ा का दर नूरानी’ ‘आजा गोरी’, ‘पूर्णागिरी’, ‘राजू हिंदुस्तानी’, बेवफ़ा तेरा मासूम चेहरा, ‘शाम वाली गाड़ी’, ‘भोलेनाथ बनके विश्वनाथ बनके’, ‘चल दीवाने देवा चल’, ‘ऐ मेरी गुलनार चमेली’, ‘गांव के छोरी’, ‘शाम वाली गाड़ी’, ‘टाइम बम है तेरी जवानी’, ‘गांव के छोरी’, ’समधी सीटी मारे;, ‘चढ़ती जवानी होली खेले’ और ‘बगलवाली’ आदि कैसेट्स के लिए गीत लिखे हैं। इनके कुछ मशहूर गीतों में- ‘तूं हसीं मैं जवां गुलबदन रेशमा’, ‘तू तो है बेवफा लूट करके मजा’, ‘पास आके जब दिल की दूरियां मिटाओगी’, ‘हम से दूर परदेसी तुम भी रह न पाओगे’, ‘तुम तो ठहर परदेशी’, ‘गाल गुलाबी नैन शराबी तेरे’, ‘बेगम लखनऊ वाली’, ‘नज़रे करम साबिर’, ‘साबिर के दर पर चलिए’, ‘राम व श्याम’, ‘जोता वाली तेरा जवाब नहीं’ वगैरह हैं।

 उनके जीवन का आखिरी दौर बहुत मुफलिसी में गांव में ही गुजरी। 19 जनवरी 2021 को उनका इंतिकाल हो गया। अंजुम गाजीपुरी के दो बेटे और तीन बेटियां हैं। बड़े बेटे का नाम शकील अंजुम व छोटे का परवेज अंजुम और बेटियों के नाम इशरत जहां, नुसरत जहां, मुसर्रत जहां हैं।

(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2021 अंक में प्रकाशित )

 


गुरुवार, 5 अगस्त 2021

साहिर की शायरी में है जनता की आवाज़: फ़ातमी

गुफ़्तगू की तरफ से साहिर लुधियानवी जन्म शताब्दी समारोह 
देशभर के 21 ग़ज़लकारों को मिला ‘साहिर लुधियानवी सम्मान’

पुलिस महानिरीक्षक कवींद्र प्रताप सिंह



‘देश के 21 ग़ज़लकार’ का विमोचन


प्रयागराज। साहिर लुधियानवी की शायरी में जनता की आवाज़ स्पष्ट रूप से जगह-जगह दिखाई और सुनाई देती है, उन्होंने अपनी शायरी के कथन को लेकर कभी समझौता नहीं किया। वे फिल्मों के लिए गीत अपनी शर्तों पर ही लिखते थे। यह बात मशहूर उर्दू आलोचक प्रो. अली अहमद फ़ातमी ने 04 अगस्त को गुफ़्तगू की ओर से निराला सभागार में आयोजित ‘साहिर लुधियानवी जन्म शताब्दी समारोह’ के दौरान कही। प्रो. फ़ातमी ने कहा कि साहिर सिर्फ़ एक फिल्मी गीतकार ही नहीं थे, उन्होंने कई सामाजिक कार्य किए, कई पत्रिकाओं का कामयाब संपादन भी किया, उनकी संपादकीय में बहुत तल्ख सच्चाई होती थी, जिसकी वजह से उनके उपर कई बार मुकदमे भी कायम हुए थे। उन्होंने फिल्मों में साहित्य को स्थापित करने का भी काम किया। कार्यक्रम के दौरान इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी की ओर संपादित पुस्तक ‘देश के 21 ग़ज़लकार’, अलका श्रीवास्तव की पुस्तक ‘किसने इतने रंग’, जया मोहन की पुस्तक ‘बिरजू की बंसी’ और गुुफ़्तगू के नए अंक का विमोचन किया गया।



साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करते रामावतार सागर



साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करते डाॅ. क़मर आब्दी



साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करते डाॅ. राकेश तूफ़ान



साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करते तामेश्वर शुक्ला तारक



साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करते अनिल मानव


साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करते डाॅ. इम्तियाज़ समर

 

साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करते रईस अहमद सिद्दीक़ी
मुख्य अतिथि पुलिस महानिरीक्षक कवींद्र प्रताप सिंह ने कहा कि मैं साहिर के बारे में बहुत अधिक तो नहीं जानता लेकिन उनके लिखे फिल्मी गीत बचपन से ही सुनते आए हैं। उनकी याद में गुफ़्तगू की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में आकर  कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं। साहिर के बारे में वक्ताओं की बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा। गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि साहिर लुधियानवी अपने दौर के बहुत ही महत्वपूर्ण शायर थे, उनके 100वें जन्मदिन पर उन्हें याद करना बेहद ज़रूरी था, उनका इलाहाबाद सेे भी तअल्लुकात थे, उनकी रिश्तेदारियां यहां थीं, जिसकी वजह से वो यहां कई बाए आए थे।

साहित्यकार रविनंदन सिंह ने कहा कि 1950 से 1970 के दौर में मज़रूह, कैफ़ी समेत कई बड़े शायर थे, उसी समय साहिर का शायरी की दुनिया में उदय हुआ था। 23 वर्ष की उम्र में उनका पहला काव्य संग्रह ‘तल्खियां’ प्रकाशित हुई थी, पहला संग्रह छपकर आते ही वो देश के बड़े शायर के रूप में उभरक सामने आ गए। पहले फिल्मों के पोस्टर पर गीतकार का नाम प्रकाशित नहीं होता था, लेकिन साहिर ने ही निर्माताओं से लड़ाई लड़कर इसकी शुरूआत कराई। कार्यक्रम का संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया। दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। नीना मोहन श्रीवास्तव, नेरश महरानी, शिवपूजन सिंह, सरिता श्रीवास्तव, संजय सक्सेना, शिवाजी यादव, अफसर जमाल, शिबली सना, सम्पदा मिश्रा, जया मोहन, मधुबाला, अजीत इलाहाबादी, श्रीराम तिवारी, अतिया नूर आदि ने कलाम पेश किए।


इन्हें मिला साहिर लुधियानवी सम्मान -




नागरानी(अमेरिका), विजय लक्ष्मी विभा (प्रयागराज), अर्श अमृतसरी (दिल्ली), रामकृष्ण विनायक सहस्रबुद्धे (नागपुर), फ़रमूद इलाहाबादी (प्रयागराज), ओम प्रकाश यती(नोएडा), इक़बाल आज़र(देहरादून), मणि बेन द्विवेदी (वाराणसी), उस्मान उतरौली(बलरामपुर), रईस अहमद सिद्दीक़ी (बहराइच), डाॅ. इम्तियाज़ समर (कुशीनगर), रामचंद्र राजा (बस्ती), डाॅ. रामावतार मेघवाल (कोटा), डाॅ. क़मर आब्दी (प्रयागराज), विजय प्रताप सिंह (मैनपुरी), डाॅ. राकेश तूफ़ान (वाराणसी), डाॅ. शैलेष गुप्त वीर (फतेहपुर), तामेश्वर शुक्ला तारक (सतना), डाॅ. सादिक़ देवबंदी (सहारनपुर), अनिल मानव (कौशांबी) और ए. आर. साहिल (अलीगढ़)  






साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करतीं मणि बेन द्विवेदी


साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त फ़रमूद इलाहाबादी

साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करते रामकृष्ण विनायक सहस्रबुद्धे

साहिर लुधियानवी सम्मान प्राप्त करतीं विजय लक्ष्मी विभा