गुरुवार, 25 मई 2023

समय की बात करती हैं प्रमोद दुबे की कहानियां

डॉ. समर की ग़ज़लें वास्तविक समय का चित्रण

दो किताबों के विमोचन पर बोले मशहूर न्यूरो सर्जन डॉ प्रकाश खेतान



प्रयागराज। आज के समय में अपनी रचनाओं के जरिए समाज की विडंबनाओं को उकेरना, ग़लत चीज़ों के खिलाफ़ अपनी रचनाओं के जरिए खड़ा होना बड़ी बात हैं। कहानियों और ग़़ज़लों के जरिए क़लमकार अपनी बात कहता आया है और आगे भी कहता रहेगा। यह चीज़ स्पष्ट रूप से प्रमोद दुबे की कहानी संग्रह ‘घोंसला’ और डॉ. इम्तियाज़ समर के ग़ज़ल संग्रह ‘मोहब्बत का समर’ में दिखाई देती हैं। इन दोनों ही लोगों ने वर्तमान समय की विसंगतियों को समझा, देखा और परखा है, इसी हिसाब से सृजन किया है। यह बात 21 मई 2023 को साहित्यिक संस्था ‘गुफ़्तगू’ की ओर से करेली स्थित अदब घर में अयोजित कार्यक्रम के दौरान  मशहूर न्यूरो सर्जन और कवि डॉ. प्रकाश खेतान ने अपने वक्तव्य मेें कही।

श्रीप्रकाश मिश्र


गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि प्रमोद दुबे और डॉ. इम्तियाज़ समर 21वीं सदी के उल्लेखनीय रचनाकार हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं से शानदार उपस्थिति दर्ज़ कराई है। डॉ. वीरेंद्र तिवारी ने कहा कि प्रमोद दुबे ने अपनी कहानियों में समाज की विसंगतियों को बहुत ही मार्मिक ढंग से रेखांकित किया। रेलवे में नौकरी करते हुए श्री दुबे ने जो-जो अनुभव किया, उसका बहुत सटीक ढंग से मूल्यांकन और रेखांकन किया है। कहीं-कहीं इनकी कहानियों में प्रेमचंद की कहानियों के पुट भी मिलते हैं।



 डॉ. प्रकाश खेतान

अजीत शर्मा ‘आकाश’ ने कहा कि डॉ. इम्तियाज़ समर को ग़ज़ल की बारीकियों और छंद-बह्र की बहुत अच्छी जानकारी हैं। यही वजह है कि इनके कहन में ग़ज़ल का सलीक़ा और परंपरा पूरी तरह से जगह-जगह दिखाई देती है। आज के समय में ऐसी ही ग़ज़लें लिखे जाने की आवश्यकता है।

इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी


 प्रमोद दुबे ने कहा कि आज प्रयागराज आकर यहां की साहित्यिक गतिविधियों को देखकर धन्य हो गया। जिसके लिए यह शहर मशहूर है, वह आज स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। डॉ. इम्तियाज़ समर ने कहा कि गुफ़्तगू और प्रयागराज ने साहित्य की परंपरा को बरकरार रखा है, यह हमारे लिए गर्व की बात है। मेरी किताब का यहां विमोचन मुझे गौरवान्वित करता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि लिखना आपके प्रगतिशील होने का प्रमाण है, जो व्यक्ति प्रगतिशील होता है, वहीं अपने विचारों कागज पर उकेरता है। प्रमोद दुबे और डॉ. इम्तियाज़ समर की रचनाएं मौलिक, पारदर्शी और समाज को दिशा देने वाली हैं, आज के समय में ऐसे ही लेखन की आवश्यकता है। कार्यक्रम का संचालन अजीत शर्मा ‘आकाश’ ने किया। 

दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। नरेश महरानी, अफसर जमाल, प्रभाशंकर शर्मा, संजय सक्सेना, शिवाजी यादव, अर्चना जायसवाल, मुसर्रत जहां, फ़रमूद इलाहाबादी, विजय लक्ष्मी विभा, किरन प्रभा, असलम निज़ामी, भारत भूषण वार्ष्णेय, आसिफ उस्मानी आदि ने कलाम पेश किया।


मंगलवार, 16 मई 2023

स्तरीय काव्य रचनाओं का श्रेष्ठ संग्रह

                                   - अजीत शर्मा ‘आकाश’

                                             

 
‘हमारे चाहने वाले बहुत हैं’ कवि एवं शायर स्व. पं. बुद्धिसेन शर्मा का काव्य संग्रह है, जिसे उनके परम शिष्य डॉ. कण्व कुमार मिश्र ‘इश्क’ सुल्तानपुरी ने प्रकाशित करवाया। पुस्तक के प्रारंभ में डॉ. कण्व कुमार मिश्र, यश मालवीय, फ़ारूक़ जायसी, ताहिर फ़राज़, इम्तियाज़ अहमद ‘ग़ाज़ी’, डा. वेद प्रकाश शुक्ल ‘संजर’, इबरत मछलीशहरी और मनमोहन सिंह ‘तन्हा’ के महत्वपूर्ण आलेख हैं, जो बुद्धिसेन शर्मा के जीवन परिचय तथा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पर्याप्तरूपेण प्रकाश डालते हैं। इस पुस्तक में बुद्धिसेन शर्मा की 61 ग़ज़लें एवं फुटकर शेर, 91 दोहे, तथा 10 गीत सम्मिलित हैं। रचनाएं संख्या में भले ही कम हैं, किन्तु वे गुणवत्तापूर्ण हैं, जो एक सच्चे कवि की कसौटी होती है। समस्त रचनाएँ काव्य व्याकरण तथा ग़ज़ल व्याकरण की कसौटी पर पूर्णरूपेण खरी उतरती हैं। ग़ज़लों की फ़ारसी बह्रें हों अथवा हिन्दी के शास़्त्रीय छन्द हों, दोनों की काव्यशास्त्रीय शर्तों का पूर्ण निर्वाह किया गया है। इसी कारण सम्पूर्ण काव्य में भरपूर रवानी तथा लय एवं यति का सुन्दर सामंजस्य एवं निर्वाह है। एक-एक रचना पढ़ते समय पाठक रचनाकार के साथ तत्काल तादात्म्य स्थापित कर लेता है। संग्रह में कुछ गीत और दोहे भी हैं, लेकिन रचनाकार की विशेष पहचान ग़ज़लों से होती नज़र आती है। उनकी शायरी में सूफ़ियाना रंग झलकता है। रचनाओं की भाषा अत्यन्त सरल, सहज एवं बोधगम्य है। आम बोलचाल की हिन्दुस्तानी भाषा में लिखी गयी रचनाएं पाठक के दिलो-दिमाग़ में उतर जाती हैं। 
पुस्तक में सम्मिलित ग़ज़लों के कुछ अंश प्रस्तुत हैं-‘राजनीति के गलियारों में मत जाना/ नागिन अपने बच्चों को खा जाती है।, ‘हमारी जान का बचना है मुश्किल/हमारे चाहने वाले बहुत हैं।’, ‘ये गुरुद्वारे ये गिरजा और ये बुतख़ाने बना डाले/हज़ारों रूप तेरे तेरी दुनिया ने बना डाले।’, ‘रास्ता तो एक ही था, ये किधर से आ गये/ बिछ गयी क्यों इनके नीचे बनके चादर रौशनी।’ पुस्तक में शामिल कुछ गीत इस प्रकार से हैं-‘जिस तट पर प्यास बुझाने में अपमान प्यास का होता हो/उस तट पर प्यास बुझाने से प्यासा मर जाना बेहतर है।’, ‘शस्त्रों से सजी हुई बीसवीं सदी अपने ही लोगों की है/अपनी संगीनें हैं, अपने ही सीने, अपनों का अपनों से अन्धा टकराव/घड़ी-घड़ी मरहम है, घड़ी-घड़ी घाव।’ कहा जा सकता है कि ‘हमारे चाहने वाले बहुत हैं’ काव्य संग्रह में सामाजिक सरोकार, जीवन एवं उसकी विसंगतियां तथा भ्रष्ट राजनीति और उच्छ्रंखल समाज और सामाजिक परिस्थितियों की विडम्बना पर किये गये सटीक व्यंग्य रचनाकार के कृतित्व की वास्तविक पहचान हैं। 144 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 300 रूपये है, जिसके रचनाकार बुद्धिसेन शर्मा हैं, पुस्तक को गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है।

विविध रंगों से सुशोभित ‘अम्बर छलके’




 ‘अम्बर छलके’ काव्य संग्रह में डॉ.एस.एन.भारद्वाज ‘अश्क’ की कविता, गीत एवं ग़ज़ल की रचनाएं सम्मिलित हैं। संकलन को आराधन, राष्ट्र, भाव, तरुण, महाव्याधि शोक एवं ग़ज़ल- इन सात तरंगों में विभाजित किया गया है। आराधन-तरंग में आध्यात्मिक भावों की 6 रचनाएं सम्मिलित हैं। राष्ट्र-तरंग में 6 देश प्रेम की रचनाएं हैं। भाव-तरंग में विभिन्न मनोभावों का चित्रण एवं प्रकृति वर्णन है। हास्य-व्यंग्य की कुछ रचनाओं को भी इसमें स्थान प्रदान किया गया है। तरुण-तरंग में कवि के कथनानुसार अल्हड़ उम्र की कुछ कविताएं है। महाव्याधि की शोक-तरंग के अन्तर्गत कोरोना काल से सम्बन्धित 8 रचनाएं पुस्तक में हैं। ‘मैंने ईश्वर देखा है’, ‘आशा के सपने’, ‘सड़क पर ग़रीब’, ‘बस कोरोना को रोना क्यूं’ रचनाओं के माध्यम से कोरोना की विभीषिका को दर्शाते हुए लोगों की मानसिक, शारीरिक, आर्थिक स्थितियों एवं जीवन-संघर्ष को प्रदर्शित करने की चेष्टा की गई है। अंतिम भाग ग़ज़ल-तरंग में रचनाकार की 10 ग़ज़लें सम्मिलित हैं, जिनमें ग़ज़ल के व्याकरण एवं इसकी अन्य शर्तों को पूरा करने का प्रयास किया गया है।
 पुस्तक में सम्मिलित कविताओं, गीतों एवं ग़ज़लों में विभिन्न मनोभावों एवं विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करने की चेष्टा की गई है। इनका वर्ण्य विषय प्रमुखतः श्रृंगार एवं प्रणय, वर्तमान समाज का चित्रण, जीवन की अनुभूतियां एवं संवेदनाएं, सामाजिक सरोकार, आम आदमी का संकट, जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण आदि है। कथ्य की दृष्टि से रचनाओं में विविधता परिलक्षित होती है। यथा-‘माँ ! मुझको एक रोटी दे दे’ कविता के अन्तर्गत एक बालक की अपनी मज़दूर माँ से एक ख़्वाहिश- भूख से मुझे निजात दिला दे/अपन दुख मां किसे सुनाऊँ/ख़ाली पेट न मैं सो पाऊं/गिरा अभावों की खाई में/उम्मीदों की चोटी दे दे/मां ! मुझको एक रोटी दे दे। रचनाओं की भाषा सहज एवं भावानुकूल है। आम भाषा से लेकर साहित्यिक भाषा तक के शब्दों का प्रयोग इनमें किया गया है। कहीं-कहीं सामान्य बोलचाल के अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग है। इस काव्य संग्रह की कुछ रचनाओं की झलकें प्रस्तुत हैः- करें विचार एक क्षण, जो उत्सवों में लीन हैं/स्वतंत्र वो भी हों कि जो स्वतंत्रता विहीन हैं (“जो स्वतंत्रता विहीन हैं”)। कोना-कोना खिल जाएगा मुरझाऐ तन-मन का/काश कहीं से फिर आ जाए दौर सुहाना बचपन का  (“बचपन”)। थोड़े-से सच्चे हो जाएँ/आओ फिर बच्चे हो जाएँ! (“स्नेह-सूत्र”)। इनके अतिरिक्त “धूप और बारिश”, “शान्त शरद आया”, “भोर का गीत” आदि कविताएं भी सराहनीय हैं। तकनीकी दृष्टिकोण से पुस्तक का मुद्रण, गेट अप, शब्द संयोजन उत्तम कोटि का है तथा आवरण पृष्ठ आकर्षक है, यद्यपि प्रूफ़ आदि तकनीकी दोष भी कहीं-कहीं रह गये हैं। कुल मिलाकर ‘‘अम्बर छलके...’’ डॉ. एस.एन.भारद्वाज ‘अश्क’ का एक अच्छा काव्य-संग्रह है। अमृत प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित 136 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 400 रुपये है।

गांवों की पहचान है मिट्टी की सोंधी महक




  अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’ के ‘सोंधी महक’ काव्य संग्रह में आज के ग्राम्य जीवन एवं ग्रामीण परिवेश की अनेक परिदृश्य प्रस्तुत किये गये हैं। संग्रह में कुल 30 कविताएं सम्मिलित हैं, जिनमें गांव एवं उसके जन-जीवन’ का चित्रण परिलक्षित होता है। कविताओं में गांव के साथ-साथ समाज और देश की चिन्ताओं को भी उजागर करते हुए अनेक सामाजिक एव राजनीतिक विसंगतियों पर प्रहार करने का प्रयास किया गया है। रचनाकार ने वर्तमान ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण करने की चेष्टा की है। किसानों को कभी सूखा और कभी बाढ़ का क़ह्र झेलना पड़ता है। कर्जों में फंसे, तंगी में जीते, छोटे-छोटे झगड़ों को निपटाने के लिए कचहरी के चक्कर लगाते हुए भोले-भाले ग्रामीण अपना जीवन बिता देते हैं। कृषि कार्य से अब एक सामान्य कृषक के पूरे परिवार की ज़रूरतें को पूरी नहीं हो पाती। इसके अतिरिक्त जनसंख्या विस्फोट, रूढ़िवादिता तथा अंधविश्वासों से भी ग्रामीण जन ग्रसित हैं। गरीबी और अशिक्षा के कारण पुरानी परंपराओं तथा सामाजिक बंधनों ने उन्हें जकड़ रखा है। आज गांव में भी बदलाव आता जा रहा है। अनेक विसंगतियाँ ग्रामीण जनों को भी घेरती सी दृष्टिगत होती हैं। गांववासी विशेषकर युवा, नगरों की चकाचौंध से प्रभावित होते जा रहे हैं। उन्हें गांवों में रहना अब अच्छा नहीं लगता। वह शिक्षा, नौकरी और सुख सुविधाओं का पीछा करते हुए नगर पहुंचना चाहता है। इन सभी समस्याओं को संग्रह की कविताओं में स्थान दिया गया है।
 संग्रह की लगभग सभी कविताओं में बुधिया नामक पात्र एक आम ग्रामीण का प्रतिनिधित्व करता है, जिसको केन्द्रित कर ग्रामीणजन की छटपटाहट एवं उसके भीतर की कसक तथा गांवों की दशा-दुर्दशा को शब्दचित्रों के माध्यम से उजागर किया गया है। कहा जा सकता है कि सभी रचनाएँ ग्राम्य जनों के मनोभावों एवं ग्रामीण परिवेश को व्यक्त करने में काफ़ी हद तक सफल रही हैं। पुस्तक को पढ़ना ग्राम्य जीवन को समझना है। संग्रह की कविताएँ गाँव में बोली जाने वाली सहज एवं सरल भाषा में हैं, जिनमें आम बोलचाल के शब्दों का ही प्रयोग किया गया है। पुस्तक का मुद्रण एवं कवर पृष्ठ आकर्षक है। 128 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 175 रूपये है, जिसे गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है।

सृजनात्मक लेखन का सराहनीय प्रयास



 ‘अक्षर-अक्षर गढ़कर’ काव्य संग्रह में कवयित्री शगुफ़्ता रहमान ‘सोना’ की 97 कविताएँ सम्मिलित हैं। इन रचनाओं के माध्यम से जीवन की विसंगतियों एवं विभिन्न परिस्थितियों को पाठकों के समक्ष लाने का प्रयास किया गया है। रचनाओं का वर्ण्य विषय प्रमुख रूप से सामाजिक एवं राजनीति व्यवस्था, समाज के प्रति चिन्तन, मानवता का कल्याण, सामाजिक समरसता आदि है। इसके अतिरिक्त देशभक्ति, नारी शक्ति, प्रकृति का सौन्दर्य के साथ ही प्रेम एवं र्श्रृगार से सम्बन्धित कविताएं भी हैं। रचनाओं में विभिन्न प्रकार के संदेश हैं तथा अंधकार में प्रकाश की आशा रखने के भाव निहित हैं। रचनाओं में अनेक स्थलों पर जीवन के यथार्थ चित्रण की झलक है। कविताओं में मनोभावों एवं अनुभूतियों को शब्द प्रदान किये गये हैं। पुस्तक में जीवन के विविध आयामों को स्पर्श करते हुए विभिन्न मनोभावों एवं विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान की गयी है। पुस्तक की रचनाकार एक शिक्षिका हैं, अतः रचनाओं पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। पुस्तक में कुछ रचनाएँ विद्यालय एवं बच्चों से सम्बन्धित हैं। ‘मेरा देश, ‘सच्चा मानव’, ‘ईद कैसे मनाऊँ, ‘आजा काले बादल, ‘ये दौर है नया-नया, ‘वसन्त ऋतु, ‘नारी, प्रेम तुम्हारा पाकर, ‘अनमोल प्रेम’आदि कुछ कविताओं के शीर्षक हैं। काव्य-संग्रह की कुछ रचनाओं के अंश प्रस्तुत हैं - ‘नफ़रत का बीज-मजहब बड़ा और खुदा का घर छोटा हो गया/इंसान की सोच को यहां अब क्या हो गया।’, ‘मेरा देश कविता में-यह मेरा देश, मेरा देश/तेरा भी वतन, ये तेरा भी वतन/झूम-झूम गाएं हम, सबका है वतन, सबका है वतन’, ‘नारी- हिम्मत की पहचान है नारी/हौसलों का जान है नारी।’
रचनाओं का भावपक्ष एवं कथ्य सराहनीय है, किन्तु शिल्प की दृष्टि से काफ़ी कमज़ोर हैं। कविताओं में प्रायः सपाटबयानी-सी आ गयी है। अधिकतर कविताओं को ग़ज़ल के फ़ॉर्म में लिखने का प्रयास किया गया है। संग्रह को पढ़ते समय रचनाकार में काव्य-व्याकरण सम्बन्धी ज्ञान का अभाव प्रतीत होता है। रचनाकार की यह पहली पुस्तक है। आशा है भविष्य के संग्रहों में और अच्छी रचनाएं सम्मिलित होंगी। 128 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 175 रूपये है, जिसे गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है।

शे’रगोई के समुन्दर में तैराक ही उतरते हैं




ग़ज़लकार पदम ‘प्रतीक’ के ग़ज़ल-संग्रह ‘सरगोशियाँ’ में उनकी 45 ग़ज़लें सम्मिलित हैं। सम्पूर्ण पुस्तक तथा उसकी सभी ग़ज़लें हिन्दी एवं उर्दू, दोनों ही भाषाओं में हैं। ध्यातव्य है, कि ग़ज़ल का एक विशेष अनुशासन एवं व्याकरण है। ग़ज़ल फ़ारसी से होती हुई हिन्दी में आयी है। ग़ज़ल कहने के लायक बनने के लिए बहुत से क़ायदे-क़ानून एवं ऐब-हुनर हैं जिन्हें एक शायर के लिए जानना तथा सीखना अत्यन्त आवश्यक है। इस तथ्य के प्रति सजग रचनाकार अच्छी ग़ज़लें कह रहे हैं। शायर पदम ‘प्रतीक’उन्हीं में से एक हैं। संकलन में कुछ ग़ज़लें रिवायती हैं, कुछ आधुनिक समाज का दर्पण भी हैं। ग़ज़लें अपनी परम्पराओं से जुड़ी हुई हैं, जो इस विधा को निरन्तर आगे बढ़ाये जाते रहने के लिए निहायत ज़रूरी चीज़ है। संग्रह में सम्मिलित ग़ज़लों की भाषा मधुरता और सरसता लिए हुए आम फ़हम भाषा है, जिसे हर कोई आसानी से समझ सकता है। बड़ी ही खूबसूरती और सलीक़े की शायरी है। गजलें रचनाकार के अपने अनुभव से कही गयी हैं, जिनमें जीवन का तत्व एवं तथ्य झलकता है। मन के भावों की सफल प्रस्तुति की गयी प्रतीत होती है। पुस्तक की शायरी आम और खास इंसान के हर एहसास को बयान करती है। संग्रह की ग़ज़लें अच्छे स्तर की हैं तथा उनकी बुनावट ठीक है। सभी ग़ज़लें शिल्प की कसौटी पर खरी उतरती हैं। ग़ज़ल-व्याकरण का पूरी तरह पालन किया गया है। विशेष तौर पर बह्र-विधान का पूर्णतः ध्यान रखा गया है। रचनाकार को उर्दू की अच्छी जानकारी होने के कारण अशुद्ध शब्दों का प्रयोग भी ग़ज़लों में नहीं है।  फिर भी ऐबे तनाफ़ुर (अब बहाने पृ.79, उभर रहा पृ. 97 आदि) तथा तक़ाबुले रदीफ़ (पृ.-61,87,97) जैसे दोष भी यत्र-तत्र दिख जाते हैं। पुस्तक में प्रूफ़ रीडिंग सम्बन्घी मामूली दोष (जैसे मज़बूर- पृ.37) भी कहीं-कहीं रह गये हैं। 
      कथ्य की दृष्टि से ग़ज़लों में श्रृंगार एवं प्रणय, वर्तमान समाज का चित्रण, जीवन की अनुभूतियाँ तथा संवेदनाएं, सामाजिक सरोकार, आम आदमी का संकट, राजनीतिक हालात आदि की झलक भी देखने को मिलती है। अपने एवं ज़माने के दुख-दर्द को भी शायर ने अभिव्यक्ति प्रदान की है। पुस्तक की कुछ ग़ज़लों के उल्लेखनीय अशआर इस प्रकार हैं-‘जो क़ाबू जु़बां पर हमारा रहे तो/मुनासिब है जो ये वही बोलती है।’, ‘हर बुराई से अब करो तौबा/जब भी जागो तभी सवेरा है।’, ‘कतर के पर मुझे आज़ाद करके/वो बस अहसां जताना चाहता है।’ ग़ज़लें सलीक़े से कही गयी हैं, इनमें एक सहजता है। इन्हें पढ़कर लगता है, कि शायर दिल की गहराइयों में उतरकर अपनी बात कह रहा है। ग़ज़लकार का यह शे’र स्वयं उन्हीं पर सटीक बैठता है- शे’रगोई तो वो समुन्दर है, जिसमें तैराक ही उतरते हैं। पदम ‘प्रतीक’निश्चित रूप से शे’रगोई के समुन्दर के कुशल तैराक हैं। कहा जा सकता है कि ग़ज़ल संग्रह अत्यन्त सराहनीय है। अमृत प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित 112 पृष्ठों की इस सजिल्द पुस्तक का मूल्य 300 रुपये है। 

 सृजन के क्षेत्र में सराहनीय प्रयास

 


  डॉ. मधुबाला सिन्हा के कविता-संग्रह ‘प्यार बिना’ में उनकी  छन्दबद्ध तथा छन्दहीन प्रकार की छन्दबद्ध तथा छन्दहीन प्रकार की 75 कविताएँ सम्मिलित हैं, जिनमें जीवन, विशेषकर नारी-जीवन के विभिन्न रंगों एवं पहलुओं को उजागर करने की चेष्टा की गयी है। अधिकतर कविताओं में कहा गया है कि नारी प्रेम को ही जीती है, क्योंकि दुनिया में प्रेम से परे और कुछ भी नहीं है। प्रेम ही जीवन की वास्तविकता है। अधिकतर रचनाओं में नारी के मूर्त रूप एवं उसके अन्तर्मन का चित्रण परिलक्षित होता है, जिसमें नारी की पीड़ा, उसकी भावना, बेचौनी, तड़प, ख़ुशी, दुःख, प्यार आदि विभिन्न रंग समाहित हैं। उसकी संवेदना, चेतना, भाव-संघर्ष, जीवन-संघर्ष और द्वन्द्व से रचनाएं सीधे जुड़ी हैं। इसके अतिरिक्त जीवन की विभिन्न विसंगतियों एवं विडम्बनाओं को भी रचनाओं का आधार बनाया गया है। कुछ रचनाओं में वर्तमान समय के सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को भी उजागर करने की चेष्टा की गयी है। साथ ही, प्रकृति-चित्रण एवं प्रेम तथा श्रृंगार विषयक रचनाएँ भी हैं। कविता-संग्रह में मन की भावनाओं के कई रूप हैं, जिन्हें अभिव्यक्ति प्रदान करने का प्रयास किया गया है। कविताओं के माध्यम से जीवन में व्याप्त संत्रास, घुटन, वेदनाओं एवं अनुभूतियों को शब्द प्रदान किये गये हैं। रचनाओं में जीवन के अन्य अनेक रंग भी परिलक्षित होते हैं। इन कविताओं के माध्यम से कवयित्री ने सृजनात्मकता को उजागर करने का प्रयास किया है। यह कहने का प्रयास किया गया है कि ज़िन्दगी के तमाम धागे प्यार बिना अनसुलझे ही रहते हैं। हालाँकि पुस्तक के शीर्षक ‘प्यार बिना‘ नामक कोई कविता संग्रह मे नहीं है। संकलन की रचनाओं में कवयित्री के मनोभावों की अभिव्यक्ति परिलक्षित होती हैं। कविताओं में विषम परिस्थितियों में भी जीवन का सन्देश प्रदान करने का प्रयास किया गया है। कुछ कविताओं के उल्लेखनीय अंश प्रस्तुत हैं- पनपते रिश्ते- दबी राख के नीचे से/चमक उठते हैं दबे रिश्ते/सुधरने की आस में फिर से जी उठते हैं। सोचती हूं- आज पूछ ही डालूँ मैं भी प्रश्न/जो जाने कब से/समंदर की गहराइयों में/छटपटा रहे हैं। इनके अतिरिक्त उठता धुआँ, जीवन की रेल, मैं आती हूं, मेरा जीवन, मज़दूर, सच्चा धर्म, नदी का दर्द आदि रचनाएँ भी सराहनीय हैं। शिल्प की दृष्टि से संकलन की छन्दबद्ध कविताएँ कमज़ोर प्रतीत होती हैं। छन्द विधान एवं छन्दानुशासन का अभाव परिलक्षित होता है, जिसके कारण प्रवाह एवं लयबद्धता बाधित होती है। कविताओं को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि रचनाकार को काव्य व्याकरण एवं छन्द शास्त्र की सम्यक् जानकारी नहीं है। पुस्तक में संग्रहीत कविताओं के कथ्य को दृष्टिगत रखते हुए कहा जा सकता है कि रचनाकार के लेखन में सरलता और सहजता है, लेकिन भाषागत एवं व्याकरणिक अशुद्धियां यत्र-तत्र दृष्टिगत होती हैं। इसके अतिरिक्त महत्वकांक्षा, अठ्ठाहास, झंझावत, ख़्याल, भर्मित, संसय जैसे अशुद्ध वर्तनीयुक्त शब्दों का प्रयोग किया गया है, जिसे साहित्यिक लेखन की दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है। साहित्यिक सृजन हेतु काव्य व्याकरण एवं भाषा व्याकरण का सम्यक् ज्ञान रचनाकार को निश्चित रूप से होना चाहिए। कह सकते हैं कि सृजन के क्षेत्र में यह एक सार्थक एवं सराहनीय प्रयास है, जो रचनाकार की सृजनात्मकता का द्योतक है। जिज्ञासा प्रकाशन, ग़ाज़ियाबाद द्वारा प्रकाशित 114 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 200 रूपये है।


(अक्तूबर-दिसंबर 2022 अंक में प्रकाशित )

शनिवार, 6 मई 2023

गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2023 अंक में



4. संपादकीय: दो प्रशासनिक अधिकारियों की शायरी

5. पवन कुमार का परिचय

6-7. प्रशासन और साहित्य का रिश्ता बहुत अहम - पवन कुमार

8-9. एक संजीद शायर पवन कुमार - शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी

10-11. अहसासों की आवाज़ है पवन की शायरी  - शीन काफ़ निज़ाम

12. बारहागे ग़ज़ल का एक खिदमतगार- अक़ील नोमानी

13-14. इम्कानात की राहों के रौशन चिराग़ हैं पवन कुमार - डॉ. राकेश तूफ़ान

15-18. नई पीढ़ी का अलबेेला शायर पवन कुमार - डॉ. फुरकान अहमद सरधनवी

19-21.साहित्य के पटल पर जगमगाता सितारा - अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’

22-61. पवन कुमार की ग़ज़लें

62. अनुराग मिश्र ‘ग़ैर’ का परिचय

63-64. अफ़सरी लबादा उतारकर अमरोहा के गली-कूचों के नशिस्तों में होता हूं शामिल- अनुराग ग़ैर

65. किधर है राजधानी ढूढ़ते हैं - यश मालवीय

66-67. रोमांश के सफल ग़ज़लकार अनुराग ग़ैर- अखिलेश मयंक

68-69. ग़ैर की ग़ज़लों में अपनापन- इश्क़ सुल्तानपुरी

70-71. ग़ैर की ग़ज़लों में जीवन के अनेक रंग- डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’

72-73. नई उम्मीदें जगाता एक शायर- अतिया नूर

74-75. समाज के सभी पहलुओं पर रेखांकित शायरी-शगुफ़्ता रहमान ‘सोना’

76-78. शानदार कृतित्व के रचनाकार हैं ग़ैर- नीना मोहन श्रीवास्तव

79. प्रेम, रति, हास और मनुहार का समावेश- साजिद अली सतरंगी

80-111. अनुराग मिश्र ‘ग़ैर’ की ग़ज़लें

112-118. तब्सेरा: हमारे चाहने वाले बहुत हैं, अंबर छलके, संोंधी महक, अक्षर-अक्षर गढ़कर, सरगोशियां, प्यार बिना, मेरी तल्खियां

119-121. उर्दू अदब:  ग़ज़ल पारा, नियामतउल्लाह अंसारी-शख़्सियत और कारनामे, सवांही नॉॅवेल, काविश-ए-तलअत, 

122-123. गुलशन-ए-इलाहाबाद: सादिक़ हुसैन सिद्दीक़ी

124-125. ग़ाज़ीपुर के वीरः स्वामी सहजानंद सरस्वती

126-130. अदबी ख़बरें

131-132. अमर राग की कविताएं