गुरुवार, 25 जनवरी 2018

गुफ्तगू के जनवरी-मार्चः 2018 अंक में


3. संपादकीय: लोकप्रिय विधा बन गई ग़ज़ल
4. आपके ख़त
5-18. मीर की शायरी के रंग: सरदार जाफ़री
19-22. ग़ज़ल क्या है ?: फ़िराक़ गोरखपुरी
23. कोई भी ख़्याल अदा हो सकता है: शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी
24. दुष्यंत कुमार: परदेशी से त्यागी तक: कमलेश्वर
25-26. वह समय साहित्यिक सक्रियता का था: मार्कण्डेय
27-34. ग़ालिब और तरक्की पसंद फिक्र व शउर: प्रो. अली अहमद फ़ातमी
35-38. उर्दू शायरी का अहम नाम  मिर्ज़ा ग़ालिब: माहिर मजाल
39-40. तेरी खुश्बू का पता करती है: डाॅ अनुराधा चंदेल ‘ओस’
41-46. शेर जो नज़ीर बन गए: डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’
47-49. एडिटर डेस्क: अब अख़बारों प्रायः ग़ज़लें नहीं छपतीं, क्यों ?
50-51. चौपाल-1ः  ग़ज़ल क्या है ?
52-54. चैपाल-2ः आज की ग़ज़ल से आप कितना संतुष्ट हैं ?
55-56. चौपाल-3  आप ग़ज़ल ही अधिक क्यों कहते हैं ?
57. चौपाल-4ः  अतीत से लेकर वर्तमान तक ग़ज़ल की विषय वस्तु में क्या बदलवा हुए हैं ?
ग़ज़लें
60. गुलजार, जावेद अख़्तर, डाॅ. बशीर बद्र, प्रो. वसीम बरेलवी
61. मुनव्वर राना, डाॅ. राहत इंदौरी, इक़बाल दानिश, बुद्धिसेन शर्मा
62. दिल उन्नावी, हस्ती मल हस्ती, डाॅ. असलम इलाहाबादी, डाॅ. बुद्धिान मिश्र
63. मीना नक़वी, सागर होशियारपुरी, विजयलक्ष्मी विभा, विज्ञान व्रत
64. तलब जौनपुरी, शकील ग़ाज़ीपुरी, हसन काज़मी, वजीहा खुर्शीद
65. अख़्तर अज़ीज़, प्रताप सोमवंशी, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, प्रतिभा गुप्ता
66. डाॅ. अनिता सिंह, नायाब बलियावी, ऐनुल बरेलवी, अशोक अंजुम
67.कल्पना रामानी, अजय अज्ञात, जावेद पठान सागर, हरेंद्र सिंह कुशवाह
68. आर्य हरीश कोशलपुरी, चित्रा भारद्वाज, पुष्पलता शर्मा, चक्रधर शुक्ल
69. केपी अनमोल, सुनील सोनी गुलजार, रामकृष्ण विनायक सहस्रबुद्धे, डाॅ. गोपाल राजगोपाल
70. दीपशिखा सागर, खुमार देहलवी, गौतम  राजऋषि, विकास रोहिल्ला प्रीत
71. अरविंद असर, मनमोहन सिंह तन्हा, ऐनमीम क़ौसर, भारत भूषण जोशी
72. पूजा बंसल, समीर परिमल, संजू शब्दिता, अंजली मालवीय मौसम
73. नेमीचंद पारीक, डाॅ. सरोजनी तन्हा, कल्पना मनोरमा, ए.एफ़. नज़र
74. सुनील दानिश, शिवशरण बंधुा, डाॅ. वारिस अंसारी, रमेश नाचीज़
75. राजेश राज जौनपुरी, माहिर मजाल, डाॅ. शशि जोशी, सौरभ पांडेय
76. अमरनाथ उपाध्याय, कासिम इलाहाबादी, आस्था अर्पण, क़ासिम अली बीकानेरी
77. अमित वागर्थ, आदित्य विक्रम श्रीवास्तव, नितिन नायाब, प्रमोद कुमार कुश तन्हा
78. मिथिलेश गहमरी, इश्क़ सुल्तानपुरी, अना इलाहाबादी, मनोज एहसास
79. इरशाद आतिफ़, डाॅ. शमीम देवबंदी, अजय नमन, अरविंद अवस्थी
80. डाॅ. ओरीना अदा, अशरफ़ अली बेग, रमोला रूथ लाल आरजू, अंकित शर्मा इषुप्रिय
81. ललिता पाठक नारायणी, मनशाह नायक, बहर बनारसी, वकील अहमद मुजतर
82. चेतन आनंद, दीपक कुमार रोशन, नज़्म सुभाष, विमल कुमार वर्मा
83. शाबान अली, डाॅ. सादिक़ दवेबंदी, वंदना मोदी गोयल, रामानुज अनुज
84. विनय सागर जायसवाल, अनीता मौर्या अनुश्री, कृष्ण सुकुमार, संगीता चैहान विष्ट
85. अन्नपूर्णा वाजपेयी अंजू, मंजू जौहरी, अतिया नूर, तलत परवीन
86. पीयूष मिश्र पीयूष, अनिरुद्ध सिन्हा, चंद्रभाल सुकुमार, अंजना सिंह सेंगर
87. डाॅ. लवलेश दत्त पवन, प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम्, अजीत शर्मा आकाश, डाॅ. शैलेष गुप्त वीर
88. डाॅ. आफ़ताब अहमद अंसारी, अंजली गुप्ता, संदीप सरस, सौरभ टंडन
89. धर्मेंद्र गुप्त साहिल, डाॅ. कविता विकास, फ़ौज़िया अख़्तर रिदा, दिलीप सिंह दीपक
90-94. इंटरव्यू: प्रो. ओपी मालवीय
95.खि़राज़-ए-अक़ीदत: मुशायरों की सफ़लता के गारंटी थे अनवर जलालपुरी
96.खि़राज-ए-अक़ीदत: दूधनाथ सिंह का जाना बड़े अध्याय का अंत जैसा
97-101. अदबी ख़बरें
102. ग़ाज़ीपुर के वीर: एसकेबीएम इंटर कालेज के संस्थापक डिप्टी सईद: मुहम्मद शहाब खान
परिशिष्ट-1
103. इक़बाल आज़र का परिचय
104-106. अपने ही इक़बाल का शायर: शहाब अख़्तर अंसारी
107-108. इक़बाज आज़र एक जिम्मेदार शायर: धमेंद्र गुप्त ‘साहिल’
109-133. इक़बाल आज़र के कलाम
परिशिष्ट-2
134. डाॅ इम्तियाज़ समर का परिचय
135-136. क़ाबिले कद्र शायर हैं इम्तियाज़ समर: फहीम जोगापुरी
137ः इम्तियाज़ समर किसी परिचय के मोहताज नहीं:  डाॅ. बीना बुदकी
138-163. डाॅ. इम्तियाज़ समर की ग़ज़लें
परिशिष्ट-3
164. खुर्शीद खैराड़ी का परिचय
165.  सच्चाई का शायर खुर्शीद खैराड़ी: मनमोहन सिंह तन्हा
166-168. धर्म का दरकिनार करना है: नंदल हितैषी
169-192. खुर्शीद खैराड़ी की ग़ज़लें


रविवार, 14 जनवरी 2018

दूधनाथ सिंह का जाना बड़े अध्याय के अंत जैसा

                                                        - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
दूधनाथ सिंह देश के प्रतिष्ठित ख्याति प्राप्त साहित्यकारों में से एक रहे हैं, 11 जनवरी की रात उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन इससे पहले उन्होंने साहित्य जगत को जो प्रदान किया है, उसे किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला पर उनकी आलोचना की किताब ‘निराला आत्महंता आस्था’ बड़ी प्रसिद्ध रही है, आज भी माना जाता है कि निराला जी पर इससे अच्छी कोई किताब नहीं है। वर्तमान समय में आप देश के शीर्ष वरिष्ठतम साहित्यकारों में से एक थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लेकर महात्मा गांधी अंतरराष्टी हिन्दी विश्वविद्याय वर्धा में भी आपने अध्यापन का कार्य किया। जीवन के अंतिम क्षणों तक लेखन के प्रति सक्रिय रहे हैं ।
दूधनाथ सिंह
तकरीबन तीन साल पहले उन्होंने हिन्दी-उर्दू भाषा को लेकर एक बयान दिया था, जिस पर काफी दिनों तक अखबारों में पक्ष और विपक्ष में बयानबाजी चली। उनका कहना था कि ‘साहित्य के स्तर पर दोनों भाषाएं अलग-अलग हैं, लेकिन व्याकरणिक ढांचा एक ही है। फर्क यह है कि हिन्दी संस्कृत से अपनी शब्दावली ग्रहण करती है, जबकि उर्दू फारसी से। इसमें अगर कठोरता बरतेंगे तो दोनों भाषाएं विनष्ट हो जाएंगी। भारतेंदु ने 1872 में एक लेेख लिखा था जिसका शीर्षक ‘हिन्दी नई चाल में ढली’। इसमें उन्होंने भाषा का जो स्वरूप निर्धारित किया है उसी में सबकुछ संभव है। हिन्दी-उर्दू साहित्य में कोई समानता नहीं है‘ जबकि इसके विरोध में तमाम साहित्यकारों का मानना है कि हिन्दी और उर्दू में हर स्तर पर बहुत अधिक भिन्नता नहीं है। आपको मुख्यतः कहानीकार के रूप जाना जाता रहा है, लेकिन कहानियों के अलावा नाटक, आलोचना और कविता का भी खूब लेखन किया है। बाबरी मजिस्द विध्वंस की घटना के बाद आपने ‘आखिरी कलाम’ नाम से उपन्यास लिखा था, जिसमें धार्मिक और राजनैतिक पाखंड़ों पर करारा प्रहार किया गया है, इस पुस्तक की वजह से काफी दिनों पर पूरे देश में चर्चा में रहे हैं। अन्य पुरस्कारों के अलावा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने अपना सर्वोच्च सम्मान ‘भारत भारती सम्मान’ आपको प्रदान किया था।
 आपका जन्म 17 अक्तूबर 1936 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सोबंथा गांव में हुआ था। पिता देवनी नंदन सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे, 1942 के आंदोलन में उन्होंने सक्रियता से देश की आजादी के लिए भाग लिया था। प्रारंभिक शिक्षा गांव से हासिल करने के बाद आप वाराणसी चले आए, यहां यूपी कालेज से स्नातक की डिग्री हासिल की, इसके बाद एमए की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की, स्नातक तक आपने उर्दू की भी शिक्षा हासिल की है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आपको डॉ. धर्मवीर भारती और प्रो. धीरेंद्र वर्मा से शिक्षा हासिल करने का गौरव प्राप्त हुआ। इलाहाबाद से शिक्षा ग्रहण के बाद 1960 से 1962 तक कोलकाता के एक कालेज में अध्यापन कार्य किया। इसके बाद 1968 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यापन कार्य शुरू किया और यहीं से 1996 में सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद कई वर्षों तक महात्मा गांधी अंतरराष्टी हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा में आपने विजटिंग प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दीं।
दूधनाथ सिंह
गजल लेखन और हिन्दी-उर्दू भाषा के बारे में उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि -‘हिन्दी में ग़ज़ल लिखी ही नहीं जा सकती क्योंकि हिन्दी के अधिकांश ग़ज़ल गो शायर बह्र और क़ाफ़िया,रदीफ़ से परिचित नहीं हैं। इसके अलावा हिन्दी के अधिकांश शब्द संस्कृत से आए हैं जो ग़ज़ल में फिट नहीं बैठते और खड़खड़ाते हैं। मुहावरेदानी का जिस तरह से प्रयोग होता है वह हिन्दी खड़ी बोली कविता में नहीं होता, जैसे कि ग़ालिब का शेर है- मत पूछ की क्या हाल है, मेरो तेरे पीछे/ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।’ इस पूरी ग़ज़ल में ‘आगे’ और ‘पीछे’ इन दो अल्फाजों का इस्तेमाल हर शेर में ग़ालिब ने अलग-अलग अर्थों में किया है। हिन्दी वाले इस मुहावरेदानी को नहीं पकड़ सकते और अक्सर जब ग़ज़ल उनसे नहीं बनती तो उर्दू अल्फाज का सहारा लेते हैं। अरबी से फारसी और फारसी से उर्दू में आती हुई ग़ज़ल की अपनी परंपरा है। लोग कहते हैं कि हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाएं एक है, लेकिन ऐसा नहीं है। क्रिया पदों में भाषाओं का अंतिम निर्धारण नहीं होता। दोनों के मिजाज, संस्कार और परंपराएं अलग-अलग हैं। वली दकनी और मीर तकी मीर ने हिन्दुस्तान के एक शामिल भाषा के रूप में इसे विकसित करने की कोशिश जरूर की, लेकिन हिन्दी और उर्दू दोनों के कठमुल्लाओं ने भाषाओं को अलग करके ही दम लिया।’
इलाहाबाद के बारे में उनका कहना था कि ‘इलाहाबाद में साहित्य की चर्चा ज्यादा हो रही है जबकि कविता, कहानी, उपन्यास कम लिखे जा रहे हैं। नए इलाहाबादी लेखकों को कविता, कहानी, उपन्यास लिखना चाहिए। साहित्य चर्चा में अपना समय नहीं गंवाना चाहिए। यह बड़े और बूढ़ों पर छोड़ देना चाहिए, यही मेरा संदेश है।’ आज उनके इस वाक्यांश को याद करते हुए हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनका लिखा साहित्य रहती दुनिया तक पढ़ा और याद किया जाएगा।