सोमवार, 25 जुलाई 2016

राष्ट्रभक्ति और आस्था का मिश्रण न करें


- इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
केंद्र में भाजपा सरकार के गठन के बाद से ही कोई न कोई ऐसा मुद्दा उठाया जाता रहा है, जिससे मिलीजुली संस्कृति वाले इस देश में धर्म के नाम पर लोग मानसिक रूप से अपने को विभाजित महसूस करें या फिर एक दूसरे से मेल-मिलाप में दिक्कत आए। उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा बिहार में जदयू, राजद समेत दूसरे राज्यों में अन्य क्षेत्रीय पार्टियां जहां जाति के आधार पर लोगों का वोट हासिल करती रहीं हैं तो भारतीय जनता पार्टी धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करके सत्ता हासिल करती रही है। वर्तमान समय यही हमारे देश और समाज के लिए सबसे बड़े दुर्भाग्यद का विषय है। देश की जनता में इसे लेकर जागरूकता तो आ रही, लेकिन इसकी रफ्तार बेहद धीमी है, जिस दिन देश के अधिकतर लोग राजनीतिज्ञों की इस चाल को समझ जाएंगे, उस दिन इस आधार पर लोगों को बांटने का काम राजनीतिज्ञ खुद ही बंद कर देंगे। ‘भारत माता की जय’ मामले में यही हो रहा है। 
पिछले कुछ दिनों से इसे लेकर शुरू हुआ विवाद इसी राजनीति का एक रूप है। जिसे बनाए रखने का प्रयास राजनैतिक दल कर रहे हैं। जबकि अगर ठीक ढंग से समझा जाए तो यह कोई विवाद का विषय ही नहीं है। इस मामले में हिंदू धर्म की मान्यता को देशभक्ति से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि दोनों ही अलग-अलग चीजे हैं। देश के किसी भी हिन्दू को अपने धर्म के मुताबिक चलने और उसके अनुसरण करने का पूरा अधिकार है, इसी तरह हम मुसलमान या किसी अन्य मजहब के मानने वाले को अपने धर्म की मान्यता के अनुसार चलने का पूरा अधिकार है, यह अधिकार हर धर्म के मानने वालों को संविधान से हासिल है, यही वजह है कि भारत का संविधान धर्म निरेपक्ष है। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार लगभग हर शक्ति की पूजा की जाती है। इसमें धरती से लेकर सूर्य तक शामिल है। लेकिन मुस्लिम धर्म में ईश्वर के अलावा और किसी की भी उपासना करने की सख्त मनाही है, यहां तक कि अगर किसी ने ईश्वर के अलावा और किसी की उपासना की तो वह इस्लाम धर्म से खारिज हो जाता है। इस्लाम धर्म के मुताबिक स्वर्ग मां के पैरों नीचे है। यानि मां की सेवा के बिना किसी भी मुस्लिम को स्वर्ग में जगह नहीं मिल सकती, लेकिन यहां भी ध्यान रखने की जरूरत है कि जिस मां की सेवा के बिना स्वर्ग में जगह नहीं मिल सकती है उस मां की पूजा करने से सख्त मनाही है। इस्लाम धर्म के मुताबिक उपासना और सेवा दो अलग-अलग चीजें हैं, जबकि प्रायः हिंदू धर्म में उपासना और सेवा एक ही है।
भारत एक देश है। जो भी इस देश का नागरिक है, उसे अपने देश सेवा के प्रति आस्थावान होना चाहिए। इस्लाम धर्म के भी मुताबिक जो मुसलमान जिस भी देश का नागरिक है, उस देश की सेवा और उसकी भलाई के लिए काम करना चाहिए, अपने देश से गद्दारी करने की सख्त मनाही, लेकिन देश को ईश्वर मानकर उसकी पूजा करने की सख्त मनाही है। क्योंकि इस्लाम धर्म के मुताबिक उस ईश्वर की इबादत की जानी चाहिए, जिसने हमारे देश का निर्माण किया है, न की उस देश की इबादत करें जिसे हमारे ईश्वर ने ही बनाया है। अब अगर हिंदू धर्म इसकी इजाजत देता है कि देश की पूजा की जाए तो हिंदू धर्म के अनुयायियों को चाहिए कि पूजा करें, लेकिन अब यह क्या जबरदस्ती है कि दूसरे धर्म वालों से भी कहा जाए कि आप भी ऐसा ही करो। एक धर्म की मान्यता को दूसरे धर्म के अनुयायियों पर थोपने का प्रयास किस प्रकार सही हो सकता है। देशभक्ति के मामले को ही देखा जाए तो देश की भलाई उसकी पूजा करने से नहीं बल्कि उसके लिए काम करने से होगी। अगर सचमुच देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो ऐसे कदम उठाएं जिससे देश का विकास हो, कोई भी नागरिक तंगहाल, परेशान, मजबूर न हो। ऐसा सिस्टम न बनने दें जिससे कोई व्यक्ति देश की संपदा को नुकसान पहुंचा सके, भ्रष्टाचार में डूबे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। किसी भी राजनैति दल का व्यक्ति अपने पहुंच का इस्तेमाल कर देश का धन अपने निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल न कर सके। मगर हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि स्थिति ‘सौ मन चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’ वाली हो गई है। तमाम लोग सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं और लोगों सामने आकर ‘भारत माता की जय’ बोलकर देशभक्त हो जा रहे हैं। इस हालात को खत्म करने के लिए काम होना चाहिए, न कि सिर्फ आडंबर करके देशभक्त बनने की।

गुरुवार, 7 जुलाई 2016

महिला विशेषांक-2 के लिए रचनाएं आमंत्रित


चयनिय 11 रचनाकारों को मिलेगा ‘सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान’

इलाहाबाद। ‘गुफ्तगू’ के महिला विशेषांक-2 महिलाओं से रचनाएं आमंत्रित की जा रही हैं। इस अंक के लिए कविता, गीत, ग़ज़ल, दोहे, लधुकथा आदि रचनाएं भेजी जा सकती हैं। इसके अलावा महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, परवीन शाकिर, कुर्तुलएन हैदर, रशीद जहंा आदि महिला रचनाकारों पर लेख भेजे जा सकते हैं, लेख लिखने से पहले हमसे बात ज़रूर कर लें। वर्ष 2010 से 2016 तक के बीच जिन महिला रचनाकारों की पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, उसकी समीक्षा प्रकाशित करवाने के लिए दो प्रतियां भेंजे। रचना के साथ अपना पूरा नाम, डाक का पता, मोबाइल नंबर और पासपोर्ट साइज फोटा पंजीकृत डाक, कोरियर या ई-मेल से भेंजे। इस अंक में प्रकाशित में सभी रचनाकारों में से 11 लोगों का चयन ‘सुभद्रा कुुमारी चौहान’ सम्मान के लिए किया जाएगा। पत्रिका में रचना प्रकाशन के लिए कोई शुल्क नहीं देना है, लेकिन हम पत्रिका किसी को मुफ्त में नहीं देते, इसलिए पत्रिका प्राप्ति के लिए ‘गुफ्तगू’ की सदस्यता लेना आवश्यक है। ‘गुफ्तगू’ की ढाई वर्ष की सदस्यता शुल्क 200 रुपये, आजीवन 2100 रुपये और संरक्षक शुल्क 15000 रुपये है। आजीवन और संरक्षक सदस्यों को ‘गुफ्तगू पब्लिकेशन’ की सभी पुस्तकें और ‘गुफ्तगू’ के उपलब्ध पुराने अंक दिए जाते हैं। संरक्षक सदस्यों को पूरा परिचय फोटा सहित हम एक अंक में प्रकाशित करते हैं, इसके बाद हर अंक में नाम छपता है। निधन के बाद भी हम संरक्षक सदस्यों का नाम ‘संस्थापक सरंक्षक’ के अंतर्गत प्रकाशित करते हैं, उनका नाम कभी हटाया नहीं जाता।
last date : 31 aug 2016
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