गुरुवार, 25 नवंबर 2010

अक्टूबर-दिसंबर 2010 अंक में






3. ख़ास ग़ज़लें : मीर, परवीर शाकिर, शक़ेब जलाली, दुष्यंत कुमार


4-5. आपकी बात


6. संपादकीय





ग़ज़लें


7. गुलज़ार, अहमद फ़राज़, शह्रयार, आरिफ शफ़ीक़


8. बेकल उत्साही, नूर अमरोही, मोना शादाब


9.बशीर बद्र, इशरत आफ़रीन, ओम प्रकाश दार्शनिक


10. मुनव्वर राना, अजय अज्ञात, भारत भूषण जोशी


11.नसीम अख़्तर, खन्ना मुजफ्फरपुरी, राजीव कुलश्रेष्ठ, उस्मान व्यावरी


12.वाक़िफ़ अंसारी, शिबली सना, ए.एफ.नज़र


13. रविकांत अनमोल, सेवाराम गुप्ता, उषा यादव उषा, दिलीप परमार





कविताएं


14. आकांक्षा यादव, रामशंकर चंचल


15.डा. बुद्धिनाथ मिश्र, सविता असवाल,शैलेश गुप्त वीर


16. डा. सुरेश चंद्र श्रीवास्तव


17. कृष्ण कुमार यादव, अंजलि राना


18. तआरुफ़


19. खि़राज़-ए-अक़ीदतः कन्हैया लाल नंदन


20-24. अल्फ़ाज की वादी में इलाहाबाद-ख़्वाजा जावेद अख़्तर


25. तब्सेराः गुलाब मौसम की आस


26.तब्सेराः अनायास


27-31.कहानीः चुटकी भर मुस्कान- अंसारी एम ज़ाकिर


32-35.इंटरव्यूः अनवर जलालपुरी


36-37.चैपाल


38-39.शख्सियतः नरेश मिश्र


40. इल्मे काफ़िया भाग-5


41-45.रुद्र देव नारायण श्रीवास्तव के सौ शेर


46-48.गोरखपुर के कवियों-शायरों की लिस्ट





परिशिष्टः राज पटनवी


49. राज पटनवी का परिचय


50. मेरे दीवाने का ग़मः चंद्रा श्रीवास्तव


51. पटनवी साहब की शायरी हमारे समय का हासिलः यश मालवीय


52-53. अश्आर में झलकता सच्चा इंसानः राजेश राज


54-80. राज पटनवी की ग़ज़लें

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

अपने ही शहर में बेगाने


उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र इलाहाबाद में आयोजित मुशायरे का एक दृश्य



इलाहाबाद उर्दू-हिन्दी अदब का अहम मरकज़ है। निराला, पंत, फ़िराक़, महादेवी, अकबर और राज इलाहाबादी जैसे साहित्यिक पुरोधाओं की कर्मस्थली है। देश का कोई भी अदबी सेमिनार, कवि सम्मेलन-मुशायरा इनके बिना अधूरा समझा जाता था। आज भी राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकारों की टीम मौजूद हैं। ऐसे में जब भी किसी अखिल भारतीय कवि सम्मेलन या मुशायरे की रूपरेखा बनती है तो उसमें आमंत्रित किये जाने वाले कवियों और शायरों के नाम पर चर्चाएं शुरू हो जाती हैं। लेकिन आश्चर्य तब होता है, जब बाहर से आने वाले कवियों और शायरों की भीड़ में इस साहित्यिक नगरी से सिर्फ़ एक या दो लोग ही दिखाई देते हैं। जाहिर है काफी लोगों को निराश होना पड़ता है। सालभर में इलाहाबाद कम से कम दो आयोजन होते हैं। पहला उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र और दूसरा त्रिवेणी महोत्सव। सांस्कृतिक केंद्र के शिल्प मेले के अवसर पर होने वाले मुशायरे को लेकर उठा-पटक शुरू हो जाता है, यही हाल त्रिवेणी महोत्सव के दौरान होने वाले आयोजन पर रहता है। इस साल 2005, से पहले तक कवि-सम्मेलन और मुशायरा अलग-अलग होता आया है, मगर इस साल संयुक्त रूप से कवि सम्मेलन और मुशायरा हुआ, जिसमें इलाहाबाद से कवि कैलाश गौतम और शायर अतीक़ इलाहाबादी को ही आमंत्रित किया गया। इतनी बड़ी साहित्यिक नगरी से सिर्फ़ दो लोगों को ही आमंत्रित किया जाना, कईयों को नागवार गुजरी। नतीजतन वे अपने-अपने तरीके से गुस्से का इज़हार कर रहे हैं।



सांस्कृतिक केंद्र में होने वाले कवि सम्मेलन और मुशायरे को जहां कुछ लोग ‘अपसंस्कृति का जमावड़ा’ कहकर परिभाषित करते हैं तो कुछ लोग यह मानते हैं कि इस तरह के आयोजन कराने वालों पर निर्भर करता है कि वे क्या करते हैं, यह केंद्र के लोगों की सोच समझ पर निर्भर करता है। सीनीयर पत्रकार और कवि सुधांशु उपाध्याय से इस बाबत बात करने पर कहते हैं,‘इलाहाबाद हिन्दी-उर्दू का अहम मरकज है इसलिए यहां कवि सम्मेलन-मुशायरों की रूपरेखा बनाते समय संतुलन बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।’ वह यह भी जोड़ते हैं ‘ आमंत्रित किये जाने वाले कवियों और शायरों के स्तर से बिल्कुल समझौता नहीं करना चाहिए। निश्चित रूप से कैलाश गौतम और अतीक़ इलाहाबादी देश के मशहूर कवि और शायर हैं, लेकिन और लोगों का भी ध्यान रखना जरूरी है। विभिन्न मुशायरों में इलाहाबाद का प्रतिनिधित्व करने वाले डाक्टर असलम इलाहाबादी खासे नाराज़ दिखते हैं, ‘एक साजिश के तहत अच्छे शायरों को नहीं रखा जाता। एक तो उर्दू का आयोजन ही समाप्त कर दिया गया, उपर से असली शायरों का नाम लिस्ट से गायब कर दिया गया।’ इसके लिए शायरों को आगे आने की बात करते हुए डाक्टर असलम कहते हैं‘ सांस्कृतिक केंद्र के अधिकारियों को पता ही नहीं है कि नगर में अच्छा शायर और कवि कौन है।’ इसके विपरीत बुद्धिसेन शर्मा कहते हैं, ‘जो लोग आयोजन करते हैं, वही समझते हैं कि क्या सही है और क्या ग़लत है। किसी भी क़ीमत पर सभी को खुश नहीं किया जा सकता। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, यदि उनको आमंत्रित कर लिया जाता तो बाकी लोग विरोध करते। सांस्कृतिक केंद्र अपनी जरूरत के मुताबिक कवियों और शायरों को आमंत्रित करता है, किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए।



इस बार के आयोजन को लेकर मशहूर संचालक नजीब इलाहाबादी काफी खफ़ा हैं। कहते हैं, ‘सांस्कृतिक केंद्र पर उर्दू अदीबों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, पहले उर्दू का मुशायरा अलग होता था इस बार संयुक्त कर दिया गया। जिसकी वजह से उर्दू के तीन-चार शायर कम हो गए। कार्यक्रम अधिकारी को इस बात का ख़्याल रखना चाहिए कि कवियों और शायरों में संतुलन हो, बराबरी हो।’ प्रसिद्ध गीतकार यश मालवीय सांस्कृतिक केंद्र के अधिकारियों के रवैये को निरंकुश बताते हैं। फरमाते हैं, ‘यहां का कवि सम्मेलन और मुशायरा निरंकुश लोगों के हाथों में चला गया है। कवियों और शायरों की सूची में सिर्फ़ एक-दो नाम ही स्तरीय रखा जाता है ताकि मिसाल के तौर पर उन्हें दिखाया और गिनाया जा सके।’ यश मालवीय कहते हैं, ‘अदब का शहर इलाहाबाद अपसंस्कृति का अड्डा बन गया है, कवि सम्मेलन में पढ़ी जाने वाली कविताएं राजनीति टिप्पणियों एवम् औरतों पर की केंद्रित रहती हैं, मंच भी तमाशा हो गया है। इस तरह के आरोपों पर सांस्कृतिक केंद्र कार्यक्रम अधिकारी अतुल द्विवेदी का अपना तर्क है,‘यह सात राज्यों-उत्तर प्रदेश, बिहार,मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, झारखंड और उत्तरांचल का केंद्र है, सबका का प्रतिनिधित्व करना होता है। इलाहाबाद के कवियों और शायरों को तो लोग सुनते ही रहते ही रहते हैं, क्यों न बाहर के लोगों को सुना-सुनाया जाए।’संतुलन बनाए जाने के बारे में उनका तर्क है ‘उर्दू से वसीम बरेलवी, अतीक़ इलाहाबादी, पापुलर मेरठी और जाहिल सुल्तानपुरी, ब्रजभाशा से शशि तिवारी, अवधी से रफ़ीक़ सादानी और नौबत राय पथिक तथा भोजपुरी से हरिराम द्विेदी को आमंत्रित किया गया। बारी-बारी से सभी कवियों को बुलाया जाना है। पिछले साल राहत इंदौरी और बशीर बद्र बुलाए गए थे, इसलिए इस साल इन्हें नहीं रखा गया।’ कवि सम्मेलन एवम् मुशायरे को संयुक्त कर दिए जाने के सवाल पर कहते हैं,‘हिकमते अमली बदलती रहती है। ज़रूरी नहीं है कि एक ढाचे पर हर साल प्रोग्राम होते रहे, समय के साथ-साथ चीज़े बदलती रहती हैं।’



इलाहाबाद से सिर्फ़ दो लोगों को आमंत्रित किये जाने पर अतीक़ इलाहाबादी कहते हैं,‘यह सरकारी आयोजन है, उनको जो सही लगता है, करते हैं। कितने लोगों को बुलाना है, ये वही समझते और जानते हैं।’ कैलाश गौतम भी कुछ ऐसा ही कहते हैं,‘सरकारी आयोजनों की कार्य योजना केंद्र के अधिकारी ही बनाते हैं, इसमें बाहरी लोगों का कोई दखल नहीं होता है, उन्हें जो ठीक लगता है, करते हैं।’



बहरहाल, 1997 से उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पर शिल्प मेले का आयोजन होता आ रहा है। विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों के साथ कवि सम्मेलन और मुशायरे का भी एक दिवसीय आयोजन होता है। इस साल 2005, से पूर्व कवि सम्मेलन और मुशायरा अलग-अलग होता था, मगर इस साल दोनों को संयुक्त कर दिया गया, शायद इसी वजह से कवियों और शायरों की संख्या में कटौती करनी पड़ी है। फिर भी नगर के कवियों और शायरों की संख्या ‘दो’ तक सिमट जाने के कारण लोगों में निराशा देखी जा सकती है।

इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

(राष्ट्रीय सहारा साप्ताहिक, के 18-24 दिसंबर 2005 अंक में प्रकाशित)


शनिवार, 20 नवंबर 2010