मंगलवार, 27 नवंबर 2012

‘गुफ़्तगू’ का ग़ज़ल व्याकरण अतिरिक्तांक



- जयकृष्ण राय तुषार
गुफ़्तगू का शाब्दिक अर्थ होता है बातचीत निश्चित रूप से यह पत्रिका आम जन या अपने पाठकों से बखूबी संवाद करती रही है। यह संवाद विगत दस वर्षों से सहजता
से जारी है। अभी हाल में गजल के व्याकरण पर एक अतिरिक्तांक निकालकर यह पत्रिका चर्चा में है। यह किसी सम्पादक की दूरदर्शिता का स्पस्ट प्रमाण है कि आज जिस तरह हिंदी में गजल लेखन या कहन की परम्परा बढ़ रही है उस दृष्टि से यह अंक बहुत उपयोगी है, अब उस्ताद परम्परा गायब होती जा रही है ऐसे में स्वयंभू कवि शायर ग़ज़लें तो कह रहे हैं लेकिन उनमें व्याकरण के अनेक दोष मिलते हैं। अगर इस अतिरिक्तांक को पढ़ लिया जाये तो काफी हद तक व्याकरण के दोष से बचा जा सकता है। इस पत्रिका में मुख्य विन्दु हैं ग़ज़ल लेखन का इतिहास और परम्परा, गजल लेखन की जानकारी ,बह्र विज्ञान, इल्मे काफिया, ग़ज़ल के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित करते आलेख संपादकीय के अतिरिक्त इसमें प्रोफेसर अली अहमद फातमी ,एहतराम इस्लाम ,मुनव्वर राना ,उपेन्द्रनाथ अश्क ,नक्श इलाहाबादी, अशोक रावत ,श्याम सखा श्याम, वीनस केसरी, आर० पी० शर्मा ‘महर्षि’, आसी पुरनवी, रमेश प्रसून आदि के सहज और पठनीय आलेख हैं। छन्दशास्त्र चाहे गीत का हो या ग़ज़ल का इसे जाने बिना बेहतरीन शायरी या गीत का सृजन नहीं हो सकता, यह अलग बात है कि केवल व्याकरण जान लेने से भी अच्छा रचनाकार नहीं बना जा सकता लेकिन जो किसी महल की नींव का महत्व है वही महत्व शायरी में व्याकरण का है। नींव मजबूत होने पर यह आपके हुनर पर निर्भर करता है कि आप महल के अन्य हिस्सों को कितना खुबसूरत बना सकते हैं।
गुफ़्तगू के अब तक लगभग 29 विशेषांक सफलतापूर्वक निकल चुके हैं। कैलाश गौतम और बेकल उत्साही के विशेषांक काफी चर्चित रहे थे। इस पत्रिका की शुरुआत बिना किसी दावे के बिना किसी बड़े उद्देश्य के एक दुबले-पतले नौजवान इम्तियाज गाजी ने सन 2000 जून में की थी तब यह पत्रिका छः मासिक थी और दो अंकों के प्रकाशन के बाद यह त्रैमासिक हो गयी जो आज तक जारी है। बहुत कम मूल्य पर उपलब्ध यह पत्रिका देश की सरहदों के बाहर भी अपनी पहुँच रखती है। अपने मुल्क के कई नामचीन शायरों कवियों और आलोचकों तक इसे पहुंचा देना सम्पादकीय हुनर की एक उम्दा मिसाल है। इस लघु पत्रिका का विगत दस वर्षों से लगातार प्रकाशित होना बहुत बड़ी उपलब्धि है। मीर ,गालिब ,दुष्यंत के साथ इसमें नवोदित शायरों कवियों की भी जगह सुरक्षित रहती है। यही इसकी सफलता का राज है। गुफ्तगू साहित्य का काम दिलों को जोड़ना भी होता है आज जब लघु पत्रिकाएं असमय काल के गाल में विलीन हो रही हैं तब यह पत्रिका खिलाफ हवा में निरंतर गतिमान है शक्तिमान की तरह शीघ्र ही हमारे बीच ‘उर्दू ग़ज़ल विशेषांक’ होगा जिसका अतिथि सम्पादन प्रो० अली अहमद फातमी ने किया है।

पत्रिका -गुफ्तगू अतिरिक्तांक
अतिथि संपादक-इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

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112 पेज वाले इस अतिरिक्तांक का मूल्य 50 रुपए है। मनीआर्डर भेजकर या सीधे ‘गुफ्तगू’ के एकाउंट में पैसा जमाकर यह मंगाया जा सकता है। रजिस्टर्ड डाक अथवा कोरियर से मंगवाने के लिए 25 रुपए अतिरिक्त जोड़ें।
संपादक- गुफ्तगू
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शनिवार, 24 नवंबर 2012

चार शायरों को अकबर इलाहाबादी सम्मान

सम्मान समारोह का ग्रुप फोटो, बायें से- वीनस केसरी, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, नरेश कुमार ‘महरानी’,एम.ए. क़दीर, एसएमए काज़मी, नवाब शाहाबादी, फ़रमूद इलाहाबादी, राजेश राज़, सरफ़राज़ अहमद ‘आसी’, मुनेश्वर मिश्र, अखिलेश सिंह और शिवपूजन सिंह
इलाहाबाद। अबकर इलाहाबादी की शायरी एक मिसाल है, उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के दौर में बेबाक शायरी की और अपने कलम से अपने उद्गार व्यक्त करते हुए अंग्रेजी हुकूमत की बखिया उधेड़ दी। आज भी उर्दू साहित्य में अकबर से बड़ा हास्य-व्यंग्य का कोई  दूसरा शायर नहीं है। यह बात प्रदेश सरकार के पूर्व महाधिवक्ता एमएमए काज़मी ने कही। वे 16 नवंबर को हिन्दुस्तानी एकेडेमी में अकबर इलाहाबादी के जन्म दिन पर आयोजित ‘गुफ्तगू’ के कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम के दौरान लखनउ के नवाब शाहाबादी, गोरखपुर के राजेश राज, गाजीपुर के सरफराज आसी  और इलाहाबाद के फरमूद इलाहाबादी को ‘अकबर इलाहाबादी सम्मान’ से नवाजा गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर एम.ए. क़दीर ने कहा कि अबकर की जयंती पर ‘गुफ्तगू’ द्वारा किया गया यह आयोजन बेहद सराहनीय है, इलाहाबाद में बहुत सी संस्थाएं हैं लेकिन अबकर की याद में कोई कार्यक्रम नहीं किया जाता, जबकि अकबर देश के सबसे बड़े हास्य-व्यंग्य शायर हैं। वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र ने कहा कि अकबर इलाहाबादी के तमाम शेर मुहावरों की तरह पत्रकारिता की दुनिया में इस्तेमाल किये जाते हैं, लेकिन इलाहाबाद में ही साहित्यिक विरादरी उनकी उपेक्षा करती दिख रही है, उनके पुण्य तिथि और जन्म दिन पर भी उन्हें ठीक ढंग से याद नहीं किया जाता है, यह हमारे लिये अफसोस की बात है। पूर्व सभासद अखिलेश सिंह ने कहाकि नयी पीढ़ी भारतीय तहज़ीब से दूर होती जा रही है,  साहित्यि से बढ़ रही दूरी के कारण यह बुराई पैदा होने लगी है, इसे दूर करने की आवश्यकता है। एहतराम इस्लाम, रविनंनद सिंह और शाहनवाज आलम ने अबकर इलाहाबादी के व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखांकित करते हुए आलेख पढ़े। कार्यक्रम का संचालन गुफ्तगू के संस्थापक इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया।
 कार्यक्रम के दूसरे सत्र में अखिल भारतीय मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसमें सरवर लखनवी, शिवशरण बंधु, अहकम गाजीपुरी, सौरभ पांडेय, वीनस केसरी, नरेश कुमार महरानी, अजय कुमार, स्नेहा पांडेय, सागर होशियापुरी, शादमा जैदी शाद, अनुराग अनुभव, नीतिश,सुशील द्विवेदी,अमनदीप सिंह, सनी सिंह,सतीश कुमार यादव,राना प्रताप सिंह,सलाह ग़ाज़ीपुरी, विमल वर्मा,पीयूष मिश्र,मिसदाक आज़मी आदि ने कलाम पेश किया। अंत में कार्यक्रम के संयोजक शिवपूजन सिंह ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया।
राजेश राज को अकबर इलाहाबादी सम्मान प्रदान करते एम.ए. क़दीर, एस.एम.ए. काज़मी, अखिलेश सिंह और मुनेश्वर मिश्र
नवाब शाहाबादी को अकबर इलाहाबादी सम्मान प्रदान करते एस.एम.ए. काज़मी, एम.ए. क़दीर,अखिलेश सिंह और मुनेश्वर मिश्र
फ़रमूद इलाहाबादी को अकबर इलाहाबादी सम्मान प्रदान करते एम.ए. क़दीर,एस एम ए काज़मी, मुनेश्वर मिश्र और अखिलेश सिंह
सरफ़राज आसी को अकबर इलाहाबादी सम्मान प्रदान करते एम. ए. क़दीर और एस एम ए काज़मी

संचालन करते गुफ्तगू के  संस्थापक इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

वक्तव्य देते इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एम ए क़दीर
वक्तव्य देते पूर्व महाधिवक्ता एम एम ए काज़मी

वक्तव्य देते वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र
वक्तव्य देते अखिलेश सिंह

अकबर इलाहाबादी पर वक्तव्य देते एहतराम इस्लाम

अकबर इलाहाबादी पर वक्तव्य देते रविनंदन सिंह

अकबर इलाहाबादी पर वक्तव्य देते शाहनवाज़ आलम

काव्य पाठ करते नवाब शाहाबादी

काव्य पाठ करते फ़रमूद इलाहाबादी
काव्य पाठ करते सरफ़राज आसी

काव्य पाठ करते राजेश ‘राज़’

काव्य पाठ करते अहकम ग़ाज़ीपुरी

काव्य पाठ करते मिसदाक आज़मी

काव्य पाठ करते सलाह ग़ाज़ीपुरी
काव्य पाठ करते सरवर लखनवी

काव्य पाठ करते शिवशरण बंधु
काव्य पाठ करते सौरभ पांडेय

काव्य पाठ करतीं शादमा ज़ैदी शाद

काव्य पाठ करते वीनस केसरी

काव्य पाठ करते राणा प्रताप सिंह
काव्य पाठ करते सतीश कुमार यादव
काव्य पाठ करते विमल वर्मा
काव्य पाठ करते अजय कुमार
काव्य पाठ करते अनुराग अनुभव
काव्य पाठ करते अमनदीप सिंह
काव्य पाठ करते अवधेश यादव
काव्य पाठ करते पीयूष मिश्र
काव्य पाठ करते सुशील द्विवेदी

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

मोहर्रम के मौके पर-सलाम

चित्रः गुगल से साभार

        -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
शब्बीर से तो मेरे मोहम्मद को प्यार है।
शब्बीर से ही दीने-नबी का वक़ार है।
शब्बीर हक़ का सीन-ए-बातिल पे वार है।
शब्बीर जिस पे सारा जहां सोगवार है।
हर दौर कह रहा है कि शब्बीर के बिना,
इस्लाम का वजूद भी तो तार-तार है।
शब्बीर के ही वास्ते हर सम्त देखिए,
नौहा है, ताजि़या है, अलम है, पुकार है।
क़रबोबला पुकारती है रोजो-शब यही,
शब्बीर से सुकून है सब्रो-क़रार है।
शब्बीर जिसकी सीरतो-ओ-किरदार के सबब,
ईसार के चमन में अभी तक बहार है।
उलझेगा उनसे कौन ज़माने में अब भला,
शब्बीर से ही नाना की उम्मत को प्यार है।
शब्बीर जिसको दह्र में हासिल है ‘इम्तियाज़’,
जे अज़मत-ओ-सिबात का इक कोहसार है।

इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

रविवार, 18 नवंबर 2012

नये लोगों के लिए ख़ास है ग़ज़ल व्याकरण अंक-प्रो. फ़ातमी

विमोचन का चित्रः बायें से- यश मालवीय, एहतराम इस्लाम, प्रो. अली अहमद फ़ातमी, अख़्तर अज़ीज़ और इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

इलाहाबाद।  गुफ्तगू का ‘ग़ज़ल व्याकरण विशेषांक’ ख़ासतौर पर नये लिखने वालों के लिए एक अनमोल तोहफा है। इस अंक में ग़ज़ल के व्याकरण और रूपरंग को बेहद आसान तरीके से समझाया गया है। एक नये लिखने वाला जिसे ग़ज़ल के बारे में कुछ भी नहीं आता, वह  भी इस अंक को पढ़कर बहुत कुछ सीख सकता है। यह बात मशहूर उर्दू आलोचक प्रो.अली अहमद फ़ातमी ने  गफ्तगू के ‘ग़ज़ल व्याकरण विशेषांक’ और अख़्तर अज़ीज़ के ग़ज़ल संग्रह ‘दस्तूर’ के विमोचन समारोह के दौरान कही। पांच नवंबर को महात्मा गांधी अंतरराष्टीय हिन्दी विश्वविद्यालय के शाखा परिसर में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अध्यक्षता प्रो. फातमी ने की, जबकि मुख्य अतिथि के तौर पर वरिष्ठ शायर एहतराम इस्लाम मौजूद थे। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। प्रो. फ़ातमी ने अख़्तर अज़ीज़ के ग़ज़ल संग्रह की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि अख़्तर अज़ीज़ फितरी और फिक्री दोनों सतह के शायर हैं, उम्दा बात यह हुई कि इन्होंने अपनी इस बेशक़ीमती विरासत को न सिर्फ़ सलीक़े से संभाला बल्कि अपनी ज़ाती मेहनत और सलाहियत से अपने तौर पर आगै भी बढ़ाया।
मुख्य अतिथि एहतराम इस्लाम ने कहा कि जहां गुफ्तगू का यह अंक कई मायनों में नायाब है, वहीं ‘दस्तूर’ में शामिल ग़ज़लें अच्छी शायरी की नुमाइंदगी करती हैं। गुफ्तगू टीम और अख़्तर अज़ीज़ इसके लिए मुबारकबाद के हक़दार हैं। इससे इलाहाबाद की अदबी हलके में बहुत अच्छा मैसेज गया है। ऐसे कामों की हमें प्रशंसा करनी चाहिए। वरिष्ठ शायर एम. ए. क़दीर ने गुफ्तगू के इस अंक और ‘दस्तूर’ दोनों की सराहना की और कहा कि इससे इलाहाबाद की अदबी सरज़मीन और ज़रखेज होती नज़र आ रही है। प्रसिद्ध गीतकार यश मालवीय ने कहाकि गुफ्तगू के इस अंक को देखकर सहज ही कहा जा सकता है कि हिन्दी में इस तरह का पहला प्रयास है, मेरी जानकारी में अबतक किसी पत्रिका ने इस विषय में इतने सहज ढंग से कोई अंक नहीं निकाला है। दूसरी ओर अख़्तर अज़ीज़ की शायरी वाकई ज़ब्त की शायरी है, जहां रूह को सुकून मिलता है। इस शेरियत में जब उनकी तीर बिंधे हिरन जैसी आवाज़ शामिल हो जाती है तो और भी कहर बरपा हो जाती है। अख़्तर अज़ीज ने भूमिका पेश करते हुए अपनी शायरी से लोगों को रू-ब-रू कराया और कई ग़ज़लें सुनाईं। इस अवसर पर फ़रमूद इलाहाबादी, जयकृष्ण राय तुषार, नरेश कुमार ‘महरानी’, वीनस केसरी और कु. गीतिका श्रीवास्तव ने काव्य पाठ किया। कार्यक्रम के दौरान अशोक कुमार स्नेही, स्नेहा पांडेय, अजय कुमार, अनुराग अनुभव, अमनदीप सिंह, गुलरेज इलाहाबादी,इश्क सुल्तानपुरी, रमेश नाचीज़,शुभ्रांशु पांडेय, तलब जौनपुरी, विमल वर्मा,दिव्या सिंह, प्रवीण वर्मा,नजीब इलाहाबादी आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे। अंत में संयोजक शिवपूजन सिंह ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया।




कार्यक्रम का संचालन करते इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

विचार व्यक्त करते प्रो अली अहमद फ़ातमी

विचार व्यक्त करते एम.ए. क़दीर

विचार व्यक्त करते एहतराम इस्लाम

विचार व्यक्त करते यश मालवीय

विचार व्यक्त करते शायर अख़्तर अज़ीज़

कार्यक्रम के दौरान मौजूद साहित्य प्रेमी

काव्य पाठ करते फरमूद इलाहाबादी

काव्य पाठ करते जयकृष्ण राय तुषार
काव्य पाठ करते वीनस केसरी

काव्य पाठ करते नरेश कुमार ‘महरानी’

काव्य पाठ करती कु. गीतिका श्रीवास्तव
धन्यवाद ज्ञापित करते संयोजक शिवपूजन सिंह