गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

बादल चटर्जी का नाम ही काफी है

     

बादल चटर्जी

 

                                                                     -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

                                          

 प्रयागराज में तैनात रहने वाले ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों का जब जिक्र होता है, तो महमूद भट्ट और बादल चटर्जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इनका जन्म 03 फरवरी 1955 को हुआ। इनके प्रपिताहम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ब्रम्होबान्धव उपाध्याय, जो कवि गुरू रबिन्द्र नाथ ठाकुर के शान्ति निकेतन के प्रबन्धक रहे हैं और बंगाल पार्टीशन के विरोध में आन्दोलन किए थे। इनके पिता न्यायाधीश स्व. तारा नाथ चटर्जी अंग्रेजों के समय इलाहाबाद विश्वविद्यलय के ‘डन मेडल’ से सम्मानित किए गए थे। बादल चटर्जी की पत्नी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी़ विषय से स्नातकोत्तर हैं और इलाहाबाद में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़ने के साथ-साथ एक अच्छी गायिका भी हैं। 

 बादल चटर्जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए, एमए एवं एलएलबी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के साथ-साथ मेरिट लिस्ट में भी स्थान प्राप्त किया था। विश्वविद्यालय की पढ़ाई के बाद वे यूको बैंक की सिविल लाइन्स शाखा में प्रोबेशनरी अधिकारी के पद पर चयनित हुए थे, तभी इनका चयन आईएएस परीक्षा में हो गया। इन्हे इण्डियन डिफेन्स एकाउन्ट सर्विस 1982 बैच आवंटित हुआ था। प्रशासनिक कार्य में रुचि के कारण ये पीसीएस सेवा में सम्मिलित होकर आईएएस अधिकारी बने। बादल चटर्जी अपने समय के स्कूल क्रिकेट कैप्टन रहे है और हॉकी के कलर होल्डर वाइस कैप्टन थे। वे हॉकी के क्लास वन अम्पायर भी रहे हैं।

1997 से 1999 तक बादल चटर्जी इलाहाबाद में अपर जिलाधिकारी, नागरिक आपूर्ति रहे हैं। इस दौरान इन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। जिनमें-डीज़ल रेकेट का भंडाफोड़ महत्वपूर्ण है। मामा भांजा तथा गद्दोपुर में डीज़ल टेंकर में केरोसीन की मिलावट करके एक टैंकर को दो टैंकर किया जाता था। नमक की कमी की अफवाह को तत्काल नियंत्रित किया जो अन्य जनपदों में कई दिनो तक चलता रहा। गैस सिलेन्डर की होम डिलीवरी सुनिश्चित कराया तथा उसके व्यावसायिक उपयोग पर अंकुश लगाया।

 वर्ष 1999 से 2000 तक ये इलाहाबाद में अपर जिलाधिकारी, नगर रहे हैं। तब इनके कार्यों की चर्चा बहुत अधिक थी। इन्होंने लेबर एक्ट के अन्तर्गत दुकानों की बन्दी का समय और साप्ताहिक अवकाश सुनिश्चित कराया, जिससे श्रमिकों को राहत मिली और दुकान मालिकों को भी आनंद व मनोरंजन का समय मिला। इलाहाबाद विश्वविद्यालय का शिक्षण सत्र जो पिछड़ गया था, तत्कालीन कुलपति प्रो. खेत्रपाल को सहयोग प्रदान कर सत्र नियमित कराया। इलाहाबाद छात्रसंघ के चुनाव को विश्वविद्यालय परिसर में ही सीमित कराया। लाउडस्पीकर, जो ध्वनि प्रदूषण का माध्यम था, पर पूर्ण अंकुश लगाया। टेक्स्ट बुक्स एक्ट के अन्तर्गत सरकारी बेसिक स्कूल की किताबों की डुप्लीकेट प्रति बनाकर बेचने के धन्धे को रोका और दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध कार्यवाही की गई। दीपावली के पहले मउआइमा में छापा मारकर तीन ट्रक अवैध आतिशबाजी व पटाका नष्ट कराया, जिसके कारण इलाहाबाद में तेज बजने वाले पटाकों पर अंकुश लगा। पहली बार पटाकों को बजार से हटाकर क्षेत्रवार विभिन्न स्कूलों के मैदानों में स्थापित करा कर बिकवाया। इस कार्रवाई के दस साल बाद मउआइमा में पुनः अवैध तरीके से आतिशबाजी बनाने में भीषण लग जाने के कारण कई व्यक्ति झुलस कर मर गये। पायनीयर अखबार में लिखा गया था कि यदि बादल चटर्जी ने जो निरोधात्मक कार्रवाई दस साल पहले किया था, उसे उनके बाद के अधिकारीगण अगर करते, तो ऐसी घटना नहीं घट पाती।

 बादल चटर्जी वर्ष 2002 से 2003 तक इलाहाबाद नगर निगम के नगर आयुक्त थे। इस दौरान इन्होंने नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोका व कूड़ा उठाने वाली गाड़ी से सम्बन्धित डीज़ल रैकेट का भंडाफोड़ कर फैली अनियमितता को समाप्त किया। अंग्रजों के समय के पुराने नालों को ढंूढ निकाला जिसे लोगों ने ढक कर उनके ऊपर मकान बना लिया था। नाला सफाई मई, जून के महीने में कराया, जिससे शहर में पानी बरस जाने के बाद बाढ़ की स्थिति नहीं आयी। ैजवतउ ॅंजमत क्तंपद व सीवर को अलग करने की कार्यवाही प्रारम्भ किया। इलाहाबाद के पार्कों, विशेष रूप से नगर निगम कार्यालय के पार्क के सौन्दर्यीकरण का कार्य कराया। आज नगर निगम कार्यालय के पार्क का जो सुन्दर स्वरूप है, उन्ही की देन है। अतिक्रमण का सामान जो लोगों ने जुर्माना देकर नहीं लिया, उसका नीलामी करके उस पैसे से नगर निगम कार्यालय के पार्क को घेरवा दिया, जो आज भी विराजमान है। 

जुलाई 2004 से नवंबर 2004 तक आप उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में सचिव के पद पर कार्यरत रहे हैं। इस दौरान इन्होंने वहां व्याप्त भ्रष्टाचार को रोका तथा अध्यक्ष व सदस्यों के विरुद्ध विजिलेन्स की जांच स्थापित कराया। इसके बाद उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में तैनाती रही।

 फरवरी 2014 में इनकी नियुक्ति इलाहाबाद मंडल केे कमिश्नर के पद पर हुई। तब इन्होंने चंद्रशेखर आजाद पार्क (अल्फ्रेड पार्क) का सौर्न्दयीकरण, पार्क में टहलने वालों के लिए टॉयलेट, सीविल लाइन्स की सड़कों का चौड़ीकरण और सौर्न्दयीकरण को स्वीकृति प्रदान किया। इन्हीं के देखरेख में फ्लाई ओवर्स का रोड मैप बनाया गया, जो बाद में बजट की स्वीकृति के बाद बना तथा और भी जहां-जहां फ्लाई ओवर्स का चिन्हीकरण किया गया, जो अब बन रहा है। खुसरो बाग में एक फ्लाई ओवर के कारण जाम की स्थिति उत्पन्न होती थी इसलिये दूसरे फ्लाई ओवर की योजना बनाई गई। शहर में पुलिस विभाग को सहयोग प्रदान करके खम्भों में कैमरा लगा कर अपराध पर अंकुश लगाया। गंगा नदी पर लाल बहादुर शास्त्री ब्रिज व फाफामऊ के ब्रिज का टोल टैक्स समाप्त कराया। स्वरूप रानी मेडिकल कॉलेज में एम. आर. आई. व सीटी स्केन नहीं था, जिसे स्थापित कराया। मण्डल में काफी डाक्टर लोग प्राइमरी हेल्थ सेन्टर व कम्युनिटी हेल्थ सेन्टर में नहीं जाते थे जिसके कारण बीमार गरीब व्यक्ति को चिकित्सा सुविधा तथा दवाई नहीं मिल पाती थी। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा बिलकुल चरमरा गयी थी। इस लचर व्यवस्था को ठीक करने के लिए मोबाईल सर्विलान्स के माध्यम से इन डाक्टरों का लोकेशन लिया गया, जिससे डाक्टर ग्रामीण अंचल में निरंतर पहुंच कर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने लगे। स्वरूप रानी अस्पताल में जहां उनकों मुफ्त में दवाई व चिकित्सा सुविधा मिलनी चाहिए, वहीं कतिपय डाक्टर दलाल के साथ गठजोड़ कर मरीजों को प्राईवेट नर्सिंग होम में ले जाने की व्यवस्था करते थे, जहां उनका आर्थिक शोषण होता था। इनके द्वारा छापा मरवाकर 16 प्राईवेट एम्बूलेन्स को मेडिकल कॉलेज के परिसर से हटाकर जब्त कराया गया, जिससे ऐसा माहौल बना कि गरीब व स्थानीय लोगों की चिकित्सा सरलता के साथ उपलब्ध होने लगी। 

 सेवानिवृत्ति के बाद भी फरवरी 2015 में बादल चटर्जी समाज को बेहतर बनाने के लिए सक्रिय हैं। उस समय लोक सेवा आयोग में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर था। उन्होने छात्रों के साथ मिलकर हाईकोर्ट में दायर पीआईएल का समर्थन करके तथाकथित भ्रष्ट उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को हाईकोर्ट के आदेश से हटवाकर, प्रतियोगी छात्रों को न्याय दिलाने में एक अभूतपूर्व प्रयास किया। 

(गुफ़्तगू के जुलाई-सितंबर 2022 अंक में प्रकाशित )


शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

अकीदत और मोहब्बत के शाइर आरिफ नूरानी

                                            - डॉ. वारिस अंसारी 

                                                                              फतेहपुर 

                                                                           मो. 9935005032 

 नअत कहना आसान काम नहीं है। कहा गया है नअत कहना तलवार की धार पर चलने जैसा है। बताता चलूं कि जो अशआर नबी की शान में कहे जाते हैं नअत कहलाते हैं, लेकिन नअत कहने में इस बात का ख़्याल रखा जाता है कि नबी की शान में कमी भी न आने पाए, और खुदा की वहदानियत भी बाकी रहे। आइए बात करते हैं नअत के एक नायाब शाइर मो. आरिफ नूरानी का, जिनका नातिया मजमूआ ‘अकीदत के फूल’ बहुत ही खूबसूरत मजमूआ है। आरिफ का नअत कहने का अंदाज़ बहुत ही सादा है और आसान लफजों को भी बखूबी बरतना जानते हैं, जिससे कारी को पढ़ने में काफी आसानी होती है। आरिफ के अशआर में अकीदत और मोहब्बत के रंग बिखरे हुए हैं, जिससे ईमान में ताज़गी पैदा होती है। इन्होंने मोतारन्नुम बह्र का इस्तेमाल किया है। अहसासात और जज़्बात में रहकर इन्होंने होश नहीं खोया और आगाज़ में ही खुदा की हम्द करते हुए लिखते हैं- ‘तेरी तमसील मुमकिन हो कैसे तेरी अजमत बईद अज़ बयां है/तेरी कुदरत का अंदाज़ा मौला इब्ने आदम के बस में कहां है’ उनके अशआर से पता चलता है की सरवरे कायनात की मोहब्बत उनकी रग-रग में मौजूद है। उनकी जिंदगी का हर लम्हा यादे रसूल और ज़िक्रे इलाही में गर्काब है। वह नअतगोई को इबादत और जरिया ए निजात तसव्वुर करते हैं । एक जगह कहते है-‘खुदा तेरे आरिफ की ये आरज़ू है कि ताउम्र/वह नअते अहमद सुनाए अकीदत और मोहब्बत में डूबा।’ आरिफ साहब का ये पहला नातिया मजमूआ है। जिसमे 176 पेज हैं। किताब को आरिफ नूरानी ने उबैद उल्लाह अत्तारी नूरखान पुर भदोही से कम्पोज करा कर बज्मे अहले कलम भदोही से प्रकाशित किया है। किताब की कीमत 100 रुपए है ।


  अज़्मे-बिलाल है गुलदस्ता-ए-अकीदत


 

नअत के बहुत ही मोहतरम शाइर हाजी मोइनउद्दीन आसिम का नातिया मजमूआ है ‘अज़्मे बिलाल’ है। इस किताब के पढ़ने से ईमान में जान आ गई। दिल इश्के नबी में डूब गया और क़ारी का दिल इश्के नबी ने क्यों न डूबे जब आसिम साहब ने नबी की मोहब्बत में गर्काब हो कर अशआर कहे हों। देखें-‘कौन कहता है उसे ख्वाहिशे जन्नत होगी/ जिसकी आंखों में मेरे आका की सूरत होगी।’ ‘अब तो आसिम की आका खबर लीजिए/ये तो अपने से भी बेखबर हो गया।’ आसिम के अशआर में मिठास है, रूह की गिज़ा है, कठिन लफ्ज़ों से भी परहेज़ किया है, पढ़ने में सलासत है। यही सब खूबियां उनको मोहतरम बनाती हैं। वह नअत सिर्फ़ शायरी के इल्म की वजह से नहीं बल्कि इश्के नबी में बेदार रहने के लिए कहते हैं और वह नअतगोई को इबादत का दर्जा देते हैं। आसिम साहब की सबसे बड़ी खूबी ये है कि इनके अशआर सहल और आम फहम ज़बान में होते हैं और लफ्ज़ों का इस्तेमाल मजमून के मुताबिक करते हैं। वह इश्क नबी में गोताज़न हो कर कहते हैं-‘इश्के़-रसूले-पाक मताए-रसूल है /वह जी गया जो आपकी उल्फत में मर गया’, ‘हूरें हैं उसके वास्ते जन्नत में बेकरार/ निस्बत जिसे जहां में गुलामे नबी से है।’ मौजूदा हालात पर भी उनकी गहरी नज़र है। उम्मते मुसलमां के अंदर जो बद-एखलाकी, हकीकत से चश्म पोशी, बेअमली और शरीयत से मुखालिफत जैसी बुराइयां पैदा हैं, उन्हें सोच कर वह काफी फिक्र मंद नज़र आते हैं। कुल मिलाकर ‘अज़्मे बिलाल’ एक कामयाब नातिया मजमूआ है, जिसमें 216 पेज हैं और हदिया 100 रुपए है। जो कि इमामा साबरी कटरा बाज़ार भदोही से कम्पोज हो कर बज़्मे अहले कलम भदोही से शाया हुई है। दुआ है अल्लाह उनके इस नायाब तोहफा को कुबूल फरमाए।


’अज़ीम मुजाहिद-ए-आज़ादी शेख़ भिकारी अंसारी’



 भारत की आज़ादी में यूं तो हर कौमों मिल्लत ने लोगों बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। बहुत लोगों को हम जानते हैं और उन्हें याद भी करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे आज़ादी के दीवाने भी हुए हैं जो गुमनामी का शिकार हो गए, हम उन्हें भूल गए। ऐसे ही एक अज़ीम मुजाहिद ए आज़ादी शहीद शेख़ बुखारी उर्फ भिकारी अंसारी हुए हैं, जिन्हें टीपू सुल्तान का सानी कहा जाता था। एम. डब्ल्यू. अंसारी ने की एक ऐसी किताब का संपादन किया है, जिसमें अलग-अलग लेखकों ने शेख बुखारी पर मज़ामीन लिखा है। किताब का नाम ‘शहीद शैख़ बुखारी उर्फ भिकारी अंसारी और आज़ादी की पहली लड़ाई 1957 रखा’ इस किताब में लग भग ’28’ लोगों ने शेख़ भिखारी अंसारी की ज़िंदगी पर बड़े दिलचस्प अंदाज़ में मज़ामीन लिखा है, जो कि स्कालर्स के लिए भी एक कार आमद किताब है।

 एम. डब्ल्यू. अंसारी लिखते है कि शेख़ भिकारी अंसारी एक दानिशवर, बहादुर, मनसूबाबन्दी में  ऐसे माहिर थे कि फिरंगी उनके नाम से कांपते थे। इसका बेहतर अंदाज़ अंग्रेज़ो की फ़ौजी अदालत के एक तबसरे से होता है जो ’7’ जनवरी ’1857’ को शेख़ भिकारी और उनके साथियों को सज़ाये मौत सुनाते वक़्त लिखा गया। जिसका तर्जुमा था ‘कि शेख़ भिकारी बागियों में सबसे ज़्यादा मशहूर ख़तरनाक और इंक़लाबी हैं’ं बहरहाल शेख़ भिकारी की ज़िन्दगी और आज़ादी के लिए उनकी बहादुरी को दर्शाती हुई ये एक कारआमद किताब है जिसे पढ़कर सीने में वतन परस्ती का जज़्बा पैदा होता है। खूबसूरत जिल्द के साथ ’200’ रुपये की इस किताब में ’128’ पेज है जिसे न्यूज़, प्रिंटर्स सेंटर दरियागंज नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इस खूबसूरत अदबी तारीखी तोहफे के लिए एम. डब्ल्यू. अंसारी और उनकी पूरी टीम को मुबारकबाद पेश करता हूं।


सफीर-ए-अदब आसिया तलअत

 


किसी भी तखलीककार पर लोगों से अलग-अलग राय मुतात्तिब करना कोई आसान काम नहीं। ये बड़ी मेहनत और हौसले का काम है। ‘सफीर-ए-इंशाइया मोहम्मद असद उल्लाह’ एक मारूफ इंशाइया निगार हैं, पूरी अदबी दुनिया में अपनी सलाहियतों का लोहा मनवा रहे हैं। आसिया तलअत ने उन पर अपनी और दीगर तखलीक कारों की राय जमा करके बड़ा ही अजीम काम अंजाम दिया है। इस किताब को उन्होंने पांच हिस्सों में तकसीम किया है। पहले बाब (हिस्से) में मतीन अचलपुरी की तौशीही नज़्म भी शामिल है, जिसे उन्होंने मोहम्मद असद उल्लाह की शान में उनके हर्फ (अक्षर) के नाम से तखलीक की है जो कि काबिले तारीफ है। इस किताब के मुकदमे में ही आसिया तलअत ने असद साहब की जिंदगी और उनकी पूरी अदबी  खिदमात का जिक्र किया है। आप सिर्फ मुकदमा पढ़कर ही आसिया तलअत की सलाहियतों का अंदाजा कर सकते हैं। उन्होंने बहुत ही खुश बयानी और सादह जबान में ही अपना इजहार ए ख्याल पेश किया है, जिसे कारी बआसानी पढ़ता चला जाता है और वह अपने आप को बोझिल भी नहीं महसूस करता। इसी पूरी किताब में उम्दा कागज का इस्तेमाल किया गया है, जिल्द के साथ इस किताब में 432 पेज हैं जिसकी कीमत 256 रुपए है, साहिल साहिल कंप्यूटर नागपुर से कंपोज कराकर इस किताब को दरभंगा हिंदी उर्दू प्रेस कामती ने प्रकाशित किया है। अहले अदब हज़रात एक बार इस किताब का मुताला ज़रूर करें उम्मीद करता हूं कि अदबी दुनिया में आने वाले कल तक भी इस किताब की अपनी एक अलग शिनाख्त होगी।

                        

 इंशाइया का तारीखी मजमुआ



 


   इंशाइया नस्र (गद्य) की वह सिन्फ (विधा) है, जो लगती तो मजमून की तरह है लेकिन होती मजमून से अलग है। ‘इंशाइया एक ख़्वाबे परेशां’ में लेखक आजादाना तौर पर बिना किसी नतीजे पर पहुंचकर अपनी तहरीर को खत्म कर देता है और नतीजा पाठकों पर छोड़ देता है। ‘इनशाइया एक ख्वाब ए परेशां’ ऐसा ही मजमुआ है जिसके मुसन्निफ जनाब मोहम्मद असद उल्लाह साहब हैं जिसमें मौसूफ ने तहकीक और को मौजू बनाकर ही दिलकश अंदाज में यह मजमुआ मुरत्तिब  किया है। अदब से लगाव रखने वालों के लिए ये किताब बहुत ही काम की है। मुसन्निफ़ ने निहायत ही आसान लफ़्ज़ों में इस्तेमाल किया है जिससे पाठक रवानी के साथ पढ़ता चला जाता है और दिल ही दिल में मज़े का तसव्वुर करता है। आपने इस किताब में इंशाइया की तारीफ व तारीख का बहुत खूबसूरत अंदाज़ में ज़िक्र किया है। मैंने अभी पूरी किताब का मुताअला तो नही किया लेकिन जितना पढ़ा उससे अंदाज़ा हो जाता है कि जनाब असद उल्लाह साहब ने इस किताब के लिए बड़ी मेहनत ओ मशक्कत की है। रातों की नींदें कुर्बान की हैं तब कहीं जा कर इतनी कारामद किताब मंजरे आम पर आई है। इस किताब से अदीबों के अलावा तालिबे इल्म भी भरपूर फायदा उठा सकते हैं। साहिल कंप्यूटर्स हैदरी रोड मोमिन पूरा भागलपुर महाराष्ट्र से प्रकाशित इस किताब की कीमत 141रुपए है। खूबसूरत सरे वर्क के अलावा इस किताब में 224 पेज हैं । अदब से वाबस्ता हजरात इस किताब को एक बार ज़रूर पढ़ें ।

 

(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2022 अंक में प्रकाशित )