रविवार, 18 अगस्त 2013

इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अपने जांबाज़ तैयार नहीं किये

‘इलेक्ट्रानिक मीडिया के दौर में अख़बार’ विषय पर सेमिनार आयोजित
इलाहाबाद। इलेक्ट्रानिक मीडिया घुटने के बल चल रहा है। अभी तक इसने अपना प्रारूप ही तय नहीं किया है। इस मीडिया को चलाने वाले लोग भी अख़बारों से ही गये हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अपने जांबाज़ तैयार नहीं किये। यह बात वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार अजामिल ने कही। वे 17 अगस्त को साहित्यिक संस्था ‘गूफ्तगू’ की ओर से महात्मा गांधी अंतरराष्टीय हिन्दी विश्वविद्यालय में ‘इलेक्ट्रानिक मीडिया के दौरा में अख़बार’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार बीएस दत्ता ने की, जबकि संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। विशिष्ट अतिथि के तौर पर हिन्दुस्तान के संपादक दयाशंकर शुक्ल ‘सागर’, प्रेस क्लब के अध्यक्ष रतन दीक्षित, रविनंदन सिंह, शिवाशंकर पांडेय और शाकिर हुसैन ‘तश्ना’ मौजूद थे। इस मौके पर दयाशंकर शुक्ल ‘सागर’,बीएस दत्ता,रतन दीक्षित और शाकिर हुसैन ‘तश्ना’ को गुफ्तगू की ओर सम्मानित किया गया।
अध्यक्षता कर रहे बीएस दत्ता ने कहाकि इलेक्ट्रानिक मीडिया में निवेश तो हुआ लेकिन संस्कार का अभाव रहा। यही वजह है कि विश्वसनीयता अख़बारों की है, इलेक्ट्रानिक मीडिया उत्तेजित होने वाली ख़बरों ही ज्यादा दिखाता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया अब सिर्फ ख़बर नहीं दिखाता बल्कि अपनी बेतुकी टिप्पणी देता है, जिसका को कोई आधार नहीं होता। हिन्दुस्तान के संपादक दयाशंकर शुक्ल ‘सागर’ ने कहा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया ने ख़बरों की भूख बढ़ा दी है, क्योंकि इनकी ख़बरों ने भूख तो बढ़ा दी विश्वसनीयता नहीं दी, जिसकी वजह से लोग अख़बारों का इंतज़ार करते  हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी विज्ञापन अब नेट पर जारी होने लगे हैं, जिसकी वजह  से अख़बारों को विज्ञापन मिलना कम हो गया है। यही हाल रहा तो आने वाले बीस वर्षों में अख़बार बंद होने लगेंगे। रविनंदन सिंह ने कहा मीडियम से मीडिया बना है। मीडिया का काम लोगों को ‘वेल इनफार्म’ रखना है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले जूलियस सीजर ने रोमन में अख़बार निकाला था, जो बड़े चाव से पढ़ा जाता था। आज हम कई माध्यमों से अपने को अपडेट करते हैं, जिसमें प्रिन्ट मीडिया, श्रव्य मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया और सोशल मीडिया प्रमुख है। अब तो सिटीजन पत्रकारिता की भी शुरूआत हो चुकी है। प्रेस क्लब के अध्यक्ष रतन दीक्षित ने कहा कि पांच-छह साल पहले ‘हिन्दू’ अख़बार ने इस विषय पर सेमिनार का आयोजन किया था, जिसमें प्रिन्ट मीडिया के सामने आ रही चुनौतियों पर चर्चा की गई थी और यह बात सामने आयी कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के आने से प्रिन्ट मीडिया के प्रति लोगों को रूझान और बढ़ा ही है। शिवाशंकर पांडेय ने कहा कि इस अख़बारों का सामाजिक सरोकार बढ़ा है, जिसकी वजह से पाठकों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। शाकिर हुसैन ‘तश्ना’ ने कहा कि सबसे पहले कलकत्ता से 1780 में अख़बार की शुरूआत हुई थी। आज़ादी के आंदोलन में अख़बारों की भूमिका बहुत अहम रही है, हालांकि मौके-मौके पर अंग्रेज़ों ने इनका भी दमन किया।इस मौके पर गुफ्तगू की संपादक नाजि़या ग़ाज़ी, नरेश कुमार ‘महरानी’,वीनस केसरी, अजय कुमार, शिवपूजन सिंह,संजय सागर,रोहित त्रिपाठी रागेश्वर, सुशील द्विवेदी, नंदल हितैषी, असरार गांधी, इमरान लाफ्टर,फरमूद इलाहाबादी, तारिक सईद ‘अज्जू’,धनंजय सिंह,सत्यभामा मिश्रा, सोनिका अग्रवाल, सलाह गाजीपुरी, विजय विशाल आदि मौजूद रहे।
सम्मानित हुए लोगों के साथ लिया गया ग्रुप फोटो, बायें से: नरेश कुमार ‘महरानी’,शिवपूजन सिंह,शिवाशंकर पांडेय,शाकिर हुसैन ‘तश्ना’,बीएस दत्ता,अजामिल व्यास,दयाशंकर शुक्ल ‘सागर’, रतन दीक्षित और इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
कार्यक्रम का संचालन करते इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
कार्यक्रम को संबोधित करते हिन्दुस्तान के संपादक दयाशंकर शुक्ल ‘सागर’
कार्यक्रम को संबोधित करते रतन दीक्षित
कार्यक्रम को संबोधित करते रविनंदन सिंह
कार्यक्रम के दौरान मौजूद लोग

उर्दू दैनिक ‘इंक़बाल’ के पत्रकार शाकिर हुसैन ‘तश्ना’ का सम्मान, बायें से: अजामिल व्यास और तश्ना
इलाहाबाद प्रेस क्लब के अध्यक्ष रतन दीक्षित का सम्मान, बायें से: अजामिल व्यास, रतन दीक्षित, दयाशंकर शुक्ल सागर
हिन्दुस्तान के संपादक दयाशंकर शुक्ल ‘सागर’ का सम्मान करते अजामिल व्यास
नार्दन इंडिया पत्रिका के संपादक बीएस दत्ता का सम्मान, बायें से: शाकिर हुसैन ‘तश्ना’,बीएस दत्ता,अजामिल व्यास, दयाशंकर शुक्ल ‘सागर’

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

चंद्र दर्शन के लिए फोन व खबर की गवाही मान्य नहीं


     -------- नाजि़या ग़ाज़ी ----------
 ईद का संबंध इबादत से है, जो रमजान के महीने से शुरू होता है और इसी महीने के समाप्त होने पर मनाई जाती है। रमज़ान सकुशल संपन्न हो जोने पर अल्लाह के शुक्र के तौर पर खुले मैदान, ईदगाह या सुविधानुसार मसजिद में नमाज पढ़ी जाती है। धार्मिक विधान के अनुसार इस इबादत की शुरूआत उस समय तक नहीं हो सकती, जब तक संतोषप्रद तरीके यह मालूम न हो जाए कि रमजान का महीना शुरू हो चुका है और समाप्त भी उस समय तक नहीं हो सकता जब तक ईद का चांद न देख लिया जाए। रमजान का महीना जब से शुरू हो और जब तक रहे हर मुसलमान का उसके रोजे रखने चाहिए। महीनेभर का रोजा पूरा किए बिना किसी ईद का हरगिज़ कोई सवाल पैदा नहीं होता। इस मामले में असल चीज मुसलमानों की एकता नहीं है, बल्कि रमजान के महीने की समाप्ति है। रमजान एक क़मरी यानी चांद वाला महीना है, जो चांद के दिखने पर निर्भर करता और इसके बारे में नबी का स्पष्ट संदेश मौजूद है, जिसमें कहा गया है कि चांद देखकर रोजे रखो और चांद देखकर ही रोजे खत्म करो। लेकिन आसमान साफ न हो तो तीस रोजे की गिनती पूरी करो, सिवाय इसके कि दो सच्चे और विश्वसनीय गवाह यह गवाही दें कि उन्होंने चांद देखा है। हजरत मुहम्मद सल्ल ने इस आदेश में दो बातें स्पष्ट रूप से निर्धारित की है- एक यह है कि चांद देखने की गवाही उस समय जरूरी होगी जब आसमान साफ न हो, दूसरे- यह कि इस स्थिति में खबर पर नहीं बल्कि दो सच्चे न्यायप्रिय गवाहों की गवाहों पर चांद देखने का फैसला किया जाएगा।
चंद्रदर्शन की गवाही के बारे में किसी व्यक्ति द्वारा फोन पर गवाही दिए जाने या रेडियो-टेलीवीजन पर खबर सुन लिए जाने को नहीं माना जाता। गवाहों का सामने मौजूद होना जरूरी है।जिस प्रकार दुनिया की कोई अदालत टेलीफोन या वीडिया कांफ्रेंसिंग आदि पर की गई गवाही को नहीं मानती, उसकी प्रकार चांद के मामले में भी ऐसी गवाही पर चांद दिखने का ऐलान नहीं किया जा सकता। यह सभी जानते हैं कि पूरी दुनिया में एक ही दिन चांद देख लेना मुमकिन नहीं है। रहा किसी देश या किसी बड़े इलाके में सब मुसलमानों की एक ही दिन ईद होने की बात, तो शरीअत में इसको भी जरूरी नहीं किया गया है। यह अगर हो सके और किसी देश में शरई कानून के अनुसार चांद देखने की गवाही और उसके ऐलान का प्रबंध कर दिया जाए तो इसको अपनाने में हर्ज नहीं है। मगर शरीअत की यह मांग बिल्कुल नहीं है कि जरूर ऐसा ही होना चाहिए। अब रही ईद मानने की बात तो ईद की मुबारकबाद के असली हकदार वे लोग हैं, जिन्होंने रमजान के मुबारक महीने में रोजे रखे कुरआन मजीद की हिदायत को ज्यादा से ज्यादा उठाने की कोशिश फिक्र की, उसको पढ़ा, समझा, उससे रहनुमाई हासिल करने की कोशिश की। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्ल ने कहा है कि रमजान-उल-मुबारक के पूरे होने की खुशी में खुले मैदान में दो रक्अत नमाज अदा करो। अल्लाह केे सभी बंदों के लिए दयालुता का साधन बन जाओ। जिस तरह रोजे रखकर अल्लाह के आदेश का पालन करते हो, उसके आदेश को पूरा करते हो, उसी तरह ईद के दिन लोगों में खुशी का संचार कायम करो, ताकि मनुष्य का हर वर्ग, अल्लाह का हर बंदा आनंद के सागर में खुशी से भरे माहौल में गोते लगाए। अगर हमने रोजे रखे, नमाज पढ़ी, स्वस्थ रहे, लेकिन अपने आसपास के लोगों और अन्य लोगों को तकलीफ पहुंचाई, तकलीफें दीं और हमारे अंदर ईश-परायणता के लक्षण नहीं पाए गए तो हमारी सारी इबादत बेकार हो गई।
नमाज, रोजा, हज, जकात और तौहीद इसलाम मजहब के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। जब तक कोई मुसलमान जकात और फितरा अदा नहीं करता, तब तक उसकी ईद की नमाज अल्लाह की बारगाह में स्वीकार नहीं होती। जकात साल मंें एक बार देना होता है, इसके अंतर्गत सात तोला सोना से अधिक के मूल्य की जितनी धनराशि है, उस अधिक धन का ढाई प्रतिशत धन गरीबों में बांटना ही जकात है। जकात अदा न करना इसलाम मजहब में बहुत बड़ा गुनाह है। यदि कोई मुसलमान हर तरह की इबादत करता है, इमानदारी से जीवन व्यतीत करता है, लेकिन अगर सालाना जकात अदा नहीं करता तो उसकी सारी इबादतें अल्लाह की बारगाद में अस्वीकार कर दी जाएंगी। इसी तरह सभी मुसलमानों को फितरा अदा करना अनिवार्य है। ईद की नमाज पढ़ने से पहले फितरा अदा कर देने का आदेश है, वर्ना नमाज स्वीकार नहीं होगी। फितरे में हर मुसलमान को अपने परिवार के सदस्यो की संख्या के बराबर प्रति सदस्य दो किलो चालीस ग्राम गेहूं के मूल्य के बराबर धन गरीबों में देना होता है। इसमें सबसे पहले अपने पड़ोसी को देखना चाहिए कि वह फितरा लेने की स्थिति में है तो उसे पहले देना चाहिए, इसके बाद रिश्तेदारों को देखना चाहिए। वास्तव में ईद संपूर्ण मानवता के खुशी का दिन है इससे खुदा का कोई बंदा वंचित न हर जाए, इसका ध्यान रखना हर पड़ोसी का फर्ज है।