शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

सावन के महीने में निराला ने की बेटी की शादी

महामारी की वजह से पिता चले गए थे बंगाल, वहीं जन्मे थे निराला

परिवार उन्नाव का रहने वाला था, 1942 में इलाहाबाद आ गए

                                                                              - डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

  सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की गिनती ऐसे साहित्यकारों में होती है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन साहित्य को समर्पित कर दिया। वे सिर्फ़ लेखनी से ही कवि नहीं थे, बल्कि अपनी दिनचर्या और जीवन जीने के तरीके से भी कवि थे। उन्होंने जिस प्रकार का जीवन जिया है, वह आज के कवियों के लिए बेहरतरीन उदाहरण है। वैसे तो उनके बारे में बहुत सारी बातें प्रचलित हैं, तमाम लोगों ने बहुत लिखा-पढ़ा है। कई अन्य लोगों के अलावा डॉ. राम विलास शर्मा ने उन पर बहुत ही शोधात्मक कार्य भी किया है। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी निराला जी के बारे में बहुत कुछ लिखा है। लेकिन उनके व्यक्तिगत जीवन को लेकर बहुत सारी बातें प्रचलित हैं, जिनमें बहुत सी बातें सच हैं तो कुछ चीज़ें जोड़ दी गई हैं।

काव्यपाठ करते सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

 प्रपौत्र विवेक निराला ने खुद अपनी आखों से सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ को नहीं देखा, लेकिन परिवार और समाज में उनको लेकर हो रही बहुत सारी घटनाओं और बातचीत को सुनते रहे हैं। इन्होंने हमसे बहुत सारी बातें शेयर की हैं। एक घटना के बारे में विवेक निराला बताते हैं- एक बार राममनोहर लोहिया इलाहाबाद आए हुए थे। कॉफी हाउस में बैठकी के दौरान किसी ने उनसे निराला जी से मिलने को कहा। लोहिया जी ने उनसे मिलने से पहले पूरी रात निराला की कविताएं पढीं। फिर सुबह दारागंज स्थित उनके निवास पर मिलने पहुंचे। दरवाजे पर लोहिया जी पहुंचे तो निराला जी के पास बैठे लोगों ने उनको बताया कि लोहिया जी आए हैं। इस पर निराला जी ने पूछा- क्यों आए हैं? नेहरु जी तो नहीं आते हैं। इस पर लोहिया जी ने कहा- नेहरु जी नहीं आते हैं, इसीलिए मैं आपसे मिलने आया हूं। फिर बहुत देर तक दोंनों लोगों ने बात की।

मुंबई के फिल्मी कलाकारों के बीच सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और पृथ्वीराज कपूर।

वर्ष 1953-54 के कुंभ मेले में भगदड़ के दौरान काफी लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद इलाहाबाद आए थे। तब उनका निराला जी से मिलने का कोई प्रोटोकाल पहले से नहीं था। लेकिन राजेंद्र प्रसाद जी उनसे मिलने पहुंच गए। दारागंज की पतली गलियों से होते हुए एक दारोगा पहुंचा और उनसे बताया कि राष्ट्रपति जी आ रहे हैं। थोड़ी ही देर में राजेंद्र प्रसाद जी पहुंच गए। पहले से ही निराला जी के पास बहुत से लोग बैठे हुए थे। राष्ट्रपति को देखते ही लोग जाने लगे। इस पर निराला जी ने सबको रोका। पैदल ही संकरी गली से होते हुए राष्ट्रपति जी पहुंच गए। एक अधिकारी ने राष्ट्रपति की ओर इशारा करते हुए कहा कि-पहचाना इनको आपने ? निराला जी ने कहा-‘ये हमारे प्रसिडेंसी कॉलेज के मित्र हैं, इनको क्यों नहीं पहचानूंगा। लेकिन इन्हीं के नाम के एक राष्ट्रपति हैं, उनको मैं नहीं जानता।’

 निराला अपने परिवार के साथ बहुत कम रहे। उनकी पुत्री सरोज अपने ननिहाल में पली थीं। जब सरोज बड़ी हो गईं तो निराला जी की सास ने उनसे कहा कि बेटी की परवरिश तो मैंने कर दी है। अब शादी तुमको ही करनी है। निराला जी ने अपने कोलकाता के एक शिष्य के साथ बेटी सरोज की शादी तय कर दी। उन्होंने कोई कुंडली नहीं मिलाया, ‘सावन’ के महीने में उन्होंने शादी करने का फैसला किया। लड़की और लड़के के लिए निराला ने कपड़ा खरीद लिया, और फिर घर में ही शादी करने का निर्णय लिया। बिना कुंडली मिलाए सावन के महीने में शादी करने के फैसले पर पंडितों ने शादी कराने से मना कर दिया। इस पर निराला जी ने कहा-कोई बात नहीं मैं खुद शादी करा दूंगा। निराला जी ने शादी करा भी दिया।

एक कार्यक्रम में महादेवी वर्मा समेत अन्य साहित्यकारों के साथ निराला जी।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के पिता उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गांव के निवासी थे। लेकिन महामारी से परेशान होकर जीविकोपार्जन के लिए मेदनीपुर, पश्चिम बंगाल चले गए। वहीं 1896 में निराला जी का जन्म हुआ। डॉ.रामविलास शर्मा के अनुसार निराला जी का जन्म 1899 में हुआ। निराला जी की शिक्षा हाईस्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी, संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का सामना करना पड़ा था। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया था। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। 1918 में स्पेनिश फ्लू इन्फ्लूएंजा के प्रकोप में निराला ने अपनी पत्नी सहित अपने परिवार के आधे लोगों को खो दिया।

निराला जी पर जारी किया गया डाक टिकट।

 सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने सबसे पहले महिषादल राज्य में 1918 से 1922 तक नौकरी की। उसके बाद संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य की ओर प्रवृत्त हुए। 1922-23 में ‘समन्वय’ का संपादन किए। अगस्त 1923 में मतवाला के संपादक-मंडल में कार्य किए। इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में उनकी नियुक्ति हुई जहाँ वे संस्था की मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 तक जुड़े रहे। वर्ष 1942 में वे इलाहाबाद आ गए, यहीं दारागंज मे ंएक कमरे में जीवन के अंतिम समय तक रहे।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के प्रपौत्र विवेक निराला, अशोक श्रीवास्तक ‘कुमुद’ और डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी।

उनकी पहली कविता ‘जन्मभूमि’ प्रभा नामक मासिक पत्र में जून 1920 में, पहला कविता संग्रह 1923 में ‘अनामिका’ नाम से छपा। पहला निबंध ‘बंग भाषा का उच्चारण’ अक्टूबर 1920 में मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुआ। उनकी पहली रचना ‘जन्मभूमि’ पर लिखा गया एक गीत था। लंबे समय तक निराला की प्रथम रचना के रूप में प्रसिद्ध ‘जूही की कली’ शीर्षक कविता, जिसका रचनाकाल निराला जी ने खुदं 1916 बतलाया था, वस्तुतः 1921 के आसपास लिखी गयी थी और 1922 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। कविता के अलावा कथा साहित्य और गद्य की अन्य विधाओं में भी निराला ने खूब लेखन किया है। उनकी प्रकाशित प्रमुख कृतियों में अनामिका (1923), परिमल (1930), अप्सरा (1931), अलका (1933), लिली (1934), सखी (1935), गीतिका (1936), प्रभावती (1936), निरुपमा (1936), कुल्ली भाट (1938), तुलसीदास (1939), सुकुल की बीवी (1941), कुकुरमुत्ता (1942), बिल्लेसुर बकरिहा (1942), अणिमा (1943), चतुरी चमार (1945), बेला (1946), नये पत्ते (1946), चोटी की पकड़ (1946), अर्चना (1950), आराधना (1953) और गीत कुंज (1954) आदि हैं। 15 अक्तूबर 1961 को उनका निधन हो गया।

(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2025 अंक में प्रकाशित )   


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