मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

इतिहास में दर्ज हुआ गुफ्तगू का दोहा विशेषांक


   दोहा दिवस समारोह में बोले फिल्म संवाद लेखक संजय मासूम
   गुफ्तगू के दोहा विशेषांक और ‘मेरी माला’ का हुआ विमोचन

प्रयागराज। दोहों को शानदार तरीके से रेखांकित करने के लिए गुफ्तगू पत्रिका का ‘दोहा विशेषांक’ इतिहास में दर्ज हो गया है। इस तरह का उल्लेखनीय काम इलाहाबाद जैसे शहर से ही हो सकता है। इम्तियाज़ गा़ज़ी और उनकी गुफ्तगू टीम ने एक शानदार काम करके साहित्य में इलाहाबाद के नाम को और बेहतर तरीके से रौशन कर दिया है। यह बात फिल्म संवाद लेखक संजय मासूम ने ‘गुफ्तगू’ द्वारा 17 फरवरी को आयोजित ‘दोहा दिवस समारोह’ के दौरान कही। इस मौके पर गुफ्तगू के दोहा विशेषांक और डाॅ. राम लखन चैरसिया की पुस्तक ‘मेरी माला’ का विमोचन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन रविवार की शाम सिविल लाइंस स्थित साधना सदन में किया गया, कार्यक्रम के दौरान पुलवामा शहीद हुए सीआरपीएफ के जवानों को श्रद्धांजलि दी गई। अपने संबोधन में संजय मासूम ने कहा कि साहित्य की जितनी शानदार शाम गुफ्तगू द्वारा इलाहाबाद में सजाई गई, इतनी शानदार शाम मुंबई में भी मुश्किल से ही कभी सजती होगी। इस तरह के आयोजन से साहित्य की प्रासंगिकता बढ़ती है, जिसकी आज के समय में सबसे अधिक आवश्यकता है।
 गुफ््तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि हम बहुत दिनों से दोहा विशेषांक निकालना चाह रहे थे, लेकिन विभिन्न वजहों से मामला टलता रहा, आज गुफ्तगू प्रकाशन के 16वें वर्ष में यह सपना साकार हुआ है। हमने नये रचनाकारों के साथ ही पुराने लोगों के दोहों को शामिल किया है, कई उल्लेखनीय लेख भी प्रकाशित किया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार यश मालवीय ने कहा कि दोहा विशेषांक जैसा शानदार काम इलाहाबाद शहर से ही हो सकता था, टीम गुफ्तगू ने यह कर दिखाया है। इस काम से एक बार फिर साबित हुआ है कि आज भी साहित्य का बैरोमीटर इलाहाबाद ही है, दिल्ली तो मंडी बनकर रह गई है। डाॅ. राम लखन चैरसिया की पुस्तक ‘मेरी माला’ के बारे में यश मालवीय ने कहा कि इस पुस्तक को कवि ने अपनी स्वर्गीय पत्नी को समर्पित करके एक नई कथा गढ़ी है और बताया कि साहित्य सिर्फ बाहरी चीज़े पर रची जाने वाली वस्तु नहीं है, घर के अंदर के पात्रों पर भी रचना की जानी चाहिए। जमादार धीरज, प्रभाशंकर शर्मा, सालेहा सिद्दीकी, डाॅ. राम लखन चैरसिया, रामचंद्र राजा, डाॅ. वीरेंद्र तिवारी और अखिलेश त्रिपाठी ने भी विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन मनमोहन सिंह ‘तन्हा ने किया।
दूसरे दौर में नरेश महरानी, शिवपूजन सिंह, अनिल मानव, शिवाजी यादव, आरसी राजा, प्रदीप बहराइच, सागर होशियारपुरी, रमेश नाचीज़, भोलानाथ कुशवाहा, शकील ग़ाज़ीपुरी, योगेंद्र मिश्र, डाॅ. नीलिमा मिश्रा, शिवशरण बंधु, डाॅ. वारिस अंसारी, रचना सक्सेना, सरस दरबारी, ललिता पाठक नारायणी, फ़रमूद इलाहाबादी, शांभवी, शिवम हथगामी, जीशान बरकाती, अनामिका पांडेय, गायत्री द्विवेदी ‘कोमल’, सत्येंद्र कुमार आदि ने दोहा पाठ किया। अंत शिवपूजन सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया। 

                       


बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

गुफ्तगू के (जनवरी मार्च -2019 अंक) दोहा विशेषांक में


3. संपादकीय (हमेशा से लोकप्रिय रहा है दोहा)
4.डाक
5-9. दोहा छंद विधान: डाॅ. विपिन पांडेय
10-11. दोहा: प्राचीन काल के आधुनिक काल तक: डाॅ. विधा माधवी

12-16. हिन्दी और अन्य भाषाओं में दोहा की स्वीकार्यता: पवन कुमार
17. उर्दू शायरी में दोहे का चलन: सालेहा सिद्दीक़ी

18-20. (ख़ास दोहे) कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, रहीम, रसखान, अमीर खुसरो, भारतेंदु हरीशचंद्र, बिहारी, बाबा नागार्जुन, बेकल उत्साही, निदा फ़ाज़ली, गोपाल दास नीरज, कैलाश गौतम
21-55. (दोहा) हरेराम समीप, दिनेश शुक्ल, डाॅ. राधेश्याम शुक्ल, डाॅ. देवेंद्र आर्य, देवी नागरानी, डाॅ. बुद्धिनाथ मिश्र, अशोक अंजुम, हस्तीमल हस्ती, इब्राहीम अश्क, बुद्धिसेन शर्मा, यश मालवीय, अख़्तर अज़ीज़, जय चक्रवर्ती, रमेश शर्मा, राजपाल सिंह गुलिया, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, सौरभ टंडन, प्रदीप बहराइची, विजेंद्र शर्मा, आलोकेश्वर चबडाल, अरुण अर्णव खरे, डाॅ. भारती वर्मा बौड़ाई, डाॅ. जेपी बघेल, अमन चांदपुरी, डाॅ. राशि सिन्हा, सुनील दानिश, डाॅ. विपिन पांडेय, अजीत शर्मा आकाश, डाॅ. शैलेष गुप्ती वीर, संदीप सरस, अरविंद असर, डाॅ. गोपाल राजगोपाल, डाॅ. नीलिमा मिश्रा, विकास भारद्वाज सुदीप, चक्रधर शुक्ल, शिवशरण बंधु, अतिया नूर, राजकुमारी रश्मि, शुभा शुक्ला मिश्रा अधर, डाॅ. ज्योत्सना शर्मा, पीयूष कुमार द्विवेदी पूतू, शिवेंद्र मिश्र शिव, प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम, डाॅ. रंजीता समृद्धि, उषा लाल, डाॅ. माणिक विश्वकर्मा नवरंग, नीता अवस्थी, अनामिका सिंह अना, शिव नारायण शिव, गरिमा सक्सेना, अंकुर सहाय अंकुर, सुनीता कंबोज, आशा खत्री लता, डाॅ. मंजू जौहरी मधुर, शशिकांत गीते, राम शिरोमणि पाठक, डाॅ. वारिस अंसारी, गाफिल स्वामी, बेगराज कलवांसियाा टुकडा, मनोज जैन मधुर, नरेश कुमार महरानी, डाॅ. रवि शर्मा मधुर, अंजलि सिफर, पुष्पलाल शर्मा, पीयूष मिश्र पीयूष, अवधेश कुमार रजत, सोनिया वर्मा, बाबा बैद्यनाथ झा, शिवकुमार दीपक, सरिता गुप्ता
56-59. इंटरव्यू (हरेराम समीप ‘नेपा’ से डाॅ. गणेश शंकर श्रीवास्तव)
60-62. चैपाल-1: सामाजिक सरोकारों की अभिव्यक्ति में दोहों की उपयोगिता
63-65. चैपाल-2: आपके अपनी अभिव्यक्ति के लिए प्रमुख रूप से दोहे को ही माघ्यम क्यों बनाया ?

66-67. तब्सेरा (जैसे, खिड़की भर आकाश, उठने लगे सवाल, सबै भूमि गोपाल की, इस पानी में आग - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी)
69. तब्सेरा (एहसास-ए-ग़ज़ल- सालेहा सिद्दीक़ी)
70. तब्सेरा (बस हमारी जीत हो- डाॅ. इंदु जौनपुरी)
71-76. अदबी ख़बरें
77. गुलशन-ए-इलाहाबाद (नीलकांत)
78-79. ग़ाज़ीपुर के वीर (खान बहादुर मंसूर अली) 
80-108. परिशिष्ट: रामचंद्र राजा
80. राम चंद्र राजा का परिचय
81-82. दोहे के जरिये मानवता की बात: प्रिया श्रीवास्तव ‘दिव्यम’
83-84. बसंू संगम तीर: डाॅ. अनुराधा चंदेल ओस
85-108. राम चंद्र राजा के दोहे

109-136. परिशिष्ट: राम लखन चौरसिया
109. राम लखन चौरसिया का परिचय
110-112. ताजा हवा का खुशनुमा झोंका: शिवाशंकर पांडेय
113-114. आदमी से बातचीत करते दोहे: भोलानाथ कुशवाहा
115-136. डाॅ. राम लखन चौरसिया के दोहे

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

पत्रकार और ज्योतिषविद् राम नरेश त्रिपाठी

राम नेरश त्रिपाठी
                                                               
                            -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
पत्रकारिता और ज्योतिष की दुनिया में रामनरेश त्रिपाठी ने अपने काम के बदौलत एक अलग ही पहचान बनाई है। आज भी लेखन के प्रति सक्रिय हैं। आप जन्म 11 नवंबर 1948 को उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में हुआ। पिता श्री रामकुमार त्रिपाठी किसान थे। छह भाई और दो बहनों में दो भाई शिक्षक हैं, एक पुलिस विभाग में, एक लोकल फंड आफिस में और एक किसान हैं। रामनरेश जी की हाईस्कूल तक शिक्षा कृषि इंटर कालेज बांदा में हुई। 1963 में इंटरमीडिएट इन्होंने इलाहाबाद के जमुना किश्चियन इंटर कालेज से किया। इसके बाद स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के आचार्य रहे हैं। पत्रकारिता की शुरूआत 1971 में किया, जब दैनिक जागरण ग्रुप के अख़बार ‘दैनिक देशदूत’ निकलता था, इसी अख़बार से आपने पत्रकारिता से की। 1978 में इलाहाबाद दैनिक जागरण के व्यूरो चीफ़ हो गए। 1983 में कनाडा में ग्वेल्फ यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आपको आमंत्रित किया गया, जहां आपने ‘हिन्दू काॅन्सेप्ट आॅफ नेचर एण्ड इकोलाॅजिकल क्राइसेस’ पर शोधपत्र प्रस्तुत किया, वहीं ‘हिन्दी लिटरेरी सोसाइटी’ की स्थापना भी की।
 1983 में इलाहाबाद स्थित ‘नवभारत टाइम्स’ के ब्यूरो चीफ हो गए। 1994 में आपको फ्लोरिडा, अमेरिका में आयोजित ‘अमेरिका-कनाडा अंतरराष्टीय यूनिवर्सिटी’ सम्मेलन में आपको आमंत्रित किया गया। यहां आपने ‘भक्तिकालीन कवियों की समन्वयवादी विधारधारा’ पर पर्चा पढ़ा। 1997 से 2004 तक आपने ज्योतिष साप्ताहिक अख़बार ‘ज्योतिष प्रकाश’ का संपादन और प्रकाशन किया। वर्ष 2009 से ‘भारतीय विद्या भवन’ के निर्देश हैं, यहीं से आपने ने ‘ज्योतिष पत्रकारिता’ कोर्स की शुरूआत की है। वर्तमान समय में आप ‘हिन्दी यूनिवर्सिटी फ्लोरिडा, अमेरिका’ के मानद प्रोफेसर भी हैं। अब तक आपकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें ‘प्रचीन भारतीय आर्थिक विचार’, ‘देवराहा ज्ञान गंगा’, ‘देवराहा अंतध्र्यान ज्ञान गंगा’, ‘जर्नी आॅफ योगी’, ‘हिम्मत और खोज की कहानी’, ‘हेमवंती नंदन बहुगुणा-एक व्यक्तित्व’, ‘यादों के झरोखे से ’ का संपादन और ‘शंकरावतरणम्’ आदि हैं। हाल ही एक नई पुस्तक आपकी प्रकाशित हुई है, जिसका नाम ‘कुंभ-महाकुंभ’ है। आपके पुत्र प्रशांत त्रिपाठी वर्तमान समय में इलाहाबाद के विश्वविद्याल के पत्रकारिता विभाग में अध्यापक हैं।
पत्रकारिता के बारे में आपका कहना है-‘पत्रकारिता के तीन पक्ष होते है- उच्चकोटि, निष्पक्ष और तथ्यपरक’। इनमें निष्पक्ष और तथ्यपरक पत्रकारिता का आज बहुत ही अभाव है। मापदंड पर पत्रकारिता खरी नहीं उतर रही है, आजकल मैनेजर के मुताबिक ख़बरें छपती है, संपादक के मुताबिक नही।’ ज्योतिष के बारें में आपका कहना है कि ‘जन्म से मृत्यु तक ज्योतिष हर इंसान से जुड़ी हुई है। ज्योतिष सुपर विज्ञान है। जब सूर्य दिखाई देता है तो ज्योतिष दिखाई देती है।’ ‘गुफ्तगू’ पत्रिका के बारें आपने बताया- ‘गुफ्तगू में साहित्य के उन विधाओं को भी शामिल किया जाता है जो लगभग लुप्त हो रही हैं। लेकिन एक कमी यह है कि कुछ उन कविताओं को भी प्रकाशित कर दिया जाता है, जिनमें व्याकरण संबंधी ग़लतियां होती हैं।’

(गुफ्तगू के अक्तूबर-दिसंबर: 2108 अंक में प्रकाशित )