गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

साहित्य के सामने कई गंभीर चुनौतियां

गुफ्तगू साहित्य समारोह 2017 में दूरदराज से जुटे रचनाकार 
 बेकल उत्साही, सुभद्रा कुमारी चैहान सम्मान से नवाजी गई हस्तियां

इलाहाबाद। गुफ्तगू साहित्य समारोह 2017 के बहाने रचना, रचनाकार और रचनाधर्मिता पर विस्तार से मंथन किया गया। 16 अप्रैल को हिन्दुस्तानी एकेडमी में दूर दराज से आए बड़ी तादाद में साहित्यकारों का जुटान हुआ। कहा गया कि साहित्य और साहित्यकार दोनों को नए सिरे से समझने की जरूरत है। पुराने को नए के साथ जोड़ना भी जरूरी है। इस क्षेत्र में चुनौतियां भी कई हैं, इनको समझना और इनसे जूझना भी होगा। शुरू में कार्यक्रम की भूमिका इम्तियाज अहमद गाजी ने पेश किया। इस दौरान 22 कवियों की काव्य पुस्तकों का विमोचन और 21 कवियों को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों के लिए बेकल उत्साही सम्मान से सम्मानित किया गया। महिला लेखन को रेखांकित करते हुए कहा गया कि महिला रचनाकार केवल कविता तक सीमित न रखकर साहित्य की अन्य विधाओं पर भी खुद को स्थापित करें। दो सत्रों में हुए समारोह में पहले सत्र के मुख्य अतिथि उमेश नारायण शर्मा रहे। उन्होंने ऐसे आयोजन को महत्वपूर्ण बताया। उर्दू साहित्य के समालोचक प्रो0 अली अहमद फातमी ने अपने संबोधन में लेखन क्षेत्र में घुस आए बाजारवाद को गंभीर चुनौती बताते हुए लेखकों को इसके प्रति आगाह किया। समारोह का दूसरा सत्र महिला लेखन-2 के नाम रहा। गुफ्तगू के महिला विशेषांक-2 का विमोचन के साथ ग्यारह रचनाकारों को सुभद्रा कुमारी चैहान के सम्मान से सम्मानित किया गया। मुख्य अतिथि बुद्धिसेन शर्मा रहे। अध्यक्षता करते हुए डाॅ0 यासमीन सुल्ताना नकवी ने महिला लेखन के बारे में कई गंभीर मुद्दे उठाए। कहा, साहित्य के सामने संकट भी कम नहीं है। महिला लेखिकाएं साहित्य की अन्य विधाओं में भी अपनी पहचान बनाएं। तभी उन्हें अपेक्षित कामयाबी मिलेगी। अशरफ अली बेग, सरदार अजीत सिंह, जसप्रीत सिंह, प्रभाशंकर शर्मा, नरेश महरानी, शिवपूजन सिंह, धर्मेंद्र श्रीवास्तव, संजय सागर, लोकेश श्रीवास्तव, डाॅ0 कलीम उर्फी, विनय श्रीवास्तव, प्रभाकर केसरी, माहिर मजाल, आनंद प्रकाश श्रीवास्तव, सागर होशियारपुरी, जावेद उर्फी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। धन्यवाद ज्ञापन शिवाशंकर पांडेय ने किया। दूसरे सत्र में प्रमुख रूप से जावेद उर्फी, अनिल तिवारी, डाॅ0 पंकज चैबे, प्रिया श्रीवास्तव, अंजली मालवीय, पहले सत्र का मनमोहन सिंह तन्हा दूसरे सत्र का संचालन डाॅ0 पीयूष दीक्षित ने किया।       
  इन्हे मिला बेकल उत्साही सम्मान
बेकल उत्साही सम्मान सम्मान से नवाजे जाने वालों में नवाब शाहाबादी (लखनऊ), इक़बाल आज़र (देहरादून), अंजली मालवीय (लखनऊ), शैलेंद्र कपिल (लखनऊ), रमोला रूथलाल (इलाहाबाद), फ़रमूद इलाहाबादी (इलाहाबाद), इश्क़ सुल्तानपुरी (सुल्तानपुरी), मनमोहन सिंह ‘तन्हा’ (इलाहाबाद), शिबली सना (इलाहाबाद), ऐनुल बरौलवी (सरन, बिहार), राजीव नसीब (अजमेर), अतिया नूर (रायबरेली), आभा चंद्रा (लखनऊ), डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ (फतेहपुर), सोमनाथ शुक्ला (इलाहाबाद), माहिर मजाल (रायबरेली), नरेश महरानी (इलाहाबाद), स्नेहा पांडेय (बस्ती), रुचि श्रीवास्तव (इलाहाबाद), तलत परवीन (पटना) और शबीहा खातून (बस्ती) रहीं। 
 इन्हें मिला सुभद्रा कुमारी चैहान सम्मान
सुभद्रा कुमारी चैहान पुरस्कार से सम्मानित होने वालों में कंचन शर्मा(शिमला), प्रिया श्रीवास्तव ‘दिव्यम्’(जालौन), नुसरत नाहिद (लखनऊ), मीनाक्षी चैधरी (भटिंडा, पंजाब), स्वराक्षी स्वरा (खगड़िया, बिहार), प्रीति समकित सुराना (बालाघाट, मध्य प्रदेश), कुमारी स्मृति (पटना), शारदा सिंह पायल (झांसी), नीलोफर फिरदौस (भदोही), देवयानी (इलाहाबाद) और संजू शब्दिता (इलाहाबाद) को मिला। 
कार्यक्रम की रूपरेखा पेश करते गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

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लोगों को संबोधित करते डाॅ. पीयूष दीक्षित

लोगों को संबोधित करते प्रो. अली अहमद फ़ातमी

लोगों को संबोधित करते डाॅ. अशरफ़ अली बेग

लोगों को संबोधित करते  जावेद  उर्फी

संजू शब्दिता को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी, बुद्धिसेन शर्मा और जावेद उर्फ़ी

देवयानी को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी औरजावेद उर्फ़ी

डाॅ. नीलोफर फिरदौस को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते नरेश कुमार महरानी, डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी, बुद्धिसेन शर्मा और जावेद उर्फ़ी

डाॅ. शारदा सिंह पायल को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी, बुद्धिसेन शर्मा और जावेद उर्फ़ी

कुमारी स्मृति को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते बुद्धिसेन शर्मा, जावेद उर्फी और नरेश कुमार महरानी

प्रीति समकित सुराना को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी, बुद्धिसेन शर्मा और जावेद उर्फ़ी

स्वराक्षी स्वरा को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी, बुद्धिसेन शर्मा, जावेद उर्फ़ी और नरेश कुमार महरानी

मीनाक्षी चैधरी को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते जावेद उर्फ़ी और नरेश कुमार महरानी

नुसरत नाहिद को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते नरेश कुमार महरानी, डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी, बुद्धिसेन शर्मा और धर्मेंद्र श्रीवास्तव

कंचन शर्मा को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी और बुद्धिसेन शर्मा

प्रिया श्रीवास्वत को ‘सुभद्रा कुमार चैहान सम्मान’ प्रदान करते डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी और बुद्धिसेन शर्मा

महिला विशेषांक-2 का विमोचन का विमोचन करते बाएं से: प्रभाकर केसरी, प्रभाशंकर शर्मा, डाॅ. पीयूष दीक्षित, जावेद उर्फी, डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, नरेश कुमार महरानी, बुद्धिसेन शर्मा, कंचन शर्मा, धर्मेंद्र श्रीवास्तव, विनय श्रीवास्तव और शिवपूजन सिंह

आभा खरे को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करतीं कंचन शर्मा

ऐनुल बरौलवी को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करतीं कंचन शर्मा, बुद्धिसेन शर्मा और प्रभाशंकर शर्मा

अंजली मालवीय को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करतीं कंचन शर्मा

अतिया नूर को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करतीं डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी

फ़रमूद इलाहाबादी को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते शमीम सिद्दीक़ी

इक़बाल आजर को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते डाॅ. अशरफ़ अली बेग

इश्क़ सुल्तानपुरी को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते धर्मेंद्र श्रीवास्तव

माहिर मजाल को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते नरेश कुमार महरानी और सागर होशियारपुरी

नरेश कुमार महरानी को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते धर्मेंद्र श्रीवास्तव, प्रो. अली अहमद फ़ातमी और इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

रमोला रूथ लाल को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करतीं प्रिया श्रीवास्तव और कंचन शर्मा

राजीव नसीब को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते धर्मेंद्र श्रीवास्तव और आनंद प्रकाश श्रीवास्तव

रुचि श्रीवास्तव को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते धर्मेंद्र श्रीवास्तव, कंचन शर्मा और नरेश कुुमार महरानी

शिबली सना को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करतीं देवयानी

स्नेहा पांडेय को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते नरेश कुमार महरानी, प्रिया श्रीवास्तव और इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी 

डाॅ. शैलेष वीर गुप्त को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते उमेश नारायण शर्मा और इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

तलत परवीन को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करतीं कंचन शर्मा

शबीहा खातून को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते नरेश कुमार महरानी और प्रिया श्रीवास्तव

मनमोहन सिंह तन्हा को ‘बेकल उत्साही सम्मान’ प्रदान करते नरेश महरानी, गुरप्रीत सिंह और प्रभाशंकर शर्मा

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

गुफ्तगू के महिला विशेषांक-2 (अप्रैल-जूनः 2017 अंक) में


03. संपादकीय (लेखन के प्रति सक्रियता सराहनीय)
04-05. डाक (आपके ख़त)
6-12. ग़ज़लें: कल्पना रामानी, वजीहा खुर्शीद, अना देहलवी, शारदा सिंह पायल, दीपशिखा सागर, रंजीता सिंह, कविता सिंह, अतिया नूर, अनीता मौर्य अनुश्री, फिरोज ज़बीं, अनु त्रिपाठी अनुजा, पूनम पांडेय, वीना श्रीवास्तव, अंजली मालवीय मौसम, सीमा शर्मा सरदह, प्रज्ञा सिंह परिहार, चित्रा भारद्वाज, कुमारी स्मृति, देवयानी, रमोला रूथ लाल, शिबली सना, सुनीता कंबोज, नीना सहर, कांति शुक्ला, अलका विजय, चारु अग्रवाल गुंजन, आरती पटेल
13-40. कविताएं: नीरजा मेहता, डाॅ. नीलम खरे, डाॅ. महाश्वेता चतुर्वेदी, कविता विकास, डाॅ. सरला सिंह, डाॅ. नुसरत नाहिद, रुचि श्रीवास्तव, शबीहा खातून, श्रुति जायसवाल, डाॅ. वंदना शर्मा, वंदना गुप्ता, सीमा अपराजिता, डाॅ. अनुराधा चंदेल ओस, प्रियंका प्रियदर्शिनी, स्नेहा पांडेय, वंदना भटनागर, शाहीन खुश्बू, अलका जैन सरर, फात्मा शाहीन, मीनाक्षी सुकुमारन, वंदना मोदी गोयल, नंदिनी आरती, तारा गुप्ता, मीरा अस्थाना, अर्चना नौटियाल, प्रीति समकित सुराना, रोचिका शर्मा, रजनी छाबड़ा, मनीषा जैन, प्रीति अज्ञात, मालिनी गौतम, डाॅ. पुष्पलता, सुषमा वर्मा, कुमारी शालिनी कौशिक, सपना मांगलिक, डाॅ. शिखा कौशिक नूतन, कल्पना पांडेय, शशि देवली, संध्या कुमारी, रश्मि शर्मा, किरण सिंह, डाली अग्रवाल, अनीता पुरवार, अर्चना पांडेय, भाग्यश्री सिंह, अमिता शर्मा, सत्या शर्मा कीर्ति, विशाखा विधु, कीर्ति श्रीवास्तव, सुधा आदेश, अन्नपूर्णा बाजपेयी अंजू, ममता देवी, माला सिंह खुश्बू, कंचन आरजू, सूफ़िया फ़ारूक़ी, स्वराक्षी स्वरा, शहनाज नबी
41-43. विशेष लेख: सुभद्रा कुमारी चैहान- देशभक्ति और नारी स्वाभिमान की प्रतीक- मीनाक्षी चैधरी
44-73ः लेख
लोकगीत में महिलाओं का योगदान: डाॅ. अन्नपूर्णा सिसोदिया
कुरतुल ऐन हैदर की महिला पात्र: डाॅ. नीलोफ़र फिरदौस
इस्मत चुगतई की क़मल: निदा मोईद
महादेवी वर्मा के काव्य में संवेदना: डीएम सावित्री
रशीद जहां: एक प्रगतिशील कहानीकार: डाॅ. फरहीन स्वालेहा
परवीन शाकिर: निसाई जज़्बात की आवाज़ः रशीद खातून
आधुनिक परिवेश में महिलाओं की स्थिति: शिखा श्रीवास्तव

74-75. तआरुफ़: कात्यायनी सिंह
85-88. कहानी: अंजली केसरवानी
89-95. लधु कथाः सविता वर्मा ग़ज़ल, मीना पांडेय, अंकिता कुलश्रेष्ठ, रोचिका शर्मा, शोभा रस्तोगी, शिवानी मिश्रा, मधु सहाय
95-100. तब्सेरा: मौन की बांसुरी, पिघलते हिमखंड, लड़कियां, नदी को सोचने दो, मुखरित संवदेनाएं, अंबेडकर आज भी, मातृछाया, अंधेरे का मध्य बिंदु, छठा पूत, काश पंडोरी न होता, जीवन संध्या में एकाकी क्यों, आंगन के फूल
101-105. संजू शब्दिता के सौ शेर
106. खिराजे अक़ीदत
107. अदबी ख़बरें
108-160. परिशिष्टः प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम् और कंचन शर्मा

गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

तुम्हारी याद में अक्सर, कितनी दूर और चलने पर, ख़्वाब जो सज न सके, तुम्होर लिए और अनवरत

डाॅ. सादिक़ देवबंदी सहारनपुर के नौजवान शायर हैं, ग़ज़ल लेखन के प्रति काफ़ी सक्रिय हैं। हाल ही में इनका ग़ज़ल संग्रह ‘तुम्हारी याद में अक्सर’ प्रकाशित हुआ है। पुस्तक को देखने-पढ़ने से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इन्हें ग़ज़ल विधान की ठीक-ठाक जानकारी है। क्योंकि इनकी ग़ज़लों में बह्र और रदीफ, क़ाफ़िया की प्रायः कोई ग़लती नज़र नहीं आती। इन पुस्तक की ग़ज़लें खुद ही बयां करती हैं कि डाॅ. सादिक़ ग़ज़ल की परंपरा से वाक़िफ़ हैं। डाॅ. शमीम देवबंदी ने पुस्तक की भूमिका में लिखा है- ‘डाॅ. सादिक़ ने न केवल ग़़ज़ल के दामन पर चार चांद लगाए हैं बल्कि उसको आबरू-मैयार और वक़ार भी बख्शा है, इनकी ग़ज़लों में गाहे-ब-गाहे ऐसे नज़ारे मिलते हैं, जो उनकी उम्र से ज़्यादा तजुर्बात को ज़ाहिर करते हैं।’ इब्राहीम अश्क का कहना है ‘डाॅ. सादिक़ नई नस्ल के ग़ज़ल के शायर हैं। इनकी ग़ज़ल के सिरे यूं तो रिवायत का भरपूर एहतराम करते हैं लेकिन इनकी ग़ज़लों में नए मज़ामीन भी साफ़तौर पर दिखाई देते हैं।‘ इनकी एक ग़ज़ल शेर यूंह है- ‘खुदगर्ज़ियां शामिल अगर हो जाएं तो सादिक़/फिर दोस्ती का ज़ाइक़ा मीठा नहीं रहता।’ यह शेर आज के दौर की इंसानियत की बखूबी तर्जुमानी करता है। एक और ग़ज़ल के दो अश्आर देखें ‘कुछ न दिल में मलाल रखा कर/ ज़िन्दगी को संभाल रखा कर। दुश्मनों से किनारा कश रह कर/दोस्तों का ख्याल रखा कर।’ इस तरह पूरी किताब में जगह-जगह उल्लेखीय अश्आर से सामना होता है। इनकी पहली किताब के लिए मुबारकबाद। 128 पेज वाले इस पेपर बैक संस्करण को रवि पब्लिकेशन, मेरठ ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत मात्र 60 रुपये है।
आगरा में जन्मे सत्येंद्र कुमार रघुवंशी आईएएस अफसर रहे हैं, सेवानिवृत्ति के बाद उत्तर प्रदेश शासन में सचिव पद पर कार्यरत हैं। मुख्यतः छंदबंध रचनाओं का सृजन करते हैं। हाल ही में इनका दूसरा काव्य संग्रह ‘कितनी दूर और चलने पर’ प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तक में गीत के साथ ग़ज़लों को स्थान दिया गया है। पुस्तक में शामिल गीतों को पढ़ने पर सहज ही अंदाज़ा हो जाता है कि कवि प्रकृति प्रेमी है। अधिकतर गीतों में प्रकृति की सुंदरता और प्रेम का वर्णन मनोरम ढंग से किया गया है। एक गीत में कहते हैं - ‘कहां जा रहे हैं ये बादल/अपना बेग बढ़ाकर/किसकी प्यास याद आयी है/ किसके अधर जले हैं/दहके हैं क्या नंदन-वन सब/ क्या सब भ्रमर जले हैं।’ एक गीत में कहते हैं - ‘पीतल की दृष्टियां हमारी/ हम क्या समझें, कंचन क्या है/ मन की जगह हमारे अंदर/ कोई  चिटका फूलदान है/लगता है जैसे पांवों में/ सौ-सौ सड़कों की थकान है’। इनकी ग़ज़लों के तेवर भी काफी शानदार हैं, एक ग़ज़ल का मतला और शेर यूं हैं -‘यों लबालब आंसुओं के जाम हैं/हम बिना कोशिश उमर ख़ैयाम हैं। देखिए साज़िश अमावस की ज़रा/ हर सुबह पर कुछ न कुछ इल्ज़ाम हैं।’ इस तरह पूरी पुस्तक बेहद पठनीय है। 134 पेज की इस पेपर बैक किताब को इलाहाबाद के अनामिका प्रकाशन ने प्रकाशित किया है जिसकी कीमत 195 रुपये है।
ठाणे, महाराष्ट के एन.बी. सिंह ‘नादान’ काफी दिनों से रचनारत हैं। ग़ज़ल, मुक्तके अलावा काव्य की कई अन्य विधाओं में लिख रहे हैं। इनकी पुस्तक ‘ख़्वाब जो सज न सके’ हाल में ही प्रकाशित हुआ है, यह इनकी पंद्रहवी किताब है। इससे पहले 14 किताबें छप चुकी हैं, जिनमें ‘शाख़ों में नमी कम’, ‘हंसते हुए ग़म’, ‘भले मानुस सुन’, ‘फूल और पंखुड़ियां’, ‘कागज़ कलम दवात’, ‘दर्द का रिश्ता’ आदि शामिल हैं। इस पुस्तक में ग़ज़लों के अलावा मुक्तक भी शामिल हुए हैं। हिन्दी में नई कविता के प्रचलन के साथ तमाम लोग छंदबद्ध रचनाएं लिख रहे है, इसमें भी ग़ज़ल लेखन चरम पर है। वर्तमान समय में ग़ज़ल लेखन और पाठन दोनों खूब रहा है। मंच पर तो ग़ज़ल, गीत और मुक्तक खूब पढ़े जा रहे हैं। इसी परंपरा का निर्वाह नादान साहब ने किया है। इनकी ग़ज़लों में प्रायः समाज के बिगड़ते माहौल पर चिंतन दिखाई देता है, इन्हें इस बात की फ़िक्र है कि समाज में इतनी विकृति क्यों आ गई है, लोग इंसानियत के धर्म से दूर क्यों हो रहे हैं। इनकी ग़ज़लों के कई शेर ऐसे हैं, जिन्हें पढ़कर पाठक आहत होगा, फिक्रमंद होगा कि वाकई आज का माहौल कितना गर्म कितना तंग है कि जिसमें जीना क्या, यहां सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। एक शेर में कहते हैं ‘अगर इंसान में कोई नहीं फितरत नज़र आये/ज़मीं जो आज दोज़ख है वही जन्नत नज़र आए।’ एक ग़ज़ल का मतला यूं है-’जो ढूंढ रहा मुझमें वो मिलने से रहा है/ इंसान ये कितना गिरेगा कितना गिरा है।’ पूरी किताब में इसी तरह उल्लेखनीय अशआर पढ़ने को मिलते हैं। 156 पेज वाले इस सजिल्द पुस्तक की कीमत 270 रुपये है, जिसे ठाणे के शारदा प्रकाशन ने पब्लिश किया है।
जालंधर के बिशन सागर लधुकथा, यात्रा संस्मरण, ग़ज़ल और नई कविताएं लिखते रहे हैं। पिछले दिनों इनकी नई कविताओं का संग्रह ‘तुम्हारे लिए’ प्रकाशित हुआ है। यह इनकी पहली पुस्तक है, जिसमें मुख्यतः प्रेम विषयक कविताएं शामिल की गई हैं। प्रेम के नए प्रसंग और खुद का महसूस किया हुआ अनुभव कविताओं के रूप में लोगों से साझा करने का प्रयास किया है, जिसमें प्रायः सफल होते नज़र आ रहे हैं। हिन्दी में बिना छंद के कविता लेखन की परंपरा सी चल पड़ी है। अक्सर देखने में आ रहा है कि जिन लोगों को काव्य का कोई सलीक़ा नहीं है, वे भी कुछ भी लिखकर उसे कविता बता देते हैं। यही वजह है कि वर्तमान समय में सबसे कम पाठक नई कविता के हैं। हालांकि इसी भीड़ में ऐसे लोग भी हैं जो बहुत अच्छी नई कविताएं लिख रहे हैं और अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। बिशन सागर भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं। पुस्तक की पहली कविता में इन्होंने अपने पिताजी को याद किया है। लिखते हैं- ‘गंगा-घाट पर/पिताजी की अस्थियां/विसर्जन करने के लिए सफ़ेद पोटली खोली तो/उसमें दिखने लगा उनका चेहरा। उस पोटली को मैंने कई बार टटोला/नहीं मिलीं वो दो चमकीली आंखें/जो अंधेरों में हमें रास्ता दिखाया करती थीं’। यह कविता अंदर से झझकोर देती है और हर  पाठक को अपने पिता की याद शिद्दत से दिलाती है। एक कविता में अपने प्रेम का इज़हार करते हुए कहते हैं- ‘बंद दरवाजों से/झांकती हज़ारों/ख़्वाहिशें/जिम्मेदारियों के बोझ/तले दबी बेनाम/हसरतें/नहीं कर पाया मैं/प्यार का इज़हार’। पिता को समर्पित पहली कविता को छोड़कर पूरी पुस्तक में जगह-जगह प्रेम के एहसास की तर्जुमानी की गई है।112 पेज वाले सजिल्द पुस्तक की कीमत 195 रुपये है, जिसे दीपक पब्लिकेशन, जालंधर ने प्रकाशित किया है।
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रहने वाले कवि शनिल की कविताओं की पुस्तक ‘अनवरत’ का प्रकाशन हुआ है। इस किताब में छोटी-छोटी कविताएं शामिल की गई हैं। पुस्तक की शुरू में फ़िराक़ गोरखपुरी का 27 जुलाई 1975 का लिखा हुआ एक संदेश प्रकाशित हुआ है, जिसमें फ़िराक़ साहब ने शनिल को प्रतिभावन युवा कवि बताया है। जिससे यह सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कवि का परिचय फ़िराक़ गोरखपुरी से रहा है। पुस्तक में शामिल कविताओं की विषय वस्तु में जहां समाज में जूझते हुए लोग हैं, जो अपनी ज़रूरतों और रोजमर्रा के हालत का सामना करते हुए एक-एक दिन काटते हैं तो दूसरी ओर प्रेम का इज़हार और अपने प्रियसी के लिए कुछ भी कर गुजरने की बात की गई है। एक कविता में कहते हैं- ‘नहीं भूलती मुझेे वह रात/कहीं थी जब तुमने यह बात। जब कभी दिल हुआ करे उदास/चले आया को तुम मेरे पास’। इसी तरह अन्य विषय वस्तु को अपने नज़रिए के अनुसार उल्लेखित किया गया है। पेज वाले इस पेपरबैक पुस्तक को दिल्ली के मनीष पब्लिकेशन्स ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 100 रुपये है।
(गुफ्तगू के जनवरी-मार्च 2017 अंक में प्रकाशित)