बुधवार, 6 अप्रैल 2016

लेखन, प्रकाशन में खूब सक्रिय हैं महिलाएं



                -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

  पिछले दिनों गा़जि़याबाद की डाॅ. तारा गुप्ता की पुस्तक ‘भोर की संभावनाएं’  प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में गीत और ग़ज़ल मिलाकर कुल 71 रचनाएं शामिल की गई हैं। पुस्तक संबंध में डाॅ. कुंअर बेचैन की भूमिका है, जिसमें वे लिखते हैं ‘डाॅ. गुप्ता की रचनाओं की भाषा विषयानुकूल है और जहां उत्साह की बात आई है वहां ओजगुण से युक्त है और जहां सुकोमल भाव आए हैं वहां माधुर्यणुसंपन्न है। क्योंकि इस संग्रह में गीत भी हैं और ग़ज़लें भी,  गीत की भाषा और उसका छंदविधान ग़ज़ल की भाषा और उसके छंदविधान से भिन्न है, जो उचित ही है। ग़ज़ल एकदम बोलचाल की भाषा में कही जाती है इसलिए शब्दों के उच्चारण के बलाघात की दृष्टि से उसकी मात्राएं गिरती भी रहती हैं जो ग़ज़ल में जायज भी है। तारा जी ने अपनी ग़ज़लों में इस बात का ध्यान रखा है, इसलिए वे पूरी तरह बह्र अर्थात छंद में हैं।’ डाॅ.कुंअर बेचैन की टिप्पणी के बाद इनकी रचनाओं के छंद पर और कुछ कहने-सुनने की आवश्यकता नहीं है। पुस्तक में गीत और ग़ज़ल दोनों का समावेश बहुत शानदार ढंग से किया गया है। आम आदमी की जि़न्दगी से जुड़े हुए विषय वस्तु इन्हें पठनीय बनाते हैं। 120 पेज वाले इस सजिल्द पुस्तक को असीम प्रकाशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 200 रुपये है।   
मुंबई की सक्रिय रचनाकार चित्रा देसाई की हाल में ‘सरसों से अतमलास’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है। इस कविता संग्रह में आम जि़दगी के विषय वस्तु को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है, जो कई जगहों पर बेहद सार्थक रूप में नज़र आता है। कहा जाता है कि असली भारत गांव में ही निवास करता है, भारत के असली परिदृश्य और परंपरा को जानना हो या लोक परंपरा की झलक मात्र भी देखनी हो तो आपको गांव में जाना पड़ेगा, क्योंकि किताबें पढ़कर, फिल्म या टीवी सीरियल देखकर गांव का लुत्फ नहीं उठाया जा सकता। चित्रा देसाई भले ही मुंबई में रहती हैं लेकिन उनका पूरा बचपन और उसके बाद का काफी समय गांव में ही गुजरा है, यही वजह है वे गांव का चित्रण मंझे खिलाड़ी खिलाड़ी की तरह करती हैं। जगह-जगह इस तरह का वर्णन करके उन्होंने अपनी कविताओं में जान डाल दिया है। इस लिहाज से यह पुस्तक बेहद पठनीय है। एक कविता में कहती हैं ‘ अभी तो बहुत-कुछ/अनदेखा है/सावन की तीज/फागुन का संगीत/ छुईमुइ का सकुचाना/ किसी पंखुरी पर.../ओस का अपने आप ठहरना/ कोई बात सुनकर बिल्कुल सहज मुस्कुराना।’ 110 पेज वाली इस सजिल्द किताब को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 250 रुपये है।   
अलका प्रमोद लखनउ में उत्तर प्रदेश कारपोरेशन विभाग में अधिकारी हैं। कहानी, बाल साहित्य लेखन और चित्र वृत्त लेखन के प्रति काफी सजग हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगातार छपती रहती हैं। हाल में ‘रेस का घोड़ा’ नामक इनका कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है। इससे पहले ‘सच क्या था’, ‘धूप का टुकड़ा’,‘समांतर रेखाएं’,‘स्वयं के घेरे’,‘रेस का घोड़ा’,‘नन्हें फरिश्ते’,‘चुलबुल-बुलबुल’ आदि पुस्तकों का प्रकाशन अब तक हो चुका है। ‘रेस का घोड़ा’ में आस्था, झुमकी की मौत, बात में लाजिक है, आत्मविश्वास, एक प्रश्न, वापसी, खोज जारी है, नींव, दीवार ढह गयी, पालतू, द्वंद्व, प्रहेलिका, दो किनारे, शब्द नहीं, मानवता का दर्द, मां, नेताजी की जय और रेस का घोड़ा नामक कहानियां शामिल की गई हैं। अधिकतर कहानियों में देश, समाज के वास्तविक चित्रण के साथ स्त्रियों की स्थिति को रेखांकित किया गया है। अपनी कहानियों के जरिए इन्होंने यह बताने का प्रयास किया है कि हर प्रकार की तरक्की के बावजूद देश में महिलाओं की हालत में बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ है। सुधार में प्रगति तो हो रही है लेकिन रफ्तार बहुत धीमी है। 112 पेज वाली इस सजिल्द पुस्तक को सौम्या बुक्स, नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 200 रुपये है।  
 डाॅ. दीप्ति गुप्ता पुणे, महाराष्ट से हैं। कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के राजभाषा विभाग में सेवाएं दे चुकी हैं। कहानी और काव्य लेखन में ख़ास रुचि रही है। हाल में इनकी दो पुस्तकें ‘सरहद से घर तक’ और ‘शेष प्रसंग’ प्रकाशित हुई हैं। शेष प्रसंग में नौ और सरहद से घर तक में 12 कहानियां प्रकाशित हुईं हैं। शेष प्रसंग में कमलेश्वर का एक ख़त का प्रकाशित हुआ है, जिसमें उन्होंने इनकी कहानियों पर लिखा है, इसे एक हिस्से को पढ़कर ही इनकी लेखनी के बारे में बखूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता है। वे लिखते हैं-‘ दीप्ति गुप्ता की कहानी ने मुझे कहीं गहराई से छुआ। सुने आंगम, सर्दी के मौसम के संकेत से वे कहानी को चुनती हुई अंत तक इस खूबसूरती से साथ ले गईं यह पता ही नहीं चला कि कब अंत आ गया और मुझे लगा कि अभी वाकई प्रसंग ‘शेष’है। कहानी के अंत में यह एहसास शीर्षक को सार्थकता प्रदान करता है। लेखनी की क्षमता अद्भुत है, संवेदनशीलता इतनी सघन कि दूसरों के मन की परतों में दबे दुख-सुख को कैसे और कब भांप ले, इसका पता ही न चले। गहन विचारों के साथ पारदर्शिता का होना एक दुर्लभ खूबी है, जो दीप्ति की लेखनी में कूट-कूट कर भरी है। यह लेखनी में है तभी तो कहानियां दिलो-दिमाग में उतर जाने वाली बन पड़ी हैं।’ कमलेश्वर के इस कथन के बाद अब इनकी कहानियों के बारे में और अधिक कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। ‘शेष प्रसंग’ 106 पेज की पेपर बैक पुस्तक है, जिसे नीलकंठ पब्लिेकशन ने प्रकाशित किया है, इसकी कीमत 130 रुपये है। ‘सरहद से घर तक’ 140 पेज की सजिल्द पुस्तक है, इसकी कीमत 250 रुपये है, जिसे नमन प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।


  उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की रचना तिवारी की यूं तो कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ग़ज़ल, गीत और मुक्तक आदि लिखती हैं। विभिन्न साहित्यिक और समाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं। हाल में इनका गीत संग्रह ‘सपना खरीदो बाबू जी’ प्रकाशित हुआ है। गोपाल दास नीरज इनकी कविताओं के बारे में लिखते हैं -‘रचना तिवारी अत्यंत संवेदनशील कवयित्री हैं। इसलिए इनकी रचनाएं श्रोताओं के दिल तक पहुंचती हैं। किसी भी रचनाकार का मूल्यांकन इसी आधार पर किया जाता है कि वह समाज की सुप्त भावनाओं को जागृत करता है। इनकी रचनाएं सामान्य जन के लिए तो हैं ही, साथ ही ज्ञानी के लिए भी ये अगम हैं।’ एक गीत से ही इनके लेखन का बखूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता है-‘तुझे गा रही हूं/तुझे भा रही हूं/मेरे गीत तुझको/ जिये जा रही हूं/ खुदा है तू भगवान है/तू ईशू है/ तू मेरे ख्यालों का/वाहेगुरु है/ मैं प्यासी हूं मुझको/ पिये जा रही हूं।’ 144 पेज वाली इस सजिल्द पुस्तक की कीमत 300 रुपये है, जिसे अयन प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। 

पटना, बिहार की विभा रानी श्रीवास्तव लेखन और संपादन के प्रति काफी सक्रिय हैं। अब तक कई पुस्तकों का संपादन कर चुकी हैं। हाल ही में नए रचनाकारों की हाइकु का संग्रह ‘साझा नभ का कोना’ का संपादन किया है। इनमें कुल 26 रचनाकारों के हाइकु प्रकाशित किए गए हैं। जिनमें मोदी नगर के अरुण सिंह रूहेला, इलाहाबाद के आनंद विक्रम त्रिपाठी, आगरा की अंकिता कुलश्रेष्ठ, अजमेर की अंजलि शर्मा, भीलवाड़ा के कपिल कुमार जैन, जोधपुर के कैलाश भल्ला, परभणी के तुकाराम खिल्लारे, गौतमबुद्धनगर के दीपक रौसा, मउ के धर्मेंद्र कुमार पांडेय, पंचकूला के पवन बत्रा, लखनउ के पंकज जोशी, बड़वानी के प्रबोध मिश्र ‘हितैषी’, कानपुर की प्रियवंदा अवस्थी, हिमाचल प्रदेश की प्रवीन मलिक, दिल्ली की प्रीति दक्ष, पानीपत की मीनू झा, पुणे की मंजू शर्मा आदि शामिल हैं। पुस्तक से यह भी अंदाजा लगता है कि लोगों की हाइकु लेखन के प्रति रुचि बढ़ रही है। 160 पेज की इस पुस्तक की कीमत 125 रुपये है, जिसे रत्नाकर प्रकाशन, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है।

(गुफ्तगू के महिला विशेषांक मार्च: 2016 अंक में प्रकाशित)

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

गुलशन-ए-इलाहाबाद : लक्ष्मी अवस्थी

                               
लक्ष्मी अवस्थी
                                             
                                     
                                                                         - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी 
लक्ष्मी अवस्थी 73 वर्ष की उम्र में भी बहुत सक्रिय हैं, तमाम सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों में हिस्सा लेती हैं और समाज की बेहतरी के चिंतित रहती हैं। इनरव्हील लेडीज क्लब के माध्यम से आज भी गरीब बच्चों को पढ़ाती हैं और उनकी हर तरह से मदद करती हैं। जिन गरीब बच्चों में संगीत और गायन के प्रति रुचि है, उन्हें मुफ्त में इसकी शिक्षा देती हैं। आपदा में बढ़चढ़ कर लोगों की मदद करती हैं। इनका कहना है कि जब तक इस शरीर में जान है गरीबों की मदद करती रहेंगी। लक्ष्मी अवस्थी का जन्म 1942 में चौक, इलाहाबाद में हुआ। पिता कन्हैया लाल मिश्र एजी आफिस में सेक्शन अफसर थे, माता रामकली कक्षा आठ पास थीं और कुशल गृहणी थीं। पिता कक्षा आठ पास थे, लेकिन उर्दू अच्छी आती थी, उर्दू में कविताएं भी लिखते रहे, खा़सकर देशभक्ति गीतों के प्रति उनमें अधिक रूझान था। छह भाई और तीन बहनों में आप छठें नंबर पर हैं। आपने शुरूआती शिक्षा गौरी पाठशाला से हासिल की। कक्षा छह में थीं तभी प्रयाग संगीत समिति में दाखिला ले लिया। इंटरमीडिएट की शिक्षा प्रयाग महिला विद्यापीठ से हासिल की, तब वहां की प्रधानाचार्या महादेवी वर्मा थीं, तब इलाहाबाद का साहित्यिक परिदृश्य पूरे देश में शिखर पर था। प्रयाग संगीत समिति से ही डंास और कत्थक में एडमीशन डिग्री हासिल की। इसके बाद आपको सेंटल स्कूल में नौकरी मिल रही थी, लेकिन ज्वाइन नहीं किया, फिर 1982 में जवाहर बाल भवन में संगीत शिक्षिका के रूप में ज्वाइन किया। इसके बाद 1982 में म्युजिक इंस्पेक्टर के पद पर ज्वानिंग मिली और एशियाड में हिस्सा लिया। 15 फरवरी 1966 को क्लासिकल और 1967 में सगीत प्रभाकर किया, अखिल भारतीय कंपटीशन में आपने एवार्ड भी जीता। आपकी शादी 1965 में एयर फोर्स में पायलट रहे गोपाल कृष्ण अवस्थी से हुई, जिनसे तीन बच्चे हैं। गोपाल कृष्ण अवस्थी पंडित बाबू राम अवस्थी के पुत्र थे। पति को फोटोग्राफी का बड़ा शौक था, फोटोग्राफी के लिए इन्होंने अपने बाथरूम को डार्करूम के रूप में बदल दिया था। पति को फोटाग्राफी करते देखना इनको बहुत अच्छा लगता था, बताती हैं कि अच्छे कैमरे लिए इनके पति ने एक बार भूख हड़ताल भी की थी, जो मांग पूरी हो जाने पर ही खत्म हुई। पति का वर्ष 2003 में निधन हो गया।
लक्ष्मी अवस्थी ने 1965 में आल इंडिया रेडिया से पहला एडीशन दिया था। इसके बाद आकाशवाणी के मद्रास, श्रीनगर और इलाहाबाद आदि स्टेशनों से कार्यक्रम प्रस्तुत करती रही हैं। इनके तीन बच्चों में पुत्र जयंत अवस्थी टेनिस के खिलाड़ी हैं, इनका नाम लिम्बा बुक आफ रिकार्ड में भी दर्ज हो चुका है। बेटी जया अवस्थी भी लांग टेनिस की खिलाड़ी है, उसने प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया है। देश की संपन्नता और तरक्की बात करने पर ये अपने पिता कन्हैया लाल मिश्र की महात्मा गांधी पर लिखी हुई कविता याद करते हुए सुनाती हैं- ‘हर बात अब तक याद है हमें/उस बाग के बूढ़े माली की/थी खोई हुई अंधियारी में/जागी हुई रातों-रातों की/कहने को तो दुबला-पतला था/ लड़ता था मगर जंजीरों से।’ 
                                                         (publish in guftgu march-2016)