अंजुम ग़ाज़ीपुरी |
- मोहम्मद शहाबुद्दीन ख़ान
गुलशन कुमार ने 11 जुलाई 1983 को टी-सीरीज कंपनी की स्थापना की। तब आॅडियो कैसेट खूब बिकते थे, लोग टेपरिर्काडर सुनते थे। रेडिया के बाद यही मनोरंजन के मुख्य साधनों में से एक हुआ करता था। गुलशन कुमार की यह कंपनी चल पड़ी, इसके कैसेट्स खूब बिकते थे। इसी दौरान अंजुम ग़ाज़ीपुरी ने गुलशन कुमार के टी-सीरीज कंपनी के लिए गाने लिखना शुरू किया, इनके गीतों ने तहलका सा मचा दिया। पूरे हिन्दुस्तान में अंजुम ग़ाज़ीपुरी के गीत बजने लगे। अपनी मेहनत और क़ाबलियत से उन्होंने यह मकाम बना लिया था। अंजुम ग़ाज़ीपरुी का असली नाम रियासत हुसैन था, इनकी पैदाईश एक जनवरी 1945 को ग़ाज़ीपुर जिले के बहुअरा गांव के पूरब मोहल्ला स्थित हनीफ हुसैन के घर हुआ था। हनीफ हुसैन कोलकाता के एक जूट कंपनी में काम करते थे। अंजुम की मां सकीना खातून जो नेक दिल घरेलू खातून थी। अंजुम एक बहन और तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई जलील अहमद कमसारोबार इलाके में मशहूर कव्वालों में जाने जाते थे। अंजुम को गाने-बजाने व शायरी करने के साथ पढ़ने का शौक अपने बड़े भाई से मिली थी। वे गाने के साथ बिंजु से सुरीली धुन देते थे। उनकी इब्तेदाई तालीम गांव के प्राइमरी मदरसे से हुई। उसके बाद वो अपने वालिद के साथ कोलकाता पढ़ने चले गये। वहां से उन्होंने इंटरमीडिएट करने के बाद अदीब कामिल और फ़ाज़िल की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के बाद माता-पिता ने उनकी शादी अपने पैतृक गांव बहुअरा में ही डिप्टी कादीर हुसैन की बेटी शमीम बानो से कर दी। शादी के कुछ दिनों बाद माता-पिता का निधन हो गया।
शादी के बाद उन्होने घर का खर्च चलाने के लिए कई छोटी-छोटी नौकरियां कीं। फिर भाई जलील कव्वाल के वफ़ात के बाद गाजीपुर के कव्वाल टीम में शामिल होकर अपने साथियों को इकट्ठा करके कव्वाली गाने की काम शुरू कर दिया, लेकिन उन दिन कव्वाली से कोई ख़ास आमदनी नहीं होती थी। सन 2006 में वाराणसी के एक मुशायरे में उनकी मुलाकात टी-सीरीज कंपनी के चीफ दीप मोहम्मदाबादी से हुई। दीप मोहम्मदाबादी उन्हें दिल्ली बुलाकर उन्हें टी-सीरीज के कैसेेट्स के लिए गीत लिखने का मौका दिया। अंजुम के लिखे गीत, कव्वाली, नात वगैरह जब रिकार्ड होकर मार्केट में आए तो तहलका सा मच गया। अंजुम ने टी-सीरीज के लिए सैकड़ों नज़्म, भोजपुरी गीत, भक्ति व देश भक्ति लोक गीत, मर्शिया, नात व ग़ज़लें लिखी। इनके लिखे नग़मों को तस्लीम आरीफ, टीना परवीन, बरखा रानी, तृप्ति सकयां व रुखसाना बानो, मनोज तिवार वगैरह ने आवाज दी। इन्होंने ‘माहे रमजान’, ‘तैबा चला कारवां’, ‘ख़्वाज़ा का दर नूरानी’ ‘आजा गोरी’, ‘पूर्णागिरी’, ‘राजू हिंदुस्तानी’, बेवफ़ा तेरा मासूम चेहरा, ‘शाम वाली गाड़ी’, ‘भोलेनाथ बनके विश्वनाथ बनके’, ‘चल दीवाने देवा चल’, ‘ऐ मेरी गुलनार चमेली’, ‘गांव के छोरी’, ‘शाम वाली गाड़ी’, ‘टाइम बम है तेरी जवानी’, ‘गांव के छोरी’, ’समधी सीटी मारे;, ‘चढ़ती जवानी होली खेले’ और ‘बगलवाली’ आदि कैसेट्स के लिए गीत लिखे हैं। इनके कुछ मशहूर गीतों में- ‘तूं हसीं मैं जवां गुलबदन रेशमा’, ‘तू तो है बेवफा लूट करके मजा’, ‘पास आके जब दिल की दूरियां मिटाओगी’, ‘हम से दूर परदेसी तुम भी रह न पाओगे’, ‘तुम तो ठहर परदेशी’, ‘गाल गुलाबी नैन शराबी तेरे’, ‘बेगम लखनऊ वाली’, ‘नज़रे करम साबिर’, ‘साबिर के दर पर चलिए’, ‘राम व श्याम’, ‘जोता वाली तेरा जवाब नहीं’ वगैरह हैं।
उनके जीवन का आखिरी दौर बहुत मुफलिसी में गांव में ही गुजरी। 19 जनवरी 2021 को उनका इंतिकाल हो गया। अंजुम गाजीपुरी के दो बेटे और तीन बेटियां हैं। बड़े बेटे का नाम शकील अंजुम व छोटे का परवेज अंजुम और बेटियों के नाम इशरत जहां, नुसरत जहां, मुसर्रत जहां हैं।
(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2021 अंक में प्रकाशित )