सोमवार, 7 मई 2012

रोज़ एक शायर में आज- हसनैन मुस्तफ़ाबादी


आपसी इकसानियत लाजिम है उल्फ़त के लिए
दूरियां बन जाती हैं मेआर नफरत के लिए।
बदगुमानी से हमेशा बच के रहना चाहिए,
एक गलतफहमी ही काफी है कुदूरत के लिए।
कोई रंग हरगिज नहीं चढ़ता है काले रंग पर,
नस्ल अच्छी चाहिए अच्छी नसीहत के लिए।
बढ़ के एक दिन राख कर देगा बहारे जिंन्दगानी,
दिल न गैरों का जलाओ अपनी शोहरत के लिए।
कब रउनत अपने बंदे की खुदा को है पंसद,
खा़कसारी रौशनी होती है जुल्मत के लिए।
आह से बचना यतीमों के हमेशा चाहिए,
है यही हसनैन बेहतर आदमीयत के लिए।
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मैं बैठा बकऱ् की ज़द पर हूं अपना आशियां लेकर।
कहां जाउं नशेमन बिजलियों के दरमियां लेकर।
कभी संजीदगी से वह नहीं सुनता मेरी बातें,
रहे कब तक कोई जिन्दा तुम्हारी शोखियां लेकर।
कहां जाये बिल आखि़र ये शिकन बिस्तर की कहती है,
बिसाते ज़ीस्त थोड़ी सी मरीज़े नातवां लेकर,
रही बचपन में पाबंदी जवानी में भी पाबंदी,
कहां इंसान जाये इस क़दर पाबंदियां लेकर।
रहे दुनिया में जो कोशां हमेशा नाम की ख़ातिर,
सरे महशर वह जायेंगे कहां नामो-निशां लेकर।
अगर फ़ुर्सत मिले ‘हसनैन’ एक पल पे कभी सोचो,
है ज़ोय रहा कम जाओगे आखि़र क्या वहां लेकर।
मोबाइल नंबरः 9415215064

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