बुधवार, 9 मई 2012

रोज़ एक शायर में आज-शकील ग़ाज़ीपुरी


आईना देख ज़रा ऐब लगाने वाले।
तेरे चेहरे पे भी है दाग़ ज़माने वाले।
की है तरमीम ये किसने मेरे मैखान में,
आज मसनद पे हैं पैमाना उठाने वाले।
जिन को हम कोई तवज्जोह नहीं देते यारो,
काम आते हैं वही लोग पुराने वाले।
आज जो हमको मिटाने पे तुले बैठे हैं,
खुद न मिट जाएं कहीं हमको मिटाने वाले।
फायदा आग लगाने से चमन का होगा।
दूर तक रोशनी जायेगी जलाने वाले।
ये खि़रद वाले जुनूं वालों का क्या कर लेंगे,
बात से बात बनाते हैं बनाने वाले।
वक़्त आने पे ज़माने को बताएंगे ‘शकील’,
लोग जि़न्दा हैं अभी जान लुटाने वाले।
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ना हमारी है ना तुम्हारी है।
जि़न्दगी अपनी सबको प्यारी है।
कोई इंकार कर नहीं सकता,
आपका फ़ैज सबपे भारी है।
कोई खुद का फरेब क्यों देगा,
वक़्त की यह होशियारी है।
बेवफ़ा होगी आपकी उल्फ़त,
दास्तां बावफ़ा हमारी है।
लोग खुद से फरेब खाते हैं,
ब्रह्म सबसे बड़ा शिकारी है।
थी सियासत की बदगुमानी सब,
बल्कि हर बात मेरी भारी है।
उसको सज़दों से क्या ग़रज़ है ‘शकील’,
वह तेरे नाम का पुजारी है।
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मेरे दिल पर हुकूमत कर रहा है।
तेरा ग़म बादशाहत कर रहा है।
कभी रुख़सार पर गेसू का शिकवा,
कभी आंचल शरारत कर रहा है।
तेरी अंगड़ाइयां हैं अल्ला-अल्ला,
तग़ाफुल भी क़यामत कर रहा है।
उसे तस्वीर अपनी देखने दो,
कोई पागल इबादत कर रहा है।
हुआ तन्हाइयों का ख़ूब चरचा,
ये अश्के ग़म बग़ावत कर रहा है।
हक़ीकत बन रहे हैं ख़्वाब सारे,
कोई सच्ची मोहब्बत कर रहा है।
‘शकील’ इसकी नहीं बदलेगी फितरत,
ज़माना है सियासत कर रहा है।
मोबाइल नंबरः 9454304086

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