---------- इम्तियाज़ अहमद गाज़ी ---------
किश्वर फातिमा के ससुराल में रिश्तेदारों ने धोखे से घर और खेत हड़प लिया, मजबूरन पति और दो बच्चों के साथ मायके चली आयी। कुछ ही दिनों बाद पिता का देहांत हो गया और मायकेवालों ने घर से निकाल दिया. पति कमाने के लिए मुंबई गया तो पत्नी और बच्चों की तरफ मुड़कर नहीं देखा. लिश्वर ने किराए पर एक कमरा ले लिया. किराया देने के लिए पैसा नहीं था, लिहाज़ा घरेलू सामान बेचकर किराया चुकाती रही और खुद बच्चों संग भूखे सोती, कभी-कभी पडोसी कुछ खाने को दे देते. एक दिन अचानक किसी ने उसे अखबार अखबार बेचने की सलाह दी. पहले उसने अपने बेटे को अखबार बेचने के लिए भेजा. लेकिन बच्चे की सुरक्षा को लेकर डरती थी, लिहाजा अगले दिन से खुद अखबार बेचना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे वह नियमित हाकर हो गई. हिम्मत से उसने अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी को संभाल लिया.
किश्वर फातिमा इलाहाबाद के नखास कोहना की रहने वाली है.एक भाई और दो बहने थीं. पिता ने उसकी शादी बिहार के बक्सर जिले के सफीपुर गांव में कर दी. पति पढ़ा-लिखा नहीं था. इसका लाभ उठाते पति के बहनोई ने धोखे से घर और खेत अपने नाम करके उन्हें बाहर निकाल दिया. किस्मत की ममरी किश्वर अपने पति और दो बच्चों संग पिता के घर मायके चली आयी. पतों को कभी फलों का ठेला लगवाती तो कभी सब्जियों का.किसी तरह पेट पलता, पिता और भाई का सहयोग भी मिलता.एक दिन पिता का इन्तिकाल हो गया. इसके बाद घर का माहौल बिगड गया तो पति को कमाने के लिए मुंबई भेल दिया.इधर भाई ने घर से निकाल दिया. किश्वर पर दुबारा मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा.उसने करेली मोहल्ले में किराए का मकान ले लिया. आमदनी का कोई जरिया नहीं था लिहाजा घरेलू सामान बेचकर मकान का किराया देती और खुद बच्चों संग भूखे संग सोती, कभी-कभी पडोसी कुछ खाने को दे देते.उधर पति मुंबई कमाने के लिए गया तो पीछे मुड़कर नहीं देखा. बाद में पता चला की उसने वहीँ दूसरी शादी कर ली है.
एक दिन एखलाक नामक आदमी ने किश्वर से कहा की अपने बारह साल के बेटे को मेरे साथ भेज दो, उसे अखबार दिला देता हूँ, बेच लेगा तो कुछ पैसे मिल जायेंगे। किश्वर ने अपने बेटे तो भेज दिया।एक दैनिक अखबार बेचने के लिए उसका बेटा निकल पड़ा। १२ साल के मासूम शाम को घर लौटा तो उसके हाथ में दस रुपए थे, जो बेचे गए अखबार की आमदनी थी.दस रुपए का छोला चावल खरीदकर तीनों ने खाया और और काफी खुश हुए. अगले दिन भी बेटा अखबार बेचने के लिए निकल पड़ा. इधर किश्वर का जी घबराने लगा, कहीं मोटर गाड़ी के नीचे न आ जाए, कोई मारपीट न दे. घबराई किश्वर निकल पड़ी बेटे को खोजने. दिनभर खोजती रही और अल्लाह से दुआ करती की मेरे बेटे को सही सलामत रखना.खोजते-खोजते शाम को घर लौटी तो उसका बेटा घर आ चूका था और आज भी दस रुपए कमा लाया था.फिर तीनों ने मिलकर खाना खाया.अब किश्वर ने फैसला किया कि वह अपने बेटे कोअखबार बेचने के लिए नहीं भेजेगी.अगले दिन उसने खुद अखबार बेचने का फैसला किया. इलाहाबाद की गली कुचों से ज्यादा वाकिफ नहीं थी. सो मोहल्ले के ही एक बुज़ुर्ग से उसने गुजारिश की कि उसे रास्ता देखा दें. ताकि वह घूमकर अखबार बेच सके. हसन ज़मील नामक उस बुज़ुर्ग ने सायकिल पर बिठाकर किश्वर को रास्ता दिखा दिया. किश्वर ने पहले दिन हिम्मत करके 30 अखबार बेच दिया। दूसरे दिन अखबारों की बढ़ाकर 70 कर लिया। दिनभर अखबार बेचने के बाद उसने बेचे जाने वाले अख़बारों की संख्या 100 कर लिया।फिर 100 से 150 और 150 से बेचे जाने वाले अख़बारों की संख्या 250 हो गई. आज वह सांध्य अखबारों के अलावा सुबह का अखबार भी बेचती है.
कहते हैं की जब दिन खराब होता है तो समाज भी साथ नहीं देता और जब दिन बहुरने लगता है तो समाज को अखरने लगता है. किश्वर के साथ भी ऐसा ही हुआ. हसन जमील कभी-कभी किश्वर के बच्चों के देखभाल करता था, ख़ासतौर पर जब वह अखबार बेचने के लिए निकलती थी.पड़ोसियों को यह बहुत नागवार गुज़रा.किश्वर जब भूखे पेट सोती और अपने बच्चों के लिए भोजन का इंतज़ाम नहीं कर पाती तब किसी पडोसी को दिखाई न देता. हसन जमील का सहयोग करना अखरने लगा. उसे लेकर तरह-तरह की बातें की जानी लगीं. पडोसी उससे लड़ाई करने पर उतारू हो जाते.परेशान होकर हसन जमील ने के सामने उसने निकाह का प्रस्ताव रख दिया.और फिर 55 साल के हसन जमील से निकाह कर लिया. आज किश्व्वर की आमदनी का जरिया अखबार ही है. रोजाना सांध्य दैनिक और सुबह के अखबार बेचती है और बच्चों का पेट पालती है. बचे जो अब 15 और 12 साल के हैं, उन्हें पढ़ा तो नहीं सकी लेकिन उन दोनों में एक को वेल्डिंग का काम सीखने लगा है तो दूसरा मोटर मैकेनिक का. किश्वर अपनी हिम्मत से अपनी मुसीबत भरी जिंदगी को आसान बना लिया है.
2 टिप्पणियाँ:
किश्वर फातिमा की हिम्मत को सलाम भाई गाज़ी साहब |इस महिला का अद्भुत साहस निराश्रित ,बेसहारा महिलाओं के लिए एक मिसाल बन सकता है |
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा ! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! मुझे बेहद ख़ुशी हुई की आपका गुफ्तगू किताब है और अगर हो सके तो आप मुझे भेज सकेंगे ? मैं आपको घर का पता दे दूंगी! आप मेरी कवितायेँ पढ़िएगा वक़्त मिलने पर और क्या गुफ्तगू किताब में मेरी कविता आप छाप सकती हैं?
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
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