शनिवार, 24 सितंबर 2011

अतीक इलाहाबादी: जिंदादिल और मेहमान नवाज शायर


अतीक इलाहाबादी का शुमार इलाहाबाद के उन शायरों में होता है, जिन्होंने दुनिया भर के शायरों की मेहमान नवाजी जिंदादिली के साथ हमेशा की है. जबतक वे जिन्दा रहे दुनियाभर के शायर उनके यहाँ हक से आकर ठहरते थे और अतीक इलाहाबादी जीभर के मेहमाननवाजी करते. उनके अचानक निधन से इलाहाबाद शायरी में गहमागहमी एक दौर खतम सा हो गया.अतीक इलाहाबादी की पैदाइश 28 जून 1952 को हुई थी.उनके वालिद शफीक इलाहाबादी भी एक अच्छे शायर थे. घर में ही अतीक इलाहाबादी का उर्दू अदब का अच्छा ख़ासा माहौल मिला, जिसका पूरा फायदा उन्होंने उठाया. मुशायरों में उनकी मकबूलियत इतनी थी कि देश के कोने-कोने में आमंत्रित किये जाने के साथ ही पाकिस्तान,दुबई,सउदी अरब में भी बुलाये जाते थे. चश्मे बराह,आगमन,मुठ्ठीभर अहसास,सरकार की गली में और अहसाह का दर्पण नामक उनकी किताबें प्रकाशित हुईं हैं. अदबी सेवा के लिए उर्दू एकेडमी उत्तर प्रदेश द्वारा तीन बार सम्मानित किये जाने के साथ-साथ अखिल भारतीय भाषा परिषद और हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग उन्हें सम्मानित गया.इनके उस्ताद दिल लखनवी थे जिनकी देखरेख में अतीक इलाहाबादी की शायरी में उल्लेखनीय निखर आया. 25 फ़रवरी 2007 को उनका निधन हो गया. निधन से पहले इम्तियाज़ अहमद गाज़ी ने उनसे एक इंटरव्यू लिया था जो हिंदी दैनिक आज में 25 सितम्बर 2004 को प्रकाशित हुआ था .
सवाल:शायरी का मैयार लगातार गिरता जा रहा है,क्या वजह मानते हैं?
जवाब:सुननेवालों और पढ़नेवालों का मैयार लगातार गिरता जा रहा है. सुनने वालों के जेहन तक पहुँचने के लिए उनके समझने के हिसाब से मुशायरों में शेर सुनाना पड़ता है.इसी वजह से म्यार कायम नहीं रह पाता.आजकल बुद्धिजीवी लोग मुशायरे में नहीं आते. यह मुशायरा और शायरी दोनों का दुर्भाग्य है.
सवाल: अब आलोचना एक-दूसरे की चाटुकारिता बनकर रह गई है, इसे आप किस रूप में लेते हैं?
जवाब:अब आलोचक रह ही कहाँ गए है.नए आलोचकों को मैं आलोचक नहीं मानता. जब आलोचक खुद शेर नहीं कह पाते,उसकी नज़ाकतों को नहीं समझ पाते तो फिर दुश्रों के अशआर पर क्या कहेंगे या लिखेंगे.
सवाल: उर्दू की बेहतरी के लिए क्या होना चाहिए?
जवाब:लोग अपने बच्चों को उर्दू पढाते ही नहीं हैं.बच्चे उर्दू नहीं पढ़ेगें तो फिर दिन पर दिन उर्दू प्रचलन से बाहर होती जायेगी.मैंने एक उर्दू कोचिंग खोला था, जिसमें मुफ्त शिक्षा के साथ उर्दू की किताबें भी मुफ्त दी जाती थीं. लेकिन दो साल में 7-8 बच्चे ही पढ़ने आए,जिसकी वजह से कोचिंग बंद कर देनी पड़ी.
सवाल: उर्दू के प्रति अरुचि की वहज क्या यह नहीं हैं कि शिक्षा का सम्बन्ध राज़ी-रोटी से हो गया है?
जवाब: मैं इस बात को सही नहीं मानत. बंगाली और पंजाबी वगैरह पढ़ने वालों को क्या नौकरी मिल जाती है? फिर भी इससे जुड़े लोग खुद बंगाली और पंजाबी पढ़ते हैं और अपने बच्चों को भी पढाते हैं.
सवाल:हिंदी में ग़ज़लें कही जाने लगी हैं.इससे क्या प्रभाव पड़ा है उर्दू गज़ल पर?
जवाब:कुछ असर नहीं पड़ा.जब उर्दू वाले गीत,दोहा,सोरठा,माहिया,हाइकू आदि लिख रहे हैं, तो फिर हिंदी वालों ने भी गज़ल लिखना शुरू कर दिया. इसमें बुराई ही क्या है.
अतीक इलाहाबादी की ग़ज़लें
(१)
जिंदगी हादसों से गुजर आयी है.
मेरे खेतों में बदली उतर आयी है.
मेरी आँखे अचानक ही पथरा गयीं,
जब कहीं भी मुझे तू नज़र आयी है.
ज़ुल्फ़ बिखराए आँखों में सावन लिए,
इक सुहागन पिया के नगर आयी है.
भीनी-भीनी सी खुशबू है माहौल में,
तुमसे पहले तुम्हारी खबर आयी है.
मेरे घर में दहकते अलाव गिरे,
उनके आँगन में जन्नत उतर आयी है.
खत किताबों में रखके बदलते रहे,
आज शामत किताबों के सर आयी है.
ऐसा लगता है कि हर फूल पर,
उनके होंठों की सुर्खी उतर आयी है.
ऐ अतीक अब चरागों को गुल कीजिये,
आज याद उनकी फिर टूटकर आयी है.
(२)
जब हवा अपना रुख बदलती है.
गर्द भी साथ साथ चलती है.
दिन का सूरज उफक में डूब गया,
अब सितारों से लौ निकलती है.
याद कर-कर के अहद-ए-माजी को,
जिंदगी अपने हाथ मलती है.
झील में तैरते हैं कुछ कागज़,
देखें कब तक नाव चलती है.
गुफ़्तगू उनकी चुभ गई दिल में,
देखें ये फांस कब निकलती है.
जी रहा हूँ मैं इस तरह से अतीक,
जैसे किस्तों में रात ढलती है.
(३)
अपना गम दिल के पास रहने दो,
मुझको यूँ ही उदास रहने दो.
नंग-ए-तहजीब न बन इतना,
कुछ तो तन पर लिबास रहने दो.
गम का सूरज भी डूब जाएगा,
दिल में इतनी सी आस रहने दो.
दौलते-ए-रंज-ओ-गम न छीन ए दोस्त,
कुछ गरीबों के पास रहने दे,
ए इमारत के तोड़ने वाले,
सिर्फ मेरा क्लास रहने दे.
करदे सारी खुशी आता उनको,
और गम मेरे पास रहने दे.
फिर तो दूरी नसीब में होगी,
और कुछ देर पास रहने दे.

3 टिप्पणियाँ:

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई अतीक इलाहाबादी का चित्र देखकर लग रहा है अभी बोल देंगे और तुषार जी क्या हाल है हमारी अधिकतर मुलाकात आकाशवाणी इलाहबाद में ही हुई थी |इंटरव्यू उम्दा है बधाई

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut achha laga yah blog

वीनस केसरी ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार

अतीक जी के चर्चे आज भी इलाहाबादी अदबी महफ़िलों में सुनाई देते हैं
आप आज भी हमारे बीच मौजूद हैं

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