बुधवार, 7 सितंबर 2011

निरालाजी बोले, गेंहू रूपए का पांच सेर कर दीजिए




------ इम्तियाज़ अहमद गाज़ी -----
हिंदी साहित्य में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का नाम ऐसे कवियों में आता है, जिन्होंने न सिर्फ काव्य सृजन किया है बल्कि एक साहित्यकार के जीवन को जिया है.वे राजशाही के आगे कभी नतमस्तक नहीं हुए बल्कि उनके सामने अपनी अहमियत जताई और साहित्यकारों के लिए नजीर पेश किया कि काव्य धर्म राजनीतज्ञों से बहुत ऊँचा है, मामूली फायदे के लिए सत्ता में विराजमान लोगों के सामने कभी नहीं झुकना है. वरिष्ठ साहित्यकार बुधिसेन शर्मा बताते हैं कि एक बार मैनपुरी में कवि सम्मलेन था.निरालाजी और बलवीर सिंह रंग सहित तमाम कवि आमंत्रित किये गए थे. एक दो मंजिले मकान पर बरामदे में सारे कवि ठहराए गए थे. बरामदे में ही एक तखत पड़ा था.तखत पर निरालाजी बैठे थे, अन्य कवि जिनमें महादेवी वर्मा और बलवीर सिंह रंग भी शामिल थे, तखत के पास ही बिछे दरी पर बैठे हुए थे. उस समय उत्तर प्रदेश के राज्यपाल कन्हैयालाल माडिक लाल मुंशी थे.
इतने में एक सरकारी अधिकारी आया और निरालाजी से बोला, राज्यपालजी आपसे मिलना चाहते हैं. निरालाजी बोले, मिलना चाहते हैं तो आ जाएँ, मैं उनके स्वागत के लिए तैयार हूँ.थोड़ी देर में राज्यपाल जी सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर आते दिखाई दिए.यह देखते ही निरालाजी ने बलवीर सिंह रंग के सिर पर लगी टोपी उठाकर अपने सिर पर लगा लिया और सीढ़ी के पास पहुंचकर हाथ जोड़कर राज्यपाल जी का स्वागत किया. फिर उनका हाथ पकड़कर तखत तक ले आए. निरालाजी और राज्यपाल कन्हैयालाल माडिक लाल मुंशी तखत पर बैठ गए.हाल-चाल पूछने के बाद कुछ देर तक चुपचाप बैठे रहे. करीब दस मिनट के बाद राज्यपाल जी ने कहा, मेरे लायक कोई काम हो तो बताइयेगा. निरालाजी बोले, हाँ काम है, इस समय गेंहू रूपए में दो सेर मिल रहा है. आप इसे रूपए में पांच सेर कर दीजिए.यह सुनते ही राज्यपाल जी खामोश हो गए और कोई उत्तर नहीं दिया. थोड़ी देर बाद राज्यपाल महोदय जाने लगे तो निरालाजी उनके साथ सीढ़ियों तक गए आए, नमस्कार करके उन्हें विदा कर दिया.
एक और मशहूर घटना बताते हैं बुधिसेन शर्मा, कहते हैं कुम्भ का मेला लगा हुआ था और प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु और राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद संगम में स्नान करने आए थे. प्रधानमंत्री और निरालाजी पहले से परिचित थे. पंडितजी का निजी सचिव निरालाजी के पास आया और बोला, देश के पहले प्रधानमंत्री आपसे मिलना चाहते हैं. निरालाजी बोले मिलना चाहते हैं तो भेज दीजिए. सचिव का आशय था कि निरालाजी खुद जाकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मिलें,मगर निरालाजी नहीं गए, उनका कहना था कि अगर पंडित नेहरु बुलाते तो मैं ज़रूर जाता, लेकिन प्रधानमंत्री के बुलाने पर नहीं जाऊँगा. निरालाजी को यह बात बहुत नागवार गुज़रती थी कि सत्ता में बैठे राजनीतिज्ञ कि आवाभगत करें. उनको प्रधानमंत्री पंडित नेहरु ने उन्हें कई बार लाभ पहुंचाने की बात कही लेकिन उन्होंने हर बार ठुकरा दिया. उनका मानना था कि साहित्यकार राजनीतिज्ञों के मोहताज़ नहीं हैं और न उनके आगे किसी कीमत पर झुकेंगे.
(हिंदी दैनिक जनवाणी में 14 अगस्त 2011 को प्रकाशित)

1 टिप्पणियाँ:

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बेहतरीन पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं |नाज़िया जी ब्लॉग पर आने के लिए आभार

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