मंगलवार, 20 सितंबर 2011

नीम के पेड़ को घंटों निहारते थे सुमित्रानंदन पन्त

------ इम्तियाज़ अहमद गाज़ी ----
सुमित्रानंदन पन्त छायावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं.उनका रचा हुआ संपूर्ण साहित्य सत्यम,शिवम के आदर्शों से प्रभावित है और समय के साथ चलता हुआ प्रतीत होता है. वरिष्ट साहित्यकार दूधनाथ सिंह सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला को छायावाद का जनक नहीं मानते बल्कि पंतजी को मानते हैं.कहते हैं कि अगर पंतजी नहीं होते तो छायावाद के दूसरे कवियों का होना नामुमकिन था. छायावादी दर्शन में निहित अनजानापन,विस्मय जैसे गुण उनकी देन हैं. दूधनाथ सिंह बताते हैं कि वे ज्योतिष के बड़े अच्छे जानकार थे. अपनी मृत्यु के वर्ष में उन्होंने कहा था- अगर मैं इस वर्ष जी गया तो सौ वर्ष जीवित रहूँगा. वे अपने घर के नीम के पेड़ को घंटों निहारते रहते थे.उनके आँगन में फूलों का बागीचा था जो जाड़ा और गर्मी दोनों मौसमों में महकता था.
वरिष्ठ शायर बुद्धिसेन शर्मा बीते दिनों कि याद ताज़ा करते हुए बताते हैं कि भगवती चरण वर्मा के पुत्र धीरेन्द्र शर्मा से मेरी दोस्ती थी और पंतजी का उनके घर आना-जाना था.एक दिन मैं धीरेन्द्र से मिलने उनके घर गया तो उन्होंने बताया कि पंतजी आए हुए हैं. यह जानकार मैं बहुत खुश हुआ,लेकिन पंतजी बहुत सख्त मिजाज़ के थे, इस वजह से उनसे मिलने में भी डर लगता था. फिर भी धीरेन्द्र वर्मा से मिलवाने का आग्रह किया. धीरेन्द्र ने पहले पंतजी से पूछा फिर मुझे मिलवाया. मैं जब उनके पास गया तो उन्होंने पहले मेरे बारे में पूछा और फिर एक कविता सुनाने को कहा. डरते-डरते एक कविता सुनाई, उन्होंने और मेहनत करने कि हिदायत दी. बुद्धिसेन शर्मा बताते हैं कि उसके बाद पूरे शहर में मैं लोगों से कहता था कि पंतजी मेरे बहुत करीबी हैं, मैं उनको किसी भी कार्यक्रम में बुला सकता हूँ.पंतजी इलाहाबाद स्थित बेली अस्पताल के सामने एक मकान में रहते थे. एक बार बज्मे ग़ालिब संस्था की ओर से कविगोष्ठी आयोजित की जानी थी. उस गोष्ठी की अध्यक्षता के लिए पंतजी को बुलाने का निर्णय लिया गया ओर मुझे यह जिम्मेदारी सौंप दी गई.मैं डरते-डरते उनके पास पहुंचा ओर उनसे आने का निवेदन किया. अपने स्वभाव के विपरीत वे सहजता से आने के लिए तैयार हो गए. कविगोष्ठी वाले दिन उनके पास गया ओर उन्हें साथ ले आया. कार्यक्रम में पहुंचकर उन्होंने सभी लोगों की कविताएं सुनीं और हर एक की कमी को बताते हुए खूब मेहनत करने की सलाह दी.गोष्ठी के समापन पर बोले अगली बार आपलोगों की कविता मैं तभी सुनुगा, जब आप ओर मजे हुए कवि की तरह लिखेंगे.बुद्धिसेन शर्मा बताते हैं कि वे बहुत कड़क मिजाज के थे,इसलिए खासकर नए लोग उनके पास जाने से डरते थे, जिसे वो अपना स्नेह देते थे वो पूरे इलाहाबाद में डींगें हाकते फिरता था.
पंतजी के पड़ोसी प्रोफेसर ललित जोशी बताते हैं कि वैसे तो पंतजी मई के पहले हफ्ते में ही अपने गांव कौसानी चले जाते थे, लेकिन अपनी 70वीं वर्षगांठ मनाने के लिए वे इलाहाबाद में ही रुक गए. उनके वर्षगाठ वाली रात बहुत ही निराली थी.उस रात हरिवंश राय बच्चन एक ढपली लेकर आए थे और आधी रात तक गीत गाते रहे, पूरा घर गीत-संगीत की लहरी से झूम उठा. ज्योतिष के साथ उन्हें संगीत का बहुत अच्छा ज्ञान था.
छायावाद के प्रवर्तक सुमित्रानंदन पन्त का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कसौनी गांव में 20 मई 1900 को हुआ था. उनके पैदा होने के कुछ ही घंटे बाद उनकी माताजी का देहांत हो गया था, दादी ने उनका लालन-पालन किया.हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वे इलाहाबाद आए और यहीं के होकर रह गए. उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए उन्होंने इलाहाबाद स्थित म्योर सेंट्रल कोलज में दाखिला लिया. उन्हीं दिनों गांधीजी के नेतृत्व में चल रहे असहयोग आंदोलन से जुड गए.वे 1950 से 1957 तक आकाशवाणी इलाहाबाद हिंदी अनुभाग के परामर्शदाता रहे, प्रगतिशील साहित्य को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने रूपम नामक पत्रिका का संपादन भी किया.कविता,नाटक,गद्य और निबंध की उनकी कुल 28 किताबें प्रकाशित हुईं.उनके लेखन कार्य के लिए उन्हें 1961 में पद्मभूषण, 1968 में ज्ञानपीठ सहित साहित्य अकादमी और सोबियत लैंड नेहरु पुरस्कार से नवाजा गया. 28 दिसम्बर 1977 को उनका निधन हुआ.कौसानी स्थित उनके घर जिसमें वे बचपन में रहा करते थे, को सुमित्रानंदन पंड वीथिका के नाम से सन संग्रहालय बना दिया गया है, जिसमें एक पुस्तकालय भी है.इलाहाबाद स्थित हाथीपार्क का नाम सुमित्रानंदन पन्त बाल उद्यान रखा गया है और संग्रहालय की वीथिका भी उनके नाम पर है.
(हिंदी दैनिक जनवाणी में 18 सितम्बर 2011 को प्रकाशित)



1 टिप्पणियाँ:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

पन्त जी के बारे में इतनी अच्छी जानकारी देने वाली पोस्ट ....बहुत-बहुत आभार

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