बुधवार, 6 अगस्त 2025

प्रेमचंद के कहने पर हिन्दी में लिखने लगे उपेंद्रनाथ 

 मुंबई जाकर कई फिल्मों के लिए भी लिखे पटकथा और डॉयलाग

फै़ज़, साहिर, मोहन राकेश, जाफरी आदि का होता था आगमन

                                                                                - डॉ. इम्तियाज अहमद ग़ाज़ी

उपेंद्रनाथ अश्क

  उपेंद्रनाथ अश्क का परिवार जालंधर, पंजाब का रहने वाला था। वे वर्ष 1940 के दशक में इलाहाबाद आए और यहीं के होकर रह गए। इलाहाबाद के खुशरूबाग रोड पर स्थित उपेंद्रनाथ अश्क के घर पर बड़े-बड़े साहित्यकारों का जमावड़ा लगता था। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अली सरदार जाफ़री, साहिर लुधियानवी, सज्जाद ज़हीर, मोहन राकेश, राजेंद्र यादव आदि लोग अक्सर ही इलाहाबाद आते तो इन्हीं के यहां रुकते। लगभग रोज शाम को साहित्यकारों का जमावड़ा होता। उपेंद्रनाथ अश्क ने कहानी, उपन्यास, एकांकी, कविता और आलोचना आदि का लेखन किया है। हिन्दी के अलावा उर्दू में भी उनकी कई किताबेें छपीं। उन्होंने तीन कुल शादियां की थीं। पहली पत्नी का नाम शीला था। दूसरी पत्नी का एक महीने में ही देहांत हो गया था। तीसरी पत्नी कौशल्या थीं। कौशल्या से ही पुत्र नीलाभ थे, जो जाने-माने साहित्यकार थे और बीबीसी रेडियो के लिए उन्होंने पत्रकारिता भी की थी। पहली पत्नी शीला के पुत्र उमेश थे, उमेश के पुत्र श्वेताभ हैं। श्वेताभ ने अपने दादा अश्क के साथ काफी समय बिताया है। आज वे प्रकाशन का काम कर रहे हैं।

उपेंद्रनाथ अश्क, साहिर लुधियानवी, अन्य और नीलाभ। इस तस्वीर में साहिर लुधियावनी का इंटरव्यू ले रहे हैं नीलाभ।

श्वेताभ बताते हैं कि मेरी सौतेली मां कौशल्या बहुत ही समझदार और कुशल महिला थीं। उन्होंने पूरे परिवार को बहुत ही सलीक़े से समेट रखा था। उनके लालन-पालन को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वे सौतेली हैं। श्वेताभ अपने दादा अश्क साहब के बारे में बताते हैं कि वे सुबह पांच बजे ही उठ जाते थे, चाय खुद ही बनाते थे। पूरा परिवार उन्हीं का बनाया हुआ चाय पीता था। दादी कौशल्या ने ‘नीलाभ प्रकाशन’ की नींव डाली थी। वह हिन्दी की पहली महिला प्रकाशक थीं। इलाहाबाद के सिविल लाइंस में इसका कार्यालय है। नीलाभ प्रकाशन का काम तो बंद हो गया है, लेकिन वह कार्यालय अपनी जगह पर अब भी मौजूद है। वहां कार्यालय की बाहरी दीवार पर नीलाभ प्रकाशन अब भी लिखा हुआ पढ़ा जा सकता है। उस प्रकाशन की जिम्मेदारी नीलाभ पर ही थी। बाद में नीलाभ अपने हिस्से का मकान बेचकर दिल्ली चले गए थे। बाद में वहीं उनका देहांत हो गया।

 श्वेताभ बताते हैं कि ‘जब मैं 15 वर्ष का था, परिवार में आर्थिक तंगी हुई तो ख़ासतौर पर मुझे दादाजी ने पुस्तक मेलों में किताब लेकर बेचने का काम शुरू कराया था। वर्ष 1980 में गुवाहाटी में पुस्तक मेला लगा तो दादाजी ने वहां के लोगों से बात करके मुझे वहां किताबें बेचने के लिए भेजा। वहां काफी किताबें बिकीं, जिससे कई महीने का खर्च निकला। वहीं कुछ किताबों के आर्डर भीे मिले। गुवाहाटी से इटानगर किताबें लेकर जाने का न्यौता मिला। वहां के मेले में भी काफी किताबें बिकीं। इस तरह का काम मै करता रहा।’

तत्कालीन प्रधाममंत्री का अभिवादन करते उपेंद्रनाथ अश्क।

14 दिसंबर 1910 को जन्में उपेंद्रनाथ जब 11 साल के थे, तभी से उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। शुरू में वे उर्दू में लेखन करते थे। उनकी पहली उर्दू कविता लाहौर के अख़बार ‘दैनिक मिलाप’ में छपी थी। उनकी पहली हिन्दी कहानी खंडवा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘कर्मवीर’ में छपी थी, इस पत्रिका के संपादक माखन लाल चतुर्वेदी थे। उन्होंने अपने लेखन की शुरूआत में ही दोहा का भी सृजन किया था। छात्र जीवन में ही इनका लधु कथा संग्रह ‘नौ रतन’ प्रकाशित हो गया था। शुरू में कुछ दिनों तक एक स्कूल में अध्यापन किए, उसके बाद पत्रकारिता से जुड़ गए। लाला लाजपत राय के अख़बार ‘वंदे मातरम्’ के लिए उन्होंने रिपोर्टिंग की, उसके बाद दैनिक ‘वीर भारत’ और साप्ताहिक अख़बार ‘भूचाल’ से जुड़ गए। इनका दूसरा लधुकथा संग्रह ‘औरत की फितरत’ नाम से छपा, इस किताब की भूमिका मुंशी प्रेमचंद ने लिखी थी। अश्क साहब शुरू में सिर्फ़ उर्दू में ही लेखन करते थे। प्रेमचंद के कहने पर उन्होंने हिन्दी में लेखन शुरू कर दिया। लेकिन, पहले वे उर्दू में लिखते, फिर उसे हिन्दी मेे करते।

 1944 में प्रोडक्शन कंपनी फिल्मिस्तान के लिए संवाद और पटकथा लिखने के लिए वे मुंबई चले गए। इन्होंने शशधर मुखर्जी और निर्देशक नितिन बोस के साथ मिलकर काम किया।  उन्होंने संवाद, कहानी और गीत लिखे और यहां तक कि दो फिल्मों में अभिनय भी किए। ये फिल्में थीं-‘मजदूर’ जिसका निर्देशन नितिन बोस ने किया था और ‘आठ दिन’ जिसका निर्देशन अशोक कुमार ने किया था। मुंबई में रहते हुए, अश्क साहब इप्टा से जुड़ गए और उन्होंने अपने सबसे प्रसिद्ध नाटकों में से एक ‘तूफान से पहले लिखा’ जिसे बलराज साहनी ने मंच के लिए तैयार किया था।1948 में वे इलाहाबाद लौट आए।

बाएं से अफ़सर जमाल, डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी और श्वेताभ।

 उनके पांच उपन्यास प्रकाशित हुए हैं। जिनमें ‘सितारों का खेल’ हिन्दी में, ‘गिरती दीवार’, ‘गरम राख’, ‘बर्ॉंइं-बॉंईं आंख’ और ‘शहर में घूमता आईना’ उर्दू में हैं। नाटकों की आठ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिनके नाम ‘जय पराजय’, ‘स्वर्ग की झलक’, ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘कैद’, ‘उड़ान’, ‘अलग-अलग रास्ते’, ‘छठा बेटा’ और ‘अजो दीदी’ हैं। ये सभी किताबें पहले उर्दू में फिर हिन्दी में छपीं। इसके अलावा उनके दो कविता संग्रह और दो संस्मण की पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।

 मुंबई के वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार रवीन्द्र श्रीवास्तव संस्मरण संग्रह लिख रहे हैं, जिसका नाम ‘5, खुशरोबाद रोड के वाशिंदे’ है। 5, खुशरूबाग रोड में ही उपेंद्रनाथ अश्क रहते थे। इसी मकान में श्वेताभ रहते हैं। आज भी ‘उपेंद्रनाथ अश्क’ नेम प्लेट लगा हुआ है।



(गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2025 अंक में प्रकाशित)   


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