शनिवार, 25 जून 2022

कथक में उर्मिला शर्मा का है ख़ास मुकाम


उर्मिला शर्मा


                                                               - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

   14 फरवरी 1963 को मुरादाबाद जिले के चन्दौसी कस्बे में जन्मी उर्मिला शर्मा अपने माता-पिता की आठवीं संतान हैं। चार वर्ष की आयु में ही इनमें कुछ अलग तरह के हाव-भाव प्रकट होने लगे जो रूढ़िवादी सोच वाले लोगों के लिए अचंभित करने वाला था, क्योंकि नृत्य को अच्छा नहीं माना जाता था। लेकिन अपनी जिद और लगन की वजह से इन्होंने अपने लक्ष्य को कभी नहीं छोड़ा। पं. बिरजू महाराज के निर्देशन में नृत्य की कला को स्टेप-बाई-स्पेट सीखा और इसे अपने अंदर आत्मसात कर लिया। शुरू के दिनों में अपने माता-पिता के छिपकर बड़ी बहन के साथ कथक सीखने के लिए जाया करती थीं, धीरे-धीरे जब इनकी कला को सराहना मिलने लगी, अख़बारों नाम और तस्वीरें छपने लगीं तो घर वालों को पता चला। फिर परिवार के लोगों का सभी सहयोग मिलने लगा। आठ वर्ष की उम्र में ही इन्होंने आल इंडिया कथक प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल करके अपने अंदर की प्रतिभा को दुनिया के सामने ला दिया। इन्होंने समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर करने के साथ कथक प्रवीण और कथक में नई दिल्ली से डिप्लोमा किया है। आज इनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि पूरे भारत के अलावा साउथ अफ्रीका, त्रिनिदाद, फिजी, हालैंड, गयाना आदि देशों में अपनी कला की बदौलत आमंत्रित की जाती हैं। इतना ही नहीं इन्होंने कथक नृत्य के नए प्रयोग किए हैं, तालों को पैरों द्वारा निकालने और प्रत्येक ताल तत्कार की नई रचनाएं इन्होंने इजाद किया है। तबला पखावज, हारमोनियम जैसे वाद्ययंत्रों में पारंगत गायन और पढ़न्त काक अद्भुत तालमेल प्रस्तुत करने की नई विधा का भी इन्होंने ही गठन किया है। अब तक नायिका भेद गत-भाव की 50 से ज्यादा बार प्रस्तुति कर चुकी हैं। तीन हजार से अधिक बार कथक नृत्य की मंच प्रस्तुति कर चुकी हैं। कथके माध्यम से टी-20 क्रिकेट प्रतियोगिताओं के द्वारा देश-विदेश मे ंप्रस्तुति दे चुकी हैं।

 प्रसार भारती द्वारा कथक नृत्य के लिए टॉप ग्रेड आर्टिस्ट, भारत सरकार के सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र द्वारा, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा अकादमी पुरस्कार, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा सम्मान, भारतीय राज दूतावास-सूरीनाम द्वारा प्रशस्ति पत्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा सम्मान पत्र, उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत एवं कला अकादमी द्वारा पुरस्कार, सिंगारमणि-सर-सिंगार अकादमी मुंबई, पद्मविभूषण पं. बिरजू महाराज द्वारा सम्मान पत्र, नेशनल यूथ फॉर कल्चरल रिनेसेन्स देवरिया द्वारा पुरस्कार, राष्टीय ग्रामीण महिला संगीत शिक्षण समिति प्रयागराज द्वारा सम्मान, कथक केंद्र नई दिल्ली द्वारा प्रशस्ति पत्र, महादेवी वर्मा चेतना श्री-समन्वय द्वारा सम्मान, हंडिया माटी कथक महोत्सव में रत्न पुरस्कार, जवाहर नवोदय विद्यालय मेजा द्वारा सम्मान, मेजा उर्जा निगम लिमिटेड द्वारा सम्मान, सांस्कृतिक मंदिर महोत्सव उज्जैन द्वारा प्रशस्ति पत्र, कपिलवस्तु महोत्सव उज्जैन द्वारा प्रशस्ति पत्र, अंतरराष्टीय रामायण मेला चित्रकुट, कथक के इंद्रधनुषीय रंग-अंतरराष्टीय कथक व्याख्यान माला द्वारा, आज़ादी के अमृत महोत्सव में स्वाधीनता रंग फागुन के संग-नई दिल्ली में और पं. बिंदादीन महाराज स्मृति उत्सव-संगीत नाटक अकादमी लखनउ द्वारा इन्होंने सम्मानित किया जा चुका है।

 1989 में आईसीसीआर की ओर से दक्षिणी अमेरिका में तीन वर्ष तक प्रवास किया, इस दौरान अपनी कला का प्रदर्शन कर खूब वाहवाही बटोरी। 1998 में एक बार फिर दक्षिण अमेरिकी सरकार के निवेदन पर भारत की ओर से इन्हें स्वीडेन, स्विटजरलैंड, वेस्टइंडीज, गयाना, बार्बिडोज, त्रिनिडाड और यूरोप में नृत्य प्रस्तुति के लिए भेज गया, जहां इन्होंने सबको प्रभावित किया। वर्ष 2003 में इन्होंने कथक केंद्र का स्थापना किया है, जहां आज तमाम छात्र-छात्राएं इनसे कथक नृत्य कला सीख रहे हैं। इससे पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इन्होंने दो वर्ष तक विजिटिंग फैकेल्टी के पद पर काम किया है। दूरदर्शन समेत कई टीवी चैनलों पर इनकी प्रस्तुतियों का प्रसारण समय-समय पर होता रहा है।

(गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2022 अंक में प्रकाशित )


 

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