शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

राष्ट्रवाद के प्रेरणास्रोत डॉ. मुख़्तार अंसारी

डॉ. मुख़्तार अंसारी
                                                          - मुहम्मद शहाबुद्दीन ख़ान
                                  
  डॉ. मुख़्तार अहमद अंसारी महान देशभक्त और चिकित्सक थे, उनके कार्य आज भी हमारे के लिए प्रेरणास्रोत हैं। वे भारत की आज़ादी के आंदोलन के प्रति जागरूक थे। इंग्लैंड में पढ़ाई और चिकित्सा सेवा के बाद दिल्ली आते ही वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के सदस्य बन गए। उनके अच्छे दोस्तों में सुप्रसिद्ध शायर डॉ. अल्लामा इक़बाल भी थे। सन 1933 में गांधी जी ने पूना में एक आमरण अनशन किया, जिसमें 21 दिन उपवास पर रहे, गांधी जी की जब हालात बिगड़ने लगे तो उन्होंने एक तार डॉ. अंसारी को भेजा। मेरी ख्वाइश है, मैं अपनी आखिरी सांस डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी के गोद लूं। डाॅ. अंसारी गांधी जी के पास चले गए, और उनका उपवास तुड़वाकर इलाज किया। गांधी जी डॉ. अंसारी के घनिष्ठ मित्रों हो गए थे, गांधी जी जब उनके दिल्ली स्थित दारुल सलाम घर में ठहरा करते। उन पर मौलाना मुहम्मद अली का भी बहुत प्रभाव था। यही कारण है डॉ. अंसारी 1912-13 में हुए जंग-ए-बालकन में खलिाफत उस्मानिया के समर्थन में रेड क्रिसेंट के बैनर तले मेडिकल टीम की नुमाईंदगी की। जिसमें उनके साथ मौलाना मोहम्मद अली जौहर, चैधरी खलिकुजमा, अब्दुर्रहमान बिजनौरी आदि शामिल थे। चूंकि मिलिट्री मदद करने पर अंग्रेजों ने पाबंदी लगा दी थी, इसलिए डॉ. अंसारी ने 25 डॉक्टरों की टीम बनाई। यह टीम जब लखनऊ की चारबाग स्टेशन से गुजरी तो प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान मौलाना शिबली नोमानी ने अंसारी की शान में एक नज़्म पढ़ी। डाक्टरों की टीम का यह मिशन 7 माह तक चला, इसके मिशन से वापसी के समय 10 जुलाई 1913 की शाम को दिल्ली स्टेशन पर 30 हजार से अधिक लोगों की भीड़ डॉ. अंसारी और उनके साथियों के स्वागत के लिए खड़ी थी। इस काम के लिए डॉ. मुख़्तार अहमद अंसारी को ‘तमगा-ए-उस्मानिया’ से नवाजा गया था। ये अवार्ड फौजी कारनामों के लिए उस्मानी सल्तनत द्वारा दिया जाता था। उसके बाद हिन्दुसतान में रेड क्रॉस सोसाईटी 1920 में वजूद में आई। 
 डॉ. अंसारी ने उस्मानिया सल्तनत के समर्थन में 1912 में ही रेड क्रिसेंट सोसाईटी को अपनी सेवाएं देनी शुरू कर दी थी। उनके इस मिशन को मुस्लिम नेताओं ने संगठित किया था, इसने भारत के नेताओं के लिये रास्ता खोल दिया कि वे अतंरराष्ट्रीय स्तर पर अपना पक्ष रख सकें, जिससे दुनिया के नक्शे में भारत को स्थापित किया जा सके। जिसका पहला असर दिसम्बर 1915 में काबुल में बनी आरजी हुकूमत के तौर पर देखा गया, जिसमें राजा महेंद्र प्रताप राष्ट्रपति बने और मौलवी बरकतुल्लाह भोपाली प्रधानमंत्री और इस आरजी हुकूमत को तुर्की सरकार ने मान्यता दी।
 सन 1918 में दिल्ली में होने वाले मुस्लिम लीग के सालाना अधिवेशन में उन्होंने अध्यक्ष पद संभाला। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में खिलाफत का पक्ष लिया और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग पर बिना शर्त सहयोग का वायदा किया, सरकार ने इसे गैर-क़ानूनी माना। सन 1920 में एक बार फिर से वह ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के नागपुर अधिवेश के अध्यक्ष बने और वहां पर उसी समय मद्रास के विजय राघवा चरियार की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा ऑल इंडिया खिलाफत कमेटी के लोगों से मिले, जिसके अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद थे। तीन संगठनों का संयुक्त अधिवेशन हुआ। सन 1927 ई. में महात्मा गांधी ने अपने एक भाषण में डॉ. अंसारी को हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक बताया। उन्होंने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। उन्होंने बनारस में राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय काशी विद्यापीठ और दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया स्थापित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 10 फरवरी सन 1920 को काशी विद्यापीठ की स्थापना हुई एवं 29 अक्टूबर 1920 को अलीगढ में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना हुई। डॉ. अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया की फाउंडेशन समिति के सदस्य और संस्थापकों में से एक थे। वे आजीवन उसके संरक्षक रहे। सन 1925 में जामिया को अलीगढ़ से दिल्ली लाया गया, यहां तिब्बिया कॉलेज के पास बीडनपुरा, करोलबाग में बसाया गया। हकीम अजमल खां की मृत्यु के बाद वह जामिया मिल्लिया के आजीवन कुलपति रहे। डॉ. अंसारी जीवनभर कांग्रेस कार्य-समिति के सदस्य रहे। सन 1920, 1922, 1926, 1929, 1931 तथा 1932 में वह इसके महासचिव थे तथा सन 1927 ई. में 42वें कांग्रेस अधिवेशन के सभापति हुए। 1928 ई. में लखनऊ में होने वाले सर्वदलीय सम्मेलन का इन्होंने सभापतित्व किया था और नेहरू रिपोर्ट का समर्थन किया। 
 डॉक्टर अंसारी के प्रयास से ही 1934 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद और जिन्ना में बातचीत हुई, लेकिन वो प्रयास विफल रहा। इससे डॉक्टर अंसारी को धक्का लगा। वो जिन्ना से नाराज थे। उनकी सेहत गिर रही थी। इस कारण भी उन्होंने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। उन्हें फुरसत के कुछ पल मिले तो एक अंग्रेजी किताब ‘रीजंनरेशन ऑफ मैन’ लिखी। दूसरी तरफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया पर वे ध्यान देने लगे। उन्हीं का फैसला था कि ओखला में जामिया को बसाया जाए। वर्तमान जामिया की परिकल्पना उन्होंने ही की थी। जमीनें भी उन्होंने ही खरीदीं। इस वजह से साठ हजार का कर्ज हो गया। हकीम अजमल खां, अब्दुल मजीद ख़्वाजा और डॉ. अंसारी ने पूरे भारत का दौरा कर चंदा इकठ्ठा किया और एक मार्च 1935 को ओखला में जामिया की बुनियाद रखी गई। बुनियाद का पत्थर सबसे कम उम्र के विद्यार्थी अब्दुल अजीज से रखवाया गया। इससे पहले जामिया मिल्लिया (1920-25) तक अलीगढ़ में कायम था। डॉ. अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अमीर-ए-जामिया (कुलाधिपति) रहे और डॉक्टर जाकिर हुसैन को कुलपति बनाया। वर्तमान जामिया मिल्लिया इस्लामिया फाउंडेशन कमेटी के 18 सदस्यों में दो लोग गाजीपुर से है। जिनका नाम डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी एवं डॉ. सईद महमूद जो सैदपुर भीतरी गांव के रहने वाले थे। 
 डाॅ. अंसारी का जन्म 25 दिसम्बर 1880 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के युसूफपुर में एक अंसारी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम हाजी अब्दुर्रहमान बलिया स्थित रसड़ा तहसील में सदर अमीन थे। मां शमसुन निसा बेगम गृहणी थीं। सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351) के दौर में डॉ. अंसारी के पूर्वज भारत आएं, कस्बा मोहम्मदाबाद में काजी बनाए गए, तभी से यह घराना काजी घराना कहलाता है। इनके पूर्वज ने अपने भतीजे/दामाद यूसुफ अंसारी के नाम पर यूसुफपुर गांव बसाया था। सन 1896 में उन्होंने विक्टोरिया हाईस्कूल, गाजीपुर से मैट्रिक एवं इलाहाबाद से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद डॉ. अंसारी ने मद्रास मेडिकल कालेज में शिक्षा ग्रहण की और निजाम स्टेट द्वारा मिले छात्रवृत्ति पर आगे की पढाई के लिए इंग्लैंड चले गए। सन 1905 में अंसारी ने वहां एमडी और एमएस की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद लंदन के लाक अस्पताल में कुलसचिव बने। इस चयन पर कुछ नस्लवादी अंग्रेजों ने बहुत हो-हल्ला मचाया। तब मेडिकल काउंसिल ने स्पष्टीकरण दिया कि उनका चयन योग्यता के आधार पर किया गया है। फिर लंदन के चारिंग क्रॉस अस्पताल में हाउस सर्जन के रूप में नियुक्त हुए। उनकी उल्लेखनीय सेवा के कारण चरिंग क्रॉस हास्पिटल के एक वार्ड का नाम अंसारी रोगी कक्ष रखा गया, जो आज भी कायम है। लंदन में ही वे मोतीलाल नेहरु, हकीम अजमल खान और जवाहरलाल नेहरू से मिले और इन सबसे घनिष्ठ मित्रता हो गई। डॉ. मुख्तार अंसारी 1910 में हिंदुस्तान लौट आएं। हैदराबाद तथा अपने गृहनगर यूसुफपुर में थोड़े समय तक रहने के बाद उन्होंने दिल्ली में फतेहपुरी मस्जिद के पास दवाखाना खोला और मोरीगेट के निकट अपना निवास बनाया। 
 रामपुर के नवाब के निमंत्रण पर एक मरीज को देखने दिल्ली से मसूरी गये हुए थे। लौटते समय लक्सर स्टेशन के समीप 10 मई 1936 की रात डॉ. अंसारी को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया, जामिया नगर के जामिया मिल्लिया कब्रिस्तान में दफनाया गया। उनके निधन पर महात्मा गांधी ने कहा कि शायद ही किसी मृत्यु ने इतना विचलित और उदास किया हो जितना डॉ. मुख़्तार की मौत ने किया है। डॉक्टर अंसारी के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष में भारत सरकार ने राष्ट्र के प्रति इनकी महत्वपूर्ण सेवाओं को देखते हुए डाक विभाग द्वारा 35 पैसे का एक डाक टिकट, प्रथम दिवस आवरण एवं सूचना पत्र जारी किया गया। डॉ. अंसारी के नाम पर गाजीपुर जिला चिकित्सालय एवं दिल्ली में डॉ. अंसारी रोड है। 
                                             ( गुफ़्तगू के अप्रैल- जून 2019 अंक में प्रकाशित )

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