शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

अमिताभ बच्चन के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाना कितना उचित?

पिछले दिनों ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार मशहूर शायर प्रोफे़सर शहरयार को अमिताब बच्चन के हाथों दिलाया गया। इसे लेकर साहित्य के गलियारों में खासी चर्चा रही। ‘गुफ्तगू’ ने दिसंबर-2011 अंक में इसे अपने चौपाल का विषय बनाया। उपसंपादक डॉ0 शैलेष गुप्त ‘वीर’ ने इस विषय पर कुछ साहित्यकारों से बात की।
बेकल उत्साही: मैं इसे उचित नहीं समझता हूं और भी लोग पड़े हुए हैं, आखिर अमिताब बच्चन के हाथों क्यों दिलाया गया? वैसे शह्रयार को ही अभी यह पुरस्कार दिया जाना उचित नहीं है, उनसे ज़्यादा सीनियर लोग पड़े हुए हैं, जिन्होंने उनसे ज़्यादा साहित्य में काम किया है। शहरयार का इतना बड़ा काम नहीं है। सिर्फ़ फिल्मों में गीत लिख देने से कोई बड़ा शायर नहीं हो सकता। जहां तक एवार्ड दिलवाए जाने की बात है, तो साहित्यिक एवार्ड किसी वरिष्ठ साहित्यकार से ही दिलाया जाना चाहिए।
वसीम बरेलवी: हंसते हुए... सवाल बड़ा नाज़ुक है। देखिए अभिनय का क्षेत्र भी कला का क्षेत्र है और साहित्य का क्षेत्र भी कला का क्षेत्र है, लेकिन बात जहां आप पकड़ रहे हैं,रीजनेबल है। इसलिए कि शोपीस एवं लिटरेचर में अंतर तो है ही। अमिताभ बच्चन इस सदी के महानायक हो सकते हैं। यह दुनिया तेजी से बदलने वाली दुनिया है। हरिवंश राय बच्चन को सदियों को जिन्दा रहना है, इसलिए कि साहित्य और कलाकार कभी नहीं मरता। शोहरत के लिए कालीदास को कभी नहीं ज़रूरत पड़ी कि कभी उनका कोई बेटा फिल्म ऐक्टर हो, कबीर या जायसी को इस चीज़ की कभी ज़रूरत नहीं पड़ी जिन लोगों तक उन्हें पहुंचना चाहिए, वे पहुंचे, पहुंच रहे हैं और हमेशा पहुंचते रहेंगे। इसलिए साहित्य से यह सब चीज़े इस तरह से न जोड़िए। ये बातें मैंने पहले भी कही हैं और अब भी कह रहा हूं। अमिताब जी इस समय अपनी शोहरत की पीक हैं किन्तु यह एवार्ड किसी साहित्यकार के हाथ से दिया जाता तो अधिक बेहतर होता।
माहेश्वर तिवारी: अभिनय भी एक कला है, अमिताब बच्चन को सदी के सबसे बड़े नायक का दर्जा मिला है और वह स्वयं एक संस्था हैं। राष्टृीय, अंतरराष्टृीय स्तर पर उनकी अपनी विशिष्ट पहचान भी है। बेहतर तो यह होता कि शह्रयार जी को यह सम्मान उर्दू-हिन्दी के किसी बड़े साहित्यकार से दिलवाया जाता, किन्तु अमिताब बच्चन द्वारा दिया जाना। मैं इसे इतना आपित्तजनक भी नहीं मानता। एक बार एक इंटरव्यू में मैंने हरिवंश राय बच्चन जी से सवाल किया था कि अमिताब लेखन के क्षेत्र में न जाकर अभिनय के क्षेत्र में गए हैं तो आपको कैसा लगता है? तो उनका कहना था कि वह जिस क्षेत्र में गया है, उसका काम मेरे काम से कम महत्वपूर्ण नहीं है।
मुनव्वर राना: बिल्कुल सही है। इसलिए कि शह्रयार साहब को हिन्दुस्तान में आम लोग फिल्म में गीत लिखने की वजह से ही जानते हैं। उनका साहित्य में इतना बड़ा कोई काम नहीं है। मैंने ‘इंडिया टुडे’ के इंटरव्यू में भी यही बात कही है कि देखिए इस बार का ज्ञानपीठ एवार्ड देने वाले ज्ञान की तरफ पीठ करके बैठ गए हैं। यही वजह है कि हाजी अब्दुल सत्तार, बशीर बद्र, शम्सुर्रहमान फ़ारूकी, मलिकाज़ादा मंजूर जैसे लोगों की मौजूदगी में यह एवार्ड फिल्म कलाकार के हाथों देना ही, इस एवार्ड की इनसर्ट है। प्राब्लम यह है कि हमारे मुल्क में लोग सच नहीं बोलते, डरते हैं। उन्हें यह लगता है कि आइंदा हमको भी एवार्ड लेना है। मेरा मामला यह है कि मुझे एवार्ड में कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही और मैं बहुत आसानी से सच बोल देता हूं। आम आदमी शह्रयार को ‘दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए’ की वजह से पहचानता है। तो फिल्म अभिनेता के हाथ से शह्रयार साहब को पुरस्कार दिया गया तो इसका मतलब कि बहुत इमानदारी का काम किया गया है।एवार्डों की अहमीयत ऐसे ही घटती रही तो कल को राखी सावंत के हाथों से भी दिलाया जा सकता है। ‘गुफ्तगू’ के माध्यम से मैं पूरे तौर पर एवार्ड अमिताब बच्चन के हाथों से दिए जाने का और शह्यार को ज्ञानपीठ एवार्ड दिए जाने का भी खंडन करता हूं।
बुद्धिनाथ मिश्र: ज्ञानपीठ पुरस्कार को भी अब अमिताब बच्चन और फिल्मी अभिनेताओं को बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है। यह राष्टृीय शर्म की बात है। ज्ञानपीठ पुरस्कार एक सम्मान था, इसको महादेवी वर्मा जैसी साहित्यकार दिया करती थीं और उस अब यहां तक ले आए हैं। आजकल जिन लोगों को पुरस्कार दिया जा रहा है और जिन लोगों के हाथों से दिलाया जा रहा है,उनका सबका अपना मकसद है। यही कारण है कि साहित्यिक समाज में पुरस्कारों की अहमीतय कम होती जा रही है। ज्ञानपीठ की ही बात क्यों करें,जितनी भी साहित्यिक अकादमियों के पुरस्कार हैं सबकी यही दुर्दशा है। भारत सरकार का सबसे बड़ा साहित्यिक पुरस्कार तो साहित्यिक अकादमी ही देती है। इसे साहितय अकादमी का अध्यक्ष दे देता है, जबकि उसे राष्टृपति या प्रधानमंत्री को देना चाहिए। तो यह पतन गैर सरकारी संस्थानों और सरकारी संस्थानों दोनों में है।
प्रो0 राजेंद्र कुमार: बिल्कुल उचित नहीं है। हमने आपसे पहले भी कहा था कि शह्रयार और अमिताब बच्चन का इतना ही नाता है कि शह्रयार ने फिल्मों के लिए भी गीत लिखे। एक साहित्यकार के रूप में अमिताब बच्चन को क्या समझ है। अमिताब बच्चन ने अपने पिता के अलावा हिन्दी-उदु में कुछ पढ़ा है।फिल्म का ग्लैमर साहित्य में थोपा गया है। शह्रयार साहब को खुद चाहिए था कि वह एतराज़ करते, लेकिन उन्होंने एतराज़ नहीं किया। इस प्रकार से साहित्य के कद को फिल्मी ग्लैमर के कद के सामने नीचा करने की कोशिश की गई है। हां,एक बात और, जिसे हमें सदी का महानायक बता रहे हैं, वह हिमानी नवरत्न तेल भी बेच रहा है। तरह-तरह की कंपनियों के तरह-तरह के उत्पादक भी बेच रहा है। उससे हम शह्रयार को भी जोड़ रहे हैं। यह तो सोचना चाहिए था, यदि फिल्मी कलाकारों से यह सम्मान दिलाना था तो बेहतर होता कि दिलीप कुमार से दिलाया जाता। यह तो मीडिया है, जिसे चाहे महानायक बना दे।

1 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

अमिताभ बच्चन अपने आप मेँ अभिनय के स्कूल हैँ । अभिनय भी एक कला है । अगर एक कलाकार को कला मेँ सर्वश्रेष्ठ आदमी से पूरस्कार दिलवाया जाता है तो लोग इतना हो हल्ला क्योँ मचा रहे हैँ । जहाँ तक विज्ञापनोँ कि बात है तो ये वहि अमिताभ बच्चन हैँ जो कभी पोलियो का भी विज्ञापन करते हुए देखे जा सकते हैँ , मगर पोलियो के विज्ञापन के लिए पैसे नहीँ लेते ।

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