गुरुवार, 13 जनवरी 2022

‘तलब की शायरी में है अदब की सच्ची विरासत’

‘तलब जौनपुरी के सौ शेर’ के विमोचन पर बोले इब्राहीम अश्क



प्रयागराज। तलब जौनपुरी की शायरी में अदब की विरासत सही रूप में दिखाई देती है। तलब जौनपुरी बह्र, ज़बान और बयान, ख़्यालो-फिक्र, मजमूनबंदी और आफ़रीनी के हुनर से बखूबी वाकिफ़ ही नहीं बल्कि उनको बरतने का सलीक़ा भी जानते हैं। इनकी शायरी में देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब रच बस कर उजागर होती दिखाई देती है, जो उर्दू और हिन्दी भाषा और साहित्य को एक दूसरे के करीब लाती है, और देश की एकता और अखंडता को मजबूत बनाने का फ़र्ज़ अदा करने में अहम भूमिका अदा करती है। यह बात कार्यक्रम के मुख्य अतिथि फिल्म गीतकार इब्राहीम अश्क ने 02 जनवरी 2021 को गुफ़्तगू की ओर से अदब घर में ‘तलब जौनपुरी के सौ शेर’ के विमोचन अवसर पर कही।

 गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि तलब जौनपुरी ने पूरी ज़िन्दगी उर्दू शायरी को फरोग देने का काम किया। ग़ज़ल के सिन्फ को समझने के लिए न सिर्फ़ बह्रो, रदीफ़-क़ाफ़िया को आत्मसात किया, बल्कि उर्दू सीखा और इसके लिए उर्दू में डिप्लोमा भी किया, इसलिए उनकी शायरी में परिपक्वता है। उर्दू आलोचक प्रो. अली अहमद फ़ातमी ने कहा कि नई नस्ल की शायरी में ज़बान का शउर बहुत कम हो गया है, लेकिन तलब साहब की शायरी में ज़बार का शउर बहुत अच्छे ढंग से प्रदर्शित होता दिखाई देता है। इनकी शायरी में आत्म सम्मान और देशभक्ति की भावना जगह-जगह दिखाई देती है, जिसकी वजह से वे आज के दौर के एक महत्वपूर्ण शायर हैं।

विशिष्ट अतिथि मोहम्मद नौशाद खान ने कहा कि आज के दौर में उर्दू शायरी करना बड़ा काम है, क्योंकि भाषा को भी मज़हब के खानों में बांटने प्रयास किया जा रहा है, ऐसे में श्रीराम मिश्र उर्फ़ तलब जौनपुरी की उर्दू शायरी बेहद ख़ास है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे रविनंदन सिंह ने आज के दौर में तलब जौनपुरी शायरी अलग से रेखांकित किए जाने लायक है, इनकी शायरी में समाज के प्रति फिक्र और मार्गदर्शन स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। कार्यक्रम का संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया।

 दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। इश्क़ सुल्तानपुरी, अनिल मानव, शैलेंद्र जय, नरेश महरानी, अना इलाहाबादी, राजीव नसीब, नीना मोहन श्रीवास्तव, सौरभ श्रीवास्तव, महक जौनपुरी, योगेंद्र कुमार मिश्र, फ़रमूद इलाहाबादी, रचना सक्सेना, संजय सक्सेना, विजय लक्ष्मी विभा, नीलिमा मिश्रा, प्रदीप चित्रांश, केपी गिरी, वीरेंद्र तिवारी, केशव सक्सेना, एसपी श्रीवास्तव, असद ग़ाज़ीपुरी, सेलाल इलाहाबादी, प्रकाश सिंह अश्क, पीयूष मिश्र पीयूष, परवेज अख़्तर, परवेज अख़्तर, फ़ैज़ इलाहाबादी, जीशान फतेहपुरी, असलम निजामी, शाहिद इलाहाबादी, शरीफ़ इलाहाबादी आदि ने कलाम पेश किया।



2 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-01-2022) को चर्चा मंच     "मकर संक्रान्ति-विविधताओं में एकता"    (चर्चा अंक 4310)  (चर्चा अंक-4307)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

Alaknanda Singh ने कहा…

उर्दू शायरी पर बहुत दिनों बाद किसी कार्यक्रम के बारे में पता चला...बहुत अच्‍छा लगा

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