मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

कुशल राजनीतिज्ञ और साहित्यकार हैं पं. केशरीनाथ

                               

पं. केशरीनाथ त्रिपाठी 


                                                                      -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

                                       

पं. केशरीनाथ त्रिपाठी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे भारत की राजनीति और देश के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में विख़्यात अधिवक्ता, वरिष्ठ राजनीतिज्ञ, संवेदनशील कवि, पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल, बिहार, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा प्रदेश के पूर्व अतिरिक्त प्रभारी राज्यपाल, उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री, विधान सभा के तीन बार निर्विरोध निर्वाचित अध्यक्ष और कुल मिलाकर छह बार विधान सभा के सदस्य रहे साथ ही उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। आपका जन्म 10 नवंबर 1934 को मोहत्सिमगंज नामक मुहल्ले में हुआ था। इनके पिता स्वर्गीय हरिशचंद्र त्रिपाठी हाईकोर्ट में कार्यरत थे। तीन भाई और चार बहनों में आप सबसे छोटे हैं। श्री त्रिपाठी का विवाह 1958 में वाराणसी के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. सत्य नारायण मिश्र की पुत्री सुधा से हुआ, पत्नी का एक फरवरी 2016 को निधन हो गया। आपकी दो पुत्रियां और एक पुत्र नीरज त्रिपाठी हैं। पुत्र नीरज इलाहाबाद हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। पुत्री निधि ओझा नई दिल्ली में आर्म्ड फोसर्स हेडक्वार्टर्स सर्विस में उच्च अधिकारी हैं। दूसरी पुत्री नमिता त्रिपाठी प्रयागराज में ही रहती हैं।

 पं. केशरीनाथ त्रिपाठी की कक्षा एक तक प्रारंभिक शिक्षा सम्मेलन मार्ग स्थित दो कमरों में संचालित सेन्टल हिन्दू स्कूल में हुई। कक्षा दो से आठ तक की पढ़ाई जीरो रोड स्थित सरयूपारीण स्कूल से हुई। 1949 में अग्रवाल अग्रवाल इंटर कॉलेज से हाईस्कूल और 1951 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। 1953 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और 1955 में एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। 31 जुलाई 1956 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में पंजीकरण के बाद वकालत शुरू किया। वर्ष 1987-88 और 1988-89 में इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1989 में इन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता की मान्यता प्रदान की गई।

 आपकी विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में रुचि रही है। छात्र जीवन में आप ‘डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन’ के अध्यक्ष रहे। 1946-47 में आरएसएस के स्वयंसेवक बने, जनसंध की विभिन्न गतिविधियों में सक्रिय रहे। 18 जुलाई 2004 से 2007 तक भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष रहे। आप 24 जुलाई 2014 से 29 जुलाई 2019 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। इसके अतिरिक्त इन्होंने 27 नवंबर 2014 से 15 अगस्त 2015 तक और 22 जून 2017 से 03 अक्तूबर 2017 तक बिहार, 06 जनवरी 2015 से 19 मई 2015 तक मेघालय, 04 अप्रैल 2015 से 25 मई 2015 तक मिजोरम और 30 सितंबर 2015 से 31 अक्तूबर 2015 तक तथा 15 जून 2018 से 16 जुलाई 2018 तक त्रिपुरा के अतिरिक्त प्रभार के राज्यपाल रहे।

 केशरी नाथ त्रिपाठी उत्तर प्रदेष विधान सभा के सदस्य के रूप में कुल मिलाकर छह बार निर्वाचित हुए। जनता पार्टी में भारतीय जनसंध के विलय के बाद 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर आप प्रथम बार इलाहाबाद के झूंसी विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और राम नरेश यादव मंत्रिमंडल में संस्थागत वित्त एवं बिक्रीकर मंत्री के रूप में 04 जुलाई 1977 से 11 फरवरी 1979 तक प्रदेश की सेवा की। 1977 में झूंसी विधानसभा क्षेत्र और उसके बाद 1989, 1991, 1993, 1996 और 2002 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर इलाहाबाद शहर दक्षिणी विधान सभा क्षेत्र से आप लगातार विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। आप 30 जुलाई 1991 को उत्तर प्रदेश की 11वीं विधानसभा के सभाध्यक्ष चुने गए थे और इस पद पर 15 दिसंबर 1993 तक रहे। 23 मार्च 1997 को दूसरी बार और 14 मई 2002 को तीसरी बार प्रदेश की 14वीं विधानसभा के भी अध्यक्ष निर्विरोध रूप से निर्वाचित हुए। 19 मई 2004 को इस पद से त्यागपत्र दे दिया। जुलाई 1991 से दिसंबर 1993 तक आप कामनवेल्थ पार्लियामेंटरी एसोसिएशन की उत्तर प्रदेश शाखा क अध्यक्ष रहे तथा मार्च 1997 से 19 मई 2004 तक इस पद पर रहे। श्री त्रिपाठी के प्रयास से ही इस एसोसिएशन की उत्तर प्रदेश शाखा द्वारा प्रतिवर्ष विदेश में विधायकों के भ्रमण का कार्यक्रम 1998 से शुरू हुआ जो कुछ वर्ष पूर्व तक नियमित रूप से चला।

 केशरी नाथ त्रिपाठी हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में हिन्दी के प्रबल समर्थक और एक संवेदनशील कवि के रूप में विख्यात हैं। इनके हिन्दी में प्रकाशित काव्य संग्रह ‘मनोनुकृति’, ‘आयुपंख’, ‘चिरन्तन’, ‘उन्मुक्त’, ‘मौन और शून्य’ और ‘निर्मल दोहे’ हैं। उर्दू में ‘ख़्यालों का सफ़र’, ‘ज़ख़्मों पर शबाब’ और अंग्रेज़ी में ‘आई एम द लव’ और ‘फ्राम नोव्हेयर’ नामक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनकी रचनाओं का अनुवाद बांग्ला, कश्मीरी, राजस्थानी, उडिया, संस्कृत, जापानी आदि भाषाओं में हुआ है। साहिल्य सृजन के लिए इन्हें विभिन्न सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। 

(गुफ़्तगू के जुलाई-सितंबर 2021 अंक में प्रकाशित )



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