शुक्रवार, 28 जून 2013

गुफ्तगू के फरमूद इलाहाबादी अंक का विमोचन और मुशायरा


फरमूद की शायरी मौजूदा दौर की ज़रूरत-काज़मी 
इलाहाबाद।फरमूद इलाहाबादी की शायरी मौजूदा दौर की ज़रूरत है, क्योंकि हास्य-व्यंग्य के नाम पर लतीफेबाजी और अश्लीलता परोसी जा रही है। ऐसे में फरमूद इलाहाबादी ने हास्य-व्यंग्य के असली मानकों पर शायरी की है और अपनी ऐसी ही शायरी से पूरे देश में पहचान बना लिया है। हमें उन्हें मुबारकाबाद देनी चाहिए और उम्मीद की जानी चाहिए इनसे और दूसरे हास्य-व्यंग्य के शायर भी प्रेरणा लेंगे। यह बात पूर्व महाधिवक्ता एसएसए काज़मी ने गुफ्तगू के फरमूद इलाहाबादी अंक के विमोचन अवसर पर कही। 22 june  की शाम महात्मा गांधी अंतरराष्टीय हिन्दी विश्वविद्यालय में पत्रिका का विमोचन किया गया। जिसकी अध्यक्षता श्री काजमी ने की जबकि मुख्य अतिथि इलाहाबाद विकास प्राधिकरण के सचिव अमरनाथ उपाध्याय थे। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। अमरनाथ उपाध्याय ने कहा कि फरमूद की शायरी समाज और देश में फैली विसंगतियों पर करारा प्रहार करती और हमें विसंगतियों के खिलाफ उठ खड़े होने की प्रेरणा जगाती है। हास्य-व्यंग्य ही ऐसा माध्यम है जिसके जरिये अपनी बात चुटीले ठंग  से कही जा सकती है। उन्होंने कहा कि गुफ्तगू की संपादकीय टीम ने फरमूद इलाहाबादी का परिशिष्ट प्रकाशित करते सराहनीय कार्य किया, ऐसे शायरों को मंजरेआम पर लाना साहित्य की बड़ी सेवा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य और उत्कृष्ठ लोगों के परिशिष्ट सामने आएंगे। वरिष्ठ शायर बुद्धिसेन शर्मा ने कहा कि इलाहाबाद से जब हास्य-व्यंग्य शायरी की बात होती है तो अकबर इलाहाबादी और कैलाश गौतम का नाम सबसे उपर आता है।इन दोनों रचनाकारों की गिनती देश के बड़े कवियों-शायरों में होती है। फरमूद इलाहाबादी ने भी इनके नक्शेकदम पर चलना शुरू कर दिया है, मुशायरों की दुनिया में काफी नाम कमा रहे हैं, आने वाला दिन इनके लिए अच्छे साबित होंगे। हमें ऐसी शायरी की सराहना करते हुए हास्य-व्यंग्य के नाम पर लतीफा सुनाने वालों का विरोध करना चाहिए। हिन्दुस्तानी एकेडेमी के कोषाध्यक्ष रविनंदन सिंह ने कहा कि फरमूद इलाहाबादी की शायरी की तारीफ करते हुए यह भी जोड़ा कि गुफ्तगू टीम ने ऐसे शायरों का परिशिष्ट प्रकाशित करके सराहनीय कार्य किया है। आज के दौर में साहित्यिक पत्रिका निकालना एक बड़ा काम है, लेकिन टीम गुफ्तगू ने इस कार्य को बखूबी अंजाम दिया है। इलाहाबाद और इसके साहित्यिक एक और इजाफा है। हमेशा से ही इलाहाबाद से बड़ा कार्य होता रहा है। फरमूद इलाहाबादी ने अपने वक्व्य में कहा कि गुफ्तगू बानी इम्तियाज़ अहमद गा़ज़ी ने मेरे उपर परिशिष्ट करके मेरी काफी हौसलाअफज़ाई की है, मैं इनका बेहद शुक्रगुजार हूं। दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता बुद्धिसेन शर्मा ने की। मुनेश्वर मिश्र, शकील गाजीपुरी, आसिफ गाजीपुरी, सलाह गाजीपुरी, शादमा जैदी ‘शाद’ शब्दिता संजू, गुलरेज इलाहाबादी, राधेश्याम भारती, अनुराग अनुभव, रोहित त्रिपाठी, सफदर काजमी, विजय विशाल, नंदल हितैषी, शाहिद अली शाहिद,खुर्शीद हसन आदि लोग मौजूद थे। अंत में अजय कुमार ने सबके प्रति आभार प्रकट किया।



सबसे पहले युवा कवि अजय कुमार ने शेर पेश किया-
भत्ता तो अब नहीं मिलेगा उस पर भाग्य भी फूटा,
जंच कराये पता चला कि पैर का पंजा टूटा।


शब्दिता संजू-
बातों में तकल्लुफ ये आंखों में हया है,
हसरत का मचलना ये तुझे कुछ तो हुआ है।

वीनस केसरी के अश्आर काफी सराहे गये-
                                                   ऐ दोस्त खुशतरीन वो मंज़र कहां गए,
हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहां गए।

राज सुल्तानपुरी-
                                                    ये इश्क़ का चराग जलाकर तो देखिए
                                                    नफ़रत की तीरगी को मिटाकर तो देखिए
                                                     हर ओर बिखर जायेगी चाहत की चांदनी
गंगा में मुहब्बत की नहाकर तो देखिए।


शायरा सबा ख़ान ने बेहतरीन कलाम पेश किया-
                                                    दीया हूं मैं कोई सूरज नहीं जो बुझ जाउं,
शिकस्त खाती है आंधी मुझे बुझाने में।


 आसिफ़ ग़ाज़ीपुरी-
                                                  रात शबनम ने कहा फूल से रोते-रोते,
तू भी मिट जाएगा कल धूप के होते-होते।


शादमा ज़ैदी ‘शाद’-
                                                    खार चुभते हैं तो हर गुल केा सज़ा मिलती है,
                                                    बगवां सोच ले इंसाफ तेरा ठीक नहीं
                                                    मेरे होठों पे लगी शाद खामोशी की मोहर,
अजऱ् मैं कैसे करूं ठीक है क्या ठीक नहीं


सलाह ग़ाज़ीपुरी-
                                                    भारत महान देश है इसका नहीं जवाब,
मिट्टी यहां की आज भी सोना उगाए है।



शरीफ़ इलाहाबादी ने तरंनुम में ग़ज़ल सुनाकर महफिल में जोश पैदा कर दिया-
                                                     ऐ शरीफ़ अपने ग़म का ग़म न करो,
उनको देखो जो बेसहारे हैं।


युवा कवयित्री गीतिका श्रीवास्तव ने अच्छी कविता प्रस्तुत की-
                                                   ओ री सजनी सज तू, तोरे साजन आज आए,
ओ री सजनी नच तू, अंगना में सुख छाए।


इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी-
                                            यू तो कहते हैं हम तुझे सबकुछ, बस कभी अजनबी नहीं कहते,
                                            सिर्फ़ महबूब की खुशामद को, दोस्तों शायरी नहीं कहते।

 फ़रमूद इलाहाबादी-
भूल पाया नहीं अपनों से मिली घात अभी
चैन लेने दे ज़रा गर्दिशे हालात अभी
मान जाओ न करो काई खुराफ़ात अभी
यार समझा करो पहली है मुलाकात अभी।


 अजीत शर्मा ‘आकाश’ ने की ग़ज़ल काबिलेगौर थी-
                                                         वीरानी है, सन्नाटा है, क्यों भाई,
क्या कोई सपना टूटा है, क्यों भाई


सौरभ पांडेय ने कहा-
                                                       संयम त्यागा स्वार्थवश, अब दीखे लाचार
                                                       उग्र हुई चेतावनी, बूझ नियति व्यवहार
                                                       तू मुझमें बहती रही, लिए धरा-नभ रंग,
मैं उन्मादी मूढ़वत, रहा ढंढता संग।


अध्यक्षता कर रहे बुद्धिसेन शर्मा ने कहा-
                                                    दर्द जैसा भी हो, पलभर में हवा होता है
याद उसे कीजिए, फिर देखिए क्या होता है।




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