शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

राहत इन्दौरी का इंटरव्यू

हर मुशायरे की अपनी कहानी होती है : राहत इन्दौरी
राहत इन्दौरी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं। फ़िल्मी दुनिया से लेकर मुशायरों तक और मुशायरों से लेकर अदब तक में आपका नाम बड़ी इज्ज़त से लिया जाता है। अहमद आब्दी ने उनसे बात की। सवाल: राहत साहब शाएरी आपके लिए क्या है ?
जवाब: शायरी दिली ज़ज्बात का अहसाह है, अहसाह के इज़हार का नाम शायरी है।
सवाल: एक अच्छा शायर होने के लिए क्या ज़रूरी है?
जवाब: मुताला, मुशाहिदा और महसूस करने की कुवत। शायरी ख्याल की गहराइयों से निकलती है। इसके लिए सलीका होना भी ज़रूरी है।
सवाल: आपकी शायरी अन्य शायरों से कितनी अलग है?
जवाब: देखिये, हर शायर का अपना मिजाज़ होता है, शेर कहने का अपना तरीका होता है। मैं भी कोशिश करता हुईं कि मेरी शायरी दूसरों से अलग हो।
सवाल: फिकरो-ख़याल के एतबार से आप किन शायरों प्रभावित हैं?
जवाब: उर्दू अदब में बहुत से काबिलेकद्र शायर गुज़रे हैं, लेकिन ग़ालिब पसंदीदा शाएर हैं। इसके अलावा फ़िराक गोरखपुरी ने भी मुझे काफी मुताअसीरi किया है। मीर से लेकर आजतक कई बेहतरीन शायर रहे हैं लेकिन मेरी उनसे ज्यादा नजदीकी नहीं हो पायी।
सवाल : इकबाल ने एक नज़्म में कहा है जब जिस्म के किसी हिस्से में दर्द होता है तो आँखें रोटी हैं। हाल-फिलहाल में कौन से मसायल और वाकये हुए जिनपर आपने शिद्दत से शायरी की ?
जवाब: हर जिंदादिल शायर अपने आसपास के माहौल से देशकाल से प्रभावित होता है। मैं भी जब अपने आसपास - ज्यादतियां और नफरत देखता हूँ तो मेरे अन्दर मौजोद शायर उनपर गौर कर शेर कहता है। जिन हालात से मेरा किरदार गुजारता है । मैं उसपर फिक्रो-ख़याल करके कलम चलाता हूँ और ज़ज्बात को अलफ़ाज़ का जामा पहनाता हूँ। दुनिया ने ताज़ुर्बातो-हवादिस कि शक्ल में , जो कुछ मुझे दिया लौटा रहा हूँ मैं , साहिर लुधियानवी का यह शेर है और यही आपके सवाल का जवाब भी।
सवाल: आपने तक़रीबन तीस साल पहले पाकिस्तान के अक मुशायरे में धूम मचा दी थी। उसके बाद आप सुर्ख़ियों में आ गए, कुछ उस मुशायरे के बारे में बताये?
जवाब: हंसते हुए, हर मुशायरे की अपनी कहानी होती है। मैं चालीस साल से मुशायरा पढ़ रहा हूँ। मैं शेर पढ़ता हूँ फिर भूल जाता हुईं। आप जिस मुशायरे की बात कर रहे हैं वो करीब तीस साल पहले की बात है। मैंने कराची के एक मुशायरे में शेर पढ़ा था जिसे वहाँ के लोंगों ने काफी पसंद किया था। हिन्दुस्तान के बंटवारे के बाद जो हिजरत करके पाकिस्तान गए थे उनके दुःख ताज़ा थे। उस वक्त काराची में पढ़े मुशायरे के एक शेर में उन्हें अपने ज़ज्बात नज़र आये। शेर यूँ था, अब की जो फैसला होगा यहीं पर होगा, अब हमसे दूसरी हिजरत नहीं होने वाली, । ज़ाहिर है इस शेर में काराची में हिन्दुस्तान से जाकर बसे लोंगों को अपनी तकलीफें और दुःख नज़र आये। एक दूसरे मुल्क के शायर की जुबां अपनी आप बीती और तजुर्बात सुनकर लोंगों ने इसे खूब सराहा। मुझे उसवक्त का मंज़र याद आता है। मेरे इस शेर को सुनने के बाद करीब २५-३० हज़ार लोग खड़ें होकर तालियाँ बजा रहे थे। लेकिन मैं इसे कोई कारनामा नहीं मानता हूँ, यह भी मुशायरे का एक हिस्सा था।
सवाल : आप एक पेंटर भी हैं, आपकी पेंटिंग के फन का आपकी शायरी पर कितना असर पड़ता है? आपके अंदर मौजूद पेंटर और शायर में क्या रिश्ता है ?
जवाब : मेरे अंदर मौजूद पेंटर और शायर में गहरा रिश्ता है। मैं बुनियादी तौर पर पेंटर ही हूँ। जिंदगी काफी लंबा वक्त मैंने पेंटिंग में गुजारा है। मेरे अंदर शाएर तो यकायक पनपा। वैसे मैं इन दोदों माध्यमों में फर्क नहीं समझता। पेंटिंग कैनवस पर होती है और शायरी कागज़ पर। पेंटिंग में आप कैनवस पर रंग भरते हैं और शायरी में रोशनाई से लफ्ज़ लिखते हैं।
सवाल : अपने जिंदगी के शुरूआती दौर में बहुत संघर्ष किया है। जाती तजुर्बात ने आपकी शायरी पर क्या असर डाला ?
सवाल : हाँ , यह बात सही है कि मेरी जिंदगी में मेरे निजी अनुभवों को जगह मिली । मैंने जो जद्दोजहद किया उसकी परछाइयाँ मेरी शायरी में नज़र आती है। मेरे तजुर्बात शायरी में मौजूद हैं लेकिन वे सिर्फ इशारे कि तरह हैं। इन्हें मैंने कभी मातम कि शक्ल नहीं अख्तियार करने दिया।
सवाल : क्या वज़ह है कि हिंदी गीतकारों कि तुलना में उर्दू शायरों ने फिल्मों में ज्यादा कामयाबी हासिल की है ?
जवाब : दरअसल , उर्दू शायरों को फिल्मों में कामयाबी इसलिए मिली क्योंकि उर्दू में शीरी है। उर्दू में कुछ मिठास ऐसी है कि वो आम लोगों को ज्यादा पसंद आती है । आप अगर गौर करें तो पायेंगे कि पाकीजा, रजिया सुल्ताना और उमराव जान उर्दू फ़िल्में हैं। इन फिल्मों में गानों और सम्बादों में सिर्फ उर्दू ही नज़र आती है लेकिन इन्हें हिंदी फिल्मों कि श्रेणी में रखा जाता है। उर्दू ज़बान हिंदी भाषा में घुलमिल गयी है ।


सवाल: इस वक्त हिंदी फिल्मों फिल्मों में जो गाने लिखे जा रहे हैं, उनमे ज्यादातर गैर्मेयारी हैं। इसकी वज़ह क्या है?


जवाब: हाँ, ये बात सही है कि हिंदी फिल्मों में इस समय जो गाने लिखे जा रहे हैं उनमे गिरावट आई है। इसकी एक वज़ह बाज़ार है। जो बिक रहा है उसको ही लोग आँखों पर बिठा रहे हैं । ऐसे में क्वालिटी पर असर पडना लागिमी है। मैंने भी कई फिल्मों में गाने लिखे और वे गाने खूब हिटभी हुए।लेकिन मैं वहाँ के हालात में ज्यादा दिन नहीं टिक सका। समझ लीजिए मैं वहाँ से भाग के आया हूँ। फिल्मों में जिस तरह के गाने लिखवाने कि अब मुझसे बात कि जाती है वो मुझे मंज़ूर नहीं.


सवाल: आजकल लोगों कि रीडिंग हैबिट कम हो गयी है। दृश्य मीडिया का हर तरफ बोलबाला है। ज़ाहिर है इससे अदब का नुक्सान हो रहा है। आप इसे कैसे देखते हैं?


जवाब: इस वक्त विजुअल मीडिया हाबी है ये बात सही है लेकिन अखबारों-किताबों कि अहमियत हमेशा रही है और आगे भी रहेगी।


सवाल: आज बाजार हाबी हो चुका है, उपभोक्तावादी संस्कृति बढती जा रही है। इस सूरतेहाल में अदब के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?


जवाब: मेरे हिसाब से साहित्यकार को हमेशा ज्मानदार होना चाहिए। ये आपने ठीक कहा कि इस वक्त बाज़ार हावी है।जहाँ-जहाँ बाजार हावी होता है , मेयार कम होता है।अच्छा साहित्य पहले भी लिखा जा रहा था, अब भी लिखा जा रहा है। सारा अदब बाज़ार के हवाले नहीं हुआ है।अगर कोई शायर सोचता है कि उसकी शायरी बाज़ार में धूम मचा देगी तो ऐस्स सोचना गलत होगा। ईमानदार साहित्य कि हमेशा क़द्र होती है।


सवाल: मुशायेरों के स्तर में गिरावट आई है, उसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं?


जवाब: मुशायरे के स्तर में गिरावट की बड़ी वजह बाज़ार का हावी होना है। वहाँ पर भी क्वालिटी से समझौता हो रहा है। मुशायरों को तीसरे दर्जे के शायरों ने नुक्सान पहुंचाया है। गैर ज़िम्मेदार शायर मुशायरों को चौपट कर देते हैं। शायरी बिना मेयार और सलीके के नहीं होती।मुशायरों में नाचने और गाने वालों का काम नहीं है कि किसी के भी हाथ में माइक पकड़ा दिया जाए. मुशायरों में अच्छी शायरी पर जोर होना चाहिए.


सवाल: इस वक्त उर्दू ज़बान बदहाली के दौर से गुज़र रही है , आप इसके पीछे क्या वजह देखते है?


जवाब: इल्जाम लगाना बेहत आसान है, लेकिन देखा जाए तो उर्दू कि खस्ता हालत के लिए खुद उर्दू वाले ही जिम्मेदार हैं। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूँ, जिनके घर की रोज़ी-रोटी उर्दू से चलती है लेकिन उनके बच्चे अंगरेजी मीडियम स्कूलों में पढते हैं। अंगरेजी मीडियम स्कूलों में जाना गलत नहीं है लेकिन खराब बात ये है कि उर्दू से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते। वहीँ मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूँ कि उर्दू पर उतना ख़तरा नहीं जितना हम महसूस कर रहे हैं।गुजिश्ता साठ सालों में हिन्दुस्तान में उर्दू कि सूरत काफी बदली है।आज हमारे मुल्क में जो उर्दू बोली जा रही है, उसमे कहीं महाराष्ट्र कहीं बंगाल तो कहीं गुजरात झाँक रहा है,देश में उर्दू भाषा का बोलबाला है, दृश्य मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक में। उर्दू को अगर ख़तरा है तो सिर्फ़ स्क्रिप्त के ऊपर.भाषाओं का मुक़द्दर बनना और बिगाडना रहा है.तमाम बैटन के मद्देनज़र हमारा फ़र्ज़ है कि हम उर्दू कि तरक्की के लिया काम करें.


सवाल:साहित्य के लेखन में पुरस्कारों कि कि क्या भूमिका है?


जवाब:मेरे ख़याल से जो सरकारी-दरबारी किस्म के अवार्ड मिलते हैं उनमे जुगाड़ ज्यादा लगाया जाता है। पुरस्कारों को हासिल करना साहित्यकार के लिए बड़ी बात नहीं है। अवार्ड से अदीब के कद पर ज्यादा असर नहीं पड़ता। मुझे नहीं लगता कि रवीन्द्र नाथ टैगोर को नोबले अवार्ड, फ़िराक गोरखपुरी को ज्ञानपीठ नहीं मिलता तो वे बड़े शायर न होते।


सवाल: वर्तमान समाज के निर्मार्ण में साहित्य कि क्या भूमिका है?


जवाब: ऐसे सवालों पर मैं अक्सर उलझ जाता हूँ,तवक्को भी नहीं करनी चाहिए।देखिये शायर कोई हकीम नहीं होता,कोई लीडर नहीं होता।शायर से सिर्फ तवक्को करें कि वो सिर्फ शेर कहे। शायरी समाज में रहकर होती है लेकिन यह उम्मीद करना गलत होगा कि वो समाज में हकीम या नुमाइंदे के तौर पर काम करे।देखिये सिर्फ लफ़्ज़ों से शेर नहीं बनता।ख्यालों कि गहराइयों से शेर बनता है. गो हाथ में जुम्बिस नहीं आँखों में तो दम है,रहने दो अभी सागरों मीना मेरे आगे, इस शेर में ग़ालिब ने किसी कि तस्वीर नहीं खिची, ये शेर उजड़ी हुई दिल्ली का मर्सिया है.शायरी समाजी और सियासी मुद्दों पर हो सकती है लेकिन शायर से ये उम्मीद करना सही नहीं है कि वो कोई मजहबी पैगाम देदे या कोई इलाज़ कर दे.


सवाल: गज़ल को उर्दू-हिंदी में बांटना तर्कसंगत है?


जवाब:गज़ल सिर्फ गज़ल होती है।इसे हिंदी और उर्दू में बांटना गलत होगा।आज उर्दू के अलावा गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी आदि भाषाओं में ग़ज़लें कही जा रही हैं।पाकिस्तान मेरे शायर दोस्त दोहा लिखते हैं।लेकिन वहाँ दोहा सिर्फ दोहा है, न कि पंजाबी या उर्दू दोहा।


सवाल: अप्प सोशल नेटवोर्किंग फेसबुक और ट्विटर पर भी हैं।इससे लोगों को आपतक और आपको लोगों तक पहुँचने तक कितनी मदद मिलती है?


जवाब: मैं पूरी तरह सोशल नेटवोर्किंग साइट्स पर डिपेंड नहीं करता। हालांकि इससे अपनी बात और लोगों के राय,सलाह और नज़रिए के बारे में पता चलता रहता है।मैं बहुत ज्यादा कंप्यूटर फ्रेंडली नहीं हूँ लेकिन कभी-कभी इसके लिए समय निकाल लेता हूँ.


सवाल: नए रचनाकारों के लिए आपका क्या सन्देश है?


जवाब: बहुत अच्छे नए रचनाकार साहित्य जगत में आ रहे हैं। युवा रचनाकारों में कई काबिलेगौर हिनहिन।हमें उनकी हौसलाफजाई करनी चाहिए। उन्हें पहचानने कि ज़रूरत है। नए रचनाकारों को इमानदारी से काम करना चाहिए। मेहनत और लगन से काम करेंगे तो उन्हें कामयाबी मिलेगी।


गुफ्तगू के जनवरी-मार्च २०११ अंक में प्रकाशित



7 टिप्पणियाँ:

वीनस केसरी ने कहा…

वाह,

पोस्ट कर ही दी

बढ़िया

ज़बरदस्त इंटरव्यू रहा
पढवाने के लिए धन्यवाद

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई गाजी साहब |साक्षात्कार बढ़िया है बधाई |

सुनील गज्जाणी ने कहा…

नमस्कार !
साक्षात्कार पढ़ अच्छा लगा !
साधुवाद

Unknown ने कहा…

Laazabaab....

अनूप शुक्ल ने कहा…

अच्छा इंटरव्यू!

राजेंद्र अवस्थी. ने कहा…

साक्षात्कार बहुत उम्दा रहा...लेकिन एक बात से मै मुतास्सिर नही हूँ कि, तीसरे दर्जे के शायर मुशायरों को और शायरी को नुकसान पँहुचा रहे हैं.....अरे भाई नये लोग लिखेंगे नहीं वो अपना हुनर दिखायेंगे नहीं तो दरयफ्त कैसे होगा कि ,कौन क़ाबिल है और कौन नाक़ाबिल ..
जज़्बात हर शै ज़ाहिर करना चाहती है,तो हम किसी को रोकने की बात कैसे कर सकते है?
अज़ीम शायर से गुफ्तगू क़ाबिले तारीफ है ।

arbind ankur ने कहा…

wah, Rahat indori ka interview bahut badhiya laga. motbar shair, behtar insan aur Rahat sb ke padhne ka andaz,wah kya kahna.urdu adab ki badi hasti se ye guftagu kabile tarif hai

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