शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

इम्तियाज़ अहमद गाज़ी की दो ग़ज़लें



ज़ख्म देगा न बददुआ देगा।
गम मेरा तुझको आसरा देगा।

मेरी आँखों में वो समुंदर है,
जो तेरी प्यास को बुझा देगा।
बावफा होना जुर्म बनकर के,
मुझको भी बेवफा बना देगा।

शाम को तेरा छत पे आ जाना,
शहर में हादसा करा देगा।

ऐ सितारों गुमान मत करना,
एक सूरज तुझे बुझा देगा।

मिन्नतें बार-बार मत करना,
अपनी नज़रों से वो गिरा देगा।

गाज़ी इंसानियत को पहचानो,
कोई अपना तुझे दगा देगा।
(२)
दोस्त कहके बुलाया गया।
और खंज़र चलाया गया।
फूल की जिंदगी के लिए,
मुझको कांटा बनाया गया।
चाँद की चांदनी के लिए,
सूर्य तक को तपाया गया।

खा के वीरों की कसमें सदा,
मुल्क को बरगलाया गया।

उसकी मस्ती भरी चल को,
मोरनी से मिलाया गया।

सोखिये हुस्न को हर जगह
शायरी से सजाया गया।
जीत ली जंग जब कौम की,
मुझको गाज़ी बताया गया.

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