शनिवार, 13 दिसंबर 2025

05 सितंबर 1920 से छप रहा ‘आज’

शिवप्रसाद गुप्त हैं इस दैनिक अख़बार के संस्थापक

यूपी, बिहार और झारखंड से भी निकलता है यह

                                                                              - डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

 देश में छपने वाले अख़बारों में ‘आज’ का प्रमुख स्थान रहा है। आज़ादी से पहले निकलने वाले अख़बारों का मुख्य उद्देश्य देश को आज़ाद कराना रहा है। इसके लिए अख़बार के मालिकों और संपादकों को अंग्रेज़ों के उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ा था। कुछ मालिकों और संपादकों को तो अंग्रेज़ों ने फांसी की सजा तक दे दी थी। इसके बावजूद अख़बारों ने अपना काम बखूबी किया था। इन्हीं उद्देश्यों और ऐसे ही माहौल में ‘आज’ अख़बार की शुरूआत करने वाले बाबू शिवप्रसाद गुप्त जी ने 30 अप्रैल 1914 से कई देशों का दौरा शुरू किया था। इस दौरान उन्हें कई अनुभव हुए। इनमें एक ख़ास अनुभव अख़बार को लेकर हुआ। उन्हें इंग्लैंड में ‘लन्दन टाइम्स’ नामक अख़़बार देखने को मिला। इस अख़बार से वे काफी प्रभावित हुए। तब उन्हें लगा कि अपने देश में हिन्दी में भी ऐसा ही एक प्रभावशाली अख़बार प्रकाशित किया जाना चाहिए। फिर जब वे भारत लौटे तो उन्होंने ‘आज’ नामक अख़बार का शुभारंभ 05 सितंबर 1920 को वाराणसी से किया, तब इसी दिन जन्माष्टमी भी थी। लोकमान्य तिलक जी से परामर्श करने के बाद इसका शुभारंभ किया गया था। 

वाराणसी के कबीरचौरा में ‘आज’ अख़बार का कार्यालय

बाबू शिवप्रसाद गुप्त जी का मानना था कि ‘‘हमारा अख़बार दैनिक है। रोजाना इसका प्रकाशन होगा। दुनिया भर की नई-नई ख़बरें इसमें छपेंगी। रोजाना दुनिया की बदलती हुई दशा में नये-नये विचार उपस्थित करने की ज़रूरत होगी। हमें रोज-रोज अपना मत तत्काल स्थिर करके बड़ी-छोटी सब प्रकार की समस्याओं को समयानुसार हल करना होगा। जिस क्षण जैसी आवश्यकता पड़ेगी, उसी की पूर्ति का उपाय सोचना और प्रचार करना होगा। इसलिए हम एक ही रोज की जिम्मेदारी प्रत्येक अंक में ले सकते हैं। वह जिम्मेदारी प्रत्येक अंक में ले सकते हैं। वह जिम्मेदारी प्रत्येक दिन केवल आज की होगी, इस कारण इस पत्र का नाम ‘आज’ है।’’  पू. बाबूराव विष्णु पराडक़र इस अख़बार के पहले संपादक बने। पराडकर जी का कहना था कि हमारा मक़सद अपने देश के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्रता का उपार्जन करना होगा। हम हर बात में स्वतंत्र होना चाहते हैं और यही हमारा लक्ष्य है।

बाबू शिवप्रसाद गुप्त

‘आज’ के संपादकीय में छपा-‘‘संसार इस समय बेचैन है। चारों ओर हलचल है। सब नर-नारी परेशान हैं, क्यों ? राष्ट्रनीतिज्ञों को इसका कारण विचार कर निकालना चाहिए। जिधर देखिये उसी ओर अशान्ति विराज रही है। सब लोग एक दूसरे से अप्रसन्न हैं। अपनी-अपनी श्रेणी को संघटित कर सब लोग दूसरी श्रेणियों से लडऩे के लिए तैयार हैं। इस हलचल में केवल एक सिद्धान्त है-जिसके पास अधिकार है, उससे अधिकार ले लेना चाहिए। जिसके पास अधिकार नहीं है, वह दूसरों को अधिकार प्राप्त देखकर जलता है और उसके पास से अधिकार हटवाना चाहता है। अनधिकारी अधिकारी से द्वेष करता है और अधिकारी अनधिकारियों की संख्या देख उनसे डरता है, उनकी संघटित शक्ति घटाना चाहता है और उनके प्रति रोष दिखाकर उन्हें अधीन अवस्था में ही पड़े रहने का आदेश देता है। राष्ट्र-राष्ट्र, वर्ग-वर्ग, वर्ण-वर्ण सबके झगड़े का मूल मंत्र यही प्रतीत होता है कि अधिकारी के पास अधिकार न हो। अधिकार हटाया जाना चाहिए। तो शान्ति कैसे हो सकती है, चैन कैसे मिल सकता है? शासन और शासित, मालिक और मजदूर, अमीर और गरीब अपने-अपने हक़ और फर्ज दोनों को जब तक अच्छी तरह नहीं समझते, तब तक नीति नहीं हो सकती। दो परस्पर विरोधी श्रेणियों को यह सच समझना होगा।’’

विद्या भास्कर

इसी के साथ ‘आज’ अख़बार का सफ़र शुरू हो गया। ‘आज’ के विभिन्न संस्करण के प्रकाशन की शुरूआत 1977 से हुई। पहले कानपुर, इसके बाद आगरा, गोरखपुर, इलाहाबाद, लखनऊ, बरेली से भी ‘आज’ निकलने लगा। फिर दूसरे राज्यों से इसका शुभारंभ किया गया। बिहार में पटना, रांची, धनबाद, जमशेदपुर से भी अख़बार निकलने लगा, यह सिलसिला आज भी जारी है। कुछ वर्षों (1943 से 1947 तक) को छोड़क़र पू. बाबूराव विष्णु पराडक़र 1920 से 1955 तक ‘आज’ के संपादक रहे। कमलापति त्रिपाठी ‘आज’ में 1932 में आये। कुछ समय बाद वह ‘आज’ के संपादक नियुक्त हुए और पराडक़रजी को प्रधान संपादक बना दिया गया। 1943 में विद्या भास्कर और बाद में श्रीकान्त ठाकुर, रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर ‘आज’ के सम्पादक बने।

कमलापति त्रिपाठी

 1959 में सत्येन्द्र कुमार गुप्त ने ‘आज’ के प्रधान सम्पादक का दायित्व संभाला। इससे पहले 1942 से सोलह वर्ष तक उन्होंने ‘आज’ का संचालन किया था। सत्येन्द्र कुमार गुप्त ने ‘आज’ की गौरवपूर्ण परम्परा की रक्षा करते हुए पत्र को उन्नति की ओर अग्रसर किया था। अनेक बाधाओं के बावजूद अख़बार का पृष्ठ-विस्तार कर उसे नये भारत की आवश्यकता के अनुरूप बनाया। पचीस वर्षों तक ‘आज’ के सम्पादन के बाद उनका निधन 6 नवम्बर, 1984 को हो गया।

श्रीकांत ठाकुर

 वर्ष 1942 में जब सत्येन्द्र कुमार गुप्त ने ज्ञानमण्डल लिमिटेड का प्रबंधन सम्भाला, उनकी सहधर्मिणी शशिबाला गुप्त इस कार्य में सक्रिय सहयोग प्रदान करती थीं, ज्ञानमण्डल लिमिटेड  से ही अख़बार का प्रकाशन होता है। उन्होंने 1959 में ज्ञानमण्डल के प्रबंध संचालक का कार्यभार संभाला। ‘आज’ की स्वर्ण जयंती के अवसर पर उनके प्रोत्साहन और प्रेरणा से सचित्र ‘प्रेमसागर’ का प्रकाशन हुआ और उसे निःशुल्क वितरित किया गया। वर्तमान समय में शार्दूल विक्रम गुप्त इस अख़बार के प्रधान सम्पादक हैं। इन्होंने सन 1984 में कार्यभार संभाला था। 

बाबूराव विष्णु पराड़कर

 प्रतिदिन प्रकाशित होने वाले इस संस्थान सेे कई और विशेषांक और पत्रिकाएं आदि प्रकाशित होती रही हैं। 1944 से सोमवार विशेषांक, 18 जुलाई 1938 से ‘आज’ साप्ताहिक के अलावा ज्ञानमण्डल से ‘स्वार्थ’ पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ था। दो-ढाई वर्ष तक चलने के बाद आर्थिक कठिनाइयों के कारण इसे बंद करना पड़ा। 1921 में ‘मर्यादा’ मासिक पत्रिका का अधिग्रहण किया और संपूर्णानंद के संपादकत्व में इसका प्रकाशन शुरू हुआ था। 1947 में ‘समाज’ का प्रकाशन शुरू हुआ था। इसके संपादक मंडल में आचार्य नरेंद्र देव भी थे। एक अक्तूबर, 1950 से इसका प्रकाशन बंद हो गया। 1947 में ‘चित्ररेखा’ नामक कहानी पत्रिका का शुभारंभ हुआ था। इसके कुछ अंक प्रकाशित हुए थे। 30 जुलाई 1931 को अंग्रेज़ी दैनिक ‘टुडे’ का भी प्रकाशन यहीं से शुरू हुआ था। उन दिनों यह अख़बार भी चर्चा में रहा था। 1979 में ‘अवकाश’ नाम से हिन्दी पाक्षिक पत्रिका का शुभारंभ हुआ था, लगभग दस वर्षों तक इसका प्रकाशन हुआ।

शार्दूल विक्रम गुप्त

अख़बारों और पत्रिकाओं के अलावा इस संस्थान से कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का भी प्रकाशन हुआ है। ‘बृहत हिन्दी कोश’ के सात संस्करण अब तक प्रकाशित हो चुके हैं। ‘अंगेजी-अंग्रेजी-हिन्दी’ नामक पुस्तक का प्रकाशन डॉ. हरदेव बाहरी के संपादन में हुआ है। यहीं से प्रकाशित हुआ ‘पौराणिक कोश’ बहुत ही उपयोगी है। इसी तरह ‘भाषा विज्ञान कोश’, ‘वाङ्मयार्णव’, ‘काव्य प्रकाश’, ‘ध्वन्यालोक’, ‘सूरसागर’, ‘हिन्दुत्व’, ‘अशोक के अभिलेख’, ‘वास्तु मर्म’, ‘स्वतंत्रता संग्राम’, ‘चिद्विलास’, ‘पालि साहित्य का इतिहास’, ‘पालि व्याकरण’, ‘महापरिनिब्बान सुत्तं’, ‘पालि पाठशाला’, ‘समाचार पत्रों का इतिहास’ और ‘मालवीय जी महाराज की छाया में’ आदि पुस्तकों का प्रकाशन भी इस संस्थान की तरफ से हुआ है। 

‘आज’ के वाराणसी कार्यालय में बातचीत करते। बाएं से-संजय कुमार, डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी और मोहम्मद अशफ़ाक़ सिद्दीक़ी।

वर्तमान समय में ‘आज’ के वाराणसी कार्यालय में कार्यरत विज्ञापन प्रबंधक संजय कुमार जी का कहना है कि - ‘‘ ‘आज’ हर मोर्चे पर आज भी ईमानदार लड़ाई लड़ रहा है। उसकी नज़र आज भी शासक पर है, शासित पर है। अफ़सरशाही की गतिविधियों पर उसकी कड़ी नज़र होती है। ग्राम जगत उससे अछूता नहीं है। गांवों की समस्याओं को हम सर्वाेच्च प्राथमिकता देते हैं। शिक्षा, शिक्षक, शिक्षार्थी, महिलाओंकी स्थिति, बढ़ते अपराध, सरकार की दुर्नीति, पुलिस की निष्क्रियता सब पर हमारी नज़र होती है।’’ 

(गुफ़्तगू के जुलाई-सितंबर 2025 अंक में प्रकाशित)


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