गुरुवार, 4 सितंबर 2025

1865 में इलाहाबाद से छपना शुरू हुआ ‘दि पायनियर’

इंग्लैंड निवासी रूडयार्ड किपलिंग भी थे इस अंग्रेज़ी अख़बार के संपादक

आज़ादी के बाद इसे स्वदेशी काटन मिल के राजाराम जयपुरिया ने खरीदा

                                                                          - डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

 देश को आज़ादी मिलने से पहले ही यहां से विभिन्न प्रकार के अख़बार छपने शुरू हो गए थे। अधिकतर अख़बार हिन्दी अथवा उर्दू में निकलते थे। इन्हें प्रकाशित करने वाले लोग भारतीय ही थे। इन अख़बारों को प्रकाशित करने का मुख्य उद्देश्य देश को आज़ाद कराना ही था। इसी वजह से कई बार अख़बारों को जबरदस्ती बंद भी कराया गया तो कई बार संपादकों और मालिकों को प्रताड़ित किया गया। कुछ संपादको को तो फांसी के तख़्ते पर भी लटका दिया गया था। इन्हीं सबके बीच अंग्रेज़ों का प्रतिनिधि अख़बार अंग्रेज़ी में ‘दि पायनियर’ नाम से निकला। जिसे निकालने वाले अंग्रेज़ ही थे। 

 दि पायनियर का लखनऊ स्थित प्राचीन कार्यालय जो अब वजूद में नहीं है।

पायनियर का शुभारंभ 1865 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सामने ऐलनगंज मुहल्ले में हुआ था। इस अख़बार के संस्थापक जॉर्ज ऐलन थे, इन्हीं के नाम पर इस मुहल्ले का नाम ऐलनगंज पड़ा। तब इलाहाबाद (प्रयागराज) ‘युनाइटेड प्रॉविन्स’ की राजधानी था। वर्तमान समय का मोतीलाल नेहरु मेडिकल कॉलेज उस समय गवर्नर हाउस था। वर्तमान समय का माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय, महालेखाकार ऑफिस, पुलिस मुख्यालय आदि को मिलाकर एक बहुत ही बृहत् क्षेत्र में सचिवालय था। वर्तमान का स्वरूपरानी मेडिकल कॉलेज जेल और फांसीघर था। इसी वजह से पायनियर का शुभारंभ इलाहाबाद से किया गया। शुरू में यह अख़बार साप्ताहिक था, बाद में दैनिक हुआ। 

रूडयार्ड किपलिंग

 अंग्रेजी के मशहूर लेखक रुडयार्ड किपलिंग ‘पायनियर’ के संवाददाता और फिर बाद में संपादक बने थे। इन्होंने वर्ष 1887 से 1889 तक इस अख़बार का संपादन-कार्य किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सर विंस्टन चर्चिल ने पायनियर अख़बार के लिए युद्ध का कवरेज किया था। बाद में विंस्टन चर्चिल इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने थे। इन्होनें अपने कार्यकाल के दौरान इंग्लैंड के लिए बहुत सारे उल्लेखनीय कार्य किए हैं।

विंस्टन चर्चिल

 पायनियर अंग्रेज़ों का अख़बार था, जिसमें ज्यादातर आज़ादी के आंदोलन के खिलाफ ही ख़बरें छपती थीं। इससे गांधीजी काफी नाराज रहते थे। वरिष्ठ पत्रकार अभिलाष नारायण एक वाकया का जिक्ऱ करते हुए बताते हैं-‘आजादी के आंदोलन के दौरान ही महात्मा गांधी कोलकाता के लिए यात्रा कर रहे थे, तब सीधी ट्रेन नहीं होती थी। इलाहाबाद में चार-पांच घंटे रुकने के बाद दूसरी ट्रेन पकड़नी थी। गांधी जी इलाहाबाद स्थित पायनियर के कार्यालय पहुंच गए। संपादक से मिलकर अपनी शिकायत दर्ज़ कराई। इसे गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन संपादक ने गांधी जी का विस्तृत इंटरव्यू लिया और उसे पूरा-पूरा प्रकाशित किया था।’ वर्ष 1872 से 1874 तक अल्फ्रेड पर्सी सिनेट ने इस अख़बार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किए, जिसकी वजह से अंग्रेज़ी पाठकों के लिए पायनियर पहली पसंद बन गया। वर्ष 1887 से 1889 तक रुडयार्ड किपलिंग ने इस अख़बार का शानदार तरीके से संपादन किया। ये अंग्रेज़ी के बडे़ लेखक माने जाते हैं।

 वर्ष 1921 में इस अख़बार का कार्यालय लखनऊ स्थानांतरित कर दिया गया। यहां से मशीन को उखाड़कर लखनऊ ले जाकर सेट करना था। इसमें एक सप्ताह का समय लगना था। इसे देखते हुए एक सप्ताह का एडवांस अख़बार छाप लिया गया था। तब जाकर छपाई की मशीन लखनऊ में स्थानांतरित की गई। इसके बाद दिल्ली में भी अख़बार का कार्यालय खुल गया। 

 वर्ष 1947 में देश के आज़ाद होने के बाद अंग्रेज़ जब इंग्लैंड जाने लगे तब स्वदेशी काटन मिल के मालिक राजाराम जयपुरिया ने इस अख़बार को खरीद लिया। अख़बार पहले से ही चर्चित था। जयपुरिया के हाथ में आने के बाद और अच्छा चलने लगा। इस अख़बार के पहले भारतीय संपादक डॉ. सुरेन्द्र नाथ घोष बने। क्वात्रा, के पी  अग्रवाल, सोमनाथ सप्रू, आदर्श कुमार वर्मा, सोलोमन जैसे पत्रकार इसके संपादक रहे हैं। इन लोगों के कार्यकाल में अख़बार ने खूब तरक्की की।

 विनोद मेहता

अख़़बार की सफलता को देखते हुए राजाराम जयपुरिया ने इसी कंपनी से हिन्दी में ‘स्वतंत्र भारत’ अख़बार निकाला। दोनों ही अख़बार चलने लगे। लखनऊ में विधानसभा मार्ग पर ही पॉश इलाकें में इसका बहुमंज़िला कार्यालय बन गया। राजाराम जयपुरिया के बाद उनके बेटे शिशिर जयपुरिया ने अख़बार चलाना शुरू किया। वर्ष 1984 में इसका कार्यालय वाराणसी में भी खोला गया। पहले पायनियर यहां से शुरू हुआ, बाद में ‘स्वतंत्र भारत’ भी छपने लगा। वाराणसी के लहरतारा में खुद की प्रिंटिंग मशीन भी लग गई। इसी समय इलेक्ट्रॉनिक टाइपिंग मशीन बाज़ार में आ गई थी, इस अख़बार के ऑफिस में भी यह मशीन लगा दी गई। उधर, वाराणसी से ‘स्वतंत्र भारत’ शुरू होने के साथ ही अख़बार की आर्थिक हालत खराब होनी शुरू हो गई। इसकी वजह से कुछ ही समय के बाद यहां के दोनों अख़बारों के संस्करण बंद हो गए। सिर्फ़ ब्यूरो ऑफिस रह गए। 

चंदन मित्रा।

अख़बार की आर्थिक हालत लगातार खराब होने लगी तो शिशिर जयपुरिया ने एल एम  थापर को अख़बार बेच दिया। थापर ने दिल्ली के साथ मुंबई से भी अख़बार लांच कर दिया। लेकिन, मुंबई में ज्यादा दिन अख़बार नहीं चला और मुंबई ऑफिस बंद कर देना पड़ा। अब अख़बार का हेड ऑफिस दिल्ली कर दिया गया। थापर के समय वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता और चंदन मित्रा इसके मुख्य संपादक बनाए गए। कुछ ही दिनों में अख़बार घाटे में आ गया। थापर ने स्वतंत्र भारत अख़बार बेच दिया। थापर ने पायनियर को भी बंद करने का निर्णय ले लिया। चंदन मित्रा ने किस्त पर यह अख़बार थापर से खरीद लिया। धीरे-धीरे अख़बार पटरी पर आ गया। अच्छे ढंग से चलने लगा। 01 अक्तूबर 2010 को चंदन मित्रा ने हिन्दी में भी पायनियर लांच कर दिया। इस दौरान चंदन मित्रा भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए। भाजपा ने बारी-बारी से इनको दो बार राज्यसभा भी भेजा। बाद में चंदन मित्रा ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन ममता बनर्जी ने इन्हें राज्य सभा नहीं भेजा।

पायनिर अख़बार के बारे में बातचीत करते बाएं से- अभिलाष नारायण, डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी और अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’

 वर्ष 2021 में चंदन मित्रा का देहांत हो गया। वर्तमान समय में अंग्रेज़ी पायनियर की प्रधान संपादक शोबोरी गांगुली हैं। इस समय नई दिल्ली और लखनऊ से अंग्रेज़ी पायनियर निकल रहा है। इसके साथ ही भोपाल, भुवनेश्वर, रांची, रायपुर, चंडीगढ़, देहरादून, हैदराबाद और विजयवाड़ा में इसके फ्रेंचाइजी संस्करण हैं।

(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2025 अंक में प्रकाशित)


0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें