शनिवार, 24 मई 2025

हिन्दी नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर उमाशंकर तिवारी

                                                                          - अमरनाथ तिवारी अमर 

  हिन्दी नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. उमाशंकर तिवारी का जन्म 31 जुलाई 1940 को ग़ाज़ीपुर जनपद के बहादुरगंज में हुआ था। इनकी शुरूआती शिक्षा घर पर ही हुई थी। इनकी प्रतिभा से चकित होकर तत्कालीन उप-विद्यालय निरीक्षक कृष्ण बिहारी अस्थाना ने प्रांथमिक नाम पांचवीं कक्षा में लिखाने का आदेश दे दिया था। विद्यार्थी जीवन से ही ये प्रतिभावान एवं मेधावी थे। इन्होंने छठवीं से आठवीं तक की शिक्षा जूनियर हाईस्कूल बहादुरगंज, फिर नवीं और दसवीं की शिक्षा गांधी स्मारक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बहादुरगंज से पूरी की। इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए ग़ाज़ीपुर शहर स्थित सिटी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रवेश लेकर वर्ष 1955 में यहीं से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। हिन्दी, अंग्रेज़ी एवं संस्कृत विषय के साथ वर्ष 1957 में सतीशचंद्र कॉलेज, बलिया से स्नातक किया।

डॉ. उमाशंकर तिवारी

18 वर्ष की आयु में ही सिटी इंटर कॉलेज में अध्यापन करने लगे। एक वर्ष पश्चात् काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में एम.ए. की कक्षा में प्रवेश ले लिया। उस समय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी थे। हिन्दी विभाग अत्यंत समृद्ध था। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डॉ. जगन्नाथ शर्मा, पं. करुणापति त्रिपाठी, डॉ. श्रीकृष्ण लाल और प्रो. विद्याशंकर मल्ल हिन्दी विभाग से जुड़े थे। ऐसे आचार्यों में डॉ. उमाशंकर तिवारी को संस्कारित एवं प्रशिक्षित किया। ये आचार्य द्विवेदी के प्रिय शिष्यों में थे। आचार्य द्विवेदी के सन्निध एवं मार्गदर्शन में ही इनकी काव्य प्रतिभा परवान चढ़ीं।

  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात इन्होंने ज़मानियां, ग़ाज़ीपुर, रानीपुर-आज़मगढ़ में अध्यापन किया। तत्पश्चात डी.सी.एस.के. महाविद्यालय मउ में हिन्दी विभाग से जुड़े। इसी महाविद्यालय से वर्ष 2001 में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर की विद्या परिषद एवं शोध समिति के संयोजक भी रहे। ‘छायादवोत्तर गीत-काव्य के शिल्पगत विकास’ विषय पर शोध प्रबंध प्रस्तुत कर वर्ष 197ं4 में काशी विद्यापीठ के डॉ. शंभुनाथ सिंह के निर्देशन में पी.एच-डी. किया। वर्ष 1969 से 2001 तक उच्च शिक्षा के अध्ययन-अध्यापन से जुड़े रहकर डॉ. तिवारी ख़्याति व यश अर्जित किया।

 डॉ. उमाशंकर तिवारी की गणना नवगीत के चर्चित हस्ताक्षर और व्याख्याता के रूप में अत्यंत सम्मान के साथ की जाती है। नवगीत के उन्नायक डॉ. शंभुनाथ सिंह ने अपने अंतिम समय में इनकी इमानदार सृजनशीलता पर विश्वास करते हुए ‘नवगीत’ के विकास के अधूरे पड़े कार्य को पूरा करने की जिम्मेदारी इन्हें ही सौंप दी थी।

 वर्ष 1968 में इनका पहला नवगीत संग्रह ‘जलते शहर में’ प्रकाशित हुआ। वर्ष 1968 में ‘तोहफं कांच घर के’ प्रकाशित हुआ। इस नवगीत संग्रह के लिए प्रधानमंत्री द्वारा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निराला पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया। इसी कृति के लिए इन्हें डॉ. जगदीश गुप्त द्वारा डॉ. शंभुनाथ सिंह नवगीत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1996 में ‘धूप कड़ी है’ प्रकाशित हुआ। 

 इनका शोध प्रबंध ‘आधुनिक गीत काव्य’ वर्ष 1997 में प्रकाशित हुआ। इन्होंने कई पुस्तकों का संपादन किया। जिनमें प्रमुख है- नवगीत के प्रतिमान और आयाम, गद्य-विधिक़़ा, कथा यात्ऱा, कथा सेतु, समकालीन काव्य, नवलेखन की पत्रिका-पूर्ण। 

  कई पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित डॉ. उमाशंकर तिवारी ने हिन्दी नवगीत को महत्तर उंचाई प्रदान की। शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। डॉ. तिवारी का निधन 28 अक्तूबर 2009 को हो गया, लेकिन आपने नवगीतो के माध्यम से वे आज भी जीवित हैं।


( गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2024 अंक में प्रकाशित )


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