सोमवार, 14 अप्रैल 2025

 18 अप्रैल 1948 से छपना शुरू हुआ  अमर उजाला

डोरीलाल अग्रवाल और मुरारी लाल माहेश्वरी हैं इसके संस्थापक

बरेली शहर के एक छोटे से दफ़्तर से शुरू किया गया इसका कार्य


                                                                               - डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी


 

हिन्दी अख़बारों में अमर उजाला अपने अलग तेवर और अंदाज़ के लिए जाना जाता है। प्राय: माना जाता है कि इस अख़बार की ख़बरें तथ्यात्मक होने के साथ-साथ निष्पक्ष होती हैं। यही वजह है कि इसने पाठकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई हैै। इस अख़बार का प्रकाशन 18 अप्रैल 1948 को उत्तर प्रदेश के बरेली शहर से शुरू हुआ। अमर उजाला का जन्म राजनैतिक क्रांति और राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि से हुआ। जब प्रकाशन शुरू हुआ तो पहले दिन अमर उजाला की 1200 प्रतियां बिक गई थीं, अख़बार मात्र चार पेज का ही प्रकाशित हुआ था। डोरी लाल अग्रवाल और मुरारी लाल माहेश्वरी ने इसके प्रकाशन की शुरूआत की थी। अख़बार दूसरे के यहां प्रेस में छपना शुरू हुआ, तब अपनी प्रिटिंग मशीन नहीं थी। कुछ ही दिनों में अख़बार की तीन हजार प्रतियां छपने लगीं। इसका प्रसार संपूर्ण ब्रज क्षेत्र के अलावा राजस्थान के भरतपुर और मुरैना तक हो गया। तब देश को आज़ाद हुए एक वर्ष भी पूरा नहीं हुए था। उस समय अंग्रेज़ी और उर्दू अख़बारों का ही बोलबाला था। स्वतंत्रता हासिल होने के साथ ही लाखों शरणार्थियों के आगमन और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से जनित क्रोध के वातावरण में देश के राजनैतिक कार्यकर्ताओं और नवोदित अख़बारों की परीक्षा शुरू के वर्षों में ही ले ली गई थी। उस दौर में संस्थापक द्वय ने निर्णय लिया था कि हम अपने पाठकों को ख़बर की सच्चाई और तथ्यात्मकता से अपनी ओर आकर्षित करेंगे। बरेली के एक दफ़्तर में इसकी शुरूआत हुई थी। तब न ऑफसेट मशीन थी, न टेलीप्रिन्टर थी और न ही कंप्यूटर। प्रिंटिंग प्रेस में टाइप से कंपोज करके हाथ से छापा जाता था। एक-एक शब्द जोड़ना पड़ता था। इन सबके बीच 1949 में अमर उजाला ने अपना राष्ट्रीय स्वरूप बना लिया। इसके पत्रकार पूरे देश में फैले हुए थे। ये आज़ादी की लड़ाई से तपे हुए पत्रकार थे। आज अमर उजाला के अधिकतर दफ़्तरों में अत्याधुनिक मशीनें लग गई हैं, जिनसे प्रति घंटे 35,000 प्रतियां प्रकाशित हो रही है। 



  वर्ष 1948 में अमर उजाला टाइप से कंपोज होकर छोटी सी मशीन से छपता था, जिसमें मशीनमैन कागज़ निकालता था और पेपरमैन कागज़ लगाता था। कभी-कभी पेपरमैन की अनुपस्थिति में डोरी लाल जी खुद ही पेपर निकालते थे। मुरारी लाल जी देर रात प्रेस में अख़बार छप जाने के बाद घर जाते थे और अगले दिन दोपहर तक फिर ऑफिस आ जाते थे। अमर उजाला की अपनी छपाई की पहली मशीन 1950 में आगरा कार्यालय में लगी थी। शुरूआती दौर में अमर उजाला में सिर्फ़ स्थानीय स्तर के ही विज्ञापन छपते थे, लेकिन चंद वर्षों के भीतर अख़बार को इतनी अधिक शोहरत मिली कि हिंदुस्तान लीवर, टी बोर्ड और हरक्यूलिस मोटर जैसी कंपनियों के विज्ञापन छपने लगे। विज्ञापन छपने के आधार पर ही अख़बार की साख़ और पहुंच का अंदाज़ा लगाया जाता है।ं



 06 सितंबर 1949 को प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में भाषण दिया-‘हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू संस्कृति का नारा निरर्थक है।’ तब अमर उजाला में छपा-‘छात्रों की एक आम सभा में पं. नेहरु ने दो घंटे भाषण दिया। मूसलाघार बारिश में भी छात्र पं. नेहरु का भाषण सुनते रहे और छात्र जमीन पर बैठे रहे।’ इस घटना से एक दिन पहले ही वाराणसी पहुंचे आरएसएस प्रमुख गोलवरकर के खिलाफ़ छात्र नारे लगा रहे थे, काला झंडा दिखा रहे थे। छात्रों पर जमकर लाठी चार्ज हुआ। अमर उजाला में ख़बर छपी-‘काले झंडे देखते ही गुरुजी नेहरु सरकार के सहयोग की अपील कर गए।’ 1950 में अमर उजाला में बिजली से चलने वाली मोनोटाइप मशीन आई, जो एक घंटे में ढाई सौ प्रतियां छापती थी।



 वर्ष 1971 में पाकिस्तान को हराने के बाद इंदिरा गांधी ‘दुर्गा’ बन गई थीं। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद देश में इमरजेंसी लागू करके एकदम से खलनायिका बन गईं। देश में गिरफ्तारियां शुरू हो र्गइं और प्रेस सेंसरशिप लागू कर दिया गया। अख़बारों के दफ्तरों में अधिकारी बैठा दिए गए थे। बिना अनुमति के राजनैतिक ख़बरें नहीं छापी जा सकती थीं। तब अमर उजाला ने इमरजेंसी का विरोध करते हुए संपादकीय पेज खाली छोड़ दिया था। अक्तूबर 1994 में जब उत्तराखंड आंदोलन शुरू हुआ। उसी समय दिल्ली कूच कर रहे उत्तराखंड के आंदोलनकारियों पर पुलिस ने फायरिंग कर दिया, जिसमें 15 आंदोलनकारी शहीद हो गए थे। 



प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। सरकार चाहती थी कि इस ख़बर को इस प्रकार प्रकाशित किया जाए कि घटना दब जाए। लेकिन अमर उजाला नहीं झुका, पूरी ख़बर बिना किसी दबाव के प्रकाशित हुई। इससे नाराज होकर मुलायम सिंह यादव ने 12 अक्तूबर 1994 को हल्लाबोल आंदोलन शुरू करा  दिया। समाजवादी पार्टी के लोग अख़बार की प्रतियां जलाने लगे। सरकारी विज्ञापन बंद कर दिए गए और कार्यालयों पर छापे पड़ने लगे। कर्फ्यू के बहाने अमर उजाल के वितरण पर भी रोक लगा दी गई। उस कठिन दौर में भी अमर उजाला दबा नहीं। सुदूर पहाड़ों में भी वाहनों में छिपाकर अख़बार के बंडल पहुंचाए जाने लगे थे। देखते-देखते विश्वसनीयता अमर उजाला की ट्रेड मार्क बन गई। इस तरह विभिन्न मरहलों से गुजरते हुए देश की पत्रकारिता जगत में अमर उजाला ने अपनी अलग पहचान बनी ली है।



  18 अप्रैल 1948 को आगरा से इस अख़बार की शुरूआत हुई थी। 17 जनवरी 1969 से बरेली, 12 दिसंबर 1986 से मेरठ, 25 मार्च 1989 से मुरादाबाद, 01 मार्च 1992 से कानपुर, 25 फरवरी 1997 से देहरादून, 16 जून 1997 से इलाहाबाद, 30 जून 1997 से झांसी, 20 जुलाई 1999 से चंडीगढ़, 16 जनवरी 2000 से जालंधर, 05 मई 2001 से वाराणसी, 11 अप्रैल 2003 से दिल्ली, 28 जून 2004 से नैनीताल, 03 अक्तूबर 2005 से जम्मू, 08 दिसंबर 2005 से धर्मशाला, 23 जनवरी 2007 से अलीगढ़, 6 अप्रैल 2007 से गोरखपुर, 24 जून 2008 से लखनऊ, 06 मार्च 2014 से रोहतक, 14 जुलाई 2018 से हिसार, 12 जुलाई 2019 से करनाल और 26 अगस्त 2022 से शिमला से अमर उजाला का प्रकाशन शुरू हुआ है। आज 179 जिलों, छह राज्यों और दो केंद्र शासित राज्यों से प्रकाशित हो रहे इस अख़बार के पाठकों की संख्या लगभग पौने पांच करोड़ तक पहुंच चुकी है। ख़बरों के अलावा विभिन्न साप्ताहिक मैग़जीनों की सामग्री के कारण इस सुसज्जित अख़बार की गिनती देश के प्रमुख अग्रणी अख़बारों में की जाती है।

 

 (गुफ़्तगू के जुलाई-सितंबर 2024 अंके में प्रकाशित )


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