पत्रकारिता के शलाका पुरूष विजय कुमार
- अमरनाथ तिवारी अमर
स्मृति शेष विजय कुमार जी का जन्म ग़ाज़ीपुर जनपद के नारी पचदेवरा गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम लक्ष्मण यादव और माता का नाम दुखंति देवी था। प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई। मीडिल की परीक्षा बरहापुर से उत्तीर्ण की। वर्ष 1949 में हाईस्कूल विक्रोली स्कूल, ग़ाज़ीपुर से, इंटरमीडिएट 1952 में गर्वमेंट हायर सेकंडी स्कूल कानपुर से और 1966 में काशी विद्यापीट वाराणसी से शास्त्री किया।
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विजय कुमार |
विद्यार्थी जीवन से ही इनकी रुचि राजनीति और पत्रकारिता में थी। 1948 से 1962 तक इन्होंने क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया। विभिन्न जनपदों में प्रयास कर जिम्मेदारी उन्मूलन के विरू़द्ध चलने वाले आंदोलनों में हिस्सा लिया। किसानों और मजदूरों के हक़ के लिए मजदूर आंदोलन में भाग लिया, जेल गए। 1946-47 में जमींदारी उन्मूलन के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. गोविंद बल्लभ पंत के ग़ाज़ीपुर आगमन पर उनकी गाड़ी रोक दी थी। इसके लिए उनके खिलाफ़ निरूद्ध करने का वारंट जारी हुआ। इस मामले में कुछ दिन फरारी के बाद गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए। वष 1954-55 में बालरूप शर्मा के साथ कानपुर में सूती मिल, जूट मिल के मजदूरों की समस्याओं को लेकर चल रहे आंदोलनों में इन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी। उसी दौरान धरना देते समय इन्हें इनके सात साथियों के साथ गिरफ्तार करके कानपुर जेल भेज दिया गया। वहां के तत्कालीन जेलर से कुछ मुद्दों पर इनकी ठन गई। जेलर के इनके पैरों में बेड़ी डलवा दी, लेकिन ये झुके नहीं, अपनी मांगों पर अड़े रहे। कुछ दिनों बाद कानपुर जेल से बरेली केंद्रीय जेल भेज दिया गया। बाद में ये रिहा होकर ग़ाज़ीपुर आ गए।
वर्ष 1956-57 में ग़ाज़ीपुर में भयंकर सूखा पड़ा। किसानों की समस्याओं को लेकर हुए प्रदर्शन के दौरान धारा 144 का उल्लंधन करने पर इन्हें 15 दिन की सजा और 16 रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई गई। अर्थदंड न जमा करने पर चार दिन की सजा और भुगतनी थी। 15 दिन की सजा पूरी करने के उपरांत परिवार में किसी के निधन हो जाने के कारण यह पेरोल पर छूटे थे। बाद में 16 रुपये जुर्माना न देकर ये जेल जाने के लिए मजिस्टेट के समक्ष प्रस्तुत हुए। इनके शुभचिंतकों ने 16 रुपये जमा करने के लिए कहा, किंतु इन्होंने जेल जाना ही पसंद किया। कहा कि अर्थदंड जमा करने से समाज में संदेश ठीक नहीं जाएगा, आंदोलन कमजोर पड़ जाएगा।
आरएसपी में सक्रिय रहते हुए विजय कुमार वर्ष 1955-56 से पत्रकारिता से भी जुड़ गए थे और 1962 में विधानसभा का चुनाव भी लड़े थे। पत्रकारिता से जुड़कर इन्होंने वृहद स्तर पर गांव में भ्रमण किया। गांव की पूरी समस्याओं को प्रमुखता से उजागर करने लगे। इनकी आंचलिक पत्रकारिता चर्चा में आई। वर्ष 1958 में ये ‘आज’ दैनिक समाचार-पत्र के ग़ाज़ीपुर के संवाददाता बने। बाद में ये दैनिका ‘जनवार्ता’ से भी जुड़े। इन्होंने समाचार रिपोर्टिंग के साथ फोटो फीचर भी प्रारंभ किया। ‘ज़िन्दगी की राहें’ और ‘तलाश अपनी-अपनी’ के फीचर को बहुत प्रशंसा मिली। ये दोनों फीचर काफी चर्चा में रहे। वर्ष 1968 में इन्होंने अपना साप्ताहिक समाचार ‘ग़ाज़ीपुर समाचार’ का प्रकाशन शुरू किया। तमाम उतार चढ़ाव के बाद भी यह समाचार-पत्र आज भी प्रकाशित हो रहा है। इनके निधन के इनके सुपुत्र संजय कुमार अपनी सम्पादकत्व में इसकी निरंतरता बनाए हुए हैं।
विजय कुमार को कई स्तंभों और पुरस्कारों से सम्मानित और पुरस्कृत किया गया है। इनमें वर्ष 1977 में चंदकुमार मीडिया फाउंडेशन वाराणसी द्वारा ‘आंचिलक पत्रकारिता पुरस्कार’ वर्ष 2006 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘यश भारती सम्मान’ वर्ष 2013 में अहिप चेतना समाज, ग़ाज़ीपुर द्वारा ‘ग़ाज़ीपुर गौरव सम्मान’ प्रमुख है। 11 सितंबर 2013 को इनका निधन हो गया। लेकिन इनकी स्मृतियां आज भी लोगो के मानस पटल पर अंकित हैं।
( गुफ़्तगू के जुलाई-सितंबर 2024 अंक में प्रकाशित )
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