नई कविता के प्रवर्तक हैं डॉ. जगदीश गुप्त
घर में ही लगता था बड़े साहित्यकारों का जमघट
बेटे विभु ने बचपन से ही देखी है साहित्य मंडली
- डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
नई कविता के प्रवर्तकों में शामिल डॉ. जगदीश गुप्त हिन्दी साहित्य के प्रमुख लोगों में शामिल हैं, जिनकी वजह से समाज की प्रमुख धारा में साहित्य बना रहा है। नये लोगों को भी डॉ. गुप्त की वजह काफी प्रोत्साहन मिलता रहा है। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में जन्मे डॉ. गुप्त का कर्मस्थल इलाहाबाद ही रहा है। इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के लिए हरदोई से यहां आए और फिर यहीं के होकर रह गए। पहले महादेवी वर्मा से जुड़े और फिर ये सिलसिला बढ़ता चल गया। बचपन में ही पिताजी का देहांत हो गया था। इसलिए पढ़ाई का खर्च भी खुद ही निकालना था। इस खर्च को पूरा करने के ये कई प्रतिष्ठित साहित्यकारों की किताबों का कवर पेज भी डिजाइन किया करते थे, शुरूआत महादेवी वर्मा की किताब से हुई थी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद गृहस्थ जीवन में जुड़ गए। शादी हुई और फिर परिवार बढ़ा। तीन बेटियों के बाद तीन बेटों का जन्म हुआ। तीन बेटियों के बाद सबसे बेटे विभु गुप्त का जन्म हुआ। विभु ने अपने पिता और उनके मित्रों को देखा है, उनका आना-जाना और साथ में घुलना-मिलना बचपन से ही रहा था।
डॉ. जगदीश गुप्त |
प्रतिष्ठित कवि होने के कारण अक्सर ही डॉ. जगदीश गुप्त के घर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, फ़िराक़ गोरखपुरी, दुष्यंत कुमार, सुमित्रानंदन पंत, नरेश मेहता, धर्मवीर भारती, विष्णुकांत शास्त्री, श्रीनारायण चतुर्वेदी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, रामकुमार वर्मा, विजय देव नारायण शाही आदि साहित्यकारों को आना-जाना लगा रहता था। अक्सर ही डॉ. गुप्त के घर काव्य गोष्ठियों हुआ करती थीं, तब उस समय के प्रतिष्ठित और युवा कवियों का जमावड़ा होता था। साहित्यिक प्रतिष्ठा और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य के साथ-साथ डॉ. जगदीश गुप्त अपने सभी छह बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा का भी विशेष ध्यान रखते थे। अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से कभी विमुख नहीं हुए।
महादेवी वर्मा से बैठे हुए डॉ. जगदीश गुप्त |
विभु गुप्त ने स्नातक करने के बाद फोटोग्राफी में डिप्लोमा किया और इसके बाद अख़बारों में फोटोग्राफर हो गए। पहले ‘अमृत प्रभात’ अख़बार और उसके बाद ‘राष्टीय सहारा’ में बतौर फोटोग्राफर नौकरी करते हुए रिटायर हुए हैं। रिटायरमेंट के बाद से ही विभु अपने पिता के लेखन और पेंटिंग को संजोने में जुटे हुए हैं। इन्होंने वेबसाइट बनाकर अपने पिता के लगभग सभी लेखन और पेंटिंग को इस वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। वर्ष 2018 में इन्होंने ूूूण्रंहकपेीहनचजण्बवउ नाम से वेबसाइट बनाई है। इसमें डॉ. गुप्त की सारी चीज़े अपलोड करने में जुटे हुए हैं। डॉ. अटल बिहारी वाजपेयी की पुस्तक ‘मेरी 51 कविताएं’ की भूमिका भी डॉ. गुप्त ने ही लिखी है।
विभु बताते हैं कि पिताजी खुद तो हमलोगों को नहीं पढ़ाते थे, लेकिन हम भाई-बहनों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान रखते थे। किसकी पढ़ाई कैसी चल रही है, कैसे पढ़ाई करनी चाहिए आदि-आदि का ध्यान रखते थे। साथ ही उस ज़माने में भी ट्यूशन लगा दिया था। डॉ. जगदीश गुप्त के निर्देशन में हरिशंकर मिश्र शोध कार्य करते थे। हरिशंकर ही डॉ. गुप्त के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे। बाद में हरिशंकर मिश्र लखनउ यूनिवर्सिटी में हिन्दी के विभागाध्यक्ष भी हुए थे। विभु बताते हैं कि हम भाई बहनों की पढ़ाई पर अपना कोई विचार नहीं थोपते थे, जिसकी रुचि जिस क्षेत्र में हो उसे उसी क्षेत्र में आगे बढ़ाने के हिमायती थे। यही वजह है कि विभु अपनी रुचि अनुसार फोटोग्राफर बने।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भारत-भारती सम्मान प्राप्त करते डॉ. जगदीश गुप्त। |
विभु बताते हैं कि जब मैं कोई अच्छी तस्वीर खींचकर लाता था तो वे उसकी प्रशंसा भी करते थे। डॉ. गुप्त कवि होने के साथ बहुत ही अच्छा पेंटिंग और स्केच बनाते थे। उनके पास हमेशा काले स्याही वाली कलम होती थी। रास्ता चलते जब कोई अच्छी चीज़ देखते थे तो छोटे-छोटे कार्ड पर उसका रेखाचित्र बना लेते थे, जिस तरह आजकल लोग मोबाइल से फोटो खींच लेते हैं।
विभु बताते हैं कि डॉ. जगदीश का पोेता जिसे वे ‘वासु’ नाम से बुलाते थे, उसी को केदिं्रत करते हुए एक किताब ‘वासुनामा’ लिखा है। वासु के बहाने उन्होंने बच्चों को केंद्रित यह किताब लिखी गई है, जिसका शीघ्र ही विभु गुप्ता प्रकाशन कराने जा रहे हैं। आदिकाल की मूर्तियों को एकत्र करने का भी डॉ. गुप्त को बहुत शौक़ रहा है। एक विशाल संग्रह उन्होंने अपने घर में किया था, जिसे विभु गुप्ता ने बहुत ही संजोकर रखा है।
भारत भूषण वार्ष्णेय, डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़़ाज़ी और विभु गुप्त |
डॉ. गुप्त को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की तरफ से भारत-भारती पुरस्कार मिला था, यह पुरस्कार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने हाथ से दिया था। मध्य प्रदेश हिन्दी संस्थान की तरफ से मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार के अलावा तमाम सम्मान से इन्हें नवाजा गया था। इनके निधन होने पर पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भी घर आये थे। डॉ. गुप्त एक सफल चित्रकार भी थे, इसलिए उन्होंने चित्रमय काव्य की परम्परा को पुनर्जीवित किया। हिंदी काव्यधारा में महादेवी जी ने चित्र और काव्य का जो अंतः सम्बंध स्थापित किया उसका अगला विकास गुप्त जी की कविताओं मे दिखाई देता है। इनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।
( गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2024 अंक में प्रकाशित )
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