शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

प्रेरणादायक व्यक्तित्व पद्मश्री डॉ. राज बवेजा

                                               

पद्मश्री डॉ. राज बवेजा


                                                              -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

                                          

  पद्मश्री डॉ. राजकुमारी बवेजा राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त स्त्री-रोग विशेषज्ञ हैं। इन्होंने अपनी क़ाबलियत, सक्रियता और मानव सेवा के जरिए समाज में एक अलग मकाम बनाया है, जिसकी वजह से पूरे देश में इनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। लगभग 90 वर्ष की आयु में आज भी अपने चिकित्सीय सेवा का निर्वहन बड़ी तन्मयता से करती हैं। जार्जटाउन स्थित अपने निवास पर आज भी शाम के वक़्त मरीजों को देखती हैं। इनका कार्य दूसरे चिकित्सकों के लिए प्रेरणास्रोत है।

डॉ. राज बवेजा का जन्म 19 नवंबर 1934 को संतनगर, लाहौर में हुआ था। पिता स्वर्गीय श्री प्रभुदयाल बवेजा लाहौर में ही सरकारी नौकरी करते थे। देश के विभाजन के समय माहौल खराब होने पर पिता ने राज बवेजा को उनके मामू के यहां दिल्ली छोड़ दिया, ताकि बिना किसी खतरे के उनकी परवरिश हो सके। उन दिनों इस बात का डर था कि लड़कियों को उपद्रवी उठा ले जाएंगे। फिर देश का बंटवारा हो जाने पर पिता रोहतक आ गए और राज बवेजा को भी उनके पिता रोहतक कैम्प में ले गए। वहां शरणार्थियों के लिए पूड़ी-सब्जी आती थी, सब लोग मिलकर खाते थे। राज बवेजा की नानी और दादाजी का इसी दौरान अमृतसर में निधन हो गया। 

 कुछ दिनों बाद ही लखनऊ में पिता श्री प्रभुदयाल बवेजा को सरकारी नौकरी मिल गई। राज बवेजा की एक छोटी बहन और एक भाई थे। तीनों लोग लखनऊ में ही पढ़ाई करने लगे। किसी ने राज बवेजा को बताया कि होम साइंस पढ़ने से डाक्टर बना जा सकता है। इसी वजह से लालबाग लखनऊ में कक्षा नौ में होम साइंस विषय में दाखिला ले लिया। इसी दौरान पिता प्रभुदयाल बवेजा का दक्षिण भारत के विजयवाड़ा में तबादला हो गया। मां ने इनकी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी, हर तरह से सहयोग करके पढ़ाई कराई। राज बवेजा ने कक्षा 11 में साइंस विषय से लखनऊ में ही दाखिला लिया। वर्ष 1952-53 में आपका पी.एम.टी. में चयन हो गया। इसी समय में बी.एस-सी में भी दाखिला ले लिया था। पीएमटी में चयन और दाखिला के बाद बी.एस-सी का नामांकन बड़ी मुश्किल से रद्द कराया गया, क्योंकि फीस वापस लेनी थी। लेकिन एक अंजान लड़के के सहयोग से फीस की वापसी हुई। पिता के बिजयवाड़ा में होने की वजह से उनके पिता के दोस्त ने राज बवेजा का पूरा मार्गदर्शन किया। आपने किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ से एम.बी.बी.एस. और एम.एस. किया था। इसके बाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से गाइनाकोलॉजी में पी.एच-डी. किया। इसके बाद आप इलाहाबाद के मोती लाल नेहरु मेडिकल कॉलेज में पहले ऑफिसर, फिर प्रोफेसर और इसके बाद महिला एवं प्रसूति विभाग की विभागाध्यक्ष हो गईं। जहां आपने वर्ष 1992 तक कार्य किया। 1998-99 में आप मोती लाल नेहरु मेडिकल कॉलेज की निदेशक थीं। आपने कॉमन वेल्थ स्कॉलरशिप के माध्यम से बांझपन और गर्भावस्था हानि (भ्स्। इवकपमें) में इम्यूनोलॉजी पहलू पर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और जॉन राडक्लिफ अस्पताल में भी काम किया है। 1984-85 में आपने डब्ल्यू.एच.ओ. जिनेवा में अस्थायी सलाहकार डब्ल्यू.एच.ओ. जिनेवा के प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों के लिए आवश्यक प्रसूति और स्त्री रोग संबंधी शल्य प्रक्रिया तैयार की थी।

 विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का ह्यूमन रिप्रोडक्शन रिसर्च सेंटर स्थापित करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। कई सामाजिक संगठनों से जुड़ी हैं और आज भी जरूरतमंदों की सेवा में अपना योगदान दे रही हैं। उनके सेवा कार्यों की वजह से ही भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री से वर्ष 1983 में नवाजा। जीवन के प्रति सकारात्मकता और संयमित जीवन उन्हें 90 वर्ष की उम्र में भी ऊर्जावान बनाए हुए हैं। खुद ड्राइविंग करने और मरीजों का आपरेशन करने में उनके हाथ नहीं कांपते। डॉ. बवेजा कहती हैं कि जब तक आप न चाहें उम्र आप पर प्रभाव नहीं डाल सकती। उन्हें आज भी सेवा में वही सुख मिलता है, जो सुख उन्हें पहली बार एप्रिन पहनने पर मिला था।

(गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2022 अंक में प्रकाशित )


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