बुधवार, 18 जनवरी 2023

जीवन की अभिव्यक्तियों के चित्रण की कविताएं

                                                   - अजीत शर्मा ‘आकाश



  ‘ठोकर से ठहरो नहीं’ कवयित्री अर्चना सबूरी की 90 कविताओं एवं क्षणिकाओं का संग्रह है। कहा गया है कि कविताएं मन के भावों को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम हैं। इस काव्य संग्रह की रचनाओं के माध्यम से जीवन की विसंगतियों एवं जटिल परिस्थितियों को पाठकों के समक्ष लाने का प्रयास किया गया है। कविता-लेखन के संबंध में पुस्तक के आत्मकथ्य के अंतर्गत कवयित्री का कहना है कि ज़ि़न्दगी किसी की भी आसान नहीं है, सब की ज़िन्दगी में अपने-अपने तरीके के कष्ट हैं, दुःख हैं। संग्रह की अधिकतर रचनाएं कवयित्री के इसी दार्शनिक विचार से ओतप्रोत प्रतीत होती हैं। रचनाओं में अनेक स्थलों पर जीवन के यथार्थ चित्रण की झलक परिलक्षित होती है। कविताओं में संत्रास, घुटन, वेदनाओं एवं अनुभूतियों को शब्द प्रदान किये गये हैं। अधिकतर कविताएं समय और व्यक्ति के बीच के द्वंद्व को पाठक के समक्ष लेकर आती हैं तथा संवाद और संघर्ष करती प्रतीत होती हैं। सामाजिक सरोकारों के ताने-बाने में रचा-बसा कथ्य सराहनीय है। रचनाओं में यत्र-तत्र जीवन के अन्य अनेक रंग भी सामने आते हैं। संग्रह में ‘सपनों में सही’, ‘मीठी यादें’, ‘निभाती हूं’, ‘मत आया करो’ जैसी श्रृंगार एवं प्रेम विषयक कुछ रचनाओं एवं क्षणिकाओं को भी स्थान दिया गया है। ये कविताएं प्रेम के विभिन्न पक्षों, संबंधों, विसंगतियों, सुखद अनुभूतियों और प्रेम की वयक्त-अव्यक्त अभिव्यक्तियों को चित्रित करती हैं तथा संयोग एवं वियोग के भाव उत्पन्न करती हैं। काव्य संग्रह में कवयित्री के सराहनीय सृजन की झलक परिलक्षित होती है। कुछ स्थानों पर वर्तनीगत, व्याकरणिक एवं प्रूफ़ संबंधी अशुद्धियां भी हैं, जिन्हें दूर किया जा सकता था। कुल मिलाकर यह  कहा जा सकता है कि नई कविता लेखन-क्षेत्र में ‘ठोकर से ठहरो नहीं’ कवयित्री अर्चना सबूरी का एक सराहनीय प्रयास है। 96 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 150 रूपये है, जिसे गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है।

 

हिन्दी के छन्द विधान की जानकारी की पुस्तक



 हिन्दी साहित्य के रीतिकालीन आचार्य कवियों ने आत्म-प्रदर्शन के अंतर्गत अपनी बहुज्ञता प्रदर्शित करने के लिए या काव्य प्रेमियों को ज्ञान देने के लिए लक्षण ग्रन्थों की रचना की थी। इन लक्षण ग्रन्थों में काव्यांगों का लक्षण देकर उसका स्वरचित उदाहरण देने की परम्परा थी। सम्भवतः उसी परंपरा के अंतर्गत अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’ ने अपनी ‘अंतर्नाद’ पुस्तक में हिन्दी साहित्य के प्रचलित एवं अप्रचलित विभिन्न मात्रिक एवं वर्णिक छन्दों के शिल्प विधान के अन्तर्गत उनकी मात्राओं, विभिन्न गणों एवं मापनी की जानकारी का उल्लेख करते हुए उनके स्वरचित उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। पुस्तक दो खण्डों में विभाजित की गयी है। खण्ड एक में 21 मात्रिक छन्दों एवं खण्ड दो में 21 वर्णिक छन्दों का परिचय एवं उनके उदाहरण हैं। प्रचलित मात्रिक छन्दों के अंतर्गत दोहा, सोरठा, चौपाई, रोला, कुण्डलिया, आल्हा जैसे शास्त्रीय छन्दों का उल्लेख है, तो अनेक अप्रचलित छन्द भी सम्मिलित हैं। इसी प्रकार वर्णिक छन्दों के अन्तर्गत भी सवैया एवं घनाक्षरी जैसे प्रचलित एवं अन्य अनेक अप्रचलित छन्दों का उल्लेख स्वरचित उदाहरण देकर किया गया है। पुस्तक में वर्णित कुछ मात्रिक छन्द तो उर्दू ग़ज़लों की अति प्रचलित बह्रों की भांति हैं, जिन्हें हिन्दी छन्दों का नाम दिया गया है। यथा- बिहारी, दिगपाल, शुद्ध गीता, विधाता आदि छंद। रचनाकार ने रचनाओं की भाषा को सहज रखने का प्रयास किया है, जिसके लिए हिन्दी खड़ी बोली के साथ-साथ आसपास के क्षेत्र की बोली में प्रयुक्त शब्दों का प्रयोग किया गया है। हालांकि कहीं-कहीं कठिन एवं संस्कृतनिष्ठ शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। पाठकों की सुगमता के लिए रचनाओं के अन्त में कुछ कठिन शब्दों के अर्थ भी दिए गए हैं। पुस्तक के अन्तर्गत कहीं-कहीं अशुद्धियां भी परिलक्षित होती हैं, यथा- कुछ रचनाएं शिल्प की दृष्टि से दोषयुक्त हैं, जिसके कारण लयभंग की स्थिति आ जाती है। सोरठा छन्द के कुछ उदाहरणों में मात्राओं की गणना ठीक होते हुए भी इसी प्रकार का लय भंग दोष है। रचनाओं में जप्त, भृष्ट, खतम, नीती, खयालें जैसे अशुद्ध शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए था। कुल मिलाकर पुस्तक का लेखन श्रमसाध्य कहा जाएगा। साहित्य के गहन एवं गंभीर अध्येताओं के लिए यह पुस्तक पठनीय है। अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’ की 128 पृष्ठों की इस पुस्तक को नवकिरण प्रकाशन, बस्ती (उ0प्र0) द्वारा प्रकाशित किया गया है, जिसका मूल्य  180 रुपए है।

    पठनीय एवं सराहनीय काव्य-संग्रह



 ’आईना-ए-हयात’  अतिया नूर के 80 गीतों और नज़्मों का संग्रह है। बेहतरीन कलाम और सशक्त शैली इस संग्रह की मुख्य विशेषता है। हिंदी और उर्दू में एकता स्थापित करके आम बोलचाल की भाषा में ये अपनी बात कहती हैं। भाषा, शिल्प और सलीक़े की बात कहने में इन्हें पूरी महारत हासिल है। रचनाकार का अपना अनुभव, अपनी सोच एवं भावाभिव्यक्ति उत्तम कोटि की है। ’आईना-ए-हयात’ का काव्य सृजन रचनाकार की रचनाधर्मिता एवं सृजनात्मकता को उजागर करता है। कई रचनाएं बहुत अच्छी बन पड़ी हैं। शिल्प विधान की दृष्टि से भी कविताएं आकर्षित करती हैं तथा काव्य व्याकरण की कसौटी पर सभी रचनाएं पूर्णतः खरी उतरती हैं। कथ्य की दृष्टि से भी सभी रचनाएं श्रेष्ठ एवं सराहनीय हैं। ‘उर्दू की कहानी’ कविता के माध्यम से संक्षेप में उर्दू भाषा का पूरा इतिहास बता दिया गया है। ‘तख़्त पे क़ातिल बिठाया जाएगा’ कविता में तुच्छ राजनीति पर प्रहार करने का प्रयास किया गया है। ’ऐ मेरी माँ’, ’जहाँ सर झुका दो’ या ’ये कौन लोग है’ सभी रचनाएं बेहतरीन है। अतिया नूर की लेखनी में परिपक्वता एवं काव्य की व्यापक समझ है। शिल्प विधान की दृष्टि से भी कविताएं आकर्षित करती हैं। संग्रह में सम्मिलित’झीनी-झीनी बिनी चदरिया’ गीत दार्शनिकता का पुट लिए हुए हैः- झूठे सारे बंधन हैं और झूठे रिश्ते नाते हैं/मैं हूँ तेरी, तू है मेरा ,सब किस्सों की बातें हैं/चार दिनों का खेल-तमाशा, चार दिनों का मेला है/आते वक़्त अकेला था तू, जाते वक़्त अकेला है/पल दो पल है यहां ठहरना दुनिया जैसे ढाबा जी/मन में हो गर मैल तो फिर क्या जाना काशी-काबा जी। पुस्तक में कहीं-कहीं प्रूफ़ सम्बन्धी त्रुटियां हैं। इसके अतिरिक्त एक रचना को मात्र एक पृष्ठ में समेट देने के लिए पुस्तक के मुद्रण में अलग-अलग फ़ॉण्टृस साइज़ का प्रयोग प्रकाशक ने किया है, पढ़ने के दौरान पाठक को कुछ असुविधा-सी होती है। कुल मिलाकर ’आईना-ए-हयात’ एक अतिया नूर का पठनीय एवं अत्यन्त सराहनीय काव्य-संग्रह है। रवीना प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित 90 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 200 रूपये है।


 मनोभावों को अभिव्यक्त करतीं कविताएं    


  

डॉ. मधुबाला सिन्हा के कविता-संग्रह ‘पहली बून्द’ में उनकी 64 कविताएं संग्रहीत हैं। इन कविताओं में कवयित्री द्वारा वर्तमान सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को उभारने की चेष्टा की गयी है। कविताएं समय और व्यक्ति के द्वंद्व को उकेरती हुई संवाद और संघर्ष करती सी प्रतीत होती हैं। अधिकतर रचनाएं आदमी की आशा, निराशा, चुनौतियां, संवेदनाएं, उसका अलगाव जैसी अभिव्यक्तियों को पाठक तक पहुंचाती है। जीवन की विसंगतियां, मानव मन की गुत्थियां, अंतर्मन की पीड़ाएं, नारी-मन की व्यथा एवं आज के सरोकार आदि का चित्रण भी संकलन की कविताओं में किया गया है। कविताओं में जीवन की विषमता एवं विवशता, निराशाएं तथा कुण्ठाएं, समाज की पुरानी रूढ़ियों एवं परम्पराओं के प्रति क्षोभ एवं आक्रोश परिलक्षित होता है। साथ ही, प्रकृति-चित्रण एवं प्रेम तथा श्रृंगार विषयक रचनाएं भी हैं। कविता-संग्रह में मन की भावनाओं के कई रूप हैं, जिन्हें अभिव्यक्ति प्रदान करने का प्रयास किया गया है। कथ्य की दृष्टि से रचनाओं में विविधता परिलक्षित होती है। 

 कविता-संग्रह में ‘रेशमी लड़की’, ‘रिश्ता’, ‘स्वप्न’ जैसी स्त्री-विमर्श की रचनाएं भी सम्मिलित हैं। कवयित्री का मानना है कि ‘कविता चाहे वह देश की हो, दर्द की हो या फिर छटपटाते-तड़पते दिलों की हो, वह नारी की ही आवाज़ है। नारी वर्ग के प्रति समाज की पूर्वपोषित परम्पराओं से विद्रोह की भावना इन रचनाओं में स्पष्ट रूप से इंगित होती है तथा नारी-मन की व्यथा को उजागर करने में रचनाकार को सफलता मिली है।  शिल्प की दृष्टि से संकलन की कविताएँ अतुकान्त एवं छन्दहीन हैं। लेखन में सरल एवं सहज शब्दों का प्रयोग किया गया है। शब्दों में कृत्रिमता एवं आडम्बर नहीं झलकता है। यद्यपि, अनेक रचनाओं में व्याकरणिक एवं वर्तनीगत त्रुटियां परिलक्षित होती हैं। ध्यातव्य है कि साहित्यिक सृजन हेतु काव्य व्याकरण एवं भाषा व्याकरण का सम्यक् ज्ञान भी रचनाकार के लिए अत्यावश्यक होता है। संकलन के शीर्षक में प्रयुक्त ‘बून्द’ शब्द ही वर्तनीगत रूप से त्रुटिपूर्ण है। इस पर दृष्टि जाते ही लेखक एवं प्रकाशक का भाषा एवं वर्तनी ज्ञान पाठक के समक्ष स्वयमेव उजागर हो जाता है। फिर भी, महिला लेखन के क्षेत्र में कवयित्री का यह प्रयास स्वागत योग्य है तथा रचनाशीलता सराहनीय है। 64 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 100 रूपये है, जिसका प्रकाशन नवारम्भ, पटना ने किया है।

(गुफ़्तगू के जुलाई-सितंबर 2022 अंक में प्रकाशित)


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