शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

अम्न और भाईचारे के फूलों का गुलदस्ता


                                           -अजीत शर्मा ‘आकाश’


                                             

  पत्रकार, साहित्यकार एवं शायर इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी की पुस्तक ‘फूल मुख़ातिब हैं’ में उन्होंने फूल विषय पर 300 शे’र कहे है। अधिकतर शे’र प्रेम एवं श्रृंगार विषय पर केंद्रित हैं, जिनके माध्यम से अपने महबूब की तारीफ़, मान-मनुहार एवं इश्क़ का इज़हार किया गया है। शायरों एवं कवियों के लिए फूल प्रारम्भ से ही प्रेम के प्रतीक रहे हैं। अपने महबूब की तारीफ़ करनी हो, या अपनी मुहब्बत का इज़हार करना हो तो इनसे अच्छा माध्यम कोई नहीं है। “फूल नाज़ुक है मानता हूं मैं/ तेरे लब से मगर ज़रा कम है।“, “फूल ख़ुद को हसीन कहते थे/ तुमको देखा तो भरम टूट गया।“, “पास जब भी तुम इनके होते हो/ फूल दिलकश हसीन लगते हैं।“ इसके अतिरिक्त फूल के बहाने इन शेरों में प्रेम, मुहब्बत, भाईचारे, पारस्परिक सौहार्द और विश्व बंधुत्व का संदेश देने का प्रयास किया है। जिस प्रकार जीवन के अनेक रंग होते हैं, उसी प्रकार फूल भी अनगिनत रंगों के होते हैं। ये सबके लिए ख़ुश्बू लुटाते हैं, जिनसे संसार महकता है। शायर की तमन्ना है कि फूलों की ख़ुश्बू निरंतर फैलती रहे। फूल हमें ख़ुशबू का एहसास कराते रहें और जीना सिखाते रहें। मोहब्बत का पैग़ाम इस तरह दिया गया हैः- “दुश्मनों को भी फूल भेजो तुम/ एक दिन दुश्मनी भुला देंगे।“

  फूल सदैव सकारात्मकता के प्रतीक होते हैं। ये फूल हर किसी को जीने का हौसला देते हैं। ये हमें ज़िन्दगी की हक़ीक़त से रूबरू कराते हैं, मानो कह रहे हों कि ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत हैः-“फूल देखो और फिर बोलो/ कितनी प्यारी ये ज़िंदगानी है।“ देखा जाए तो फूल हमें जीवन-संघर्ष की प्रेरणा भी देते हैं। आंधी, तूफ़ान, बरसात, गर्मी, सर्दी सब झेलते हुए हर हाल में मुस्कुराते और खिलखिलाते रहकर फूल एक अनमोल सन्देश देते हैं। फूल हमारे साथ कभी मुस्कुराते हैं कभी खिलखिलाते हैं, तो कभी उदास होते हैं। हमारे हंसने पर फूल हंसते हैं, हम दुखी होते हैं, तो फूल भी उदास होते हैं, ऐसा शायर का मानना हैः-“फूल फिर है उदास ऐ ग़ाज़ी/आज तुम फिर से मुस्कुरा देना।“ दार्शनिक अन्दाज़ में कहे गये कुछ शे’र अपने अंदर गूढ़ अर्थ समेटे हुए हैं। पुस्तक में अलग-अलग अन्दाज़ के अशआर हैं, जिनके बहुआयामी अर्थ निकलते हैं-“फूलों के संसार में तरह-तरह के रंग/कुछ में तेरा रंग है, कुछ में मेरा रंग।“ आज निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए लोग कुछ भी कर डालते हैं तथा दूसरों की भावनाओं एवं उनके हित-अनहित से इन्हें कोई लेना देना नहीं होता। इसी पीड़ा को इस शे’र में अभिव्यक्ति दी गयी हैः-“फूल की ज़िन्दगी के लिए/ मुझको कांटा बनाया गया।“ यह पुस्तक एक प्रकार से अम्न और भाईचारे के फूलों का गुलदस्ता है। शे’र कहने का शायर का अन्दाज़ लुभावना है। सादा ज़बान, आम लहज़े एवं आमफ़हम भाषा में बात कही गयी है। कठिन एवं बोझिल शब्दों से बचा गया है। गुड मार्निंग, प्रोफ़ाइल, प्रॉमिस, वेलेंटाइन, आई लव यू, ब्रेकअप, लबबैक जैसी भाषा एवं शब्दों का प्रयोग कर शायरी को एक नया एवं आधुनिक अन्दाज़ देने का प्रयास किया गया है। कुल मिलाकर फूल को प्रतीक मानकर, फूल लफ़्ज़ एवं विषय पर सकारात्मक सोच के 300 शेरों की ‘फूल मुख़ातिब हैं’ पुस्तक पठनीय एवं सराहनीय है। 80 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 130/ -रूपये है, जिसे गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है।

श्रेष्ठ गीतों का संकलन



 छंद विहीन नयी कविता के इस दौर में अधिकतर रचनाकार स्वयं को कवि कहलाने के लिए कुछ पंक्तियों को जोड़-तोड़कर एक रचना कर डालते हैं, जिसे वह कविता का नाम दे देते हैं। इससे कविता की छन्दबद्धता में एक प्रकार का प्रदूषण-सा फैलता हुआ दृष्टिगोचर होता है। इस प्रकार की रचनाओं में लयात्मकता एवं गेयता के लिए कोई स्थान नहीं होता है। इसका सीधा-सा कारण है कि इस प्रकार के रचनाकार छन्दानुशासन से नितान्त अनभिज्ञ होते हैं तथा छन्दानुशासन सीखना ही नहीं चाहते। ऐसे में छंदबद्ध लयात्मक गीतों के संग्रह से रूबरू होना एक सुकून सा प्रदान करता है। ‘मैं भी सूरज होता’ कवि अशोक कुमार स्नेही के 20 गीतों एवं मुक्तकों की लघु पुस्तक है। इस पुस्तक में उनके कुछ विशिष्ट गीत एवं मुक्तक संकलित किये गये हैं। गीतों में छन्दबद्धता, लयात्मकता एवं गेयता की ओर पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है तथा तुकान्तता का भलीभाँति निर्वाह किया गया है। सभी रचनाएँ भाव प्रवण हैं। गीतों की भाषा में समरसता परिलक्षित होती है। शब्द चयन भी सराहनीय है, जिसके अन्तर्गत सामान्य बोलचाल के शब्दों से लेकर साहित्यिक एवं परिमार्जित एवं संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। पुस्तक में संकलित अधिकतर गीत संयोग एवं वियोग श्रृंगार रस प्रधान हैं तथा हृदय को आह्लादित करते हैं। कुछ रचनाओं में सामाजिक विसंगतियों का चित्रण भी किया गया है।

 पुस्तक के शीर्षक गीत ‘मैं भी सूरज होता’ में कवि कहता हैः- अब तक जितना चला डगर मैं, मेरे साथ चला अँधियारा/ जाने इस सूरज को मेरी क्यों कोई परवाह नहीं है। ‘मेरा दीप रात भर रोया’ शीर्षक रचना में आज के समाज में फैली हुई आर्थिक असमानता एवं विषमता का यथार्थ चित्रण किया गया हैः- उनके आँगन फसल ज्योति की/ मेरे द्वार अँधेरा बोया/ उनके दीपक हँसे रात भर/ मेरा दीप रात भर रोया। ‘ओ अशरीरी मेघ’ कालिदास के मेघदूतम् से अनुप्रेरित एक भाव प्रवण एवं सुन्दर गीत-रचना है। ‘तुम नहीं जब’ गीत में वियोग श्रृंगार का अच्छा चित्रण किया गया है। ‘देश के वास्ते’ एक देशभक्ति पूर्ण रचना है। मुक्तक रचनाएँ भी अच्छी बन पड़ी हैं। आँसुओं के घरौंदे गिराये गये/ बेगुनाहों पे फिर जुल्म ढाये गये/ हार रानी का लेकर के कागा उड़ा/ नौकरानी को कोड़े लगाये गये। इस मुक्तक में आज के आम आदमी की दशा-दुर्दशा का यथार्थ चित्रण करने का प्रयास किया गया है। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य रचनाओं के उल्लेखनीय अंश इस प्रकार हैं रू- आओ कुछ फूल चुने ऐसे/ शूल जिन्हे सपने मे देख डरे (आओ कुछ बात करे)। ऐसे सम्बन्घ हम जिये/ शब्दों के अर्थ खो गये (बासी सकल्पो का गीत)। पुस्तक में प्रूफ़ सम्बन्धी एवं वर्तनीगत अशुद्धियों को दूर नहीं किया गया है। इसके बावजूद छन्दबद्ध रचनाओं के प्रेमी पाठकों के लिए यह संग्रह पठनीय एवं सराहनीय है। 52 पृष्ठों के इस गीत संग्रह का मूल्य 100 रूपये है, जिसे अलका प्रकाशन, ममफोर्डगंज, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है।


मनोभावों को अभिव्यक्ति करती कविताएं



 ‘गुफ़्तगू प्रकाशन’ की पुस्तक ‘दहलीज़’ कवयित्री डॉ. मधुबाला सिन्हा की 58 कविताओं का संग्रह है। कहा गया है कि कविताएं मन के समस्त भावों को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम हैं। इन्हीं मनोभावों को कवयित्री ने अपने काव्य-संग्रह में अभिव्यक्त करने की चेष्टा की है। अपने कविता-लेखन के संबंध में कवयित्री का कथन है कि वह छंदमुक्त एवं नई कविताओं की रचना करती रही हैं, किन्तु इस काव्य-संग्रह में उन्होंने गीत लिखने का प्रयास किया है। काव्य सृजन की कोई विधा हो, उसमें अनुशासन अत्यावश्यक है। गीत एक छन्दबद्ध कविता होती है, जिसका एक शिल्प विधान हैं और उसका पालन किया जाना अनिवार्य होता है, तभी वह रचना गीत कहलाती है। कवयित्री के इस संग्रह की रचनाएं गीत के शिल्प की कसौटी पर पूरी तरह खरी नहीं उतरती हैं। पुस्तक में संग्रहीत कविताओं के कथ्य को दृष्टिगत रखते हुए कहा जा सकता है कि लेखन में सरलता और सहजता है, लेकिन कवयित्री का भाषा और अभिव्यक्ति पर अधिकार प्रतीत नहीं होता है। संग्रह की कविताएं सामान्य स्तर की हैं। वर्ण्य विषय की दृष्टि से संग्रह की रचनाओं में श्रृंगार एवं प्रणय, वर्तमान समाज का चित्रण, जीवन की अनुभूतियां तथा संवेदनाएं, जीवन का यथार्थ, सामाजिक सरोकार, स्त्री की हृदयगत कोमल भावनाएं, आम आदमी की व्यथा आदि पहलुओं को स्पर्श करते हुए अपने एवं ज़माने के दुख-दर्द को भी रचनाओं में अभिव्यक्ति प्रदान की गयी है। कविताओं में जीवन में व्याप्त संत्रास, घुटन, वेदनाओं एवं अनुभूतियों को शब्द प्रदान किये गये हैं। रचनाओं में यत्र-तत्र जीवन के अन्य अनेक रंग भी सामने आते हैं। संग्रह की अधिकतर रचनाएं संयोग एवं वियोग श्रृंगार विषयक हैं। इस प्रकार की कविताएं प्रेम के विभिन्न पक्षों, संबंधों, विसंगतियों, अनुभूतियों तथा व्यक्त और अव्यक्त प्रेम की अभिव्यक्तियों का चित्रण करती प्रतीत होती हैं। 

 पुस्तक की कुछ कविताओं के उल्लेखनीय अंश इस प्रकार हैः- जब भी दो पल मिले प्रिये तुम/पास मेरे यूं ही चले आना (‘जब भी दो पल मिले’)। चपल चांदनी चंचल चितवन/छिटक रही आकाश है/धवल नवल जग की शीतलता/प्रकाश का आभास है (‘चपल चांदनी चंचल चितवन’)। चलो दिया से दिया जलाएं/जहां बिखरा हो राग-द्वेष/प्यार का कोई फूल खिलाएं (‘चलो दिया से दिया जलाएं’)। एक दिवस मिलने आऊंगी/अपने द्वार खड़े तुम मिलना (‘एक दिवस मिलने आऊंगी’)। बिखर गए संगी और साथी/बिछड़ गया है प्यार/बहुत अब रोता है मन (‘बहुत अब रोता है मन’)। अपने मनोभावों को कविताओं के रूप में अभिव्यक्त करने की कवयित्री ने अपनी ओर से भरपूर चेष्टा की है। संग्रह के सृजन का प्रयास सराहनीय कहा जा सकता है। गीत-लेखन का कवयित्री का यह प्रयास निश्चित रूप से सफल कहा जाता, यदि छन्दशास्त्र की ओर विशेष ध्यान दिया गया होता। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कविता लेखन के क्षेत्र में यह एक सार्थक एवं सराहनीय लेखन है, जो सृजनात्मकता का द्योतक है। पुस्तक का मुद्रण एवं तकनीकी पक्ष सराहनीय है। 96 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 150 रूपये है, जिसे गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है।


कोरोना काल की अनुभूतियों की अनूठी कहानियां



 डॉ. अमिता दुबे ने कहानियां, उपन्यास, काव्य, बाल साहित्य, समीक्षा एवं समालोचना आदि साहित्य की अनेक विधाओं में अपना उल्लेखनीय रचनात्मक योगदान किया है, जिसके फलस्वरूप अनेक संस्थाओं द्वारा इन्हें पुरस्कृत एवं सम्मानित किया गया है। ‘धनुक के रंग’ इनका कहानी संग्रह है, जिसमें संकलित कहानियों को कोविड-19 महामारी की विभीषिका के भयावह पक्ष को केंद्र में रखकर लिखा गया है। कोरोना काल के दौरान समाज के लोगों की मानसिक, शारीरिक, आर्थिक स्थितियों एवं जीवन-संघर्ष का मनोवैज्ञानिक चित्रण करने की सफल चेष्टा की गयी है। कथावस्तु, कथोपकथन, पात्र, देशकाल-वातावरण जैसे कहानी के तत्वों के आधार पर संग्रह की कहानियां खरी उतरती हैं। कहानियों की विषयवस्तु समसायिक है। सभी कहानियों की भाषा एवं शैली सधी हुई, सरल, सहज एवं बोधगम्य है तथा इनका उद्देश्य समाज को एक अच्छा सन्देश प्रदान करना है। सहज एवं स्पष्ट संवाद, घटनाओं का सजीव चित्रण तथा पाठकों के मन में रोचकता बनाये रखना इन कहानियों में मुख्य रूप से परिलक्षित होता है। संग्रह में कहानीकार ने अपनी पैनी तथा सूक्ष्म दृष्टि से परिस्थितियों का गहन अवलोकन करते हुए एवं समाधान की दिशा बताते हुए अपनी रचनात्मकता को उच्च आयाम दिए हैं। कहानियों की कथावस्तु के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को सामने लाने का प्रयास किया गया है। प्रत्येक साहित्यिक रचना अपने समय का दस्तावेज़ होती है। ‘धनुक के रंग’ कहानी संग्रह भी कोरोना काल के एक महत्वपूर्ण दस्तावेज की भांति प्रतीत होता है। अपनी इच्छाओं के अनुरूप कुछ वर्ष जीने की आकांक्षा करती हुई “अब तो लौट आओ” अवनि की कहानी है, जो अपने घर-परिवार को त्यागकर जीवन के कुछ अनुत्तरित प्रश्नों को लेकर आश्रम में चली जाती है। कहानी में दर्शाया गया है कि जिंदगी में बहुत सारे सवालों के जवाब हमें मिलते ही नहीं। “मन न भए दस बीस”  प्रेमविवाह के उपरांत उत्पन्न पारिवारिक, सामाजिक स्थितियों-परिस्थितियों एवं अंतर्द्वंद्व का चित्रण करती है। कोरोना काल के समय अनेक बार ऐसी भी परिस्थितियां सम्मुख आयीं, जब संकट की घड़ी में लोगों के असली चेहरे देखने को मिले। संक्रमण काल में कहीं स्वार्थ-लोलुपता दिखी, तो कहीं लोगों ने एक-दूसरे की बढ़-चढ़ कर मदद भी की। ‘धनुक के रंग’ कहानी संग्रह में धनुक अर्थात् इन्द्रधनुष के सात रंगों की भांति जीवन के रंगों को प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है। धनुक के सभी फीके रंग मिट जाएं और चटक रंग अपनी आभा बिखेरें, इन कहानियों माध्यम से यही सन्देश प्रदान करने की चेष्टा की गई है। इस संकलन की कहानियों में लेखिका का सामाजिक सरोकार स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। 120 पृष्ठों के इस कहानी संग्रह को नमन प्रकाशन, लखनऊ ने प्रकाशित किया है, जिसका मूल्य मूल्य 150 रुपये है।


 शब्दों की हथौड़ियों से विसंगतियों पर करारी चोट

 पुस्तक ‘हथौड़ियों की चोट’ कवि केदारनाथ ‘सविता‘ की कविताओं का संग्रह है। इन कविताओं में सामाजिक, पारिवारिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक आदि जीवन के सभी पहलुओं को स्पर्श किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवन की अनुभूति, मानव संवेदना, प्रकृति-चित्रण, आज के युग की विडम्बनाएँ आदि सम्मिलित हैं। कविताओं में आज के जीवन में व्याप्त संत्रास, घुटन, वेदनाओं एवं अनुभूतियों को चुटीले एवं मारक शब्द प्रदान किए गए हैं। पुस्तक की मुख्य विधा हास्य-व्यंग्य है, जिसके माध्यम से सामाजिक एवं राजनीतिक विसंगतियों पर प्रहार किया गया है। वर्तमान दौर में आम आदमी जीवन की जटिल समस्याओं, विद्रूपताओं एवं अनेक विसंगतियों से जूझ रहा है तथा जीने के लिए भरपूर संघर्ष कर रहा है। राजनेता अपने-अपने स्वार्थों में लिप्त हैं। महंगाई चरम पर है और दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। अनेक कठिनाइयाँ मनुष्य की प्रगति की राह रोके खड़ी हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों पर रचनाकार ने शब्दों की हथौड़ियों की गहरी चोट कर समाज को जाग्रत करने की चेष्टा की है। विसंगतियों का यथार्थ चित्रण, आज के राजनेताओं की नीयत, आम आदमी की व्यथा-कथा, वर्तमान दौर की विडम्बनाएँ, सामाजिक विसंगतियाँ, आज के समय का सच, आपसी सद्भाव और भाईचारा, ज़िन्दगी, आशावाद आदि पुस्तक की रचनाओं के वर्ण्य-विषय हैं, जिनमें पाठक को विविधता परिलक्षित होती है। कविताओं में वर्तमान परिवेश की अनेक अनुभूतियों को रोचक ढंग से सामान्य बोलचाल की भाषा में समाहित करने की चेष्टा की गयी है। संग्रह में सम्मिलित कुछ कविताएँ इस प्रकार हैं- महंगाई ने/ रोटी का आकार/ जितना छोटा कर दिया है/ आदमी ने उसे/ उतने ही बड़े तराजू में/ ईमान के साथ/ तौल दिया है (रोटी)। आज के दौर के राजनेताओं पर करारा कटाक्ष इस प्रकार किया गया हैः- आम का बाग है/ मेरा देश/ लूट लो/ जितना लूट सको/ तोड़ लो सारे फल/ कच्चे हों या पक्के/ तुम नेता हो/ इस देश के (मेरा देश)। तपती सड़क पर फ़्लैट में पंखा/ पंखे के नीचे अफसर/ अफसर के नीचे कुर्सी/ कुर्सी के नीचे/ जनता की मातमपुरसी/ सब क्रमबद्ध ही तो है (क्रमबद्ध)। इनके अतिरिक्त ‘हम आज़ाद हैं’, ‘जीने के लिए’ ‘नमक’ ‘जीवन’ आदि अन्य रचनाएँ भी सराहनीय हैं। पुस्तक का तकनीकी पक्ष आकर्षक है। समसामयिक विषयों पर हास्य-व्यंग्य शैली में लिखी गयी तथा आम पाठक को जल्दी समझ में आने वाली छोटी-छोटी चुटीली एवं मारक कविताएं समेटे हुए हथौड़ियों की चोट कवि केदारनाथ ‘सविता’ का पठनीय एवं सराहनीय कविता संग्रह है। 120 पृष्ठों की इस सजिल्द पुस्तक का मूल्य  350 रुपये है, जिसे हिन्दी श्री पब्लिकेशन, संत रविदास नगर, उ0प्र0 ने प्रकाशित किया है।

( गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2022 अंक में प्रकाशित )

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