सोमवार, 21 मार्च 2022

विडंबनाओं से चिंतित हैं ममता अमर: डॉ. सरोज सिंह

ममता अमर के काव्य संग्रह ‘तिमिर से समर’ का हुआ विमोचन

विमोचन समारोह के बाद हुए मुशायरे में सुनाए गए उम्दा कलाम



प्रयागराज। कवयित्री ममता अमर समाज की विडंबनाओं से बहुत चिंतित हैं, इसे लेकर लोगों को सचेत करती हैं और जीवन मूल्यों की वास्तविकता को रेखांकित करती हैं। अपनी कविताओं के जरिए वह बता रही हैं कि हम किस तरह के समाज में रहते हैं, हमने कैसा समाज गढ़ लिया है, जिसमें इंसानियत कहीं दिखाई नहीं देती। ममता अमर अबला नारी की तरह बात नहीं करतीं, वह आज के दौर की महिला बनकर महिलाओ की बात करती है, जिसकी वजह इनकी पुस्तक ‘तिमिर से समर’ एक अलग तरह की पुस्तक बन गई है, निश्चित रूप से साहित्य जगह में इसका जोरदार स्वागत होगा। यह बात मशहूर आलोचक डॉ. सरोज सिंह ने 20 मार्च को गुफ़्तगू की ओर से कैरली स्थित अदब घर में ममता अमर के काव्य संग्रह ‘तिमिर से समर’ के विमोचन अवसर पर कहां।

गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि सोशल मीडिया के दौर में भी पुस्तकों का अपना महत्व है, किसी भी रचनाकार का आकंलन उसकी उन्हीं कविताओं पर होता है, जिनका प्रकाशन हुआ हो, पुस्तक का अपना महत्व है। पुस्तक पर ही रचनाकार के लेखन का आकंलन किया जाता है। डॉ. वीरेंद्र तिवारी ने कहा कि ममता की कविताओं से लगता है वह पुरूषों से बग़ावत कर रही हैं, लेकिन वास्तव में बग़ावत नहीं कर रही है, बल्कि वास्तविकता की बात करती हैं। अपनी कविताओं के जरिए पुरूषों के अहंकार को चुनौती देती है, अपनी कविताओं में कहती है कि वह अगले जन्म में भी पुरूष नहीं होना चाहती।

 अजीत शर्मा ने कहा कि ममता अमर की कविताओं में समाज के विभिन्न रूपों का आंकलन दिखाई देता है, जिसमें वह वास्तविकता की बात करती हैं, पुरूषों को खुले रूप में बिना किसी संकोच के चुनौती देती हैं। मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद पूर्व अपर महाधिवक्ता क़मरुल हसन सिद्दीक़ी ने कहा कि ममता की कविताओं को पढ़ने बाद बिना किसी संकोच के कहा कि स़्त्री कमजोर नहीं है, पुस्तक में शामिल सारी कविताएं इस बात की गवाही देती है। गुफ़्तगू के सविच नरेश महारानी ने कहा कि ममता की कविताएं आज के समय के लिए बेहद ख़ास है, इनका सही ढंग से आंकलन किया जाना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया।

दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। प्रभाशंकर शर्मा, अनिल मानव, संजय सक्सेना, शैलेंद्र जय, अफसर जमाल, हकीम रेशादुल इस्लाम, फ़रमूद इलाहाबादी, रचना सक्सेना, रजिया सुल्ताना, ऋतंधरा मिश्रा, राकेश मालवीय, अशोक श्रीवास्तव, हरीश वर्मा, असद ग़ाज़ीपुरी, प्रकाश सिंह अश्क, मोहम्मद  अनस, शाहिद इलाहाबादी, सुएए इलाहाबादी, शरद श्रीवास्तव, असलम निज़ामी, सलाह ग़ाज़ीपुरी, सेलाल इलाहाबादी और जफ़र सईद जिलानी ने कलाम पेश किया। 


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