सोमवार, 14 मार्च 2022

सिर्फ़ अमीरों को बुलाना सबसे खराब दावत

                                                                                            - अजीत शर्मा ’आकाश’

     


                                     

     मौलाना अलहाज मो. शर्फ़ुद्दीन ख़ान क़ादरी की 62 पृष्ठों की पुस्तिका ‘इरशादाते रसूल’ में ज़िन्दगी में रोज़मर्रा के काम आने वाली इस्लाम मज़हब की बेसिक जानकारियां उपलब्ध कराई गई हैं। इस लघु पुस्तक में मुस्लिम शरीफ़, बुख़ारी मुस्लिम, आदाब सुन्नत, रूह अलबयान आदि धार्मिक पुस्तकों के हवाले से लगभग 114 हदीस पाक का संकलन किया गया है। बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिनका पालन सभी को करना चाहिए। जैसे कि इसमें कहा गया है कि झूठ हरगिज़ न बोलो और कभी किसी से झूठा वादा मत करो। अपनी जु़बान से किसी को गाली मत दो। इसी तरह बताया गया है कि बहादुर वह नहीं, जो पहलवान हो और दूसरे को पछाड़ दे, बल्कि बहादुर वह है जो ग़ुस्से के वक़्त अपने आप को क़ाबू में रखे। किसी भी वलीमा (दावत) में सबसे बुरा खाना वह है जिसके लिए सिर्फ़ मालदार लोग बुलाए जाएं और ग़रीब मोहताज लोगों को न पूछा जाए। शिर्क और झूठी गवाही और शहादत को छुपाना बड़ा गुनाह बताया गया है। पुस्तक देवनागरी लिपि में हैं, जिससे उर्दू की जानकारी न रखने वाले भी इन्हें पढ़ सकें। इस पुस्तक को क़ादरी बुक डिपो, नूरुल्लाह रोड, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है। 


‘इस्लामी मालूमात’ में 600 सवालों के जवाब  


मौलाना अलहाज मो. शर्फ़ुद्दीन ख़ान क़ादरी की दूसरी पुस्तक ‘इस्लामी मालूमात’ में लगभग छह सौ सवालों व जवाबों के माध्यम से इस्लाम मज़हब के बारे में बताया गया है। इस्लामी मज़हब की बेसिक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए यह पुस्तक लिखी गयी है। आज के जीवन में व्याप्त भागदौड़ को देखते हुए पुस्तक में कम समय में अधिक जानकारी देने का प्रयास किया गया है। पुस्तक में तफ़सीरे नईमी, मआरेजुन्नुबूवत, रूहुलबयान, सच्ची हक़ायात, आइन-ए-तारीख़, अलमल्फ़ूज़, शाने हबीबुल, क़ानूने शरीयत आदि धार्मिक पुस्तकों के हवाले से इस्लाम के सम्बन्ध में जानकारी को संकलित किया गया है। मस्जिद बैतुल मामूर किस आसमान में है, जन्नत और दोज़ख के दरबान का नाम, सबसे पहले अल्लाहो अकबर किसने कहा, अरबी सबसे पहले लिखने वाला नबी, अज़ान की शुरूआत कब, जन्नत कहां है, जन्नत के सबसे बड़े पेड़ का नाम जैसे सवालों के जवाब दिये गये हैं। इसी तरह फ़िज़ूल वक़्त या फ़िज़ूल रुपया बर्बाद करने वाले के लिए कहा गया है कि वह शैतान का भाई है। पुस्तक को पढ़कर मज़हबी और दुनियादारी की जानकारी मिलती है। 62 पृष्ठों की इस पुस्तक को क़ादरी बुक डिपो, नूरूल्लाह रोड, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है, जिसकी क़ीमत 35 रूपये हैं।


‘बारह महीनों के इस्लामी त्योहार’ क्या हैं ?  



‘बारह महीनों के इस्लामी त्योहार’ पुस्तक में इस्लामी साल के बारह महीनों का ज़िक्र किया गया है। इन बारह महीनों के नाम मोहर्रमुलहराम, माहे सफ़र, रबीउल अव्वल शरीफ, रबीउल आखि़ऱ, जमादिउल अव्वल, जमादिउल आखि़ऱ, रज्जबुल मुरज्जब, शाबान, रमज़ानुल मुबारक, शव्वालुल मुकर्रम, जिलकदा और जिलहिज्जा हैं। किस महीने में कौन सा इस्लामी त्योहार मनाया जाता है, इसको बताया गया है। इसके अलावा हर महीने की अन्य ख़ासियतें भी बतायी गयी हैं। मोहर्रमुलहराम, ग्यारहवीं शरीफ़, रजबी शरीफ़, कूंडे का फ़ातिहा, शबे बराअत, तीजा चालिसवां वग़ैरह का तजकरा व फ़ातिहा के बारे में मज़हबी लिहाज़ से शंकाओं का समाधान किया गया है। मौलाना अलहाज मोहम्मद शर्फ़ुद्दीन ख़ान क़ादरी द्वारा लिखी गयी 112 पृष्ठों की इस पुस्तक को क़ादरी बुक डिपो, नूरूल्लाह रोड, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है, जिसकी क़ीमत 40 रुपये हैं।


अकबर इलाहाबादी के बाद के दौर की ग़ज़लें



   अकबर इलाहाबादी की 100वीं पुण्यतिथि पर इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी के संपादन में ’सदी के मशहूर ग़ज़लकार’ का प्रकाशन हुआ है। इस पुस्तक में देश भर के आज के 130 शायरों की ग़ज़लें संकलित की गई हैं, जिसमें बशीर बद्र, मुनव्वर राना, वसीम बरेलवी आदि की भी ग़ज़लें शामिल हैं। पुस्तक के प्रकाशन का उद्देश्य अकबर इलाहाबादी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ ही आज के दौर में कही जा रही ग़ज़लों की एक झलक प्रस्तुत करना है। इस पुस्तक के माध्यम से हमारे समय के विभिन्न रचनाकारों को पाठकों के सम्मुख लाया गया है। संकलन की ग़ज़लों को देख-पढ़कर यह तथ्य सामने आता है कि आज ग़ज़ल का फ़लक़ बहुत विस्तृत हो चुका है। सृजन की जमीन से जुड़ा रचनाकार समय से आंख मिलाकर बात करता है। आज के दौर की ग़ज़लें सीधे-सीधे आम आदमी से संवाद करती हैं और समाज में व्याप्त भूख, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, सियासत की चालें, नैतिक पतन, आपसी रिश्ते आदि विषयों पर मुखर है। ग़ज़ल ने इतनी लम्बी यात्रा की है कि वह अब लोकप्रियता के शीर्ष पर पहुंच गई है। ग़ज़ल को समझना, वास्तव में जीवन को समझना है। संकलन की अधिकतर ग़ज़लें सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं और प्रभावशाली बन पड़ी हैं। लगभग सभी का कथ्य अच्छा है एवं अधिकतर का शिल्प पक्ष भी सराहनीय है। 

आज के दौर की ग़ज़लों की झलक देखने के लिए संकलन में सम्मिलित ग़ज़लों के कुछ उल्लेखनीय अशआर इस प्रकार हैं-बाज़ार में बिकी हुई चीज़ों की मांग है/हम इसलिए ख़ुद अपने ख़रीदार हो गए। (बशीर बद्र),दबे-दबे से चराग़ों की लौ बढ़े न बढ़े/मगर हम उंगलियां अपनी जलाकर देखते हैं। (डॉ. ज़मीर अहसन) ये अपनी मर्ज़ी से अपनी जगह बनाते हैं/समन्दरों को कोई रस्ता नहीं देता।(वसीम बरेलवी), ग़ुलामी ने अभी तक मुल्क का पीछा नहीं छोड़ा/हमें फिर क़ैद होना है ये आज़ादी बताती है। (मुनव्वर राना), एक रत्ती कम न ज़्यादा चाहिए/मांगते हैं हक़ हमारा चाहिए। (अभिनव अरूण), अंजलि ‘सिफ़र’ का यह शे’र आज के नवीनतम दौर का चित्रण करता है - भूख जब जागी तेरे दीदार की तो/मैगी ख़्वाबों की बनाई दो मिनट में। शायरा अतिया नूर का कहना हैः-पत्थर उछालना ज़रा मेरे वजूद पर/फिर इसके बाद तुम मेरा किरदार देखना। इनके अलावा ऋषिपाल धीमान, हसनैन मुस्तफ़ाबादी, अनिल मानव, उस्मान उतरौलवी, अनुराग ग़ैर, मनमोहन सिंह ‘तन्हा’, यासीन अंसारी आदि भी अच्छी एवं सार्थक ग़ज़लें कह रहे हैं। कहा जा सकता है कि ‘‘सदी के मशहूर ग़ज़लकार”आज के समय की प्रभावशाली ग़ज़लों का संकलन है। इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी द्वारा संपादित 656 पृष्ठों की इस पुस्तक को गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है, जिसका मूल्य 600 रुपये है।


अपने दुख-दर्द को बयां करतीं ग़ज़लें



 वरिष्ठ रचनाकार किशन स्वरूप की ग़ज़लों की पुस्तक ‘यादें हैं यादों का क्या’ प्रकाशित हुआ है, जिसमें उनकी 95 ग़ज़लें हैं। ग़ज़ल संग्रह में आम आदमी से जुड़े जीवन संदर्भों को सम्मिलित किया गया है। कथ्य के लिहाज से ग़ज़लों में वर्तमान समाज का चित्रण, जीवन की अनुभूतियां एवं संवेदनाएं, सामाजिक सरोकार, आम आदमी का संकट, आज के राजनीतिक हालात आदि विषयों को स्पर्श करते हुए अपने एवं ज़माने के दुख-दर्द को भी अभिव्यक्ति प्रदान की गयी है। संग्रह की अधिकतर ग़ज़लों की भावभूमि आत्मप्रधान सी प्रतीत होती है, जो आम जन से भी संवाद करती है। शिल्प की दृष्टि से अधिकतर ग़ज़लें ठीक हैं।

 ग़ज़लों का कथ्य हमारे आपके इर्द गिर्द का ही है। ग़ज़लकार जहां मानवीय संवेदना में आई गिरावट सामाजिक कुरीतियों को लेकर चिंतित है वहीं आज की स्वार्थपरक राजनीति से भी दुखी हैः- “एक जनता है एक है नेता/इक जमूरा है, इक मदारी है।“ आज की गन्दी सियासत पर की गयी टिप्पणीः- “पशेमां कौन है अपने किये पर/वतन गडढे में डाला जा रहा है।“ आज के दौर की कुटिलता इस प्रकार बयान की हैः- “ख़ौफ़ सूरज का है इस क़दर दोस्तो/दिन में तारे कभी टिमटिमाते नहीं।“ आज के दौर की सच्चाईः- “हक़ बयानी कसूर है मेरा/कोई तजबीज़ कर सज़ा मुझको।“ एवं “झूठ की एक महफ़िल सजी इस तरह/सच अकेला किनारे खड़ा रह गया।“ आज के स्वार्थ में डूबे मानव की प्रवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए कहा हैः- “शर्म नहीं आती है ऐब छिपाने में/चेहरे पर चेहरा इक और लगाने में।“ अंधेरों से लड़ने का हौसला बहुत ज़रूरी हैः- “एक जुगनू ने अकेले काम अपना कर दिया/तीरगी को डर लगा घर में उजाला देखकर।“ ज़िन्दगी को हौसला देने की बात कुछ इस तरह कही गयी हैं- “यूं थकन के बाद भी चलते रहो/हौसला देती रही बैसाखियां।“ बेफ़िक्र तबीयत की शायरीः- “अमीरी में बड़ी पाबंदियां हैं/बड़े बेफ़िक्र हैं हम मुफ़लिसी में।“ प्रेम एवं श्रृंगार का विषय भी ग़ज़लों में है। कुछ रोमांटिक शे’र - “न जाने क्या सिफ़त है उस छुअन में/समा जाती है सिहरन सी बदन में।“ एवं “इक ग़ज़ब का ख़ुमार छाया है/कौन इस अंजुमन में आया है।“ आत्मप्रधान प्रवृत्ति की ग़ज़लों में रचनाकार ने स्वयं ही अपनी उम्र का असर दर्शित किया है- ‘बुढ़ापा आ गया तब तो कहीं बचपन सुधारा है’ एवं ‘बुढ़ापा साथ है और हम अकेले/जवानी छोड़ आये किस गली में।’ ग़ज़लों में कहीं-कहीं निराशावाद की झलक भी दिखायी दे जाती है - ‘जितनी लिक्खी थी ज़िन्दगी जी ली/मौत का इंतज़ार करते हैं।’ इस प्रकार रचनाओं के वर्ण्य-विषय में विविधता का समावेश है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि रचनाकार की रचनाधर्मिता एवं सृजनात्मकता की दृष्टि से लेखक किशन स्वरूप का ‘यादें हैं यादों का क्या’ ग़ज़ल संग्रह सराहनीय है। 104 पृष्ठों की इस सजिल्द पुस्तक का मूल्य 150 रुपये है, जिसे उद्योग नगर प्रकाशन, ग़ाज़ियाबाद ने प्रकाशित किया है।


 वर्तमान समय के यथार्थ की कहानियां



 साहित्य को अपने समय एवं समाज का दर्पण कहा जाता है। जितनी ईमानदारी से कोई रचनाकार अपने समय के समाज का यथार्थ चित्रण करने का प्रयास करता है, उसकी रचना उतनी ही श्रेष्ठता को प्राप्त होती है। कहानीकार आरती जायसवाल का प्रथम कहानी संग्रह ‘परिवर्तन अभी शेष है’ में यह प्रयास भली-भांति किया गया है। इस संग्रह की कहानियों के अंतर्गत वर्तमान समाज में घटित होने वाले घटनाक्रमों के माध्यम से पाठक को एक अच्छा संदेश दिया गया है। ‘परिवर्तन अभी शेष है’ में सामाजिक विषयों को लेकर लिखी गयी 15 कहानियां संग्रहीत हैं। इनके माध्यम से कहानीकार ने समाज को रचनाधर्मी सन्देश दिए हैं। विभिन्न कथानकों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, मानवीय मूल्यों का ह्रास एवं बिगड़ते हुए वर्तमान परिवेश पर प्रहार करने का प्रयास किया गया है। संग्रह की कहानियां मार्मिक, हृदयग्राही, प्रभावशाली एवं विविध मनोभाव लिए हुए हैं, जिनमें मानवीय संवेदनाओं एवं भावनाओं को सफलतापूर्वक उकेरने का प्रयास किया गया है। समाज एवं जीवन का यथार्थ सभी कहानियों का मूल विषय है। कहानियों के पात्र देश, काल एवं परिस्थिति के अनुरूप सजीव एवं जीवन्त होकर पाठक के सामने आते हैं।

 ‘भूख’ ग़रीब दलित सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले रजवा की कहानी है। कहानी का एक पात्र कहता है, ‘अभी बहुत दिन हैं विकास कोसों दूर है। उसके मार्ग में लालच, मुनाफ़ख़ोरी, वर्षों से चली आ रही बदहाल व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार जैसी अनेक बाधाएं हैं।’ ‘प्रतिकार शीर्षक कहानी में पति द्वारा निरन्तर अपमान झेलते-झेलते एक स्त्री अपने अधिकार एवं आत्म सम्मान की रक्षा के लिए अपने पति पर हाथ उठाकर अपने शोषण एवं दमन का प्रतिकार करती है। विषयवस्तु, कथानक, पात्रों के कथोपकथन की दृष्टि से कहानियां सराहनीय है। कहानियों में प्रभावोत्पादकता है। कहानियों की भाषा सहज एवं सरल है, किन्तु भाषा-व्याकरण, वर्तनी एवं प्रूफ़ सम्बन्धी अशुद्धियां पुस्तक में यत्र-तत्र दृष्टिगत होती हैं। कहा जा सकता है कि ‘परिवर्तन अभी शेष है’ शीर्षक को सार्थक करती हुई संग्रह की कहानियां समाज एवं जीवन के सन्निकट हैं। वर्तमान सामाजिक विषयों को उठाने एवं उनके समाधान का सन्देश देने के लिए लेखिका साधुवाद की पात्र हैं। उ.प्र. हिन्दी संस्थान प्रकाशन योजना के अंतर्गत प्रकाशित 108 पृष्ठों के इस कहानी-संग्रह का मूल्य मात्र 150 रुपये है।


(गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2021 अंक में प्रकाशित)



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