मंगलवार, 11 मई 2021

अभिव्यक्ति के ज़रिए अपनी बात कहते क़लमकार

                                                                            - अजीत शर्मा ‘आकाश‘ 



 वैश्विक कोरोना महामारी के कारण के अन्य देशों की भांति 25 मार्च 2020 से देशभर में लॉकडाउन लागू कर दिया गया। लॉकडाउन देश में पहली बार हुआ। सभी देशवासी एक अनिश्चित अवधि के लिए अपने-अपने घरों में एक प्रकार से नज़रबंद-से हो गये। रोज़ाना दिन भर के लिए काम पर निकलने वालों के सामने एक नयी और अनोखी समस्या उठ खड़ी हुई कि इस ख़ाली समय में क्या किया जाए। देश में एक ठहराव-सा आ गया। अपनी-अपनी तरह से सभी ने इस अवधि को किसी प्रकार व्यतीत किया, किन्तु ‘लॉकडाउन के 55 दिन’ पुस्तक का लेखन कार्य करके इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने ख़ाली समय का वास्तविक सदुपयोग किया है। पुस्तक-लेखन का यह रचनात्मक कार्य सीधे-सीधे साहित्यिक माहौल से जुड़ा है, जिसने अनुभवी रचनाकारों के साथ-साथ नवांकुरित रचनाकारों के लिए भी साहित्यिक वातावरण प्रस्तुत किया है। अतः लॉकडाउन के 55 दिन’ नामक यह पुस्तक एक सार्थक एवं सराहनीय उपलब्धि कही जा सकती है, जिसमें 25 मार्च से 18 मई, 2020 तक के 55 दिनों का दैनिक लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक के लेखक ने समय का सदुपयोग विभिन्न पुस्तकों के अध्ययन के माध्यम से किया, जैसा कि पुस्तक में उल्लेखित है। इस अवधि में लेखक ने अनेक कवि, लेखक, शायरों एवं रचनाकारों की कृतियों का अध्ययन किया, जो समयाभाव के कारण पूर्व में नहीं हो सका था। इसके अतिरिक्त गुफ़्तगू प्रकाशन की प्रारम्भ से लेकर अब तक की प्रमुख घटनाओं एवं कार्यक्रमों का विवरण भी पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।

 25 मार्च 2020 से प्रारम्भ करते हुए उत्तर प्रदेश सहित सम्पूर्ण देश की प्रत्येक दिन के कोरोना की स्थिति का संख्यात्मक विवरण एवं अन्य उल्लेखनीय घटनाओं का विवरण भी साथ में प्रदान किया गया है। इसके अंतर्गत देश-दुनिया में प्रतिदिन के कोरोना की स्थिति कोरोना संक्रमितों की संख्या, हालात और विस्तृत विवरण को भी रेखांकित किया गया है। इस दौरान जनता एवं कोरोना योद्धओं के समक्ष तमाम कठिनाइयाँ भी उपस्थित रहीं, यथा- मास्क की कमी, खाद्य एवं अन्य सामग्रियों के दामों में भारी किल्लत, पुलिस द्वारा आवश्यक कार्यों से बाहर निकले लोगों के प्रति व्यवहार आदि। लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए मज़दूरों का सैकड़ों किलोमीटर की दूरी से अपने गांवों को पलायन एवं उनकी दुर्दशा का उल्लेख भी किया गया है। लॉकडाउन के दौरान शायरी और कविताओं पर परिचर्चा का आयोजन पुस्तक का सर्वाधिक उल्लेखनीय अंश है। इसका कारण बताते हुए सम्पादकीय में लिखा गया है कि रचनाकारों में अच्छा लिखने और शायरी को समझने और उस पर तार्किक ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त करने की क्षमता विकसित करने का प्रयास इस आयोजन के माध्यम से किया गया। इसी उद्देश्य के मद्देनज़र लॉकडाउन अवधि में काव्य परिचर्चा करायी गई, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक दिन विभिन्न रचनाकारों की रचनाओं एवं उनकी कृति पर विभिन्न लेखकों एवं रचनाकारों द्वारा समीक्षात्मक टिप्पणियां की गयीं, जिनके माध्यम से विभिन्न मन्तव्य व्यक्त किए गए। इस क्रम में जनकवि स्व. कैलाश गौतम, स्व. डॉ जमीर अहसन, विज्ञान व्रत, यश मालवीय जैसे स्थापित रचनाकारों के साथ ही नवांकुरित एवं अन्य रचनाकारों पर भी सामूहिक चर्चा की गयी। यह एक उल्लेखनीय एवं सराहनीय कार्य है। लॉकडाउन के 55 वें दिन ऑनलाइन मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें वयोवृद्ध शायर सागर होशियारपुरी, सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार विज्ञान व्रत, इम्तियाज अहमद ग़ाज़ी सहित अनेक श्रेष्ठ कवियों एवं नवांकुरित प्रतिभाओं ने हिस्सेदारी की। पुस्तक का मुद्रण, प्रकाशन एवं तकनीकी पक्ष सराहनीय है। कवर पृष्ठ आकर्षक बन पड़ा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि लॉकडाउन के प्रारंभिक 55 दिनों के एक प्रामाणिक दस्तावेज के रूप में यह पुस्तक हमारे समक्ष उपस्थित है। इस हेतु पुस्तक के लेखक इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी अत्यन्त सराहना एवं बधाई के पात्र हैं। 256 पेज के इस पेपर बैक संस्करण की कीमत 300 रुपये है, जिसे गुफ़्तगू पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है।

 



 ‘दिल्ली की सात कवयित्रियां’ महिला रचनाकारों की रचनाधर्मिता एवं उनकी सृजनात्मकता को उजागर करता है। कवयित्रियां मनोभावों को व्यक्त करने में काफी हद तक सफल रही हैं। सोनिया सूर्य प्रभा की कविताओं में अच्छे सृजन की झलक दिखायी देती है। समाज में महिला के योगदान और उसके महत्व को कवयित्री ने इस प्रकार रेखांकित किया हैः-मैं औरत हूं लिख लेती हूं/मैं औरत को लिख लेती हूं (मैं तो बस उसको जीती हूं)। डा. सरला सिंह ‘स्निग्धा‘ की ‘गरीबी’, ‘ये भूख है साहिब’, ‘भुखमरी’ कविताओं में आम आदमी की दशा का चित्रण है- तरह तरह के पेट यहां पर/कुछ का थोड़े से भर जाता है/कुछ में करोड़ों भी कम पड़ जाता है। रिंकल शर्मा ने कविताओं में मन के उद्गार कुशल ढंग से व्यक्त किये हैं। इनकी ‘प्रेम‘ शीर्षक कविता में प्रेम को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया गया है- प्रेम एक सागर है/जिसकी असीम गहराई है। ‘कोई ये माने, कोई वो माने‘ साम्प्रदायिक सद्भाव का सन्देश देती है। ‘घोटाला‘ कविता आज की राजनीति पर टिप्पणी करती है। डा. फौजिया नसीद शाद ने अपनी छोटी-छोटी रचनाओं के माध्यम से मनोभाव प्रकट किये हैं। ‘मानव-मानव का दुश्मन क्यों है‘ कविता में मानव की स्वार्थ लिप्सा को उजागर करने का प्रयास किया गया है।‘ संकलन में रीता सिवानी की 22 गजलों में से कुछ अच्छी बन पड़ी हैं। कुछ उल्लेखनीय पंक्तियां- अबला ही मत उसको समझो/दुर्गा-काली भी नारी है/लालच में ये होता है/जो है वो भी खोता है/सारी दुनिया जिसने जीती/खुद से कैसे हारा देखो। आम आदमी वर्तमान की दशा का यथार्थ वर्णन करती हैं। प्रभा दीपक शर्मा ने अपनी कविताओं में जिजीविषा, देशप्रेम एवं हृदय के उद्गार अच्छे ढंग से व्यक्त करने का प्रयास किया है। ‘अपंगता‘ रचना हौसलों को बुलन्द करने वाली एवं जीने का सन्देश देती है- देखो मेरी हिम्मत को/हार नहीं स्वीकार मुझे (अपंगता)। पर्यावरण प्रदूषण के प्रति सजग करती हुई रचना- आहत हूं आज बहुत मैं/अपने बच्चों की करनी पर (धरा की पुकार)। ‘हमारा प्यारा भारत‘, ‘देश की माटी‘ रचनाएँ देशप्रेम का भाव लिए हुए हैंरू- इस माटी पर जन्म लिया है, इस पर ही मर जाना है (देश की माटी)। ‘सावन, ‘पराया लगता है’, ‘आइना’ श्रृंगार की कविताएं हैं। आम आदमी की दशा का यथार्थ चित्रण कवयित्री ने इस प्रकार किया है- अथक परिश्रम करता रहता/पैसे चार कमाने को (मजदूर)। संकलन में सम्मिलित रोली शुक्ला की कविताएँ पाठकों को आशान्वित करती हैं। ‘वाणी का आधार’ कविता में शब्दों की महिमा बताने का प्रयास किया गया है। शहीदों की पत्नियों का दर्द मार्मिक रचना बन पड़ी है। 128 पेज के इस पेपर बैक संस्करण की कीमत 200 रुपये है, जिसे गुफ्तगू पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है।



हिन्दी और उसकी क्षेत्रीय भाषाओं में भी ग़ज़ल कही और सराही जा रही है। लेकिन यह तथ्य ध्यातव्य है कि ग़ज़ल का एक विशेष अनुशासन एवं व्याकरण है और ग़ज़ल के लिए ज़रूरी बातों के प्रति उनकी ग़ज़लकार की सतर्कता की मांग करती है। जो रचनाकार इस तथ्य के प्रति सजग हैं, वह अच्छी ग़ज़लें कह रहे हैं। इसी क्रम में सुमन ढींगरा दुग्गल का ग़ज़ल संग्रह ‘गुंचे‘ सामने आया है। संग्रह की लगभग सभी ग़ज़लें शिल्प की कसौटी पर खरी उतरती हैं। शायरा ने बह्रों के बारे में पूरी सतर्कता और सावधानी का परिचय दिया है। हर एक मिसरे में रवानी है। शिल्प और बेमिसाल कथ्य का यह संगम ‘गुंचे‘ को श्रेष्ठ ग़ज़ल संग्रह बनाता है। शायरा का शब्द-भण्डार विपुल है। संग्रह की अधिकतर ग़ज़लें प्रेम, श्रृंगार एवं विरह की विविध अवस्थाओं के चित्रण से मन की कोमल भावनाएं स्वत: प्रकट होने लगती हैं। प्रेम के विविध आयाम के अशआर देखें - ‘आजकल खुद पे इख़्तियार नहीं/और क्या है अगर ये प्यार नहीं।’,‘ तेरे चेहरे से जो टपकता है/चांद में नूर वो कहां जानां।’,‘होश अपना है न दुनिया की ख़़बर/इश्क़ तेरा हमको ले आया कहां।’ विरह-वेदना की तीव्र अनुभूति के स्वर-‘धरती काटे अंबर काटे/तुम बिन हर इंक मंजर काटे।’,‘तुम गये सब चला गया दिल से/इक ख़लिश है वहीं नहीं जाती।’ कहा जा सकता है कि ग़ज़लकार मोहब्बत की शायरा हैं। इसके साथ ही वर्तमान समाज का चित्रण एवं जीवन के विविध पहलुओं को भी उजागर किया गया है। सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक आदि जीवन के सभी पहलुओं को स्पर्श करते हुए जीवन की अनुभूति, मानव संवेदना, आदि प्रमुख विषयों को भी ग़ज़ल के अशआर में इंगित किया गया हैं। ये अशआर सियासत की तल्ख़ हक़ीक़त बयान करते हैंः-‘वो लोग जिन्हें अपनी बुलंदी का नशा है/सब की निगाहों से उतर जाएंगे इक दिन।’ आज के युग की विडम्बना यही है-‘हर एक शहर सुलगता दिखाई देता है/उमीद क्या थी मगर क्या दिखाई देता है।’ शायरा की साफगोई का खुबसूरत अन्दाज देखें-‘मेरी अच्छाई की सनद ये है/मैं खुद को ख़राब लिखती हूं।’ इस शे’र में मुहावरे का कैसा सुन्दर प्रयोग किया गया है-‘हम तो दरिया में डाल देते हैं/नेकियां तुम संभालते हो क्या ?’ इन सब खूबियों के बीच ग़ज़ल-व्याकरण की दृष्टि से कुछ ग़ज़ल रचनाओं में ऐब (दोष) भी हैं, लेकिन ये नाम मात्र के लिए ही हैं। उदाहरणार्थ- बाब-अहबाब (क़ाफ़िया दोष), जाते जाते देख मुड़ कर आखि़री (रदीफ दोष), कई बाऱ रोज, बयाऩन, अब़ बेअसर, हऱरंग, बेबाक़ कर, मऱ रहा, सर ़रहे ऐबे तनाफुर (स्वरदोष)। तकाबुले रदीफ, ऐबे शुतुरगुर्बा भी किन्हीं-किन्हीं शेरों में हैं। वर्तनी दोष - रंज, राज, ऊंगली, जबान, यकीं, मिजाज, ताज, जिया (जिया)। हिन्दी में अच्छी ग़ज़लें कही जा रही हैं, सुमन ढींगरा दुग्गल का यह श्रेष्ठ संग्रह इस बात का साक्षात प्रमाण है। 112 पेज के इस संग्रह को उत्कर्ष प्रकाशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 150 रुपये है।


 ‘ग़ज़ल का सफ़र’ मरहूम शायर वेद दीवाना की 80 ग़ज़लों का संग्रह है, जिसे उनके पुत्र राजीव दीवाना द्वारा प्रकाशित कराया गया है। पंजाब के ग़ज़लकारों में वेद दीवाना का नाम बहुत एहतराम से लिया जाता है। इस संग्रह में वेद दीवाना ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से कुछ दिल की, कुछ ज़िन्दगी की, कुछ संसार की और कुछ आज की बातें कही हैं। आपबीती के साथ ही जगबीती इन ग़ज़लों में साफ-साफ दिखायी देती है। इनमें दिल की धड़कनें सुनायी देती हैं, तो आम आदमी की आवाज़ को भी आसानी से महसूस किया जा सकता है। पुस्तक की कुछ ग़ज़लें रिवायती हैं, कुछ आधुनिक समाज का दर्पण भी हैं। ग़ज़लें अपनी परम्पराओं से जुड़ी हुई हैं, जो ग़ज़ल-विधा को निरन्तर आगे बढ़ाये जाते रहने के लिए निहायत ज़रूरी चीज है। वेद दीवाना की ग़ज़लों की भाषा मधुरता और सरसता लिए हुए आमफहम भाषा है, जिसे हर कोई आसानी से समझ सकता है। बोझिलता कहीं नहीं है। मुश्किल से मुश्किल बात को भी आसान लफ़्ज़ों में पिरो देना उन्हें आता है। बड़ी ही खूबसूरती और सलीके़ की शायरी है। हर तरह और हर मुद्दे पर अशआर कहे हैं। उनकी ग़ज़लें उनके अपने अनुभव से कही गयी हैं, जिनमें जीवन का निचोड़ झलकता है। मन के भावों की सफल प्रस्तुति हुई है। इनकी शायरी आम और ख़ास इंसान के हर एहसास को बयां करती है। वेद दीवाना के अपने रंग में रंगी हुई हैं उनकी ये ग़ज़लें। शिल्प की दृष्टि से ग़ज़लों की बुनावट ठीक है। कहीं-कहीं ग़ज़लों में तकाबुले रदीफ, ऐबे तनाफुर, ऐबे तख़ालुफ जैसे छोटे-मोटे दोष भी दिख जाते हैं। एक-आध मिसरे बे-बह्र भी हैं। प्रूफ रीडिंग सम्बन्घी दोष कहीं-कहीं रह गये हैं। ख़ोफ, पुछूंगा, बदगुमाना, पहली वार, ऐक, बरदात, ऐहले आदि जैसी वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियां संग्रह की साहित्यिकता की गरिमा के विपरीत हैं। लेकिन, इन सबके बावजूद ग़ज़ल का सफर संग्रह पठनीय एवं सराहनीय है। पुस्तक की ग़ज़लों के कुछ अशआर, जो बरबस ही ध्यान आकृष्ट कर लेते हैं, मुलाहिजा फरमायें- ‘खुद पर उसे ग़रूर अगर था तो इसलिए/सब कुछ था उसके घर में मगर आईना न था।’,‘मिजाज अपना भला बदलेगा सूरज/ये अंगारा है अंगारा रहेगा।’ अपना हाले-दिल शायर ने कुछ इस तरह बयान किया है-‘मैं बिखर जाऊं न सुखे हुए फूलों की तरह/मुझको इन तेज हवाओं से बचा कर ले जा।’,‘ एक तिनका हूं हवा मुझको झटक देगी कहीं/तू तो दरिया है मुझे साथ बहा कर ले जा।’, ‘क्या अजब मेरा भी तुमको जिक्र मिल जाए कहीं/तुम किताबे दिल के कुछ पन्ने उलट कर देखना।’ 80 पेज की पुस्तक को मन्नत पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 300 रुपये है।

(गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2021 अंक में प्रकाशित )

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