बुधवार, 29 अप्रैल 2020

कर्मठ पुलिस अफ़सर रहे हैं लालजी शुक्ला

               
                                                  - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
लालजी शुक्ला

लालजी शुक्ला अपने समय के चर्चित पुलिस अफसर रहे हैं, इन्होंने अपनी इमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से एक अलग ही पहचान बनाई है, जो अन्य पुलिस अफ़सरों के लिए एक नज़ीर है। जुलाई 1955 को गोरखपुर जिले के सुगौना गांव में जन्मे लालजी शुक्ला के पिता स्व. बलिभद्र प्रसाद शुक्ल और मां स्व. गौरा देवी की तालीम ने इन्हें काम ने इन्हें काम के प्रति इमानदारी की सीख दी, जो इनकी कार्यप्रणाली में दिखाई देती रही है। आपने हाईस्कूल की शिक्षा अपने गांव के ही गांधी इंटरमीडिएट काॅलेज से पूरी की, इंटरमीडिएट की परीक्षा बस्ती जिले के खैर इंडस्ट्रियल हायर सेकेंड्री स्कूल से पास करने के बाद घरवालों ने बीएससी, एमएससी की पढ़ाई के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय में आपका दाखिला करा दिया। विज्ञान से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी के करने के बाद आप प्रतियोगी परीक्षाएं देने लगे। 1978 में प्रांतीय पुलिस सेवा में आपका चयन हो गया, लेकिन ज्वाइन और परीक्षण का सिलसिला 1979 में शुरू हुआ। 1981 में पुलिस अकादमी मुरादाबाद से प्रशिक्षण पूरा हुआ। जनपदीय ट्रेनिंग के लिए आपको आज़मगढ भेजा गया। प्रथम नियुक्ति पीएसी की 32वीं वाहिनी में सहायक सेना नायक के रूप में हुई।
 प्रथम जनपदीय नियुक्ति आगरा में क्षेत्राधिकारी के पद पर हुई। फिर आगरा से बांदा और बांदा से वाराणसी तबादला हुआ। 1994 में वाराणसी में पुलिस अधीक्षण ग्रामीण बनाए गए। 1984-85 में इलाहाबाद में एडीशनल एसपी ट्रैफिक बनाए गए। फिर इलाहाबाद में एसपी द्वाबा और फिर एसपी जुमनापुर बनाए गए। इसके बाद इलाहाबाद में ही पुलिस अधीक्षक नगर बनाए गए। वर्ष 2003 में सरकार बदलने पर यहां से हटाए गए, निलंबन की भी कार्रवाई हुई। फिर वर्ष 2004 में आईपीएस हो गए, लखनऊ में सहकारिता अपराध नियंत्रण विभाग में नियुक्ति मिली।
 2004 में ही चित्रकूट के पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया। 2005 से 2007-08 तक पुलिस अधीक्षक जौनपुर और और पुलिस अधीक्षक गोण्डा के पद पर कार्यरत रहे। 2008 में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक इलाहाबाद बनकर आए। इसके बाद विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए 2015 में पुलिस महानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए।
 पुलिस की संवदेनशीलता पर अक्सर सवाल खड़े किए जाते हैं ? इस सवाल पर लालजी शुक्ला का कहना है कि पुलिस की संवेदनशीलता लोग देखते नहीं है, पुलिस का सिर्फ़ एक ही रूप दिखता है कि दूसरों को दंडित कर रहे हैं। जबकि क्यों दंडित करती है पुलिस इस पर लोगों का ध्यान नहीं जाता है, इसमें जनता का ही कल्याण छिपा होता है। हां, ये भी सच है कि कुछ पुलिसकर्मी जनता की सेवा की आड़ में स्वार्थपूर्ति के लिए गलत काम कर बैठते हैं, जिसकी वजह से जनता में गलत संदेश जाता है।

(गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2020 अंक में प्रकाशित )

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