बुधवार, 26 नवंबर 2014

काजमी साहब की भरपाई मुमकिन नहीं


    
गुफ्तगू’ के संरक्षक एसएमए काज़मी के निधन पर शोक सभा 
 इलाहाबाद। एसएमए काजमी के निधन से जहां ‘गुफ्तगू परिवार’ ने अपना संरक्षक खो दिया है, वहीं इलाहाबाद सहित पूरे प्रदेश से एक ऐसा व्यक्तित्व चला गया, जिसकी भरपाई मुमकिन नहीं है। उनके निधन से अधिवक्ता, साहित्यकार और अन्य सामाजिक संगठनों को गहरा आघात लगा है। इससे उबरने में काफी वक्त लगेगा। यह बात साहित्यिक संस्था ‘गुफ्तगू’ के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद गाजी ने बुधवार की शाम हरवारा, धूमनगंज के गुफ्तगू स्थित कार्यालय में हुई शोकसभा के दौरान कही। श्री गाजी ने कहा कि काजमी साहब इलाहाबाद सहित पूरे प्रदेश और देश की अदबी महफिलों की शान थे। बेहद व्यस्त अधिवक्ता होने के बावजूद साहित्य के लिए काफी वक़्त देते थे। उर्दू दैनिक ‘इंक़लाब’ में प्रत्येक मंगलवार को प्रकाशित हो रहा उनका आलेख भी काफी पठनीय होता था, लोग मंगलवार का इंतजार करते थे। उनके लेखों के संग्रह की पुस्तक हिन्दी में प्रकाशित करने के लिए कुछ दिन पहले ही उनसे बात हुई थी, यह कार्य गुफ्तगू परिवार अवश्य करेगा। गौरतलब है कि 27 नवंबर की दोपहर कार से लखनउ जाते समय पूर्व महाधिवक्ता एसएमए काज़मी का निधन हो गया था। सभा की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र ने कहा कि काजमी साहब हर अदबी महफिल की शान थे, साहित्य और समाज के लिए हर वक़्त तत्पर रहते थे, उनके चले जाने से पूरा इलाहाबाद बेहद दुखी है। शिवपूजन सिंह ने कहा कि काजमी ने समय-समय पर हमलोगों की रहनुमाई की है, हम उन्हें किसी भी कीमत पर भूूल नहीं सकते, वे आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं, हमेशा जीवित रहेंगे। उनका संस्मरण हमेशा ताज़ा रहेगा। खास तौर पर गुफ्तगू परिवार उनकी कमी की भरपाई कभी नहीं कर पाएगा। गुफ्तगू के सचिव नरेश कुमार ‘महरानी’ ने कहा अभी दो नवंबर को ‘गंाधी दर्शन की प्रासंगिकता’ विषय पर गुफ्तगू की ओर से संगोष्ठी का आयोजन किया गया था, जिसके मुख्य वक्ता एसएमए काजमी ही थे। उनकी बातें आज भी कान में गंूज रही हैं। बैठक में नरेश कुमार ‘महरानी’, हसनैन मुस्तफ़ाबादी, अनुराग अनुभव, संजय सागर, डॉ. पीयूष दीक्षित, प्रभाशंकर शर्मा, शैलेंद्र जय, शाहनवाज़ आलम, मुकेश चंद्र केसरवानी, संजू शब्दिता, अमित वागर्थ, संतोष तिवारी आदि मौजूद रहे।

2 टिप्पणियाँ:

kavita verma ने कहा…

shradhanjali...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

Sahitya aur nyay dono ko ek saath apurneey kshati. Kazami sahab ka shishtachar aur sneh hame varshon tak yaad aata rahega. Hamlog lagta hai Jaise sachmuch ka sarparst kho diye

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