मंगलवार, 1 जनवरी 2013

तरही ग़ज़ल मुकाबला का परिणाम


जुलाई-सितंबर अंक में ‘गुफ्तगू तरही ग़ज़ल मुकाबला’ की घोषणा की गई थी। दिए गए तरह ‘लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं’ पर प्राप्त हुई ग़ज़लों को श्री एहतराम इस्लाम से जांच कराया गया, उन्हें परिणाम निकालने के लिए सिर्फ़ ग़़ज़लें ही दी गई थीं, शायरों के नाम उन्हें नहीं दिए गए, ताकि निष्पक्ष निर्णय हो। प्राप्त सभी ग़ज़लों में 1 से 20 स्थान पाने वालों की ग़ज़लें उनके क्रम में प्रकाशित की जा रही हैं। बाकी ग़ज़लें प्रकाशित करने में हम असमर्थ हैं- संपादक
अनिल पठानकोटी (प्रथम स्थान)
दुख में भी पुरसकून हैं बेज़ार हम नहीं।
फिर किस तरह बताओ कि खुद्दार हम नहीं।
हम अपनी झोंपड़ी में बहुत खुश हैं दोस्तो,
रंगीन महफि़लों के तलबगार हम नहीं।
जो छल, कपट, फरेब सियासत से हो भरी,
ऐसी किसी कहानी का किरदार हम नहीं।
हम जानते नहीं हैं मोहब्बत, दुआ वफ़ा,
ताजि़र हैं हम फ़क़त मियां फनकार हम नहीं।
मुफलिस के दिल से निकली हुई बद्दुआ हैं हम,
पायल की मस्त, झूमती, झंकार हम नहीं।
मिलते हैं हम सभी से खिले फूल की तरह,
राहों में भी बिछाते कभी खार हम नहीं।
ज़ालिम का ज़ुल्म सह के भी कुछ बोलते नहीं,
आखि़र हम आदमी ही हैं अवतार हम नहीं।
लो आज खून हमने तमन्ना का कर लिया,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
-गार्डन कालोनी, मिशन रोड, पठानकोट-145001
मेबाइल नंबर: 9465280779

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सागर होशियारपुरी (द्वितीय स्थान)
सच है किसी धरम के तरफ़दार हम नहीं।
रब के सिवा किसी के परस्तार हम नहीं।
अपने तुम्हारे अपने हैं, अग़यार हम नहीं।
ज़ख़्मी करे जो फूल को वो ख़ार हम नहीं।
हमने किनारा कर लिया दुनियावी इश्क़ से,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार में हम नहीं।
बेशक हैं हम ग़रीब मगर हैं वतनपरस्त,
कैसे ज़मीर बेच दें, ग़द्दार हम नहीं।
सब कुछ अता किया हमें परवरदीगार ने,
इंसान की मदद के तलबगार हम नहीं।
इंसानियत का सबने पढ़ाया सबक़ मगर,
इंसान का निभा सके किरदार हम नहीं।
कोशिश ये है कि दह्र में अम्नो-अमां रहे,
बेशक करेंगे पहला कभी वार हम नहीं।
-563-452, पुराना ममफोर्डगंज, इलाहाबाद
मोबाइल नंबर: 9450961173

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धर्मेंद्र सिंह ‘सज्जन’ (तीसरा स्थान)
तलवे जो चाटते वो वफ़ादार हम नहीं।
आशिक़ हैं किन्तु इश्क़ में बीमार हम नहीं।
आखि़र ढहे हम आज मुहब्बत के बोझ से,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
लिपटे हुए हैं राख में पर यूं न छेडि़ए,
मुट्ठी में ले लें आप वो अंगार हम नहीं।
रोटी दिखा के मां की बुराई न कीजिए,
भूखे तो हैं ज़रूर प’ गद्दार हम नहीं।
पत्थर भी खाएं आप के, फल आप ही को दें,
रब की दया से ऐसे भी लाचार हम नहीं।
दिल के वरक़ पे नाम लिखा है बस एक बार,
आते जो छप के रोज़, हैं अख़बार, हम नहीं।
घाटा,नफ़ा, उधार, नकद, मूल, सूद सब,
सीखे पढ़ें हैं खूब प’ बाज़ार हम नहीं।
-एनटीपीसी लिमिटेड, कोलडैम हाइडृो पावर प्रोजेक्ट
ब्रमाना, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश

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डाॅ. सूर्या बाली ‘सूरज’ (चैथा स्थान)
तेरे सिवा किसी के तलबगार हम नहीं।
फिर भी तेरी नज़र में वफ़ादार हम नहीं।
सींचे थे जिस चमन को कभी अपने खून से,
अब उस चमन के फूल के हक़दार हम नहीं।
क्यूं लेके जा रहे हो मसीहा के पास तुम,
बस हिज़्र में उदास हैं बीमार हम नहीं।
तोहमत लगे सवाल उठे चाहे जो भी हो,
अपनी नज़र में अब तो गुनहगार हम नहीं।
बस यूं ही भाव देखने हम भी निकल पड़े,
बाज़ार में खड़े हैं खरीदार हम नहीं।
रहते हैं अब भी शान से हम कब्रगाह में,
माना के पहले जैसे जमींदार हम नहीं।
हम जि़न्दगी से दूर तेरी ख़ुद ही जा रहे,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
-आॅल इंडिया मेडिकल साइंस इंस्टीट्यूट,
भोपाल, मोबाइल नंबरः 8989097518

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सौरभ पाण्डेय (पांचवां स्थान)
अब कर सको वज़ू कि वो जलधार हम नहीं।
गंगा करे गुहार, गुनहग़ार हम नहीं।
जिनके लिये पनाह थे, उम्मीद थे कभी,
वोही हमें सुना रहे ग़मख़्वार हम नहीं।
जीना तुम्हारी याद में, रातें संवारना,
अब तो सनम ये मान जा बेकार हम नहीं।
दुश्वारियां ख़ुमार सी तारी मिजाज़ पे,
हर वक़्त है मलाल कि बाज़ार हम नहीं।
हक़ मांगने के फेर में बदनाम यों हुए,
ये बोल भी न पा रहे ख़ूंखार हम नहीं।
हम शखि़्सयत पे दाग़ थे ऐसा न था मगर,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार में हम नहीं।
मासूमियत दुलार व चाहत नकार कर,
जो बेटियों पे गिर पड़े तलवार हम नहीं।

-एम-।।-ए-17,एडीए कालोनी,नैनी
इलाहाबाद, मोबाइल नं. 9919889911
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अफ़ज़ल इटावी (छठा स्थान)
हैरत है सब लुटा के भी हक़दार हम नहीं।
ग़द्दार कर रहे हैं वफ़ादार हम नहीं।
सारे जहां को याद है गुजरात की सितम,
किस मंुह से तुम कहोगे ख़तावार हम नहीं।
बस इसलिए दिलों पे हुक़ूमत है आज तक,
अख़लाक ले के निकले हैं तलवार हम नहीं।
इस्लाम ने सिखाया फ़क़त अम्न का सबक़,
ज़ुल्मो सितम के यानी तरफदार हम नहीं।
मुज़रिम की सफ़ में आपने लाकर बिठा दिया,
तारीख़ कह रही है कि गद्दार हम नहीं।
क़ुबानियों ने कान में लालच से कह दिया,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
-21,कस्साब खाना, पचराहा, इटावा
मोबाइल नंबर: 9719903731,9305352097

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डाॅ. संजय दानी (सातवां स्थान)
हां तीरगी के ज़ुल्म से बेज़ार हम नहीं।
क्या इसलिये उजालों के हक़दार हम नहीं।
हम इश्क़ के सिपाही, मुहब्बत हमारा धर्म,
मज़हब की सरहदों पे गिरफ़्तार हम नहीं।
तीमारदारी हुस्न की हर वक़्त क्यूं करें,
ऐ शोख़ लड़की इतने भी बेकार हम नहीं।
तनहाई की ज़मीन हमें रास आ गई,
लो अब तुम्हारी रहा में दीवार हम नहीं।
ग़ैरों के धर्म की न दिखाओ हमें कमी,
अपनी बताओ, इतने समझदार हम नहीं।
जो बाग़ बेवफ़ाई के पानी से हो भरा,
उस बाग़ को संवारने तैयार हम नहीं।
इस दर से भूखा एक भी साधू नहीं गया,
ग़ुरबत से रिश्ता रख के भी लाचार हम नहीं।

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सिबतैन परवाना (आठवां स्थान)
अहले वफ़ा हैं कोई जफाकार हम नहीं।
क्यों तुमने कह दिया है के वफ़ादार हम नहीं।
जाता हूं आज दूर बहुत दूर शहर से,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
इक झोपड़ी है अपने बुजुरगों की आज भी,
उंची इमारतों के तलबगार हम नहीं।
वो लोग और हैं जो तरसते है रोज़ ओ सब,
बेलोश चाहतों के खरीदार हम नहीं।
दहशतगरों के साथ वही लोग हैं मिले,
जो लोग कह रहे हैं खतावार हम नहीं।
-ग्राम-दिलालपुर, पो. सालमारी
जिला कटिहार-855113, मो. 9472217246

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तलब जौनपुरी (नवां स्थान)
ज़ालिम की फि़तरतों से ख़बरदार हम नहीं।
हाथों में हथकड़ी है गुनहगार हम नहीं।
हंस-हंस के हक़ की राह में कुर्बान होंगे हम,
मैदां से भाग जायें वो सरदार हम नहीं।
तेरा जहान छोड़ के दुनिया से हम चले,
लो अब तुम्हारी रहा में दीवार हम नहीं।
हैं आज जो किसी से वही कल किसी से हैं,
ऐसी मोहब्बतों के तरफ़दार हम नहीं।
अपनी कसम को वक़्त पे हम तोड़ कैसे दें,
दुनिया ही कहेगी वफ़ादार हम नहीं।
तामीर हमने की है यहां मंजि़लें तमाम,
साये में जिनके हैं कहीं गुलज़ार हम नहीं।   
महशर में डूब जायेंगी दुनिया की कश्तियां,
कश्ती को छोड़ने को भी तैयार हम नहीं।
457-255ए, बाघम्बरी हाउसिंग स्कीम, अल्लापुर
इलाहाबाद, मोबाइल न.9450617609

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सतीश यादव ‘असीर’ (दसवां स्थान)
कहने को तो कहें कि तेरे यार हम नहीं।
किसको यक़ीन होगा गुनहगार हम नहीं।
सारे जहां के ग़म को भी उल्फ़त तुम्ही से है,
तेरी वफ़ा के सिर्फ़ तलबगार हम नहीं।
तुम हो चमन की शान मगर ये भी जान लो,
हम खुश्बू-ए-चमन हैं कोई ख़ार हम नहीं।
नीले गगन पे चांद सितारों का राज है,
तन्हा अंधेरी रात में सरकार हम नहीं।
सबकुछ लुटा के आप के पहलू में आये हैं,
कहते हैं आप रौनके बाज़ार हम नहीं।
घबरा के अपने आपको ही कर दिया फ़ना,
ले अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
-241-18ए, मलाकराज, रामबाग
इलाहाबाद, मोबाइल: 9984612497

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कुमार साइल (ग्यारहवां स्थान)
शामिल तेरे गुनाह में किस बार हम नहीं।
फिर भी तेरे नज़र में वफ़ादार हम नहीं।
दिल है तो चोट खा के ज़रा तो करेगा उफ़,
ऐसा नहीं, ग़मों के परस्तार हम नहीं।
आतिश का था पता कि जला जायेगी हमें,
थे आग के धुंए से ख़बरदार हम नहीं,
दुनिया की तेज़ दौड़ में रिश्ते पिछड़ गए,
बदले हुए जहान में दरकार हम नहीं।
पहले लहू से सींचिये फिर ख़ाक डालिये,
ऐ यार, दोस्ती के तरफ़दार हम नहीं,
जो भी मिला हमें वो अदाकार कह गया,
चेहरे पे लाख ओढ़ते किरदार हम नहीं।
आंधी ही वो चली कि उड़ा ले गयी हवा,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
-प्रीतम पैलेस के पीछे, मंदिर मार्ग, हिसार रोड
सिरसा- 125055  मोबाइल नं. 9812595833

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आशीष दशोत्तर (बारहवां स्थान)
माना किसी फ़क़ीर सा किरदार हम नहीं।
फिर भी तेरे जहां के गुनहगार हम नहीं।
हमने तो जल के रात को रोशन बना दिया,
क्या अपनी रोशनी के भी हक़दार हम नहीं।
बच्चों से बोलकर यही मां-बाप चल दिए,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
सौदा किया है आपने अपने ज़मीर का,
इस काम के ही वास्ते तैयार हम नहीं।
तेरे खि़लाफ़ एक दिन आएंगी आंधियां,
सहते रहेंगे जुल्म यूं हर बार हम नहीं।
साझा करेंगे दर्द ही लग जाओ गर गले,
खं़जर घुसाए पीठ में वो यार हम नहीं।
-39,नागर वास, रतलाम-457001
मेबाइल नंबरः 9827084966

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संदीप वाहिद (तेरहवां स्थान)
वादा किया तो टालते हैं यार हम नहीं।
मौजूद हैं सदा कभी दुश्वार हम नहीं।
जलवा तेरा है ख़ूब कहां तू, हैं हम कहां,
हैं शख़्स मामूली अजी फ़नकार हम नहीं।
वादों के जाल में तेरे हम फंस चुके बहुत,
आएंगे तेरी चाल में इस बार हम नहीं।
हर शर्त है कुबूल सिवा एक बात के,
ख़ुद्दारी अपनी छोड़ दें तैयार हम नहीं।
न्ीलाम हो रही थी वफ़ा एक दिन वहां,
उस दिन से जाते हैं कभी बाज़ार हम नहीं।
महफ़ूज रख ले हमको तू, दिल की किताब हैं,
उस ताक पे रखा कोई अख़बार हम नहीं।
तेरी नज़र से खुद को गिराया सही किया,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।

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फ़ौजि़या अख़्तर (चैदहवां स्थान)
जी! बार-ए-हम नफस के तलबगार हम नहीं।
अफ़साना-ए-हयात के किरदार हम नहीं।
लहज़ा जो पुरशिकस्ता उमंगे भी मंद हैं,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
जज़्बों की इक लहक है मोहब्बत की नब्ज़ पर,
फुरक़त के सिलसिलों से बेज़ार हम नहीं।
अब रूह पर जो ज़ात के पर्दे हैं खुल गये,
पाबंदी-ए-ख़्याल के इफ्कार हम नहीं।
है ग़र्क एक शख़्स मोहब्बत की झील में,
तन्हा ही बे-खुदी के ख़तावार हम नहीं।
बरसों फिरा है क़ल्ब जो सहरा-ओ-दस्त में,
सायल हैं बस जुनूं के,तरहदार हम नहीं।
साहब! ये किसी रस्म-ए-वफ़ा है किधर का इश्क़,
दिल की ही रह-गुज़र के जो सरदार हम नहीं।
उल्फ़त में जिसकी हमने है खुद को भुला दिया,
जाएंगे उसको मिल भी वो बीमार हम नहीं।

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रहीम होशंगाबादी (पंद्रहवां स्थान)
ज़र की इनायतों के तलबगार हम नहीं।
अदना तो हैं, यतीम भी ज़रदार हम नहीं।
हमको मिली है, अपनी विरासत में नैमतें,
अरसे से हैं फ़कीर ख़रीदार हम नहीं।
आलिम नहीं हैं, इल्म की इबरत से बहुत दूर,
ज़ाहिर तो हैं, हकीर, गुनाहगार हम नहीं।
चल तो दिए हैं, हम भी सफ़र में शहर की सिम्त,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
कितने मिले फ़रेब ज़माने में बेशुमार,
ज़ाहिर में, हादिसों के ख़तावार हम नहीं।
यू ंतो दर-ए-हबीब झुकाते हैं सर भी हम,
क़ाबिल तो हैं, पनाह के हक़दार हम नहीं।
-छोटी मसजिद के पास, भीम वार्ड
पो. बीना, जिला-होशंगाबाद
मोबाइल नं.7580222901

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चंद्रा लखनवी (सोलहवां स्थान)
तेरी तरह बदलते हैं दिलदार हम नहीं।
होंगे हज़ार तेरे तलबगार हम नहीं।
तुम चाहे जिस तरह से गुज़ारो ये जि़न्दगी,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
रद्दो बदल ज़माने का दस्तूर है मगर,
आबो हवा बिगाड़ दें हक़दार हम नहीं।
अपनी वफ़ा के किस्से सुनाते फिरे हैं जो,
उनकी तरह से वाक़ई बीमार हम नहीं।
हमको ग़ुरूर है कि वतन के लिये हैं हम,
जां देंगे मुल्क़ के लिये गद्दार हम नहीं।
-922,जनकपुरी, बरेली, मोबाइल नं.9808222545
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आमिल सुल्तानपुरी (सत्रहवां स्थान)
खुद अपने दिल से बरसरे पैकार हम नहीं।
ऐसे दिवाने ऐसे तो बीमार हम नहीं।
वो बुज़दिली की लिखता रहा दास्तां नई,
इल्ज़ाम मुझ पे रक्खा वफ़ादार हम नहीं।
खुद को तुम्हारे इश्क़ में कर ही दिया फ़ना,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
तहज़ीबे नौ के पन्नों में हम तो समा गये,
हर कुफ़्र था लरज़ता वो तलवार हम नहीं।
लेता रहा है इम्तेहां हर एक मोड़ पर,
तुझ पर से मगर ऐ दिल कभी बेज़ार हम नहीं।
-प्यारे पट्टी, सुल्तानपुर, मोबाइलः 9450716540
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डाॅ. वजहुल क़मर सिद्दीक़ी (अठाहवां स्थान)
यंू तो हमारा दावा है गद्दार हम नहीं।
उनकी ज़ुबां से सुनिए वफ़ादार हम नहीं।
सद्दाम चढ़ के फांसी पे ऐलान कर गया,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
दिल और दिमाग़ चश्म हैं सब आप के लिए,
फिर आप कह रहे हैं कि दिलदार हम नहीं।
बेशक़ कि तेरी ज़ात है मुख़्तार व क़दीर,
एक नफ़् एक क़दम के भी मुख्तार हम नहीं।
आह-ओ-फ़ुगां-ओ-नाला-ओ-फरियाद सब किया,
इलज़ाम इस पे है कि रवादार हम नहीं।
नज़रों से पूछते हैं कि हूं कौन कैसा हूं,
बोले कोई जु़बां से तरहदार हम नहीं।
-नज़दीक हनीफ़ इंटर कालेज, लोलेपुर
सुल्तानपुर, मोबाइल नं.9451558318

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तरंनुम बद्र शमा (उन्नीसवां स्थान)
कैसे कहा कि तेरे परस्तार हम नहीं।
बच्चे इसी ज़मीं के हैं अग़यार हम नहीं।
तेरी खुशी थी रास्ते हमने बदल लिये,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
कु़र्बान कर दी जान तक अब्दुल हमीद ने,
इलज़ाम पर यही है वफ़ादार हम नहीं।
इस गोद में पले हैं मुज़ाहिद वली नबी,
मां है मताए कूचा-ओ-बाज़ार हम नहीं।
नस्लों से हमने पाई है नस्लों को जाएगी,
यूं बेच देंगे इज़्ज़त-ओ-दस्तार हम नहीं।
-सेनानी बिहार कालोनी, गोरा बारिक अहमट
सुल्तानपुर, मोबाइल नंबर: 9839694922

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पीयूष द्विवेदी ‘पूतू’ (बीसवां स्थान)
सोचो सुकूं से बैठ ख़तावार हम नहीं।
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं।
माना तुम्हारी याद में रोये कभी-कभी,
मत सोचिये कि इश्क़ में बीमार हम नहीं।
मेरे खुतूत पढ़ न सके ग़ौर से कभी,
कहते फिरें यही कि तरफदार हम नहीं।
सच्ची कहें कि झूठ नहीं बोलते सुनो,
नित बेचते हैं देश को गद्दार हम नहीं।
अब आरजू रही नहीं हमें जुस्तजू रही,
मिट तिश्नगी गयी यूं तलबगार हम नहीं।
मैं तो तुम्हारी चाह में फिरता गली गली,
अब कर दिया मना कि मददगार हम नहीं।
तू खा गयी री भूख न जाने किसे-किसे,
सबको पता न क्योंकि ख़बरदार हम नहीं।

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2 टिप्पणियाँ:

अभिन्न ने कहा…

एक शानदार व् काबिले तारीफ प्रयास ,आयोजकों का शुक्रिया

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र ने कहा…

सभ विजेताओं को बहुत बहुत बधाई। आयोजकों का दिल से शुक्रिया।

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