बुधवार, 16 जनवरी 2013

विवेकानंद ने दरिद्र को नारायण बनाने का ज्ञान दिया-रवि

‘गुफ्तगू’ ने विवेकानंद जयंती पर किया मुशायरे का आयोजन
इलाहाबाद। विवेकानंद हालांकि कम उम्र में ही दुनिया को छोड़ गये लेकिन उन्होंने जो काम जनता के लिए किया वह चिरस्थायी है। उन्होंने अपने गुरु द्वारा दी गई शिक्षा (कल्याणकारी ज्ञान से जीव सेवा) को जीवन में रूपांतरित करके दरिद्र को नारायण बना देने का ज्ञान दिया। यह बात हिन्दुस्तानी एकेडेमी के कोषाध्यक्ष रविनदंन सिंह ने ‘गुफ्तगू’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कही। 12 january 2013 को महात्मा गांधी अंतरराष्टृीय हिन्दी विश्वविद्यालय में साहित्यिक पत्रिका ‘गुफ्तगू’ द्वारा मुशायरे का आयोजन किया गया, मुशायरे की शुरूआत रविनदंन सिंह के व्यक्तव्य से हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता तलब जौनपुरी ने की, मुख्य अतिथि रविनंदन सिहं थे, जबकि संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया।

अजय कुमार -
क्या तुम्हें अस्तित्व अपना मुझ बिना उज्ज्वल है दिखता
पर न भूलो है मनुज की बीज बिन पा पौध उगता
गर तुम्हारी दृष्टि में पुरुषत्वता उन्माद ही है
तो न भूखी शक्ति यह भी मां का आशीर्वाद ही है।
 विमल वर्मा ने -
सद्विचार रंगीन अक्षरों के लिबास में बंधे,
किताबों की जेल में बंद पड़े, घुट रहे हैं।
उन्हें तो चाहिए बस, एक निष्ठ आचारण का जामा।
 चांद जाफरपुरी-
यादों से तेरी दिल मेरा मअमूर हो गया।
दिवाना तेरे नाम से मशहूर हो गया।

 विपिन ‘दिलकश’-
किसी के दिल में जुस्तजू मेरे लिए क्यों नहीं है
इन बहारों में रंगो बू मेरे लिए क्यों नहीं है।
 दिनेश अस्थाना-
बहुत सहा है अब न सहेगी
बेख़ौफ़ आज़ाद रहेगी
देखेगी अब दुनिया सारी
कितनी बलशाली कविता।
 
 मखदूम फूलपुरी-
मुसाफि़र अब कोई घर चाहता है,
ये दरिया है समुन्दर चाहता है।
हटा दो पत्थरों को शीशा लाओ,
कहीं पत्थर को पत्थर चाहता है।
 
 फरमूद इलाहाबादी -
मेरी आस्तीं में पले कुछ जि़यादा,
कई सांप उनमें खले कुछ जि़यादा।
किया रास बेगम ने ढ़ीली ज़रा सी,
तो हम हो गए मनचले कुछ जि़यादा।


इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी -
सच को सच से मिला के छोड़ेंगे।
इस ज़मी को सजा के छोड़ेंगे।
कोई जुम्मन न कोई होरी है,
फिर भी मुंशी बना के छोड़ेंगे।
 
 जयकृष्ण राय तुषार -
फ़क़ीरों की तरह धूनी रमाकर देखिये साहब।
तबीयत से यहां गंगा नहाकर देखिये साहब।
यहां पर जो सुकूं है वो कहां है भव्य महलों में,
ये संगम है यहां
तंबू लगाकर देखिये साहब।
 वीनस केसरी-
अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिए।
शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिए।
 पीयूष मिश्र-
सुन्दरता कहीं मन को अभिलाषा है
तो कहीं क्रौंच पक्षी के दर्द की परिभाषा है।

शैलेंद्र जय -
भाईचारे की दुनिया आधी-अधूरी है, सहिष्णुता लग रही मज़बूरी है
अपनी हरकतों से बाज आता नहीं, पाकिस्तान को अब देना जवाब ज़रूरी है।

सौरभ पांडेय-
यह सत्य निज अंतःकरण का सत्वभासित ज्ञान है
मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है।
जो कुछ मिला है आजतक, क्या है सुलभ बस होड़ से,
इस जि़न्दगी की राह अद्भुद, प्रश्न हैं हर मोड़ पर से।

 शाहनवाज़ आलम-
मेरे खुदाया तुझे पता है तू जानता है
तू जानता है तुझे पता है मगर खुदाया
जब तूने वादा लिया है मुझसे, जो काम करते हैं
उसका बदला हमें अज़ाबो-शवाब देगा मगर,
खुदाया मैं जब से जन्मी हूं, ऐसा क्यों है
जो जुल्म करते हैं बढ़ रहे हैं जो जुल्म सहते हैं
मर रहे हैं, मेरे खुदाया अगर पता है तो
फिर देर कैसी 

मंजूर बाकराबादी
रिश्वत चाहे जितना ले लो, बाबू हमको नौकरी दे दो।
चाय के बदले पव्वा पी लो, बाबू हमको नौकरी दे दो।


कु. गीतिका श्रीवास्वत-
आसमां छुना अगर पांव को रखना ज़मीन पर
ये ना हो महलों को पाकर, भूल जाओ माटी का घर।

स्नेहा पांडेय-
अभी भी यक़ीन नहीं
छली गयी तुमसे
प्रेम तो सच था ही तुम्हारा
या मैं संभाल न सकी
या तुम बांटते रहे


रविनंदन सिंह-
वो दिल के पास है इतना कि अक्सर छूट जाता है
बहुत मासूम है हर बात पर ही रूट जाता है।
गहन संवेदना का व्याकरण होता ही ऐसा है,
चोट छेनी को लगती है तो पत्थर टूट जाता है।

 सबा ख़ान-
जि़न्दगी जब भी किसी मोड़ पे दुश्वार हुई।
ये मेरा अज्म है मैं और भी खुद्दार हुई।


तलब जौनपुरी-
मुहब्बत के गुलिस्तां में कहीं नफ़रत नहीं उगती
दयारे इश्क़ में कोई न हिन्दू है न मुस्लिम है।
जो बोये बाहमी नफ़रत उसे मज़हब नहीं कहते,
विवेकानंद का पैग़ाम दुनियाभर में सालिम है।


डा. ज़मीर अहसन-
लाश पर मेरी खड़े हो के क़द्दावर न हुए।
मेरा सर काट के तुम मेरे बराबर न हुए।

कार्यक्रम की ग्रुप फोटोः बायें से खड़े- विमल वर्मा, विपिन श्रीवास्तव, पीयूष मिश्र, चांद जाफरपुरी, रविनंदन सिंह, मखदूम फुलपुरी, शैलेंद्र जय, शाहनवाज़ आलम, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, शुभ्रांशु पांडेय
बायें से बैठे- मंजूर बाकराबादी,सौरभ पांडेय, तलब जौनपुरी, डा. ज़मीर अहसन, सुषमा सिंह,
पांडेय, सबा ख़ान और दिव्या सिंह


 

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