शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

रोज़ एक शायर में आज- मख़दूम फूलपुरी


शीशे के आसपास न सागर के आसपास।
है दिल की आरजू रहूं दिलबर के आसपास।
हो जाये तुझको देखना आसां मेरे लिए,
बन जाये घर जो मेरा तेरे घर के आसपास।
हिम्मत की दाद दीजिए, मुझको सराहिए,
रहता हूं आज कल मैं सितमगर के आसपास।
हैरत की बात है वही लूटे गये यहां,
खेमे गड़े हुए थे जो रहबर के आपसपास।
प्यासा है वो भी कितनी तअज्जुब की बात है,
रहता है रातदिन जो समुन्दर के आसपास।
अंज़ाम जानते हुए नादानी देखिए,
शीश हूं फिर भी रहता हूं पत्थर के आसपास।
मखदमू अपना हाथ बढ़ाना संभाल कर,
होते हैं तेज़ कांटे गुलेतर के आसपास।
मोबाइल नंबरः 09839050254

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