गुरुवार, 12 मई 2011

हेमला श्रीवास्तव के भाव निर्झर


---------------------- इम्तियाज़ अहमद गाज़ी ----------------------------------
अभिव्यक्ति ज़ाहिर करने का सबसे अच्छा माध्यम कविता अथवा शायरी को माना जाता है. विद्वानों का कहना है कि जिसे कविता लिखने समझने का सलीका नहीं आता, उसे जीने का सलीका भी ठीक ढंग से नहीं आता. इसी परिदृश्य में काव्य सृजन बेहद अहम हो जाता है. सृजन को लेकर सुमित्रानंदन पन्त जी ने कहा-
वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा ज्ञान
निकलकर अधरों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान.
तमाम ऐसे लोग हैं, जो सृजन तो करते हैं लेकिन न तो उसे कहीं छपवाते हैं और न ही किसी को सुनाते हैं. बल्कि कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि अपने निकटतम लोगों को भी काव्य सृजन के बारे में नहीं बताते. इसके बावजूद कभी न कभी जीवन में ऐसा अवसर आता है जब वे अपने काव्य सृजन को लोगों के सामने लाने का निर्णय लेते हैं. हेमला जी ऐसी ही एक कवयित्री हैं, जिन्होंने लगातार कविता का सृजन किया है. पेशे से अध्यापिका रहीं हेमला जी ने सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी कविताओं को पुस्तक का रूप देने का मन बना लिया.जीवनभर कविताओं का सृजन करके अपने तक ही सीमित रखने वाली कवियत्री का सृजन जब लोगों के सामने आ गया है, निश्चित रूप से काव्य प्रेमी इसका स्वागत करेंगे.

हेमला जी का सृजन बहते पानी की तरह है. पहाड़ों से निकले स्वच्छ जल को जिस तरफ भी रास्ता मिलता है, चल पड़ता है.उसे किसी विशेष रस्ते की ज़रूरत नहीं होती. उसे तो बस बहते रहना है और लोगों की प्यास बुझाना है,उनकी ज़रूरतें पूरी करनी है. इसी तरह हेमला जी की कविताएँ किसी विधा विशेष से बधीं नहीं हैं. उन्होंने तो बस अपनी अभिव्यक्ति को कागज पर उकेर दिया है. ऐसी कवितायें पढकर काव्य प्रेमी प्रफुल्लित होने के साथ ही जीवन की सच्चाई से रूबरू हो जाते हैं, उसे लगता है कि यह कविता उसी के लिए लिखी गई है, फरमाती हैं-
किस्मत तो लिखी थी मेरी सोने की कलम से
पर इसका क्या करें कि स्याही में ज़हर था.
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने इलाहाबाद में एक मजदूरनी पत्थर तोड़ते हुए देखा तो उनके अंदर का कवि जाग उठा और तोडती पत्थर जैसी कालजयी कविता का सृजन किया. हेमला जी ने भूख से बेहाल बचपन और उसके आगे मजबूर ममता अपनी कविता का विषय बनाया-
गीत गूंगे हो गए हैं, लेखनी स्तब्ध है,
आह भी सहमी हुई है ,शब्द भी निःशब्द है.
रोते आँचल के तले हैं,भूख से बेहाल बचपन
हो गई मजबूर ममता,बेचने को अपना यौवन.
कवि दूसरों के दुःख को लेकर अपने सुख बांटता है और इसी में अपने जीवन को सार्थक समझता है-
तुम पूनम की रातें लेकर अन्धकार मुझको दे देना,
मैं भावों के दीप जलाकर,अपनी दीवाली करुँगी.
तुम सागर के मोती लेकर,खाली सीप मुझे दे देना,
मैं अपने अश्कों से उन खाली सीपों की गोंद भरूंगी.

हेमला जी की यह पुस्तक निश्चित रूप से चर्चा का विषय बनेगी.काव्य जगत में इसे हाथों हाथ लिया जाएगा, ऐसी उम्मीद है.
पुस्तक का नाम: भाव निर्झर
कवयित्री: हेमला श्रीवास्तव
पृष्ठ: 160, कीमत: 51 रुपये
प्रकाशक:
गुफ्तगू पब्लिकेशन
123 ए/1, हरवारा, धूमनगंज
इलाहाबाद-211011







1 टिप्पणियाँ:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

पुस्तक जानकारी का तहे दिल से शुक्रिया...आनंद आ गया.

नीरज

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