शनिवार, 21 जून 2025

           बच्चों के किरदारसाज़ नदीम अंसारी

                                                                                 - डॉ. वारिस अंसारी 


 

 डॉक्टर बनना आसान है लेकिन बच्चों का डॉक्टर बनना बहुत कठिन काम है। क्योंकि बच्चे कुछ बता नहीं सकते, उनकी हालात का जायज़ा लेकर ही उन्हें समझा जा सकता है। इसी तरह कहानीकार वह भी बच्चों का कहानीकार एक बड़ी सिफत का मालिक होता है। लेखक को बच्चों के तर्जे अमल को करीब से खंगालना होता है। उनके एहसासात समझने पड़ते हैं। उनके दुख सुख को जानना होता है। तब कहीं जाकर बच्चों के लिए कुछ लिखा जा सकता है  नदीम अंसारी ने बच्चों को बहुत करीब से देखा-समझा और उनका अध्ययन किया है, तब कहीं उनकी मेहनत ‘सुनहरा कलम’ की शक्ल में मंजरे आम पर आ पाई। बच्चों के लिए बहुत पहले से अदबी कहानियां लिखी जाती रही हैं लेकिन उनमें वह सब नहीं है जो आज के बच्चों की ज़़रूरत है। नदीम अंसारी ने आज के बच्चों के मेज़ाज को परखा और समझा तब उन्होंने बच्चों के लिए अपना कलम उठाया ताकि इन कहानियों को पढ़ कर बच्चे दर्स हासिल कर सकें। ‘सुनहरा कलम’ में 24 कहानियां हैं, जिनमें ‘साबरह’ एक ऐसी कहानी है जो दो अलग-अलग मज़हब के मानने वालों पर मुन्हसिर है, और ये कहानी हिदोस्तानी तहज़ीब और कौमी यकजहती की नुमाइंदगी करती है। इसी मजमूआ (संग्रह) में ‘नेकी की राह’ से बच्चों में हमदर्दी का जज़्बा पैदा किया जा सकता है । 

 नदीम की ज़बान में बला की सादगी है, सलासत है। इनकी कहानियां पढ़ने में एक अलग का लुत्फ आता है। नदीम अंसारी दुनिया में भले ही न हों वह अदब में आज भी जिंदा हैं। उनके छोटे भाई मो. इरशाद की लगन और इरफान अहमद अंसारी की मेहनत ने उनकी कहानियों को मंजरे आम पर ला कर एक बड़ा काम किया है। यकीनन इस अदबी काम से मरहूम नदीम की रूह को तस्कीन ज़रूर मिली होगी। दुआ है अल्लाह उनको गरीके रहमत करे ।

 इस मामूली से कालम में उनकी कहानियों पर तब्सेरा करना आसान नहीं है। उनकी कहानियों में सब एक से बढ़ कर एक कहानी हैं। ‘फुलवारी’, ‘इंसाफ’, ‘झूठा ख़्वाब’, ‘अटूट रिश्ते’, ‘नई जिं़दगी’ जैसी तमाम कहानियां पढ़ने के लायक हैं जिनका सीधा असर दिलो दिमाग पर पड़ता है। हार्ड जिल्द के साथ 160 पेज की इस किताब को मीनाई ग्राफिक्स , तारैन जलाल नगर, शाहजहांपुर कंपोज करा कर रोशन प्रिंटर्स दिल्ली से सन 2022 में प्रकाशित किया गया। किताब की कीमत मात्र 250 रुपए है ।

एक अज़ीम शख़्सियत दिल शाहजहांपुरी



  ये बात बिलकुल सच है कि हर ज़िंदा और बेदार कौम अपने पुरखों को याद करती हैं। और जिसने अपने पुरखों को भुला दिया तो समझें उसने अपनी नस्लों को मिटा दिया। सो अपने बुजुर्गों की याद दहानी बहुत ज़रूरी है। इस कड़ी में इरफान अहमद अंसारी का नाम लेना बहुत ज़़रूरी है क्योंकि उन्हीं की मोरत्तिब किताब ‘इरफान-ए-दिल’ का ज़िक्र होना है । इरफान को अगर अदबी दुनिया का मुजाहिद कहा जाए तो गलत नहीं होगा। क्योंकि इन्होंने अदब में नुमाया खिदमात अंजाम दीं हैं जो कि उनके जिंदादिली और अपने पुरखों से दिलचस्पी का सुबूत हैं । 

  दिल शाहजहांपुरी पर मुरत्तिब उनकी किताब इरफान ए दिल कोई मामूली किताब नहीं और मामूली होगी भी कैसे। क्योंकि दिल शाहजहांपुरी कोई छोटा मोटा या मामूली नाम नहीं है। ये वह शख्सियत है जिसे हजरते अमीर मीनाई की शागिर्दी हासिल है। दिल शाहजहांपुरी शायरी की दुनिया का बहुत बड़ा नाम है। उन पर और उनकी शायरी पर अब तक हजारों मजमून लिखे जा चुके हैं। सबसे बड़ी बात ये  कि अल्लामा इकबाल भी दिल शाहजहांपुरी की शायरी से बहुत मुतास्सिर थे। इरफान अहमद अंसारी ने भी इन्हीं बड़ों के नक्शे कदम पर चलने का काम अंजाम दिया और अपने कलम को अफसाना निगारी व मज़मून निगारी की जानिब मुंतखिब करके अदबी खिदमात को अंजाम दे रहे हैं । 

 पच्चासों लोगों से मज़मून इकट्ठा करना और फिर उन पर काम करके किताब की शक्ल देना कोई बच्चों का खेल नहीं। ये बड़े दिल और बड़े हौसला वालों का काम है। जहां ज़र और वक्त सब कुछ कुर्बान करना पड़ता है। दिन का चैन और रातों की नींद कुर्बान करनी पड़ती है। तब कहीं जाकर इस तरह की किताबें मंजरे आम पर आ पाती हैं। यकीनन ये किताब तलबा के लिए बहुत ही नायब किताब है। ख़ास तौर पर स्कॉलर्स के लिए बेहद काम की किताब है। जो अदबी दुनिया के लिए मील का पत्थर साबित होगी। किताब को रोशन प्रिंटर्स देहली से कंपोज करा कर सन 2018 में एजुकेशनल पब्लिकेशन हाउस 3191, वकील स्ट्रीट , लाल कुआं, देहली 6, से प्रकाशित किया गया । 336 पेज के इस किताब की कीमत 400 रुपए है।


(गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2024 अंक में प्रकाशित)


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