लेखकों, पत्रकारों तथा शोधार्थियों के लिए बेहद उपयोगी
- अजीत शर्मा ‘आकाश’
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी लगभग 20 वर्षों से पत्रकारिता जगत में सक्रिय हैं। पत्रकार होने के साथ ही वह एक शायर, लेखक एवं साहित्यकार भी हैं। इस कारण पत्रकारिता के अतिरिक्त वह सृजनात्मक साहित्यिक लेखन का कार्य भी करते रहते हैं। इसी सृजनात्मक लेखन के फलस्वरूप उनकी पुस्तक ‘यादों का गुलदस्ता’ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हुई है। ‘यादों का गुलदस्ता’ नामक इस पुस्तक में 20 वर्षाे के पत्रकारिता कैरियर के दौरान हिन्दी-उर्दू के साहित्यकारों और अन्य विविध क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्तियों एवं कलाकारों पर लिखे गये तथा विभिन्न समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित उनके लेखों एवं संस्मरणात्मक आलेखों को संकलित किया गया है। इन महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय व्यक्तियों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट उपलब्धियों के माध्यम से ख्याति प्राप्त की है। इनमें से अधिकतर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत तथा राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हस्तियां सम्मिलित हैं। कवियों में महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, कैलाश गौतम, नीलकान्त, डॉ. जगदीश गुप्त, यश मालवीय, अरूण अर्णव आदि सम्मिलित हैं तथा शायरों में फ़िराक़ गोरखपुरी, अकबर इलाहाबादी, मुनव्वर राना, कैफ़ी आ़ज़मी, सरदार जाफ़री, साहिर लुधियानवी, इब्राहीम अश्क, अनवर जलालपुरी, कमलेश भट्ट,, डॉ. श्यामसखा श्याम, हरेराम समीप, विज्ञान व्रत आदि सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त मार्कण्डेय, दूधनाथ सिंह जैसे कहानीकार रवीन्द्र कालिया, जैसे पत्रकारों तथा कॉमरेड ज़ियाउल हक्र आदि पर भी लेखनी चली है।
पुस्तक के कुछ लेखों तथा आलेखों में टिप्पणियां की गयी हैं, जो वर्तमान समय का सटीक चित्रण करती-सी प्रतीत होती हैं। ये टिप्पणियाँ नव लेखकों तथा कवि-शायरों के मार्गदर्शन हेतु अत्यन्त आवश्यक प्रतीत होती हैं। यथा-‘कविता की अराजकता के बीच यह देखना ज़रूरी लगता है कि आज कविता के नाम पर क्या-क्या खेल हो रहे हैं, जिन्हें ‘कविता’ का सही अर्थ तक नहीं पता वो भी स्वघोषित महाकवि हो चुके हैं।“...... “आजकल नई कविता के नाम पर छोटी-बड़ी लाइनें लिखी जा रही हैं।“...... “आज मुशायरे में शामिल होने, लोगों के नाम जुड़वाने-कटवाने और मठाधीशी क़ायम रखने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं। लोग एक दूसरे की बखि़या उधेड़ने में लगे रहते हैं।“ आदि आदि।
लेखन-शैली रोचक एवं प्रवाहयुक्त है। लेखों की भाषा साहित्यिक है, जिसमें सामान्य एवं प्रचलित शब्दों तथा वाक्यांशों का प्रयोग भी किया गया है। कुछ लेखों तथा आलेखों के शीर्षक अत्यन्त रोचकता लिए हुए हैं, यथा- निराला के बहाने हो रही कविता की दुर्गति, मुनव्वर राना से जुड़ा तो जुड़ता चला गया, बग़ावती तेवर के शायर साहिर लुधियानवी, कैलाश गौतम जैसा कौन है यहां, कई मायनों में रवीन्द्र कालिया का जोड़ नहीं, इंसानियत के पैकर में ढले अमरकांत,, कौन है अनवर जलालपुरी जैसा नाज़िम आदि। ‘यादों का गुलदस्ता’’ पुस्तक के अतिरिक्त इस प्रकार की जानकारी एवं सामग्री एक ही स्थान पर उपलब्ध हो पाना असम्भव है, इस कारण से भी यह पुस्तक, लेखकों पत्रकारों तथा शोधार्थियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी सि़द्ध हो सकती है। कहा जा सकता है कि यह पठनीय, सराहनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक है। इसे पुस्तकालयों में रखा जा सकता है, जिससे जन सामान्य को भी इस प्रकार की जानकारी प्राप्त हो सके। पुस्तक का मुद्रण एवं गेट अप उत्तम कोटि का है तथा सम्पूर्ण कवर पृष्ठ पर संकलन में सम्मिलित विभिन्न व्यक्तित्वों की फ़ोटो हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि पुस्तक पठनीय, सराहनीय एवं संग्रहणीय कोटि की बन पड़ी है। 160 पृष्ठों की पुस्तक इस सजिल्द पुस्तक को पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत मूल्य 300 रूपये है।
गीता का देवनागरी लिपि में उर्दू काव्यानुवाद
महाभारत के युद्ध के समय मोहग्रस्त अर्जुन द्वारा युद्ध करने से मना किये जाने के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें कर्म व धर्म का ज्ञान प्रदान करने हेतु उपदेश दिये, जिन्हें ‘‘श्रीमद्भगवद्गीता” नामक ग्रंथ में वर्णित किया गया है। यह अमर ग्रन्थ पुरातन काल से ही भारतीय चिन्तन व अध्यात्म का महत्त्वपूर्ण प्रेरणा-स्रोत रहा है। यह धार्मिक ही नहीं, अपितु एक दार्शनिक ग्रन्थ भी है। इसका अपना अनूठा दर्शन है, जो आज के भौतिकतापरायण, मानसिक तनावों से ग्रस्त तथा जीवन के वास्तविक अर्थ की खोज में भटकते मनुष्य के लिए उतना ही प्रासंगिक है, जितना वह सहस्रों वर्षों से रहा है। ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ को संक्षेप में ‘गीता’ कहा जाता है। अर्जुन को दिये गये गीता के ये उपदेश मानव का मनोबल बढ़ाते हैं तथा विषमतम परिस्थितियों में भी जीवन-पथ को आलोकित करते हैं।
गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। यह अद्भुत् ग्रन्थ मूल रूप से संस्कृत भाषा में रचित होने के कारण इस भाषा का ज्ञान न रखनेवाले व्यक्ति इसके अर्थ तथा मर्म को नहीं समझ पाते हैं। अतः इस प्रकार के व्यक्ति भी इस ग्रन्थ की अमर शिक्षाओं से परिचित होकर लाभान्वित हो सकें, इस उद्देश्य से हिंदी भाषा सहित विश्व की लगभग सभी महत्त्वपूर्ण भाषाओं में श्रीमद्भगवद्गीता के अनुवाद किए जा चुके हैं, जिनमें पद्यात्मक अनुवाद भी सम्मिलित हैं। लेखक एवं शायर राम चन्द्र वर्मा ‘साहिल’ ने श्रीमद्भगवद्गीता के संस्कृत श्लोकों के भावों तथा विचारों को उर्दू शायरी के माध्यम से व्यक्त करते हुए इसका मन्ज़ूम तर्जुमा (काव्यानुवाद) प्रस्तुत किया है, जो देवनागरी लिपि में है। इस तर्जुमे के प्रकाश में आने से धर्म और अध्यात्म की में रूचि रखनेवाले उर्दूभाषियों क्रे लिए भी गीता का ज्ञान सुलभ हो गया है। इसके अन्तर्गत गीता के दुरूह श्लोकों का सरल एवं बोधगम्य काव्यानुवाद करने का प्रयास किया गया है। इस तर्जुमे के माध्यम से श्रीमद्भगवद्गीता को हिन्दी और उर्दू के दृष्टिकोण से देखने-समझने का प्रयास भी किया जा सकता है। पुस्तक के अन्तर्गत गीता के कुछ प्रमुख श्लोकों के उर्दू शायरी तर्जुमे के कुछ अंश इस प्रकार से हैं -‘न इसे कोई काट सकता, न जला सकती है आग/न सुखा सकती हवा और न भिगो सकता है आब/ टुकड़े इसके हो न सकते, न ही घुल सकता है यह/ दाइमी है, हर जगह है और है बेऐब भी।’ (बाब-2 श्लोक 23-24), ‘अमल करने का ही अर्जुन हक़ मिला सबको फ़क़त/ अमल का फल पाने का लेकिन नहीं कोई हक़ मिला/ अमल के फल को भी तुम समझो नहीं ख़ुद को वज्ह/ और ना ही अमल करना तुम कभी भी छोड़ना।’ (बाब-2 श्लोक 47)
आशा की जा सकती है कि गीता का यह मन्ज़ूम तर्जुमा संस्कृत न जाननेवाले या उसका कम ज्ञान रखनेवाले गीताप्रेमी उर्दूभाषियों को मूल संस्कृत पाठ को पढ़ने जैसा ही आनन्द प्रदान कर सकेगा। गीता का यह उर्दू शायरी तर्जुमा पठनीय एवं सराहनीय है। 112 पेज की इस सजिल्द पुस्तक को गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 200 रुपये है।
काफ़ी आश्वस्त करती हैं शमा की ग़ज़लें
पुस्तक ‘शम’अ-ए-फ़रोज़ाँ’ शमा फ़िरोज की ग़ज़लों का संग्रह है। लेखिका ने पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि फ़ेसबुक के साहित्यिक समूहों ने उन्हें ग़ज़ल-लेखन हेतु प्रेरित किया और फ़िलबदीह कार्यक्रम में उन्होंने अशआर लिखना शुरू किया। इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत सीखने के इच्छुक रचनाकार को किसी ग़ज़ल की एक पंक्ति दे दी जाती है और उन्हें उसके ’क़ाफ़िया’ और ’रदीफ़’ तथा बह्र के अनुसार अश्आर कहने होते हैं। दी हुई पंक्ति को पूर्ण करने के लिए रचनाकार अपनी पंक्ति उसमें जोड़ता है। इस शे‘र को ‘गिरह का शे‘र’ कहा जाता है। इस प्रकार की ग़ज़ल-रचना करने वाले अधिकतर शायर उस ग़ज़ल में से ‘गिरह के शे‘र’ को हटा देते हैं। इस संग्रह की लगभग सभी ग़ज़लों में शाइरा ने गिरह के शे‘र भी सम्मिलित किये हैं।
शायरा ने भूमिका के अन्तर्गत बताया है कि लगभग तीन वर्ष तक ग़ज़ल के विषय में सीखने के उपरान्त उन्होंने ग़ज़लें लिखी हैं। इतनी कम अवधि शायरी की परिपक्वता के लिए कम मानी जाती है, किन्तु संग्रह की ग़ज़लें पढ़ने के पश्चात् ज्ञात होता है कि ग़ज़ल व्याकरण के अनुसार वे लगभग दुरूस्त हैं। हालांकि, ग़ज़लों के ऐब के विषय में रचनाकार को अधिक जानकारी न होने के कारण अनेक ग़ज़लों में देखो, सुनो, दोस्तो, यारो, जानेमन, जानम, सनम, देखिए, जैसे भर्ती के शब्दों की भरमार है। इसके अतिरिक्त ख़ूब बिकती, मत तकब्बुर, फिर रूत, ख़त तुम्हारे, प्यार रहमत, क़यामत तक, गुज़र रहे आदि के प्रयोग के कारण ग़ज़लों में ऐबे तनाफ़ुर (मिसरे में किसी शब्द के अंतिम अक्षर की उसके बाद वाले शब्द के पहले अक्षर से समानता) आ गया है।
संग्रह की ग़ज़लें सामान्य प्रकार की हैं, जिनमें सपाटबयानी-सी परिलक्षित होती है। फिर भी रचनाकार शमा फ़िरोज की ग़ज़लें काफ़ी आश्वस्त करती हैं। कथ्य की दृष्टि से देखा जाए, तो ग़ज़लों का वर्ण्य विषय महंगाई, बेरोज़गारी, क्षुद्रता की राजनीति, स्वार्थपरता, सामाजिक विसंगतियाँ आदि है। इसके अतिरिक्त रोमानी शेर भी कहे गये हैं। कुछ शे‘र अच्छे बन पड़े हैं, जिनकी झलक प्रस्तुत है-‘शहरों में जा के देखो गलियों का हाल बदतर/कचरा पड़ा हुआ है और गंदी नालियाँ हैं।’, ‘रूत बहारों की चमन में आ गयी है जानेमन/साथ तेरा है नहीं फिर रूत सुहानी किसलिए।’, ‘तभी तो कोशिशें करते हैं हम दुनिया सजाने की/तमन्ना है हमारी इक नया सूरज उगाने की।’, ‘इधर ग़ुरबत ज़दों पर मुफ़लिसी का भार देखा है/उधर इन लीडरों का दोग़ला किरदार देखा है।’, ‘जो सीख हमने मानी न अपने बुज़ुर्गाे की/उससे ही घर हमारा दरारों में बँट गया।’, ‘खु़शबू में बसे हैं हम महकेंगे फ़िज़ाओं में/खो जाएँगे फिर हम तुम कुदरत के नज़ारों में।’, ‘‘शम‘अ’’ जानी जाती है अब शायरा के नाम से/शायरी ने ही बनाई उसकी यह पहचान है।’ इस पहचान को और अधिक विस्तृत बनाने के लिए इस क्षेत्र में ‘शाइरा’ को अभी और बहुत कुछ सीखना आवश्यक है। आशा की जा सकती है कि अगला संकलन और बेहतर ग़ज़लें लेकर पाठकों के समक्ष आयेगा। पुस्तक का मुद्रण एवं अन्य तकनीकी पक्ष अच्छा है। 112 पृष्ठों की इस सजिल्द पुस्तक को गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 200 रूपये है।
सामाजिक विसंगतियों के चित्रण की कहानियां
पुरस्कृत कहानी संग्रह ‘गिरगिट’ के पश्चात् रचनाकार अखिलेश निगम ‘अखिल’ की पुस्तक ‘मेरा हक’ उनका दूसरा कहानी संग्रह है, जिसमें चौदह कहानियाँ संग्रहीत की गयी हैं। संग्रहीत कहानियों में वस्तु एवं शिल्प की विविधता दृष्टिगोचर होती है। साधारण रूप से कहानी के छः तत्व या घटक माने गए हैं- कथावस्तु अथवा कथानक, कथोपकथन अथवा संवाद, चरित्र चित्रण अथवा पात्र, देश-काल-वातावरण, भाषा-शैली और शिल्प तथा उद्देश्य। संग्रह की कथा-रचनाओं में इन समस्त तत्वों को समुचित विकास प्रदान किया गया है। पुस्तक में संग्रहीत कहानियों की भाषा एवं शैली सधी हुई, सरल, सहज तथां बोधगम्य है जिनमें पात्रों के अनुरूप भाषा का प्रयोग किया गया है। सहज एवं स्पष्ट संवाद तथा घटनाओं का सजीव चित्रण की विशिष्टताएँ इन कहानियों में मुख्य रूप से परिलक्षित होती हैं।
कथावस्तु के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों तथा को भली-भाँति चित्रित करने का प्रयास किया गया है। पुस्तक की पहली कहानी ‘मेरा हक’ किन्नर विमर्श की चर्चा-परिचर्चा पर आधारित है। जिसमें रचनाकार ने समाज की सोच पर एक प्रश्नचिह्न-सा अंकित किया है। ‘सात फेरे’ तथा ‘विवाह की शर्त’ कहानियाँ नशे की समस्या को आधार बनाकर रची गयी हैं। कुछ कहानियाँ अत्यन्त मार्मिक बन पड़ी हैं। कहानियों के पात्र जटिल परिस्थितियों का सामना करते हुए मन में सदैव आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए उन्हें पराजित करने का पूर्ण प्रयास करते हैं। कहानीकार ने परिस्थितियों का गहन अवलोकन करते हुए एवं समाधान की दिशा बताते हुए अपनी रचनात्मकता को उच्च आयाम प्रदान किये हैं। इस कारण कोई कहानी मनगढ़न्त किस्सा प्रतीत नहीं होती है।
चौदह कहानियों में अलग-अलग प्रकार के शिल्प एवं शैलियों का प्रयोग किया गया है। संवाद शैली एवं पत्र शैली कहानीकार के अपने मौलिक शिल्प है, जो ‘आओ चलें’ तथा ‘बिखर गई जिन्दगी’ कहानियों में स्पष्टतः परिलक्षित होते हैं। ‘रेत के रिश्ते’, ‘मासूम भिखारी’ जैसी मार्मिक कहानियों में पात्रों की चिन्ता, बेबसी, एवं जटिल मनःस्थिति का भलीभाँति चित्रण किया गया है। ‘काल खण्ड’ नामक कहानी संस्मरणात्मक यात्रा वृत्त पर आधारित है, जिसके अन्तर्गत उत्तराखंड के केदारनाथ में आई प्रकृति-प्रलय एवं विध्वंस को दर्शाया गया है। वर्णन की चित्रात्मकता इस कहानी का वैशिष्ट्य है। रचनाकार स्वयं पुलिस विभाग में उच्च पदस्थ अधिकारी हैं, अतः समाज के विभिन्न घटकों और वर्गों के साथ गहरे स्तर पर जुड़े होने के करण समाज के कटु यथार्थ से वे सुपरिचित हैं। अतः कहानियों में अनुभवजन्य यथार्थ की अभिव्यक्ति दृष्टिगोचर होती है। पुलिस अधिकारी के साथ-साथ समाज सुधार की भावना से युक्त संवेदनशील एवं मानवतावादी सोच होने के कारण समस्त कहानियाँ जीवन्त सी प्रतीत होती हैं। यह अवश्य है कि संक्षिप्तता कहानी का अनिवार्य गुण माना गया है। इस दृष्टि से ‘मासूम भिखारी’ कहानी कुछ अधिक लम्बी हो गयी है। ‘सात फेरे’ कहानी में विवाह बन्धन तोड़ने के लिए रामदुलारी द्वारा अग्नि के उलटे फेरे लिए जाना हमारे समाज में अव्यावहारिक तथा अतिशयोक्तिपूर्ण स्थिति उत्पन्न करता है। समाज को सकारात्मक भाव तथा सन्देश प्रदान करने वाली कहानियों का यह संग्रह पठनीय एवं सराहनीय है। 136 पृष्ठों के इस कहानी संग्रह को अमर प्रकाशन, कानपुर ने प्रकाशित किया है, जिसका मूल्य 325 रूपये है।
(गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2024 अंक में प्रकाशित)
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