सोमवार, 2 दिसंबर 2024

 स्वतंत्रता आंदोलन के सिपाही फरीदुल हक़ अंसारी 

                                                         - सरवत महमूद खां 

                                      

 सोशलिस्ट आन्दोलन के संस्थापक और स्वतंत्रता संग्राम के मशहूर सिपाही फरीदुल हक अंसारी का जन्म एक जुलाई सन 1895 ई. को युसुफपूर मुहम्मदाबाद में हुआ था। आप के पिता निज़ामुल हक़ अंसारी युसुफपूर मुहम्मदाबाद के प्रतिष्ठित काजी परिवार के सदस्य थे। काजी निज़ामुल हक़ की गणना गाजीपुर कांग्रेस के संस्थापक सदस्य के रूप मे की जाती है। फरीदुल हक अंसारी का परिवार ग़ाज़ीपुर का रईस जमीन्दार और सम्पन्न परिवार था, लेकिन वह इस आरामपसंद नहीं थे और विलासिता से काफी दूर ही रहे।


फरीदुल हक अंसारी


  फरीदुल की प्रारम्भिक शिक्षा स्टीफेंस स्कूल के बाद अलीगढ विश्वविद्यालय से हुई। इस के बाद उच्च शिक्षा के लिए लंदन चले गए। लंदन से वार-एट-ला की डिग्री हासिल की। लंदन में पढ़ाई के दौरान वह जवाहरलाल नेहरू के सहपाठी थे और वहीं से नेहरू जी से घनिष्ठता हो गई थी। सन् 1925 में लंदन से वापसी पर अपने सगे मामू ड़ॉ. मुख्तार अहमद अंसारी की कोठी नम्बर-1, दरियागंज, देहली में रहकर वकालत शुरू कर दी। दिल्ली के रेन्ट कंट्रोल एक्ट के चयन समिति के सदस्य बनाये गये। जिसके कारण सभी सरकारी सुविधायें मिलने लगीं। मगर देश प्रेम की भावना के कारण अस्वीकार कर दिया। देशद्रोह के एक मुकदमे में अपने मुवक्किल को सजा से मुक्त न करा सके, जिससे दुखी होकर सदा के लिए वकालत छोड़ दिए।

  सन 1920 में कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बने। सन 1927 में साइमन कमीशन का खुलकर विरोध किया। 17 मई 1922 को पटना में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में हुए सम्मेलन में उसमें भाग लिया। सन 1927 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य एवं 1929-30 मंे दिल्ली कांग्रेस कमेटी के सचिव बनाये गये। सन 1938 में दिल्ली कांग्रेस कमेटी के आरगनाइजर बनाये गये। फरीदुल हक़ अंसारी, स्वामी सहजानन्द सरस्वती के विचारों से प्रभावित होकर 23 अक्टूबर 1938 को अपने गृह नगर मुहम्मदाबाद में किसान सम्मेल शामिल हुए। यहां संबोधित करने के लिए नरेंद्र देव व सहजानन्द सरस्वती को आमंत्रित किया गया था। कांग्रेस पार्टी में समाजवादी विचार धारा के पोषक थे। इसी वजह से उनकी जो ज़मीन और बाग़ान काश्तकारों से उपयोग था, उसे बांट दिया। जिसके लिए पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने धन्यावाद दिया था। 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हें जेल भेज दिया गया था। इसी प्रकार 1942 में जनक्रांति में शामिल होने पर छह माह की कारावास की सजा हुई। इनको फिरोजपुर जेल भेजा गया। इसी समय माता एवं पत्नी का देहांत हो गया, लेकिन इस मार्मिक घटना से भी विचलित नही हुए लेकिन यह दर्द उन्हे जीवन भर सालता रहा। सन् 1945-46 में युसुफपुर लौट आए। 1946 में संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश ) में धारा सभा (विधानसभा) का चुनाव होना था। मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण पंडित नेहरू ने उन्हे गाजीपुर जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस की हार के कारण इस्तीफा दे दिया और साथ ही उ. प्र कांग्रेस कार्यकारिणी से भी इस्तीफा दे दिया। 

 आप गांधी जी के उस विचार से सहमत थे कि आजादी मिलने के बाद कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए। अपने इसी विचार और अक्खड़ स्वभाव से कांग्रेस से संबंध विच्छेद कर बाद में आजीवन सोशलिस्ट विचारधारा के साथ रहे। यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति व कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख मार्शल टीटो के निमंत्रण पर भारत से समाजवादियों का प्रतिनिधिमंडल 1952 में आप ही के नेतृत्व में यूगोस्लाविया गया था। इस प्रतिनिधिमंडल में कर्पूरी ठाकुर, बांके बिहारी दास,  शांति नारायण नाईक और मधु दंडवते शामिल थे। पंडित नेहरू बहुत चाहते थे कि आप कांग्रेस में लौट आएं, लेकिन फरीदुलहक इसके लिए तैयार नहीं हुए। आपका घनिष्ठतम संबंध नेता जी सुभाष चन्द्र बोस एवं किसान नेता स्वामी सहजानन्द सरस्वती से थे। 1940-41 में जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस गाजीपुर आये थे तो स्वामी सहजा सहजानन्द सरस्वती के साथ आप भी नेता जी से मिले थे। इसके पूर्व भी 1938 में आपकी एक गुप्त भेंट पटना में नेता जी सुभाषचंद्र बोस से हुई थी। आप राज्यसभा के दो बार ( 3 अप्रैल1958 से 2 अप्रैल 1964  एवं  3 अप्रैल 1964 से 4 अप्रैल 1966 तक) सांसद रहे। 4 अप्रैल 1966 को 70 वर्ष की आयु में बम्बई के एक अस्पताल में इंतिकाल हो गया।  उनकी अन्तिम इच्छा थी कि उन्हे उनके आबाई कब्रिस्तान युसुफपुर में दफन किया जाय, इसलिए बम्बई से उनके पार्थिव शरीर को फौजी हवाई जहाज से गाजीपुर लाया गया। उनके पार्थिव शरीर के साथ बम्बई से उनके शिष्य और आस्था रखनेवाले चन्द्रशेखर बलिया (जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने ) सेवक के रूप में आये थे। उन्हें उनके पैतृक कब्रिस्तान कोटीया (युसुफपुर )में दफनाया गया।


(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2023 अंक में प्रकाशित )

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